धर्मांतरण बड़ी चुनौती है. संघ से बड़ी अपेक्षा है. इसमें संघ को रफ्तार बढ़ानी होगी. बस्तर नक्सल और धर्मांतरण से जूझ रहा है.'' एकबारगी तो लगता है कि यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या उसके सहयोगी संगठनों के किसी नेता ने कही होगी. लेकिन यह बयान इंदिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे एक कांग्रेसी नेता अरविंद नेताम का है. नेताम न सिर्फ इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की केंद्र सरकार में बल्कि पीवी नरसिंह राव की सरकार में भी केंद्रीय मंत्री रहे.
कांग्रेस के टिकट पर नेताम पांच बार लोकसभा सांसद चुने गए. लेकिन यही नेताम पिछली 5 जून को संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग में मुख्य अतिथि थे और उनका यह बयान नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में आयोजित इस वर्ग के समापन कार्यक्रम के मंच से आया. मंच पर वे संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ थे.
नेताम ने उन्हें बुलाकर ''सम्मान'' देने के लिए संघ और सरसंघचालक का आभार जताया, ''मैं पहली बार आया हू. यहां मुझे बहुत कुछ समझने के लिए मिला. संघ का यह शताब्दी वर्ष है. संघ ने देश की एकता, अखंडता और समरसता के लिए बहुत बड़ा काम किया है.'' ध्यान रहे, नेताम ने 2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले यह कहते हुए कांग्रेस से नाता तोड़ लिया था कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार आदिवासी विरोधी है और अब वे आदिवासियों से संबंधित मुद्दों पर एक जनांदोलन खड़ा करने की कोशिश करेंगे.
2 अक्तूबर, 2023 को गांधी जयंती पर उन्होंने हमार राज पार्टी के नाम से एक अलग राजनैतिक दल की शुरुआत की थी. छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के अधिकारों को लेकर जो लोग लगातार सक्रिय रहे हैं, नेताम उनमें प्रमुख हैं. वे छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के नेता रहे हैं. आदिवासी क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था के विस्तार के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने जो पेसा कानून बनाया था, उसमें नेताम की प्रमुख भूमिका थी.
इस पृष्ठभूमि वाले नेताम को जब संघ ने अपने सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले कार्यक्रमों में से एक में बतौर मुख्य अतिथि न्यौता दिया और उन्होंने स्वीकारा तो सियासी तर पर काफी बातें बनीं. छत्तीसगढ़ कांग्रेस की तरफ से उन पर सवाल उठाए गए. वहीं संघ और भाजपा नेताम का बचाव करती रही. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नेताम पर निशाना साधते हुए कहा, ''नेताम मतांतरण रोकने की बात कर रहे हैं लेकिन उनका ही मत कितनी बार बदल गया है. कभी वे कांग्रेस में रहे तो कभी भाजपा में, कभी अलग पार्टी बना ली.'' कुछ और भी कांग्रेसी नेताओं ने उनकी मजम्मत की.
एक स्थिति ऐसी आई कि जब संघ ने आधिकारिक बयान जारी करके कहा, ''पिछले 100 वर्षों में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के आंदोलन के रूप में संघ ने उपेक्षा और उपहास से जिज्ञासा और स्वीकार्यता तक का सफर तय किया है. संघ किसी का विरोध करने में विश्वास नहीं करता और उसे विश्वास है कि एक दिन संघ कार्य का विरोध करने वाला हर व्यक्ति संघ में शामिल हो जाएगा.''
संघ ने 25 दिनों तक चले कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन कार्यक्रम में नेताम के अलावा कुछ विदेशी मेहमान भी बुलाए. इनमें अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य रहे बिल शूस्टर, अमेरिकी वकील बॉब शूस्टर, पब्लिक पॉलिसी पर काम करने वाले ब्रैडफोर्ड एलिसन, फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वॉल्टर रशेल मीड और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विशेषज्ञ बिल ड्रेक्सल शामिल थे.
दरअसल, यह संघ का शताब्दी वर्ष है. 1925 में विजयादशमी के दिन शुरू हुए संघ ने इस खास वर्ष में सामाजिक और भौगोलिक विस्तार को लेकर विस्तृत रणनीति बनाई है. इस बारे में इसी साल मार्च में हरियाणा के हिसार में आयोजित संघ की प्रतिनिधि सभा में औपचारिक तौर पर एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था. नेताम को बुलाना उसी रणनीति का हिस्सा था. नेताम जैसी शख्सियतों को बुलाने से संघ को क्या लाभ हो सकता है? संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी जवाब देते हैं, ''सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में रह रहे आदिवासी समाज में नेताम की अपनी एक प्रतिष्ठा है. संघ प्रमुख से उनकी कुछ मुलाकातें हुईं. बातचीत में नेताम ने धर्मांतरण को आदिवासी समाज के लिए एक बड़ी चुनौती बताया. संघ की राय भी यही है.
आदिवासियों के मुद्दों पर संघ के कामकाज से नेताम सहमत हैं. ऐसे में अगर वे संघ कार्यों से जुड़ते हैं तो इससे हमारे काम की स्वीकार्यता और पहुंच बढ़ेगी.'' वे आगे जोड़ते हैं, ''ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि संघ कार्य में दूसरे राजनैतिक विचार के लोग मदद कर रहे हैं. 2006 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून लेकर आए थे. संघ कार्यकर्ताओं से उनकी इस बारे में बात हुई थी. इसी तरह से 2008-09 में जब संघ ने गो-ग्राम रथयात्रा निकाली तो उसमें भी सर्वोदय के कार्यकर्ता हमारे कार्यकर्ताओं के साथ जुड़े थे.''
