जब अनमोल सिंह जग्गी बोलते थे, तो सब सुनते थे. इसी फरवरी की बात है, जब राइड-हेलिंग ऐप ब्लूस्मार्ट के 39 वर्षीय सह-संस्थापक ने गुरुग्राम के एक सम्मेलन में ऐलान किया, ''हमारा लक्ष्य है कि अगले 10 साल में भारत के किसी भी महानगर में हर किसी को पांच मिनट के भीतर ब्लूस्मार्ट की ईवी कैब मिल जाए.’’ निवेशकों और कर्मचारियों को यह एक लक्ष्य की तरह नहीं बल्कि ब्रह्म वाक्य जैसा लगा था. ब्लूस्मार्ट ने राइड-हेलिंग की दुनिया को बदल दिया था.
इसे सरल लेकिन शक्तिशाली आधार पर खड़ा किया गया था: पेशेवर ड्राइवरों के साथ विश्वसनीय कैब, तय किराया, कोई बुकिंग रद्द नहीं और पूरी तरह से ईवी गाड़ियां. मुख्य रूप से यह दिल्ली-एनसीआर, बेंगलूरू और हाल में मुंबई जैसे महानगरीय शहरों में सेवाएं देती थी. उसका फोकस था एयरपोर्ट और ऑफिस आने-जाने वाले लोग. उसने कुछ ही अरसे में ग्राहकों की वफादारी हासिल कर ली. 2024 में रोजाना की उसकी 25,000-30,000 राइड थीं और उसने दिल्ली-एनसीआर के राइड-हेलिंग बाजार का 10 फीसद से ज्यादा हासिल कर लिया. बेहद प्रतिस्पर्धी मोबिलिटी सेक्टर में वह जगह बना रही थी.
लेकिन अनमोल और उनके भाई पुनीत ने जिस तेज उठान के साथ सफर की शुरुआत की, उसी तरह से उनका पतन हो गया. इधर का पैसा उधर करने के आरोप, तनख्वाह में देरी, शीर्ष नेतृत्व का निकल भागना और अंत में सबसे बुरा-ब्लूस्मार्ट का चलना बंद हो जाना. आखिरकार, गलती कहां हुई?
उनकी कहानी सपनों के स्टार्ट-अप सरीखी थी. सैन्य अफसर के बेटे अनमोल और दो साल छोटे पुनीत ने अपने अनुशासन और साहस का श्रेय सैन्य परिवार के माहौल में पालन-पोषण को दिया. दोनों प्रतिभाशाली थे और उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की—अनमोल ने देहरादून की यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम ऐंड एनर्जी स्टडीज से बीटेक किया; पुनीत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की पहुंचे.
दोनों भाइयों को कम उम्र में ही उद्यमशीलता का शौक लग गया. अनमोल की उम्र 21 साल थी जब उन्हें रिलायंस इंडस्ट्रीज में अपनी इंटर्नशिप के दौरान कार्बन क्रेडिट मार्केट में अवसर नजर आए तो उन्होंने जेनसोल ग्रुप की स्थापना की. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद जब इस क्षेत्र को झटका लगा तो जेनसोल ने सोलर कंसल्टेंसी की ओर कदम बढ़ाया. इस क्षेत्र को पुनीत ने उसी दौरान खोजा था.
समय के साथ जेनसोल सौर ऊर्जा क्षेत्र में एक पूर्ण इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (ईपीसी) कंपनी के रूप में बदल गई. कारोबार तेजी से बढ़ा और भाइयों की महत्वाकांक्षाएं भी. जनवरी 2019 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के पूर्व छात्र पुनीत के. गोयल के साथ उन्होंने ब्लूस्मार्ट मोबिलिटी की शुरुआत की. दोनों भाइयों में अनमोल ज्यादा मिलनसार, साहसी, जोखिम लेने वाले और दूरदर्शी थे, जिन्होंने निवेशकों, बैंकरों और नौकरशाहों आदि को आकर्षित किया. पुनीत डेटा के आधार पर फैसले लेते थे. वे अधिक एनालिटिकल थे.
