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ऑपरेशन सिंदूर : हवाई दबदबे की लड़ाई में भारत ने कैसे मारी बाजी?

भारत-पाकिस्तान के बीच हुई चार दिनी लड़ाई में आधुनिक हवाई युद्ध के सभी पहलुओं का प्रदर्शन हुआ. राफेल बनाम जे-10सी के बीच मुकाबले का नतीजा साफ नहीं रहा, मगर भारत की बहुस्तरीय हवाई रक्षा प्रणाली बेशक विजेता बनकर उभरी

स्वदेशी आकाश मिसाइल : कम और मध्यम दूरी की एसएएम
स्वदेशी आकाश मिसाइल : कम और मध्यम दूरी की एसएएम
अपडेटेड 19 जून , 2025

भारत और पाकिस्तान की लड़ाई से उठी धूल ज्यों-ज्यों बैठ रही है, दोनों दुश्मनों के शक्ति प्रदर्शन का जायजा लेने का वक्त आ गया है. यह लड़ाई अप्रैल में पहलगाम में हुए इस्लामाबाद-प्रायोजित आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और उसके पंजाब प्रांत में नौ आतंकी अड्डों पर भारत के मिसाइल हमलों से शुरू हुई.

उन चार घनघोर और नाटकीय दिनों (7-10 मई) के दौरान युद्ध का क्षेत्र नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सरहद के दोनों तरफ का आसमान था. वायु शक्ति इसका अहम हिस्सा थी, जो पुराने जमाने की हवाई लड़ाइयों में नहीं बल्कि उनके आधुनिक रूपों में सामने आई.

इनमें सटीक हमले, इलेक्ट्रॉनिक जंग और हवाई जहाजों, जमीनी रडार, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग ऐंड कंट्रोल सिस्टम (एईडब्ल्यूऐंडसीएस) और एयरबोर्न वार्निंग ऐंड कंट्रोल सिस्टम (एडब्ल्यूएसीएस या अवाक्स) विमानों के बीच बेहतरीन तालमेल शामिल था. पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों का भरपूर इस्तेमाल किया. और भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा (एडी) प्रणाली इस मौके पर असाधारण ढंग से खरी उतरी. भारतीय सेना के मुताबिक, उसकी वायु रक्षा इकाइयों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के 800-900 ड्रोन बेअसर किए.

अगर 7 मई की सुबह पाकिस्तानी वायु रक्षा के पास उसके आतंकी शिविरों को तबाह करने वाले लॉइटरिंग म्यूनिशन/कामिकाजे ड्रोन और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के राफेल से दागी गई स्कैल्प/स्टॉर्म शैडो क्रूज मिसाइलों और हैमर बमों का तत्काल कोई जवाब नहीं था, तो पाकिस्तानी वायु सेना (पीएएफ) के जे-10सीई, एफ-16 और जेएफ-17 लड़ाकू विमानों ने जरूर थोड़ा खतरा पैदा किया.

पाकिस्तान ने किसी निश्चित सबूत या भारत की साफ स्वीकारोक्ति के बगैर दावा किया कि कई भारतीय विमान नष्ट हो गए. अहम बात यह कि एक-दूसरे की मिसाइलों से और खासकर दिखाई देने वाली दूरी से परे (बीवीआर) छोड़ी गई मिसाइलों से चौकन्ने दोनों ही रक्षा बलों ने अपने-अपने हवाई क्षेत्र के भीतर रहकर हमले किए.

अलबत्ता 8 और 10 मई को भारतीय मिसाइलों और ड्रोन हमलों से लाहौर और कराची स्थित अहम पाकिस्तानी वायु रक्षा रडारों को ठिकाने लगा दिए जाने के बाद पीएएफ के एक बेशकीमती अवाक्स के भी नष्ट होने की बात कही गई—उसकी वायु रक्षा प्रणालियां बेकार हो गईं जिससे पीएएफ को आसमान से लगभग खदेड़ दिया गया. 9 और 10 मई को पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों से भारतीय एयरबेस और सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया तो उन्हें बीच में ही रोककर टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया और इस तरह वह भारत के जवाबी हमलों के आगे लाचार हो गया.

