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भारत में कोरोना से कितने लोगों की हुई मौत; आंकड़ों में इतना अंतर क्यों?

2020 और 2021 में कोविड से संबंधित मौतों के आंकड़ों में भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान में काफी बड़ा फर्क है

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 17 जून , 2025

महामारी कोविड-19 फिर सुर्खियों में है. देश के कई राज्यों में कोविड पॉजिटिव मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है. 2021 में हुई मौतों के सरकारी डेटा भी जारी किए गए हैं. उस साल देश में सार्स-कोव-2 वायरस के डेल्टा वैरिएंट ने तबाही मचा दी थी.

ओमिक्रॉन के कम घातक जेएन.1 और बीए.2 के प्रकोप के मामलों में इधर हुई वृद्धि घबराहट की वजह नहीं है क्योंकि कोई मौत नहीं हुई है. हालांकि, पहले की सरकारी रिपोर्टों में कोविड से संबंधित मौतों को कमतर आंकने को लेकर चिंता है. इस बारे में सवाल उठाए गए हैं कि पिछले अनुमान कम क्यों थे और 2021 में रिपोर्ट की गई कोविड मौतों और कोविड-ग्रस्तता की वजह से हुई मौतों में बड़ा फर्क क्यों था.

कोविड से संबंधित मौतों के मामले में 2020 और 2021 में सरकारी अनुमान का विश्व स्वास्थ्य संगठन के मॉडल अनुमान (4,80,000 बनाम 47 लाख) से काफी बड़ा फर्क है. भारत के महापंजीयक (आरजीआइ) के जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 के मुकाबले 2021 में 21 लाख मौतें ज्यादा हुईं, यानी 26 फीसद ज्यादा. मृत्यु के सामान्य कारणों में साल भर में कोई खास बदलाव नहीं आया होगा, और आवाजाही के प्रतिबंधों के कारण सड़क दुर्घटना से संबंधित मौतों में यकीनन कमी आई होगी.

इसलिए, अंदेशा है कि कई अतिरिक्त मौतें कोविड से जुड़ी थीं. इससे पता चलता है कि पहले के सरकारी अनुमान और आंकड़े कम थे. बेशक वजह हो सकती है कि वे अनुमान तब लगाए गए थे जब आंकड़े दर्ज करने की सामान्य व्यवस्था महामारी के साये में थी, जिसके लिए कई मोर्चों को दुरुस्त करने की जरूरत थी.

मौत के आंकड़ों को दर्ज करना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन डॉक्टरों के सर्टिफिकेट देने की गड़बड़ और लापरवाह व्यवस्था से मौत की वजह बता पाना मुश्किल हो सकता है, खासकर अस्पताल के बाहर होने वाली मौतों के मामलों में. सरकारी और निजी क्षेत्र के अस्पतालों में मौत के सर्टिफिकेट की व्यवस्था को बेहतर और दुरुस्त बनाने की जरूरत है.

जहां सर्टिफिकेट संदिग्ध हो, वहां खास और मानक सवालों के जरिए मौत की संभावित वजह जानने के लिए 'शव परीक्षण' के दौरान परिजनों और तीमारदारों से बातचीत की जा सकती है. उनसे बातचीत प्रशिक्षित फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिए पास के मेडिकल कॉलेजों के कर्मचारियों और छात्रों की निगरानी में किया जा सकता है. केंद्र और राज्य सरकारों को जिला स्वास्थ्य अस्पतालों और बड़े मेडिकल कॉलेजों के बीच साझेदारी को संस्थागत रूप देना चाहिए.

कुल मौतों की सही संख्या का पता लगाना बेहद जरूरी है. सिविल पंजीकरण व्यवस्था (जो हमेशा डेटा जुटाती है) और नमूना पंजीकरण व्यवस्था (जो समय-समय पर नमूना सर्वेक्षण करती है) दोनों को बेहतर प्रशिक्षण से दुरुस्त और चाक-चौबंद करने की जरूरत है. एल्गोरिद्मि वाली डिजिटल पंजीकरण व्यवस्था के जरिए सटीक और समय पर दर्ज कर दोनों में सुधार किया जा सकता है.

साल-दर-साल तुलना के जरिए आंकड़ों में 'अतिरिक्त मौतों' का अनुमान लगाने से मृत्यु की वजह को लेकर अस्पष्टता दूर करने और डेटा में भारी फर्क को मिटाने में मदद मिल सकती है. यहां तक कि यह गरमी में लू से होने वाली मौतों के आंकड़ों और अतिरिक्त मौतों का अनुमान लगाने में उपयोगी साबित हो रहा है.

हाल ही जारी आरजीआइ डेटा के मुताबिक, उत्तरी और पश्चिमी राज्यों के आंकड़ों में भारी विसंगतियां देखी गईं, जिसमें कोविड से होने वाली मौतों की संख्या बहुत कम बताई गई. केरल इस मामले में सबसे अच्छा राज्य रहा, जहां रिपोर्ट की गई कोविड मौतों और अनुमानित अतिरिक्त मौतों के बीच सबसे कम अंतर था.

राज्य में अच्छी तरह से काम करने वाली प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था, उच्च साक्षरता दर, मजबूत सामुदायिक जुड़ाव, महामारी के दौरान पंचायतों और गैर सरकारी संगठनों की सक्रिय भूमिका बहुत काम आई. साथ ही 2018 निपाह वायरस के प्रकोप के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था की काबिलियत में सुधार से भी बेहतरी आई होगी. भले ही कोविड के मामलों पर बात की जा रही है, लेकिन देश में सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत और दुरुस्त किया जाना चाहिए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2020 के मुकाबले 2021 में 21 लाख ज्यादा मौतें हुईं. इनमें से ज्यादातर कोविड की वजह से हुई होंगी.

-​ प्रोफेसर के. श्रीनाथ रेड्डी, हृदय रोग विशेषज्ञ

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