उन्होंने दक्षता में सुधार और बड़ा सिस्टम बनाने पर फोकस किया. स्टार्ट-अप की सफलता का संकेत समझी जाने वाली इक्विटी और डेट फंडिंग भी जल्द आने लगी. ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय तेल और गैस कंपनी बीपी की सहायक बीपी वेंचर्स जैसे प्रमुख निवेशकों ने भाइयों के सपने पर दांव लगाना शुरू कर दिया. कंपनी का इलेक्ट्रिक वाहनों का बेड़ा बढ़कर 8,500 हो गया; फंडिंग भी 22 करोड़ डॉलर (1,870 करोड़ रुपए) को पार कर गई. जैसे-जैसे कारोबार बढ़ा, भाइयों के परिवार में भी इजाफा हुआ. अनमोल ने 2009 बैच की भारतीय रक्षा लेखा सेवा की अधिकारी मुग्धा से विवाह किया और उनके दो बेटे हैं. पुनीत की जीवन साथी शाल्मली हैं. वे भी उभरती उद्यमी हैं. हाल में उन्होंने केक और कुकीज का व्यवसाय शुरू किया है. उनकी एक बेटी है.
जब ऐसा लगा कि दोनों भाइयों के लिए चीजें इससे ज्यादा बेहतर नहीं हो सकतीं, तभी वे बिगड़ने लगीं. 3 फरवरी को समूह की प्रमुख कंपनी जेनसोल इंजीनियरिंग लिमिटेड (जीईएल) ने 30 करोड़ रुपए के गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर भुगतान में चूक की. हालांकि बाद में भुगतान किया गया लेकिन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों केयर रेटिंग्स और इक्रा ने तेजी से इसे डाउनग्रेड कर दिया. इक्रा ने तो जेनसोल पर फर्जी दस्तावेज जमा करने का भी आरोप लगाया, हालांकि बाद में एक निवेशक रिलीज में उसने इस आरोप से इनकार कर दिया.
फिर वेतन का भुगतान अटकना शुरू हुआ. जग्गी के नेतृत्व वाली एक और कंपनी ऑन-डिमांड लॉजिस्टिक्स फर्म वेयो लॉजिस्टिक्स में फरवरी के भुगतान में 20 दिन की देरी हुई. अगले महीने ब्लूस्मार्ट के कर्मचारियों को उनका वेतन नहीं मिला. एक सीनियर कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने इंडिया टुडे को बताया, ''कार्यालय में अक्सर उस वक्त अफरा-तफरी मचती थी जब वेंडर (विक्रेता) भुगतान मांगने आते और जग्गी भाइयों का अता-पता पूछते. क्या हो रहा था, इस बारे में नेतृत्व की ओर से कोई सूचना नहीं थी.’’
शीर्ष प्रबंधन छोड़ने लगा: सीईओ अनिरुद्ध अरुण, मुख्य टेक्नोलॉजी अफसर (सीटीओ) ऋषभ सूद, मुख्य व्यवसाय अधिकारी (सीबीओ) तुषार गर्ग और कस्टमर एक्सपीरियंस की उपाध्यक्ष प्रिया चक्रवर्ती ने इस्तीफा दे दिया. कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा गया, जिससे चिंता बढ़ गई. 15 अप्रैल को बाजार नियामक सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने 29 पेज का अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें जेनसोल में धन की हेराफेरी, बाजार में जोड़तोड़ और जालसाजी का आरोप लगाया गया. जग्गी को प्रतिभूति बाजार में प्रतिबंधित करते हुए पद छोड़ने के लिए कहा गया.