यह जवाबी हमला स्कैल्प और ब्रह्मोस हाइपरसोनिक मिसाइलों से किया गया, जो विमानों से और जमीन से रावलपिंडी के नजदीक नूर खान बेस और पाकिस्तानी सेना के जनरल हेडक्वार्टर्स समेत पाकिस्तान के आठ एयरबेस पर दागी गईं. कहा जा रहा है कि मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान ने संघर्ष विराम की मांग की.

ऑपरेशन सिंदूर भारतीय हमलों की पहुंच और सटीकता का प्रदर्शन था, तो इसने पाकिस्तान में किसी भी लक्ष्य पर मनमर्जी हमला करने की भारत की क्षमता भी दिखा दी. एशिया-पैसिफिक लीडरशिप नेटवर्क में सीनियर रिसर्च फेलो और स्टिमसन सेंटर में नॉन-रेजिडेंट फेलो फ्रैंक ओडॉनेल का कहना है कि इससे हर बेस के भीतर स्थित निशानों पर सटीक हमले करने की भारत की क्षमता का संकेत मिलता है और पता चलता है कि अगर वह चाहे तो इन बेस को बर्बाद करने की क्षमता उसके पास है.

वे कहते हैं, ''भारत की हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों की उड़ान के बहुत कम समय और खासकर सुपरसोनिक ब्रह्मोस के कथित इस्तेमाल ने पाकिस्तान के सामने लगातार पेश आ रही उस चुनौती का फायदा उठाया जिसमें वह अपनी मिसाइल रक्षा प्रणालियों का संचालन नहीं कर पा रहा था और क्रूज मिसाइलों के हमले रोकने में उसे मुश्किल हो रही थी. यह चुनौती भारत के सामने भी थी.''

एलवाइ-80 मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली चीनी मिसाइल

इधर और उधर के हवाई योद्धा

हाल के दशकों में भारत ने हवाई दबदबे में पाकिस्तान के ऊपर गुणात्मक और संख्यात्मक बढ़त हासिल की है, मगर विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की तरफ से परिष्कृत चीनी विमानों के अधिग्रहण की वजह से टेक्नोलॉजी में गैरबराबरी कम हो रही है.

भारत के अग्रणी लड़ाकू विमानों में थेल्स आरडीवाई रडार (रेंज: 100-130 किमी) और एमआईसीए मिसाइलों (बीवीआर और शॉर्ट रेंज दोनों) से लैस मिराज 2000एच सटीक हमले करने के लिए तो शानदार है, मगर बुढ़ाता मशीनी ढांचा इसे सीमित कर देता है. झुक-एमई रडार (रेंज: 120 किमी) और आर-77 मिसाइलों (बीवीआर, 80-100 किमी रेंज) के साथ मिग-29यूपीजी वैसे तो चुस्त और फुर्तीला है, मगर नेटवर्किंग में पिछड़ जाता है.

बार्स पीईएसए या पेसा रडार और ब्रह्मोस मिसाइलों से सुसज्जित एसयू-30एमकेआई लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता प्रदान करता है, मगर इसमें बड़ा रडार क्रॉस-सेक्शन है जिससे दुश्मन रडार इसका पता लगा सकते हैं. मेटियोर और स्कैल्प मिसाइलों के साथ ही हैमर प्रीसिजन-गाइडेड म्यूनिशन से लैस राफेल भारत का सबसे उन्नत लड़ाकू विमान है, वैसे इसके बेड़े के छोटे आकार की वजह से इसका असर सीमित हो जाता है.

दूसरी ओर पीएल-15ई बीवीआर मिसाइलों और डुएल-पल्स मोटरों और एईएसए सीकर्स से लैस पाकिस्तान के चीनी जे-10सी लड़ाकू विमानों ने आईएएफ के लिए चुनौती पेश की. जे-10सीई का एईएसए रडार और उसके साथ साब 2000 ईरीआई एईडब्ल्यूसी के जुड़ने से यह लंबी दूरी की मुठभेड़ों को अंजाम दे पाता है, जबकि जेएफ-17 का केएलजे-7ए रडार कम समर्थ है, फिर भी नेटवर्क के सहारे असरदार है.

