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मरीजों की जांच से देखभाल तक; कैसे घर आ पहुंचा अस्पताल?

डायलिसिस और ईआइसीयू से लेकर ब्रेन स्ट्रोक झेल चुके लोगों की देखभाल और कैंसर से पीड़ित लोगों की पैलिएटिव केयर तक. अब कैसे आमलोगों के घर आ पहुंचा है अस्पताल?

नोएडा के एक घर में मरीज की देखभाल करते नर्स
अपडेटेड 24 जुलाई , 2025

एक सुखद क्रांति भारत में स्वास्थ्य देखभाल को आमूलचूल बदल रही है. घरेलू स्वास्थ्य देखभाल लंबे वक्त से महज जिंदगी के आखिरी दौर की दर्दनाशक देखभाल, बुढ़ापे की साजसंभाल और फिजियोथिरैपी तक सिमटी थी.

रोग की पहचान, आपातकालीन और बेहद गंभीर देखभाल के सारे काम अस्पतालों में ही होते थे. अब एक बड़ा बदलाव आया है और घर की आरामदायक हदें स्वास्थ्य देखभाल के केंद्र में जगह बना रही हैं. इसे होम हेल्थकेयर यानी घरेलू स्वास्थ्य देखभाल या बस होमेकयर कहा जा रहा है.

आज रोगनिदान का पेचीदा खाका घर से ही संभाला जा सकता है. इसमें कोमा में पड़े मरीजों, लकवे से बचे लोगों और डिमेंशिया के मरीजों की देखभाल शामिल है. आम तौर पर बहुतायत से होने वाली खून और पेशाब की जांचों के अलावा एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) और कुछ बायोप्सी सरीखी कई तरह की प्रक्रियाएं प्रशिक्षित पेशेवरों के हाथों घर पर ही करवाई जा सकती हैं.

यही नहीं, वेंटिलेटर और डायलिसिस का इस्तेमाल और ई-आइसीयू (इलेक्ट्रॉनिक इंटेंसिव केयर यूनिट) लगाना भी अब घरेलू स्वास्थ्य देखभाल सेवा के दायरे में आ गया है. ऊपर से इससे पैसा बचता है और इसे सुरक्षित भी माना जाता है. इस बदलाव को भांपकर अपोलो और मैक्स अस्पताल सरीखी बड़ी कंपनियों ने अपोलो होम और मैक्स@होम नाम से घरेलू स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं शुरू की हैं, तो पोर्टेया मेडिकल और हेल्थकेयर ऐट होम (एचसीएएच) सरीखी नई कंपनियां भी हजारों करोड़ रुपए के इस लगातार बढ़ते बाजार में उतर पड़ी हैं.

कोविड-19 महामारी घरेलू स्वास्थ्य देखभाल के विकास में निर्णायक मोड़ साबित हुई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोविड के 90 फीसद मामलों का इलाज घरों पर हुआ. अपोलो होम के सीईओ विशाल लठवाल कहते हैं, ''कोविड के बाद ज्यादा से ज्यादा मरीज अपने घरों पर ही चंगा होना पसंद करते हैं. हमने इसे जरूरत और मौके दोनों की तरह देखा. हमने सोचा कि क्यों न होम हेल्थकेयर के लिए समर्पित विभाग बनाएं.'' अपोलो होम ने बेंगलूरू में सेवा शुरू की है जो 90 मिनट में डॉक्टर के घर आने की गारंटी देती है.

मैक्सहोम के सीनियर वीपी और बिजनेस हेड विक्रम वर्मा कहते हैं, ''लंबे समय से ऐंटीबायोटिक्स के आसरे रहने वाले बुजुर्ग माता-पिता हों, दर्दनाशक सहारे की जररूत वाले कैंसर के मरीज या लकवे के बाद फिर ताकत हासिल कर रहे लोग, घर पर चंगा होने के बेहतर नतीजे सामने आते हैं और अस्पतालों में होने वाले संक्रमणों का खतरा कम होता है.''