सपनों का सा सफर
ब्लूस्मार्ट के मौजूदा और पूर्व दोनों कर्मचारी कामकाज के स्वस्थ माहौल की बात करते हैं. जेनसोल की तरह यहां भी ज्यादातर फैसलों पर अनमोल की ही मुहर होती थी. पुनीत 2024 के बाद ही ज्यादा सक्रिय हुए, जब प्रेसिंटो को आइबीएम को बेच दिया गया. यह एक एआइ-संचालित सोलर मॉनिटरिंग और एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म था जिसमें वे सह-संस्थापक थे और 2016 से ही लीड कर रहे थे. एक पूर्व वरिष्ठ अफसर बताते हैं, ''अनमोल ने सभी ठीक काम किए. मैंने एक बार भी नैतिक आधार पर उनके फैसलों पर सवाल नहीं उठाया.’’
उन्हें सुलभ, व्यावहारिक और फीडबैक के लिए जवाबदेह माना जाता था. कर्मचारियों की संख्या कम थी. संचालन से जुड़े एक अन्य वरिष्ठ अफसर कहते हैं कि संस्थापकों ने अपने ड्राइवर-पार्टनर्स का भी ख्याल रखा. ''ड्राइवर हमारे पेरोल पर नहीं थे लेकिन हमने उन्हें बीमा मुहैया कराने के तरीके खोज लिए. यह अनमोल का विचार था.’’ क्या उन्हें इसका कोई आभास था कि कुछ गड़बड़ है? अफसर के शब्दों में, ''अनमोल ने जनवरी के टाउन हॉल में धन की तंगी का जिक्र किया था. पर उन्होंने आश्वासन दिया कि पूंजी जुटाने के लिए बातचीत चल रही है.’’ लेकिन समस्याएं नकदी की कमी से कहीं ज्यादा थीं.
अपने आदेश में सेबी ने आरोप लगाया कि जेनसोल जग्गी भाइयों का 'गुल्लक’ बनकर रह गई थी. ईवी खरीद के लिए जुटाए गए धन को 'कई स्तर के लेनदेन’ के जरिए इधर-उधर घुमा दिया गया और इस तरह 'आंतरिक नियंत्रण और कंपनी संचालन के नियमों को तोड़ा-मरोड़ा’ गया. मसलन 3 अक्तूबर, 2022 को जेनसोल को 93.88 करोड़ रुपए मिले. यह रकम एनबीएफसी इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (इरेडा) से आंशिक ऋण और प्रमोटर मार्जिन का आंशिक हिस्सा थी.
उसी दिन उसने इस राशि को अपने ईवी आपूर्तिकर्ता गो ऑटो प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया जहां से 50 करोड़ रुपए कैपब्रिज वेंचर्स एलएलपी को भेज दिए गए. इस फर्म में दोनों भाई पदेन भागीदार हैं. तीन दिन के भीतर 42.94 करोड़ रुपए का इस्तेमाल गुरुग्राम के सबसे महंगे इलाकों में से एक डीएलएफ के अपार्टमेंट, द कैमेलियाज में एक आलीशान अपार्टमेंट बुक करने के लिए किया गया. बाद में यह अपार्टमेंट उनकी मां जसमिंदर कौर को आवंटित कर दिया गया.
कैमेलियाज के अलावा सेबी ने जेनसोल के धन से अन्य फिजूलखर्ची को भी पकड़ा: क्रेडिट कार्ड भुगतान में 59 लाख रुपए, एक लग्जरी गोल्फ सेट पर 26 लाख रुपए और स्पा सेवाओं पर 10.36 लाख रुपए. इस सूची में अपने ही लोगों को भेजी गई रकम भी शामिल है: 7 करोड़ रुपए मां को और 4.2 करोड़ रुपए अपनी बीवियों को ट्रांसफर किए गए. 2.5 करोड़ रुपए का इस्तेमाल विदेशी मुद्रा खरीदने में हुआ. कुल मिलाकर, भाइयों ने कथित तौर पर जीईएल के लगभग 40 करोड़ रुपए अन्य संबंधित पक्षों, परिवार के सदस्यों या व्यक्तिगत उपयोग के वास्ते निकाल लिए.
