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प्रधान संपादक की कलम से

संघर्ष की वजह से तेल की कीमत में आग लग सकती है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा. खाड़ी देशों में रहने वाले लगभग 90 लाख भारतीयों पर भी असर पड़ेगा

इंडिया टुडे कवर : 20 नवंबर, 2024
अपडेटेड 22 जुलाई , 2025

- अरुण पुरी

एक बार फिर से दुनिया युद्ध के मौसम में आ फंसी है. राहत की बात सिर्फ इतनी है कि संघर्षविराम हो रहे हैं, चाहे वे कितने ही अस्थायी क्यों न हों. इस साल मई में भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक जंग चली, जिसमें एटमी हमले की धमकियां भी शामिल थीं. फरवरी 2022 से शुरू हुआ रूस-यूक्रेन का खूनी संघर्ष अब भी जारी है. लेकिन असली बारूद का ढेर तो पश्चिम एशिया है.

7 अक्तूबर, 2023 को हमास के आतंकी हमलों के बाद इज्राएल ने नेस्तोनाबूद कर देने की नीति अपनाई. इस कार्रवाई में गजा में अब तक 56,000 से ज्यादा नागरिक मारे गए और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं. पिछले डेढ़ साल में इज्राएल ने ईरान के नेतृत्व वाले तथाकथित 'एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस' के दूसरे अहम घटकों पर भी हमले किए. इसमें लेबनान में हिज्बुल्ला, यमन में हूती और सीरिया में सत्ता परिवर्तन की कोशिशें शामिल थीं.

जब जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप फिर से सत्ता में लौटे तो इज्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे ईरान पर हमला करने का सुनहरा मौका माना. ईरान इस क्षेत्र में इज्राएल की सैन्य ताकत की एकछत्र बादशाहत के लिए सबसे बड़ा खतरा है. हालांकि शुरुआत में ट्रंप ने कूटनीतिक समाधान के तहत ईरान को 12 जून तक अपनी एटमी सुविधाएं खत्म करने की डेडलाइन दी. जब ईरान ने शर्त नहीं मानी तो इज्राएल ने अगले ही दिन 13 जून को बड़ा हमला कर दिया.

उसने लड़ाकू विमानों और ड्रोन के जरिए ईरान के प्रमुख एटमी और बैलिस्टिक मिसाइल ठिकानों को निशाना बनाया. साथ ही इज्राएल ने हाइब्रिड रणनीति भी अपनाई—जिसमें कार बम और हत्याएं शामिल थीं. जवाब में ईरान ने लंबी दूरी की मिसाइलों का एक लाइव प्रदर्शन किया, जिन्हें खासतौर पर इज्राएल के आयरन डोम सुरक्षा कवच को भेदने के लिए बनाया गया था.

हालात ने और गंभीर मोड़ लिया जब ट्रंप ने ऐलान किया कि अमेरिका भी जंग में शामिल होगा. उन्होंने अपने बी2 स्टेल्थ एयरक्राफ्ट से ईरान के तीन प्रमुख एटमी ठिकानों पर बमबारी की इजाजत दे दी—जिनमें जीबीयू-57 मै‌सिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर जैसे बंकर बस्टर बम इस्तेमाल किए गए. ये बम 60 फुट मोटी कंक्रीट परत को भेद सकते हैं और फोर्दो जैसे गहराई में बने एटमी अड्डों को भी नष्ट करने की क्षमता रखते हैं. जवाब में ईरान ने हॉर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी, जो रोजाना दो करोड़ गैलन तेल और गैस आपूर्ति का रास्ता है, यह दुनिया में इस्तेमाल होने वाली तेल-गैस का लगभग 20 फीसद है. इसमें कोई भी रुकावट वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बेहद विनाशकारी हो सकती थी. 

और तभी ट्रंप ने अचानक संघर्षविराम लागू कर दिया. यह फैसला उतना ही चौंकाने वाला था जितना कोई हमला. इसमें ट्रंप की सभी खासियतें झलकती थीं—नाटकीयता, अव्यवस्थित ढंग से लिया गया फैसला, टिकाऊ होने में संदेह, लेकिन हर पक्ष के लिए राहत लेकर आने वाला. इज्राएल, जो खासकर अमेरिका के मैदान में उतरने के साथ ही ईरान के एटमी कार्यक्रम पर जोरदार चोट कर चुका था, इसे अपनी जीत कह सकता था. साथ ही वह ईरान की उन मिसाइलों की क्षमता से भी चकित था जो उसके प्रमुख शहरों, यहां तक कि तेल अवीव तक को भेद सकती थीं. दूसरी ओर, ईरान के पास बातचीत की मेज पर लौटने में कुछ खोने का नहीं बल्कि सब कुछ पाने का मौका था.