ऑपरेशन सिंदूर ने 4.5 पीढ़ी के बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों राफेल और जे-10सी के बीच संभावित हवाई मुकाबले के कारण भी दुनिया का ध्यान खींचा. आईएएफ के एक प्रमुख अधिकारी कहते हैं, ''राफेल खुद को साबित कर चुका प्लेटफॉर्म है. इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान, लीबिया, माली, ईराक और सीरिया की जंग में हो चुका है, पर जे-10सी को किसी युद्ध में नहीं देखा गया.''

सैन्य विमानन विशेषज्ञों का कहना है कि चेंगदू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री ग्रुप के हाथों निर्मित पाकिस्तान का जे-10सी शस्त्रास्त्रों के मामले में फ्रांस की फर्म दासो के बनाए राफेल से पीछे है. जे-10सी में 11 हार्डपॉइंट (हथियार ले जाने के लिए माउंटिंग पॉइंट) और छह टन भार उठाने की क्षमता है. राफेल में 14 हार्डपॉइंट और नौ टन की क्षमता है जिसमें एटमी हथियार शामिल हैं. राफेल का 24 टन का टेक-ऑफ वजन जे-10सी के 19 टन से ज्यादा है, जो पेलोड को ज्यादा लचीलापन देता है.

वैसे, जे-10सी 18,000 मीटर ऊंचाई तक जाता है वहीं राफेल 16,000 मीटर तक. ऊंचाई पर प्रदर्शन में जे-10सी शानदार है, तो बहुमुखी क्षमता और दूरी के मामले में राफेल हावी है. विशेषज्ञों का कहना है कि सेंसर फ्यूजन और मिसाइल प्रदर्शन में राफेल को थोड़ी बढ़त हासिल है. अलबत्ता राफेल समेत भारतीय विमानों को मार गिराने के पाकिस्तानी असत्यापित दावों पर अनिश्चितता कायम है.

ओडॉनेल कहते हैं, ''सार्वजनिक साक्ष्य इसकी तस्दीक नहीं करते कि जे-10सी से दागी गई पीएल-15ई मिसाइल ने राफेल को मार गिराया. मगर कम से कम एक राफेल का पुष्ट नुक्सान तत्काल तकनीकी और सामरिक कमजोरियों की समीक्षा की मांग करता है.'' वे यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान और चीन के पास पश्चिमी विमानों का बेशकीमती कॉम्बैट डेटा है, जिससे उन्हें अपने लड़ाकू विमान को आधुनिक बनाने में मदद मिलती है, जबकि पाकिस्तान की ओर से चीनी प्लेटफॉर्म का तेजी से अधिग्रहण भारत की सुस्त रक्षा खरीद से आगे निकल गया है, जिससे आईएएफ की स्क्वाड्रन शक्ति में गिरावट तेज हो गई है.

डेल्ही पॉलिसी ग्रुप में रिसर्च एसोसिएट और रक्षा विश्लेषक श्रेयस देशमुख का कहना है कि राफेल बनाम जे-10सी की तुलना से उनकी समान क्षमताओं को देखते हुए रणभूमि में श्रेष्ठता की होड़ की झलक मिलती है. वैसे, पीएल-15ई के अवशेष और संभवत: आईएएफ के विमान से गिरे एमआईसीए मिसाइल के टुकड़ों का मलबा बरामद होने की बात कही गई, मगर देशमुख का कहना है कि ''दोनों ही तरफ हवाई नुक्सान के दावों के समर्थन में कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं.''

भारत की बढ़त

भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर की असल अच्छी बात उसकी एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली की जबरदस्त कामयाबी है. भारत की ओर फेंके गए सारे प्रक्षेपास्त्रों को बेअसर करने के लिए आईएएफ की एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसीएस) तथा सेना की आकाशतीर ने पूरे तालमेल से काम किया. आईएसीसीएस स्वचालित कमान और नियंत्रण प्रणाली है, जिसके साथ उसके जमीन-स्थित रडार, एयरबोर्न सेंसर, अवाक्स और एईडब्ल्यूऐंडसी, संचार नोड और आईएएफ के कमान और नियंत्रण केंद्रों सरीखी वायु रक्षा परिसंपत्तियों के नियंत्रण केंद्रों का डेटा जोड़ा गया है.