कैब-हेलिंग मार्केट के एक विशेषज्ञ सलाहकार कहते हैं, ''इस सारे गड़बड़झाले में मसला ब्लूस्मार्ट का उतना नहीं जितना जेनसोल का है.’’ जेनसोल सितंबर 2019 में सूचीबद्धता के लिए बाजार में आई थी और उसकी सालाना बिक्री वित्त वर्ष 2020 में 75 करोड़ रुपए थी जो वित्त वर्ष ’24 में बढ़कर 1,152 करोड़ रुपए हो गई. ब्लूस्मार्ट के बिजनेस मॉडल का मूल आधार ईवी तक उसकी पहुंच मुख्य रूप से जेनसोल के बल पर था.
उसने इरेडा और पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन (पीएफसी) से 977.7 करोड़ रुपए का टर्म लोन लिया था. इसमें से ब्लूस्मार्ट को 6,400 ईवी लीज पर देने के लिए 663.9 करोड़ रुपए तय किए गए लेकिन 567.7 करोड़ रुपए की लागत से केवल 4,704 ईवी की खरीद की गई. जीईएल को बतौर इक्विटी 20 प्रतिशत का हिस्सा देना था, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन खरीद के लिए कुल उपलब्ध रकम 829.86 करोड़ रुपए हो गई. इसमें से 262 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम का कोई हिसाब नहीं है.
प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म इनगवर्न रिसर्च सर्विसेज के संस्थापक और प्रबंध निदेशक श्रीराम सुब्रह्मण्यम कहते हैं, ''भारत में ज्यादातर सफेदपोश अपराधों का मूल कारण रकम की हेराफेरी है. बदकिस्मती से यह व्यवसाय के महज गलत हो जाने की कहानी नहीं, यह एक अभिजात्य जीवनशैली पर धन खर्चने के लिए जान-बूझकर की गई धोखाधड़ी और दस्तावेजी जालसाजी की कहानी है.’’
सेबी ने बाजार में हेराफेरी का भी खुलासा किया. जग्गी भाइयों ने जेनसोल के शेयर खरीदने के लिए वेलरे नाम की एक फर्म का कथित तौर पर इस्तेमाल किया. इस फर्म की 99 प्रतिशत कारोबारी गतिविधियां (160.5 करोड़ रुपए) अप्रैल 2022 और दिसंबर 2024 के बीच जेनसोल के शेयरों की कीमत बढ़ाने पर केंद्रित थीं. एक बहुत ही ढिठाई भरी मिसाल के तहत जेनसोल इंजीनियरिंग ने प्रमोटर कंट्रिब्यूशन की आड़ में अपने प्रेफरेंशियल अलॉटमेंट को धन देने के लिए वेलरे के माध्यम से 10 करोड़ रुपए भी भेजे.
झूठ यहीं खत्म नहीं हुआ. 9 अप्रैल को जब नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारियों ने पुणे में जेनसोल की एक सहायक कंपनी के वाहन संयंत्र का दौरा किया तो बताते हैं उन्हें वहां मैन्युफैक्चरिंग की कोई गतिविधि नहीं दिखी जिससे कंपनी का यह दावा झूठा निकला कि उसे लॉन्च किए गए अपने नए ईवी की 30,000 गाड़ियों के लिए प्री-ऑर्डर मिले थे.
खत्म हुई कहानी?
प्रवर्तन निदेशालय ने जग्गी के खिलाफ विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत मामला दर्ज किया है. पुनीत को 24 अप्रैल को थोड़ी देर के लिए हिरासत में भी लिया गया. तब से उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है. उन्होंने दिल्ली की एक अदालत से अंतरिम बचाव हासिल कर लिया है. अनमोल, बताते हैं, विदेश भाग गए हैं. आव्रजन ब्यूरो ने लुकआउट सर्कुलर जारी किए हैं. इस बीच, सेबी के आदेश का पालन करते हुए भाइयों ने जीईएल में अपने नेतृत्व पदों से इस्तीफा दे दिया है. कंपनी के शेयर की कीमत इस साल के शुरू में लगभग 800 रुपए थी जो विवाद के बाद गिरकर 50 रुपए से थोड़ी ही अधिक रह गई. 20 मई को यह शेयर 70 रुपए में बिक रहा था.