आदिवासी समाज में अपने सांगठनिक विस्तार के लिए संघ लगातार काम कर रहा है. वह अपनी शब्दावली में 'आदिवासी' नहीं बल्कि 'वनवासी' शब्द का इस्तेमाल करता है. वनवासी समाज में अपने कार्यों के विस्तार के लिए संघ ने अपने आनुषंगिक संगठन के तौर पर अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम की शुरुआत 1952 में जशपुर में की थी. तब जशपुर मध्य प्रदेश का हिस्सा था, अब छत्तीसगढ़ में है. बालासाहब देशपांडे इसके संस्थापक थे. अपने शुरुआती दिनों में उसने ईसाई मिशनरियों की ओर से कराए जा रहे धर्मांतरण को रोकने के लिए काम किया. धीरे-धीरे उसने कार्य विस्तार भी किया और भौगोलिक विस्तार भी. अभी देश के 300 से ज्यादा जिलों में इसका काम है.
समय के साथ वनवासी कल्याण आश्रम ने सामाजिक कार्यों में विस्तार किया. वह कई स्कूलों और हॉस्टलों का संचालन कर रहा है जिनमें हजारों बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं (देखें बॉक्स). इस साल संगठन ने करियर गाइडेंस कार्यक्रम की भी शुरुआत की है ताकि वनवासी युवाओं को उनकी शिक्षा और कौशल के हिसाब से रोजगार तलाशने में मदद मिल सके. इसके अलावा आदिवासी क्षेत्रों में हिंदू पर्व-त्योहारों को भी बढ़-चढ़कर मनाने के लिए वनवासियों को प्रेरित करता है. आदिवासी समाज में विस्तार के लिए उसकी तरफ से कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं.
इन कोशिशों का एक महत्वपूर्ण आयाम राजनैतिक है, जिसका चुनावी लाभ भाजपा को मिल रहा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश की आबादी में 8.6 प्रतिशत हिस्सेदारी अनुसूचित जनजाति की है. 2011 में कुल संख्या 10.04 करोड़ थी. 2025 में इसके बढ़कर 10.40 करोड़ होने का अनुमान है. देश भर में 72 जिले ऐसे हैं, जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी अनुसूचित जनजाति की है. लोकसभा में 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यों वाली विधानसभा में 29 सीटें एसटी वर्ग के लिए हैं. झारखंड की 26 प्रतिशत और ओडिशा की 23 फीसद आबादी एसटी है.
साफ है कि आदिवासी समाज का समर्थन भाजपा के लिए कितना निर्णायक है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 47 एसटी सीटों में से 31 पर जीती थी. पार्टी रणनीतिकारों ने आंतरिक स्तर पर इसका श्रेय संघ और वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यों को भी दिया. 2024 में प्रदर्शन थोड़ा खराब हुआ पर फिर भी पार्टी 25 सीटें जीतने में कामयाब रही. 2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा में 29 में से 17 एसटी सीटें भाजपा के खाते में गई थीं.
भाजपा अगले चुनावों में ये आंकड़े और बेहतर करना चाहेगी. आदिवासी क्षेत्रों में संघ और वनवासी कल्याण आश्रम का जितना विस्तार होगा, वहां भाजपा की संभावनाएं उतनी मजबूत होंगी. भाजपा ने भी एसटी तबके में पैठ बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं. बिरसा मुंडा की जयंती को केंद्र सरकार ने 'जनजातीय गौरव दिवस' घोषित किया. 2022 में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया. अलग-अलग राज्यों की एसटी सूची में विस्तार किया. प्रधानमंत्री वन धन योजना की शुरुआत की.
आदिवासी बहुल इलाकों में स्थिति मजबूत करने के लिए संघ और वनवासी कल्याण आश्रम दोनों धर्मांतरण के मुद्दे पर आक्रामक हैं. इसे लेकर राजनैतिक मंचों पर भाजपा आक्रामक रुख अपनाती है. इस बारे में नेताम कहते हैं, ''पिछली या मौजूदा किसी भी सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया. गहन चिंतन के बाद मुझे लगता है कि संघ एकमात्र ऐसा संगठन है जो इस मुद्दे से निबटने में मदद कर सकता है. आरएसएस के सहयोग के बिना इस समस्या का समाधान संभव नहीं.''
धर्मांतरण के मुद्दे पर सांगठनिक कार्यक्रमों के बारे में संघ के एक पदाधिकारी बताते हैं, ''इस दिशा में पहले से चल रहे हमारे काम में अब और गति आने वाली है. बस्तर हो या कोई दूसरा वनवासी क्षेत्र, आज वहां धर्मांतरण और भूअधिकारों को लेकर समाज मुखर हो रहा है. इन विषयों पर हम समाज के साथ मिलकर काम करेंगे. आदिवासी समाज से नेतृत्व का विकास हो, इसके लिए हम विशेष अभियान शुरू करने वाले हैं ताकि धीरे-धीरे समाज के भीतर ऐसी लीडरशिप तैयार हो, जो खुद धर्मांतरण जैसे मुद्दों के खिलाफ खड़ी हो. उस समाज के युवाओं को सशक्त करने को हम डिजिटल माध्यमों का भी उपयोग बढ़ाने वाले हैं.'' कदम बढ़ रहे हैं.