तत्काल अपडेट के साथ यह समेकित डेटा वायु रक्षा इकाइयों के कमांडरों को स्थिति और रणभूमि की समग्र तस्वीर पेश करता है ताकि वे आने वाले हवाई खतरों का जवाब दे सकें. इसी तरह सेना का आकाशतीर हवाई रक्षा नियंत्रण और सूचना प्रणाली है, जिसमें ऐसे रडार और सेंसर हैं जो उसकी वायु रक्षा की इकाइयों से जुड़े हैं.

आईएसीसीएस और आकाशतीर के साधनों के साथ भारतीय वायु रक्षा ने एक परतदार ग्रिड तैयार की. इसकी पहली परत में डी4 और इग्ला-एम और इग्ला-एस जैसे एमएएनपीएडीएस (मैन-पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम्स) सरीखी जवाबी ड्रोन प्रणालियां हैं. दूसरी परत में बोफोर्स एल-70 और जेडएसयू-23-4 शिल्का सेल्फ-प्रोपेल्ड सिस्टम जैसी निचले स्तर की वायु रक्षा (एलएलएडी) तोपें और पिचोरा, तुंगुस्का और ओएसए-एके जैसी कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें हैं.

तीसरी और चौथी परत में पिचोरा, स्पाइडर, स्वदेशी आकाश और लंबी दूरी की एस-400 ट्रायम्फ और बराक-8 मिसाइल रक्षा प्रणालियों सरीखी मध्यम और लंबी दूरी की एसएएम हैं. भारत की जवाबी मानवरहित हवाई प्रणाली (यूएएस) टेक्नोलॉजी ने भी पाकिस्तानी ड्रोनों को बेअसर करने में बड़ी भूमिका निभाई. इस वायु रक्षा नेटवर्क ने न सिर्फ भारतीय एयरबेस, सैन्य प्रतिष्ठानों, हवाई अड्डों और शहरों की रक्षा की बल्कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को भी पाकिस्तानी ड्रोन-मिसाइलों के हमले से बचाया.

वहीं, पाकिस्तान की चीनी एचक्यू-9 और एचक्यू-16 वायु रक्षा प्रणालियां 10 मई को उसके कई एयरबेस पर भारत के तबाहकुन हमलों का पता लगाने और उन्हें रोकने में नाकाम रहीं. 10 मई को अलस्सुबह हार्पी कामिकाजे ड्रोन से लाहौर में किए गए भारतीय हमलों ने चीन में बनी एलवाइ80 वायु रक्षा प्रणाली को नष्ट किया, जबकि एक मिसाइल ने कराची में एचक्यू-9 प्रणाली को तबाह कर दिया.

विश्लेषण से संकेत मिलता है कि एचक्यू-9 के मुकाबले एस-400 बेहतर है. एक प्रमुख रक्षा अधिकारी कहते हैं, ''भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणालियों ने तैनाती और एकीकरण में अपने पाकिस्तानी समकक्षों से कहीं ज्यादा असरदार प्रदर्शन किया.''

रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि भारत के कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत में पाकिस्तान में छोटे और तेज हमले करने की परिकल्पना की गई ताकि एटमी टकराव से बचा जा सके. वहीं, पाकिस्तान बीते दो दशकों से ज्यादातर आक्रामक हथियार खरीदता रहा है. देशमुख कहते हैं, ''इसके विपरीत भारत का सामरिक जोर टेक्नोलॉजी के उन्नयन और स्वदेशी उत्पादन पर था, जिसके चलते एडीटीसीआर, अश्विनी और इंद्र (इलेक्ट्रॉनिक तरीके से स्कैन किए गए ऐरे रडार) सरीखे रडारों, सेंसर प्रोसेसिंग प्रणालियों, जैमिंग डिवाइसों के अलावा ड्रोन जैमर और काउंटर-बैटरी रडार समेत इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों में निवेश किया गया.''

