दोनों तरफ से जमकर जुबानी जंग के बाद भारत और पाकिस्तान तकरीबन पूर्ण युद्ध से अचानक पीछे हट गए और ध्यान फिर उस मुद्दे पर आ गया जो भविष्य में युद्ध का उकसावा बन सकता है. यह है दोनों देशों की छह साझा नदियां.
युद्धविराम को स्वीकार करते हुए भारत ने कहा कि 23 अप्रैल को 'स्थगित' कर दी गई सिंधु जल संधि (आइडब्ल्यूटी) बहाल नहीं की जाएगी. उसने अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांत 'रिबस सिक स्टेनटिबस' (स्थितियों का यथावत रहना) का प्रयोग किया, जो 'परिस्थितियों में बुनियादी बदलाव' की वजह से संधियों को तोड़ने की इजाजत देता है.
उधर, जम्मू-कश्मीर में इस सवाल पर राजनैतिक फूट पड़ गई कि सिंधु जल संधि से जुड़ी परियोजनाओं को जमीन पर कैसे आगे बढ़ाया जाए. जम्मू-कश्मीर उस रणभूमि का हिस्सा रहा है जिसने 22 मौत और 10,000 से ज्यादा मकानों को नुक्सान के साथ दुश्मनियों का दंश झेला. यह तीन विवादित 'पश्चिमी नदियों' सिंधु, चिनाब और झेलम का घर भी है.
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला इस वक्त का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे. उत्तर कश्मीर में एशिया की सबसे बड़ी झीलों में से एक वुलर पर रोक दी गई तुलबुल परियोजना की तरफ ध्यान दिलाने के लिए हवाई दौरे से बेहतर भला क्या हो सकता है? 1984 में परियोजना की शुरुआत के वक्त भारत ने इसे निरी नौवहन सुविधा कहा था.
पाकिस्तान ने दावा किया कि इसमें 0.3 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ) की भंडारण सुविधा भी शामिल है, जिसकी सिंधु जल संधि इजाजत नहीं देती, और 1987 में परियोजना को रोक दिया गया. बीस साल में सचिव स्तर की 12 दौर की वार्ता में भी कोई नतीजा नहीं निकला. उस जगह पर 2012 में आतंकी हमले ने मामले को और उलझा दिया.
उमर इसे फिर चालू करना चाहते हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा, ''इससे हमें झेलम का इस्तेमाल नौवहन के लिए करने का फायदा मिलेगा.'' साथ में एक वीडियो भी नत्थी था, जिसमें बांध से घिरा अर्धविकसित ढांचा दिखाया गया था. उन्होंने यह भी लिखा कि इससे 'बहाव की ओर बिजली परियोजनाओं' को भी बढ़ावा मिलेगा. फिर क्या था, इससे अपनी कट्टर राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी महबूबा मुफ्ती से उनकी इस कार्यकाल की पहली बड़ी भिड़ंत शुरू हो गई.
पीडीपी प्रमुख ने कहा कि उनकी (उमर की) यह इच्छा पहले से तनाव भरे परिदृश्य पर 'पानी का हथियार की तरह इस्तेमाल करने' के बराबर है. उमर ने कहा, पाकिस्तान का तुष्टीकरण. महबूबा ने कहा, अपनी पार्टी के लिए बोलिए, और ऐसे झुकावों का दोष उनके दादा और नेशनल कॉन्फ्रेंस संस्थापक शेख अब्दुल्ला पर मढ़ा.
इस बीच जम्मू-कश्मीर ऊर्जा संकट से जूझ रहा है. साल 2000 में यहां के छह बड़े पनबिजली संयंत्रों को राष्ट्रीय ग्रिड के लिए तय किया गया था, जिनकी सालाना क्षमता 2,250 मेगावॉट है. बगलिहार समेत 13 संयंत्र स्थानीय खपत के लिए दिए गए, जो महज 1,197 मेगावॉट बिजली बनाते हैं, जबकि खपत की सर्वोच्च मांग 2,800 मेगावॉट है. इससे बिजली खरीदने पर उसकी निर्भरता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, जिससे खजाने पर साल में 10,000 करोड़ रुपए का बोझ पड़ता है.
साल 1960 में सिंधु जल संधि पर दस्तखत हुए थे, मगर अब हालात बहुत बदल गए, बर्फबारी घट गई और बारिश का पैटर्न अनियमित हो गया. कश्मीर विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन और हिमनद विज्ञान के एक प्रोफेसर और विशेषज्ञ ने इंडिया टुडे से कहा, ''क्रायोस्फीयर (बर्फ की सतह) पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, भू-जल का छीजना, जल प्रदूषण सरीखी जिन चुनौतियों के बारे में 1960 में सोचा तक नहीं गया था, उन्हें या तो अतिरिक्त नियम-कायदों से या संधि के भीतर हल करना बेहद जरूरी है.''
उधर, अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने श्रीनगर में दफ्तर और 100 करोड़ रुपए की रकम के साथ 13 मई को कदम रखा. उसका काम कानून सम्मत है क्योंकि सिंधु जल संधि 'गैर-खपत उपयोग' की इजाजत देती है. क्या इसे और ऊपर बढ़ाया जाएगा? बेहतर तरीका यही होगा कि एकीकृत भारत-पाकिस्तान ढांचे के भीतर तर्कसंगत बात की जाए. पहले ही इन नदियों में काफी खून बह चुका है.
खास बातें
> सीएम उमर अब्दुल्ला 1987 से अटके तुलबुल नौवहन प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करना चाहते हैं.
> महबूबा मुफ्ती ने युद्ध के बाद के हालात में इसे 'पानी का हथियार की तरह इस्तेमाल' जैसा करार दिया.
> जम्मू-कश्मीर का ऊर्जा संकट और जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव सिंधु जल संधि पर तर्कसंगत पुनर्विचार की जरूरत बताते हैं.
कलीम गीलानी.