पर इस युद्धविराम के टिकाऊ न होने की कई वजहें हैं. अमेरिका और इज्राएल दोनों का साझा उद्देश्य था—ईरान के एटमी कार्यक्रम को खत्म करना. लेकिन वे अपने इस मकसद से दूर लगते हैं. ट्रंप का 'पूरी तरह मिटा देने' का दावा अब शक की निगाहों से देखा जा रहा है, खासकर जब अमेरिका के मुख्यधारा के मीडिया ने खुफिया एजेंसियों के ऐसे आकलन प्रकाशित किए जिनमें कहा गया कि अमेरिकी सैन्य हमलों से ईरान के एटमी कार्यक्रम के मुख्य घटक या उसके उच्च स्तर पर संवर्धित यूरेनियम का भंडार नष्ट नहीं हुआ.

हालांकि ट्रंप ने इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया, लेकिन विशेषज्ञ इसे अस्थिरता की बड़ी वजह मानते हैं: बस कुछ वक्त की बात है कि अमेरिका और इज्राएल ईरान को काबू में करने की रणनीतियों को दोबारा तय करें और दुश्मनी फिर से शुरू हो जाए. खासकर इसलिए भी क्योंकि अब ईरान शायद ही अपनी एटमी गतिविधियों की जांच की इजाजत दे और वह उसी तरह अपारदर्शी बन जाए जैसा कि उत्तर कोरिया ने अपने एटमी हथियार विकसित करने की ठानने के बाद किया था.

इज्राएल-अमेरिका की सैन्य कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय शांति प्रयासों की स्वीकृत सीमाओं से बाहर एकतरफा कार्रवाइयों की खतरनाक बानगी पेश करती है. ऐसा एकतरफा रवैया आने वाले समय में चीन को ताइवान पर कब्जे को जायज ठहराने का आधार दे सकता है, ठीक वैसे ही जैसे रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया. 

रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह ही भारत के लिए किसी एक पक्ष के साथ खड़ा होना आसान नहीं है. भारत के कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का 40 फीसद से ज्यादा हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर आता है. संघर्ष की वजह से तेल की कीमत में आग लग सकती है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा. खाड़ी देशों में रहने वाले लगभग 90 लाख भारतीयों पर भी असर पड़ेगा, जो भारत को मिलने वाले 129 अरब डॉलर के वैश्विक रेमिटेंस का 40 फीसद भेजते हैं. यानी दांव भारत और दुनिया के लिए बहुत बड़े हैं.

इस हफ्ते की हमारी कवर स्टोरी इसी वैश्विक संघर्ष की जटिलता को टटोलती है, जिसमें शांति के प्रयास छिटपुट हैं और जंग का सिलसिला जारी है, और यह भी देखने की कोशिश करती है कि भविष्य में इसका रुख क्या हो सकता है. अभी की स्थिति एक अजीब विरोधाभास है—अमेरिका, इज्राएल और ईरान तीनों ही खुद को विजयी घोषित कर रहे हैं.

अमेरिका कह रहा है कि उसने ईरान की एटमी क्षमता नष्ट कर दी, इज्राएल कह रहा है कि उसने 'एक्सिस ऑफ ईविल' को तोड़ दिया, और ईरान दावा कर रहा है कि उसने अमेरिकी अड्डों पर हमला किया और इज्राएल के आयरन डोम सुरक्षा कवच को भेद दिया. लेकिन जिस मकसद से यह युद्ध लड़ा गया—ईरान का एटमी कार्यक्रम—उसका भविष्य अब भी अनिश्चित और रहस्यपूर्ण बना हुआ है. पूरे क्षेत्र का भविष्य अधर में है. उम्मीद की जानी चाहिए कि समझदारी आएगी, हालांकि मौजूदा दौर में यह बहुत दुर्लभ लगती है.

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