वे कहते हैं कि ब्रह्मोस और आकाश सरीखी मिसाइल प्रणालियों के विकास और उसके साथ ठीक वक्त पर एस-400 की खरीद ने भारत को गैर-संपर्क युद्ध में अहम बढ़त दी. इस तरह आक्रामक हथियार प्रणालियों में पाकिस्तान के निवेश ने उसकी कमजोर रक्षा क्षमताओं को उघाड़कर रख दिया.

इस संघर्ष ने आखिरकार तस्दीक की कि आधुनिक युद्ध सिर्फ विमानों से नहीं बल्कि नेटवर्क, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और मानवरहित प्रणालियों के लिहाज से भी हवाई शक्ति से लड़ा जाता है.

एक वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक कहते हैं, ''ऑपरेशन सिंदूर समर्थ वायु सेना की शक्ति का सबूत है. पर कोई भी देश आधुनिक हवाई प्लेटफॉर्म और एकीकृत रक्षा नेटवर्कों में लगातार निवेश के बिना भविष्य के युद्ध नहीं जीत सकता.'' विशेषज्ञों का कहना है कि मजबूत प्रदर्शन के बावजूद भारत को संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए. आईएएफ की घटती स्क्वाड्रन शक्ति और अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को लाने की सुस्त रफ्तार ने उन खामियों को उजागर कर दिया, जिनका दुश्मन भविष्य में फायदा उठा सकते हैं.

आसमानी कवच

आइए जानते हैं कि दोनों देशों का वायु रक्षा तंत्र कितना मजबूत रहा.

भारत

एस-400 ट्रायम्फ 'सुदर्शन चक्र'

रूस निर्मित लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली यानी एसएएम (400 किमी), जो विमान, ड्रोन, मिसाइल हमलों को नाकाम कर देती है. पाकिस्तानी मिसाइलों की तुलना में बहुत बेहतर.

एस-400 ट्रायम्फ 'सुदर्शन चक्र'

ऑपरेशन सिंदूर: कथित रूप से जम्मू में आठ पाकिस्तानी मिसाइलों को मार गिराया (8-9 मई)

बराक-8

इज्राएल के साथ विकसित लंबी दूरी की एसएएम (70-100 किमी) एईएसए रडार.

ऑपरेशन सिंदूर: ड्रोन/मिसाइलों का मुकाबला किया.

पिचोरा, तुंगुस्का, ओएसए-एके

रूस निर्मित कम दूरी की एसएएम/गन (10-20 किमी); मोबाइल और रैपिड-रिस्पॉन्स हथियार.

ऑपरेशन सिंदूर: पठानकोट सरीखे भारतीय हवाई ठिकानों की रक्षा करने में कारगर रही.

बोफोर्स एल-70, जेडएसयू-23-4 शिल्का

रडार से जुड़ी, निचले स्तर पर इस्तेमाल की जाने वाली स्वचालित वायु रक्षा (एलएलएडी) गन से लैस.

ऑपरेशन सिंदूर: इग्ला-एम, इग्ला-एस सरीखे मैनपैड्स के साथ सैकड़ों पाकिस्तानी ड्रोन मार गिराए.

तोप की विरासत बोफोर्स एल-70 स्वचालित गन एक पुराना ताकतवर हथियार.

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पाकिस्तान

एचक्यू-9/पी

चीन निर्मित लंबी दूरी की एसएएम

(100-200 किमी), एस-400 से कम उन्नत

एचक्यू-9/पी : चीन निर्मित लंबी दूरी की एसएएम

ऑपरेशन सिंदूर: 25 भारतीय ड्रोन मार गिराने का दावा किया; कराची में भारतीय मिसाइल हमले में एक मिसाइल नष्ट होने का अंदेशा

एफएम-90

चीन निर्मित छोटी दूरी की एसएएम (15 किमी); सीमित दायरा लेकिन तीव्र प्रतिक्रिया में सक्षम.

ऑपरेशन सिंदूर: नूर खान सरीखे अग्रिम मोर्चे के एयर बेस की सुरक्षा में तैनात किया गया, आखिरकार 10 मई को भारतीय मिसाइलों से उसे बचाने में नाकाम साबित.