जीईएल को 510 करोड़ रुपए के कथित ऋण डिफॉल्ट के लिए इरेडा की ओर से दायर दिवालियापन याचिका का सामना करना पड़ रहा है. दो ऋणदाताओं—इरेडा और पीएफसी—ने दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) में भी शिकायत दर्ज कराई है. इसमें ऋण भुगतान से संबंधित दस्तावेजों के फर्जीवाड़े का आरोप लगाया गया है. बताते हैं, चूक 2024 के आखिर में शुरू हो गई थी पर जेनसोल ने देरी से इनकार करते हुए क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को 'झूठे ब्योरे’ भेजना जारी रखा. जग्गी ने इस रिपोर्ट के लिए भेजे गए ईमेलों का जवाब नहीं दिया.
ब्लूस्मार्ट समीकरण में तीसरे शख्स गोयल ने सार्वजनिक रूप से खुद को जग्गी से अलग कर लिया है. तीनों के पास स्टार्ट-अप की 35 प्रतिशत इक्विटी है. 28 अप्रैल को इंडिया टुडे से फोन पर बात करते हुए गोयल ने कहा कि उस समय बीपी वेंचर्स के प्रतिनिधि भारत में थे, जो कंपनी को फिर से चलाने में मदद की कोशिश कर रहे थे. लेकिन लगता है कि यह एक मुश्किल लड़ाई है. लंदन मुख्यालय वाली वीसी फर्म का कहना है कि वह 'ब्लूस्मार्ट में अपने छोटे निवेश’ से संबंधित 'मौजूदा स्थिति पर बारीकी से नजर रख’ रही है.
अनमोल ने एक बार एक ऐसा विजन बेचा था जिस पर आप आसानी से अपना पैसा लगा सकते हैं. यह विजन कामयाब भी रहा. रेडसीर स्ट्रैटेजी कंसल्टेंट्स में पार्टनर रोहन अग्रवाल कहते हैं, ''कैब-हेलिंग समेत किसी भी हाइपर लोकल बिजनेस के लिए सही रणनीति यह होती है कि वह अगले बाजार में विस्तार करने से पहले उसी बाजार में अपनी पकड़ बनाए और उसे बड़ा बनाए.’’ अनमोल और पुनीत इस मामले में होशियार थे क्योंकि उन्होंने बेंगलूरू और मुंबई जाने से पहले दिल्ली में अपने बेड़े और चार्जिंग हब को बनाने में समय लगाया. पर फिर लगता है, वे लालच में फंस गए. जो कभी संभावनाशील उद्यम था, वह अब खत्म हो सकता है.
आंखें खोल देने वाले आरोप
सेबी ने 15 अप्रैल को अपने अंतरिम आदेश में साफ कहा कि जीईएल में ''आंतरिक नियंत्रण की स्थिति पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गई’’ है
रकम इधर से उधर: ब्लूस्मार्ट के लिए ईवी खरीदने को रखी गई करीब 262 करोड़ रु. का कहीं कोई हिसाब नहीं; करीब 40 करोड़ रु. संबंधित पक्षों, परिजनों या खुद पर खर्च किए गए, 42.94 करोड़ रु. ''घुमा-फिराकर किए गए लेनदेन’’ के जरिए एक लग्जरी फ्लैट खरीदने पर खर्च किए गए.
बाजार के साथ दांवपेच: वेलरे नाम की फर्म का इस्तेमाल अप्रैल 2022 से दिसंबर 2024 के बीच जीईए के शेयरों की कीमतें बढ़ाने के लिए किया गया; खुद के प्रीफरेंशियल अलॉटमेंट के लिए भी इसका इस्तेमाल किया गया.
जालसाजी: 2024 के आखिर में कर्ज देनदारियां डिफॉल्ट होने लगीं, लेकिन जीईएल ने कथित तौर पर क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के पास ''जाली स्टेटमेंट’’ जमा कराना जारी रखा.