डॉक्टरों ने 63 वर्षीया स्वाति देशमुख को पूरा घुटना बदलवाने की सिफारिश की थी, लेकिन वे दो साल तक टालती रहीं क्योंकि वे ''बाद में हफ्ते-दो हफ्ते अस्पताल में भर्ती रहने को लेकर भयभीत'' थीं. मुंबई की यह पूर्व स्कूल टीचर आज उत्साहित महसूस करती हैं. वे कहती हैं, ''मेरी भाभी ने अस्पताल में घुटना बदलने की सर्जरी के साथ होमकेयर रिकवरी का विकल्प चुना. उन्हें बस दो दिन अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. अब मैं भी इसी तरह सर्जरी करवाने के बारे में सोच रही हूं.''

स्वास्थ्य सेवाएं देने वाली प्रमुख कंपनियों की तरफ से ईआइसीयू लगाना कइयों के लिए वरदान है. इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, बहुत अच्छी गुणवत्ता के डिजिटल ऑडियो, और मरीज की निगरानी, डेटा की सुलभता और आइसीयू विशेषज्ञों की उसी वक्त सहायता के लिए सॉफ्टवेयर टूल्स इस्तेमाल करने वाली प्रणालियां लगाई जाती हैं.

मैक्सहोम में 2024 में 1,400 से ज्यादा आइसीयू लगाई गईं, जो घरों के लिए डिजाइन की गई सबसे आसान आइसीयू होती हैं. एचसीएएच के 506 मरीजों पर किए गए अध्ययन से, जिन्होंने ईआइसीयू प्रदान करने वाले नेटवर्क क्रिटिनेक्स्ट का इस्तेमाल किया, संक्रमण, दोबारा अस्पताल में भर्ती होने की दर और देखभाल की लागत या खर्च में कमी आने (प्रतिदिन प्रति पुन:भर्ती पर औसतन 30,000 रुपए की बचत) का पता चला.

डेलॉइट 2022 ग्लोबल कंज्यूमर ट्रेंड्स इन हेल्थकेयर के मुताबिक, 74 फीसद भारतीय घर से नमूना इकट्ठा करवाना और 49 फीसद घर पर इलाज करवाना पसंद करते हैं. स्पा के अनुभव और किराने के सामान की तरह लोग चाहते हैं कि सेवाएं और उत्पाद उन तक पहुंचें. वर्मा कहते हैं, ''मरीज अब चाहते हैं कि स्वास्थ्य सेवा—निर्बाध और भरोसेमंद तरीके से—उनके पास आए. इसीलिए होमकेयर की मांग शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में बहुत तेजी से बढ़ रही है.'' 

फिर हैरानी क्या कि नीति आयोग की तरफ से प्रकाशित 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में होम हेल्थकेयर का बाजार 2027 तक बढ़कर 1.82 लाख करोड़ रुपए का हो जाने की उम्मीद है, जो 2020 में 53,065 करोड़ रुपए का था. बिजनेस रिसर्च कंसल्टेंसी एचएफएस रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में होम हेल्थकेयर की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) 19.3 फीसद है, जो अमेरिका के 7.1 फीसद और दुनिया भर के औसत 7.9 फीसद के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है.

होमकेयर के फायदे

घर को अस्पताल में बदलने का पहला फायदा इससे मिलने वाला आराम है. इससे अकेलापन कम होता है और चिकित्सा के कायदों का पालन करने में सुधार आता है. जनवरी 2019 से जुलाई 2021 के बीच पोर्टेया मेडिकल की देखभाल के तहत घर पर ही चंगा होना चुनने और गंभीर देखभाल वाले करीब 7,000 मरीजों में से महज 7.5 फीसद को ही फिर अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ी.

बेंगलूरू के जनरल फिजिशियन डॉ. अखिल श्रीनिवास कहते हैं, ''अपना बिस्तर, कपड़े, शौचालय होना शारीरिक तौर पर भला-चंगा होने में मददगार होता है.'' बाइपास सर्जरी करा चुके मरीजों के लिए अपोलो होम की तरफ से फॉलो योर हार्ट प्रोग्राम के तहत चिकित्सा अनुपालन 100 फीसद देखा गया और शुगर नियंत्रण तथा रक्तचाप में सुधार आया.

