अमेरिका-चीन के बीच टैरिफ की लड़ाई भले ही बातचीत में बदल गई हो लेकिन चीन ने इसके शुरुआती दिनों में ही गुपचुप ऐसा दांव चला है जिसका संभावित असर दुनिया भर में होगा.
भारत भी इसकी चपेट में है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ हमले के दो दिन बाद 4 अप्रैल को बीजिंग ने रेअर अर्थ मैग्नेट के निर्यात पर रोक लगाकर जवाबी हमला किया था.
इस प्रमुख तत्व की वैश्विक प्रसंस्करण क्षमता के 90 फीसद से ज्यादा पर चीन का नियंत्रण है और इसका उपयोग ऑटोमोबाइल और लड़ाकू विमानों से लेकर रोबोटिक्स और घरेलू उपकरणों तक हर चीज में किया जाता है. वह अपने इस एकाधिकार का फायदा उठाते हुए इसके लाइसेंस धीरे-धीरे जारी करता है. इसलिए हर जगह इसका स्टॉक तेजी से घट रहा है और इसे लेकर चिंता बढ़ रही है.
भारत ने वित्त वर्ष 2025 में 870 टन मैग्नेट का आयात किया जिसमें से ज्यादातर चीन से आया. हालांकि, अब चीनी निर्यातकों को शिपिंग से पहले भारतीय खरीदारों से इस धातु का विस्तृत अंतिम उपयोग प्रमाणपत्र देना होगा और सरकारी लाइसेंस लेना होगा. प्रमाणपत्रों पर भारत के विदेश मंत्रालय और चीनी दूतावास के हस्ताक्षर जरूरी हैं, जाहिर तौर पर यह पक्का करने के लिए कि इनका सैन्य उपयोग नहीं किया जाएगा. इस शर्त के कारण इनकी मंजूरी और शिपमेंट रुक गई हैं. भारत की ओर से 30 से ज्यादा आवेदन चीन में अंतिम मंजूरी के लिए अटके हुए हैं.
ऑटो सेक्टर की मुश्किलें
इसके निर्यात पर चीन की रोक को एक महीना बीत चुका है और भारतीय ऑटो कंपनियों के पास बफर के रूप में जो भी स्टॉक था, वह जून के अंत तक खत्म हो सकता है. रेअर अर्थ मैग्नेट, विशेष रूप से नियोडाइमियम-आयरन-बोरॉन चुंबक, इलेक्ट्रिक के साथ पारंपरिक वाहनों के लिए भी जरूरी होता है. इनका उपयोग मोटर, स्टीयरिंग, ब्रेक, वाइपर और ऑडियो उपकरण में किया जाता है. आयात कब तक सामान्य होगा, इस पर कोई स्पष्टता नहीं होने से निर्माताओं को उत्पादन में बड़ी कटौती का सामना करना पड़ रहा है.
उद्योग समूह कुछ हद तक घबराए हुए हैं. सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों का एक मिला-जुला प्रतिनिधिमंडल मंजूरी में तेजी और आपूर्ति की बहाली के लिए चीनी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने वाला है.
बजाज ऑटो के चेयरमैन राजीव बजाज ने अप्रैल के अंत में चेतावनी दी थी, ''इनमें से कुछ ईवी कल-पुर्जों की पूरी आपूर्ति शृंखला चीन में है...अगर यह स्थिति नहीं बदली तो पूरा भारतीय ईवी उद्योग ठप हो जाएगा.'' 4 जून को महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ऑटो और उद्योग संगठन सायम के पूर्व अध्यक्ष राजन वढेरा ने केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री एचडी कुमारस्वामी को लिखा और ''...एक विविध, बहु-स्तरीय नजरिया अपनाने'' की जरूरत बताई. ये मैग्नेट ''ईवी के लिए अपरिहार्य'' हैं, एक ईवी में लगभग 3 किलोग्राम की जरूरत होती है जबकि पारंपरिक वाहन के लिए 100 ग्राम की.
एक रेअर अर्थ मैग्नेट 17 दुर्लभ तत्वों (लैंथेनाइड सीरीज, स्कैंडियम, इट्रियम) में से एक से बनता है और दूसरे औद्योगिक चुंबकों से कहीं बेहतर है. दुर्लभ धातुएं इतनी भी 'दुर्लभ' नहीं, और पृथ्वी के अंदर प्रचुर मात्रा में हैं. हालांकि, वे शुद्ध कंसन्ट्रेशन में नहीं पाई जाती हैं, जिससे उनका खनन करना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
चीन का दबदबा
चीन सालाना 1,40,000 टन दुर्लभ धातुओं का उत्पादन करता है. अमेरिका 38,000 टन के साथ दूसरे नंबर पर है. इसकी तुलना में भारत की दुर्लभ धातु उत्पादन क्षमता महज 5,000 टन से थोड़ी ही ज्यादा है, जिसका उत्पादन सरकार के स्वामित्व वाली आइआरईएल (पहले इंडियन रेअर अर्थ लिमिटेड) के माध्यम से होता है.
नए प्रतिबंधों के कारण कई खेपों के चीनी बंदरगाहों पर फंसे होने की खबर है. भारत में एसऐंडपी ग्लोबल के प्रमुख विश्लेषक गौरव वांगल कहते हैं कि चीन के प्रतिबंधों का असर कम करने के लिए ''प्रोडक्ट मिक्स को बेहतर करते हुए उत्पादन लाइनों को चालू रखा जा सकता है.''
उन्होंने कहा कि इसके बाद भी निरंतर निगरानी जरूरी है क्योंकि उत्पादन व्यवस्था में खासी बाधा आ सकती है. शुरुआत में ईवी के कल-पुर्जों पर असर हो सकता है और बाद में आइसीई (इंटरनल कंबश्चन इंजन) के पुर्जों तक इसका प्रभाव संभव है. वे मानते हैं कि इससे उत्पादन में गंभीर चुनौतियां पैदा हो सकती हैं. समाधान से पहले रेअर अर्थ की किल्लत से पैदा हुई चुनौती ज्यादा बढ़ सकती है. वित्त वर्ष 2025 में भारत ने 870 टन रेअर अर्थ मैग्नेट का आयात किया है, जिसमें ज्यादातर चीन से आता है.
क्या बला है रेयर अर्थ मैग्नेट?
इन औद्योगिक चुंबकों को दुर्लभ धातुओं से बनाया जाता है. इनका इस्तेमाल ऑटोमोबाइल और फाइटर जेट से लेकर घरेलू उपकरणों तक में किया जाता है. वाहन उद्योग में ये इलेक्ट्रिक और पारंपरिक वाहनों के सिस्टम मोटर और स्टीयरिंग से लेकर ब्रेक, वाइपर और ऑडियो उपकरण को चलाते हैं.
चीन के नए नियम क्या कहते हैं?
चीन के निर्यातकों को विदेश मंत्रालय और चीनी दूतावास के हस्ताक्षर वाले भारतीय खरीदारों के प्रमाणपत्रों के साथ लाइसेंस के लिए आवेदन करना होगा. यह अड़ंगा जून से कार उत्पादन को प्रभावित कर सकता है क्योंकि कई शिपमेंट फंस गई हैं और इनवेंट्री खत्म हो रही है.