''एबीसी'' सिस्टम

सतह-आधारित रडार, जे-10सी/ जेएफ-17 जेट, अवॉक्स से जुड़ी सामरिक वायु रक्षा प्रणाली; रियल टाइम में लक्ष्य भेदने में सक्षम.

ऑपरेशन सिंदूर: दावा कि इसने पीएल-15 मिसाइलों को निर्देशित किया जिन्होंने कथित तौर पर भारतीय विमान मार गिराए.

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कौन कितना भारी

भारत और पाकिस्तान के सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों राफेल और जे-10सी की विशेषताएं और प्रदर्शन.

भारत

राफेल

स्कैल्प मिसाइलों, हैमर बमों का सटीक इस्तेमाल करते हुए 7 मई को पाकिस्तान के आतंक के ठिकानों को तबाह किया; 10 मई को पाकिस्तान के एयर बेसों पर हमला किया.

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पाकिस्तान

जे-10सी

पाकिस्तान ने पीएल-15 का इस्तेमाल करते हुए जे-10सी से राफेल विमानों को मार गिराने का दावा किया; बाद में भारत ने उनके एयर बेसों पर हमला किया तो वायु रक्षा की मदद के बगैर वे पस्त हो गए.

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ड्रोन की जंग

इस लड़ाई में सैकड़ों ड्रोन मैदान में उतारे गए. दोनों देशों की ओर से इस्तेमाल किए गए कुछ मानवरहित वायु वाहन (यूएवी)

भारत

हारोप:

सटीक हमलों के लिए इज्राएल निर्मित लोइटरिंग म्यूनिशन/कामिकाजे ड्रोन.

हारोप: सटीक हमलों के लिए इज्राएल निर्मित लोइटरिंग म्यूनिशन/कामिकाजे ड्रोन

हेरॉन :

इज्राएली आईएसआर (खुफिया-निगरानी-टोही) ड्रोन.

स्काइस्ट्राइकर :

इज्राएली लोइटरिंग म्यूनिशन.

नेत्रा :

स्वदेश निर्मित (आइडियाफोर्ज) सामरिक आईएसआर यूएवी.

स्विच :

भारतीय सामरिक आईएसआर/युद्धक यूएवी

ऑपरेशन सिंदूर:

भारतीय हारोप ड्रोन ने लाहौर में एक पाकिस्तानी एलवाइ80 रडार नष्ट किया. अन्य यूएवी ने हमले करने के साथ-साथ रियल टाइम में दुश्मन के विमानों के बारे में खुफिया जानकारी दी और उन पर लगातार नजर रखी, जिससे मानवयुक्त विमानों के लिए जोखिम बेहद सीमित हो गया.

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पाकिस्तान

असिसगार्ड सोंगर :

तुर्की निर्मित 300-400 निगरानी/युद्धक ड्रोन

असिसगार्ड सोंगर: तुर्की निर्मित 300-400 निगरानी/युद्धक ड्रोन

बैरक्तार टीबी2 :

तुर्की निर्मित सशस्त्र आईएसआर/युद्धक ड्रोन.

बैरक्तार अकिंसी :

तुर्की निर्मित उन्नत आईएसआर/युद्धक ड्रोन.

वाईआइएचए-III कामिकाजे

तुर्की से मिले लॉइटरिंग म्यूनिशन युक्त स्वार्म

ऑपरेशन सिंदूर:

पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए 300-400 सोंगर, 400-500 वाईआइएचए-III का इस्तेमाल किया; बाद में बैरक्तार और अकिंसी ड्रोन ने हवाई ठिकानों/प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया. भारत की वायु रक्षा प्रणाली ने इनमें से अधिकांश को मार गिराया.

विशेषज्ञों का कहना है कि मजबूत प्रदर्शन के बावजूद भारत को संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए. आईएएफ की घटती स्क्वाड्रन शक्ति और अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को लाने की सुस्त रफ्तार ने उन खामियों को उजागर कर दिया है जिनका दुश्मन भविष्य में फायदा उठा सकते हैं.

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