दूसरा फायदा खर्च के मामले में है. न कमरे का किराया, न ही अस्पताल के ऊपरी खर्चे और न ही डॉक्टर फीस लगती है. पोर्टेया के उसी अध्ययन से चिकित्सा खर्चों में 70 फीसद कमी आने का पता चला. ज्यादा अहम यह कि अस्पताल से बाहर स्वास्थ्य देखभाल को हाल तक सीमित स्वास्थ्य बीमा कवर हासिल था. आज पोर्टेया और एचसीएएच स्टारहेल्थ, निवाबुपा, आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड और गोडिजिट समेत 40 से ज्यादा बीमा कंपनियों के साथ मिलकर कैशलेस घरेलू देखभाल की पेशकश करते हैं.

टेक और ट्रेनिंग

होमकेयर की कामयाबी का आधार टेक्नोलॉजी है. एक्स-रे, ईसीजी और सीटी स्कैन मशीनों और ऐसे ही अन्य डायग्नोस्टिक उपकरणों के एआइ समर्थ होने का मतलब है कि नर्स भी रेडियोलॉजी के अतिरिक्त प्रशिक्षण के बिना उनका इस्तेमाल कर सकती हैं. सारा काम—मानदंडों की निगरानी, शरीर की स्कैनिंग और चिकित्सा विश्लेषण—तो गैजेट करते हैं. स्कैन4हेल्थ, अपोलो होम, मैक्सहोम और हेल्दियंस सरीखे कुछ स्वास्थ्य सेवा प्रदाता एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और यहां तक कि कुछ एमआरआइ भी घर पर ही कर सकते हैं.

लठवाल कहते हैं, ''अस्पतालों पर भारी दबाव है और जिन बीमारियों का घर पर ही कामयाबी से इलाज किया जा सकता है, उनके लिए अस्पतालों में अनावश्यक बिस्तर घेरने की जरूरत नहीं.'' यह इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि भारत के अस्पतालों में बिस्तर और आबादी का अनुपात फिलहाल प्रति 1,000 आबादी पर 1.3 बिस्तर है, जबकि तीन बिस्तरों की सिफारिश की गई है.

नए अस्पताल बनाने की बजाए होमकेयर या घरेलू स्वास्थ्य देखभाल सेवा में निवेश करना व्यावसायिक तौर पर भी समझदारी भरा कदम है. सीएमआर की रिपोर्ट से पता चला कि इससे अस्पताल के परिचालन खर्चों में 20 फीसद तक कमी आ सकती है.

सरकार-समर्थित टेलीहेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 2021 तक देश भर में 6 करोड़ से ज्यादा ई-परामर्श किए गए. डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड की बदौलत डॉक्टर फोन पर मरीजों का इलाज कर सके. केंद्र अपनी योजना 'आरोग्य—डॉक्टर ऑन व्हील्स' की भी शुरुआत कर रहा है. यह सीधे मरीजों तक पहुंचने वाला एआइ समर्थित टेलीमेडिसिन मोबाइल क्लिनिक है. इसमें मरीज अपनी बीमारी के ब्योरे अपनी मूल भाषा में एआइ डॉक्टर को बताता है, जो उसी भाषा में जवाब देता है. उसे विभिन्न अस्पतालों के साथ गठजोड़ के जरिए सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर से जोड़कर निशुल्क नुस्खा दे दिया जाता है.

होमकेयर का चलन अब हमेशा के लिए आ गया है, बिल्कुल वैसे ही जैसे तुरत-फुरत कॉमर्स और वर्क फ्रॉम होम. अपने ही घर का एक कमरा अब नियमित चिकित्सा देखभाल और स्वास्थ्य लाभ की जगह भी बन गया है.

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