वाणिज्य और कूटनीति अब अलहदा रास्तों पर नहीं चलते. ऑपरेशन सिंदूर के बाद 15 मई को नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो ने 'राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं' का हवाला देते हुए सेलेबी होल्डिंग्स एविएशन की मातहत भारतीय कंपनी की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी.
सेलेबी का मुख्यालय इस्तांबुल में है और यह दिल्ली और मुंबई सहित नौ प्रमुख हवाई अड्डों पर ग्राउंड-हैंडलिंग सेवाएं देती थी. यह अचानक नहीं था. पहलगाम आंतकी घटना के बाद पाकिस्तान को तुर्की का खुला समर्थन खबरों की सुर्खियों में था.
तनाव पिछले करीब साल भर से खदबदा रहा था. अप्रैल 2024 में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के वास्ते बेड़े के सहायक पांच जहाज बनाने के लिए हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड और अनादोलु शिपयार्ड के बीच हुए कई अरब डॉलर के समझौता को रद्द कर दिया. रिश्ते तब और खराब हो गए जब तुर्की ने उन चीजों पर दूना जोर दिया जिन्हें भारत के कुछ हलकों में 'विचारधारात्मक दिखावा' कहा गया.
इनमें अखिल-इस्लामी उद्देश्यों की हिमायत करना, वैश्विक मंचों पर कश्मीर की दुहाई देना और भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न के नैरेटिव को उभारना शामिल थे. इस बीच अंकारा चीन के बाद पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया. उसने युद्धपोत दिए, पनडुब्बियों के सुधार में मदद की और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की सुविधाएं खड़ी कीं. लेकिन भारत को शायद सबसे ज्यादा गुस्सा पहलगाम के बाद की प्रतिक्रिया ने दिलाया.
तुर्की का एक युद्धपोत 5 मई को 'दोनों देशों के बीच समुद्री सहयोग बढ़ाने' की खातिर कराची की गोदी पर आ लगा. उधर, तुर्की के राजदूत ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मिलकर 'पाकिस्तान के साथ अंकारा की एकजुटता' जाहिर की.
बढ़ता अलगाव
भारत ने कई मोर्चों पर जबाव दिया. एक मोर्चा आर्मेनिया, साइप्रस और ग्रीस सरीखे तुर्की के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ रक्षा संबंध मजबूत करना है. देश में अनादोलु के साथ जहाजों का अनुबंध खत्म करना और सेलेबी पर शिकंजा कसना आर्थिक युद्ध के मोर्चे पर नए मोड़ का संकेत है.
कथित तौर पर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप अर्दोआन के परिवार से जुड़ी सेलेबी ने अब भारतीय अदालतों का दरवाजा खटखटाया है. मगर रिश्तों की नई नापजोख निजी उद्योग में तेजी से फैल रही है. लखनऊ, कानपुर, पुणे और सूरत की मेट्रो रेल परियोजनाओं से जुड़ी तुर्की की निर्माण कंपनी गुलेरमक उद्योग की भावनाएं प्रतिकूल होने के साथ ही अनिश्चितताओं से घिर गई. खुदरा और उपभोक्ता क्षेत्र भी इस व्यापक प्रतिरोध के साथ जुड़ गए. यहां तक कि तुर्की के सहयोगी देश अजरबैजान का भी बहिष्कार किया जा रहा है.
दोतरफा व्यापार पर असर पड़ना तय है, जो वित्त वर्ष 2024-25 में 8.7 अरब डॉलर (74,422 करोड़ रुपए) था और जिसमें 2.7 अरब डॉलर (23,096 करोड़ रुपए) का व्यापार अधिशेष भारत के पक्ष में झुका था. प्रसंगवश तुर्की के साथ व्यापार भारत के कुल वैश्विक व्यापार के 2 फीसद से भी कम है. पर्यटन को भी झटका लगा है.
ट्रैवल प्लेटफॉर्मों ने तुर्की की बुकिंग में 60 फीसद की गिरावट और यात्राएं रद्द होने में तीन गुना बढ़ोतरी बताई है. अंकारा ने भी इसी तरह जवाब देते हुए भारत को रक्षा निर्यात पर पाबंदी लगा दी और पाकिस्तान को अपने अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमान कार्यक्रम केएएएन में शामिल होने का न्यौता दिया. इससे नई दिल्ली के साथ उसका रणनीतिक मनमुटाव और गहरा हो गया.
यह प्रतिरोध भारत की आर्थिक शासनकला के व्यापक पैटर्न के अनुरूप ही है. बहिष्कार अभियान की अगुआई कर रहे आरएसएस के आर्थिक मंच स्वदेशी जागरण मंच के सहसंयोजक अश्विनी महाजन कहते हैं, ''मोदी सरकार से शत्रुतापूर्ण देशों को भारतीय बाजारों से अरबों की कमाई करने देते हुए कूटनीतिक संयम बरतने की उम्मीद नहीं की जा सकती.'' महाजन पहले तुर्क इल्कर एची को एयर इंडिया का सीईओ बनाए जाने के खिलाफ अभियान की कामयाब अगुआई कर चुके हैं.
आलोचक बढ़ती लागत और आपूर्ति शृंखलाओं में खलल पड़ने को लेकर आगाह करते हैं. दोतरफा हवाई यातायात अधिकारों की समीक्षा करने के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के कदम का असर इंडिगो सरीखी भारतीय हवाई कंपनियों पर पड़ सकता है, खासकर जब इंडिगो ट्रांजिट हब के तौर पर इस्तांबुल पर निर्भर है. लेकिन जॉर्डन और लीबिया में पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत इस सबमें उम्मीद की एक किरण देखते हैं. वे कहते हैं, ''भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर डालने वाली कोई दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा. लेकिन रिश्तों की नई सिरे से नापजोख की जा सकती है, बशर्ते अंकारा दिखावे के बजाए व्यवाहारिकता को चुने.''
दरअसल, भारत यह संकेत दे रहा है कि उसके बाजार तक पहुंच तभी मिलेगी जब राजनैतिक अनुरूपता हो या कम से कम राजनैतिक तटस्थता तो हो ही. सेलेबी की गर्दन मरोड़े जाने के साथ ही भारत के लिए आर्थिक युद्ध के मोर्चे पर एक नया क्षेत्र खुल गया. उद्योग जगत में उसका असर साफ झलक रहा.