पूर्वी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले की ब्राहिमपुर ग्रामसभा में यह तपती दुपहरी है, लेकिन 35 वर्षीय किसान सूर्य प्रताप सिंह इससे बेखबर नजर आते हैं. वे नीम के पेड़ के नीचे बैठे हैं और अपने फोन पर बहुत तेजी से उंगलियां चला रहे हैं.
उनके आस-पास प्लास्टिक की कुछ कुर्सियां और एक चारपाई पड़ी है. यह शायद ब्राहिमपुर का गेमिंग लाउंज है, जहां खेल पासों या ताश से नहीं खेला जाता बल्कि यह सब डिजिटल है, फिर चाहे लूडो हो, फैंटेसी क्रिकेट हो या ऑनलाइन रमी. और दांव? वे असली हैं.
सूर्य प्रताप कहते हैं, ''सालों से यह हमारी दिनचर्या है. मैं कुछ भी कर रहा होऊं, मुझे खेलना ही है. खेलने के लिए मुझे रोजाना 2,000-3,000 रुपए की जरूरत होती है...जानता हूं कि नहीं जीतूंगा. लेकिन छोड़ नहीं सकता.''
सूर्य प्रताप की लत न केवल उनकी जेब पर भारी पड़ी बल्कि उनके मन की शांति, पारिवारिक रिश्तों और आत्मसम्मान को भी ले डूबी है. उन्होंने ऐप पर लगभग 19,500 गेम खेले हैं, जिनमें अक्सर एक ही राउंड में हजारों का दांव लगाया जाता है. एक रोज तो खास तौर पर तबाही वाला दिन था जब वे 1.5 लाख रुपए हार गए जबकि उन्हें यकीन था कि वे सब कुछ वापस जीतने ही वाले हैं. वे याद करते हैं, ''लगा कि दिल का दौरा पड़ गया है.''
सूर्य प्रताप भारत ग्रामीण उत्तर प्रदेश से लेकर शहरी हैदराबाद तक, किसानों से लेकर पेशेवरों तक, छात्रों से लेकर पेंशनरों तक—में फैल रही डिजिटल जुए की महामारी का महज एक लक्षण हैं जिसमें स्मार्टफोन, सस्ते डेटा, तुरंत ऑनलाइन भुगतान और खेल से इच्छाएं पूरी करने की दीवानगी बढ़ रही है.
विनजो गेम्स और द इंटरऐक्टिव एंटरटेनमेंट ऐंड इनोवेशन काउंसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का गेमिंग बाजार 2024 में 3.7 अरब डॉलर (31,500 करोड़ रुपए) था और 2029 तक इसके 19.6 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़कर 9.1 अरब डॉलर (78,000 करोड़ रुपए) तक पहुंच जाने का अनुमान है. स्टेटिस्टा मार्केट इनसाइट्स का अनुमान है कि भारत का ऑनलाइन स्पोर्ट्स सट्टा बाजार 2025 में अकेला ही 2.19 अरब डॉलर (18,700 करोड़ रुपए) का होगा.
भारत में अब इनकी संख्या वैश्विक गेमिंग यूजर्स की 20 फीसदी से ज्यादा है और गेमिंग ऐप्स के करीब 8.6 अरब डाउनलोड हैं. इसके बाद के दो सबसे बड़े बाजारों अमेरिका और ब्राजील को मिला दें तो भी यह उनसे ज्यादा है. वृद्धि का असली चालक? रियल मनी गेमिंग (आरएमजी), जिसका उद्योग के राजस्व में 86 प्रतिशत हिस्सा है. यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म महज गेम नहीं बल्कि अपने आप में समूचा आर्थिक ईकोसिस्टम है, जहां हर दिन लाखों लोग नतीजों पर दांव लगाते हैं.
जैसे, डिजिटल लूडो एक जैसे हुनर और दांव वाले यूजर्स का मेल कराने के बाद एंट्री फीस लेकर खिलाया जाता है. इसी तरह फैंटेसी क्रिकेट ड्रीम 11, माइ 11 सर्कल आदि. इनमें असली खिलाड़ियों की वर्चुअल टीम होती है और यूजर्स वास्तविक मैच में प्रदर्शन के आधार पर पैसे या पॉइंट अर्जित करते हैं.
रियल मनी गेम या असली धन से गेम खेलने में उछाल ने न केवल इस लत को चौतरफा बढ़ावा दिया है बल्कि कई यूजर्स को कर्ज के जाल में भी धकेल दिया है. इसने ज्यादा किस्म के प्रपंची खतरों की भी राह बना दी है. मनी लॉन्ड्रिंग, साइबर धोखाधड़ी और यहां तक कि आतंकवाद को धन मुहैया कराना. अब जबकि तेजी से बढ़ता यह अव्यवस्थित उद्योग नियंत्रण से बाहर हो रहा है, तो सरकार ने इस पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया है.
जहां पिछले कुछ वर्षों में कई नियामकीय उपाय किए गए हैं, वहीं केंद्रीय गृह मंत्रालय के आला अफसरों का कहना है कि भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आइ4सी) अब एक नए केंद्रीय कानून की सिफारिश के लिए रिपोर्ट तैयार कर रहा है. प्रस्तावित कानून में ऑनलाइन गेमिंग, जुआ, सट्टेबाजी और लॉटरी के पूरे तंत्र को संघीय व्यवस्था के तहत लाया जा सकता है, जिसमें उल्लंघन पर भारी जुर्माने और तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है.
तकदीर और तदबीर का झांसा
भारत में जुए के लिए कानूनी ढांचा औपनिवेशिक काल से चला आ रहा है जो सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867 के तहत आता है. इसमें 'कौशल के खेल' और 'संभावना के खेल' के बीच अंतर किया गया है. पहला जैसे रमी या फैंटेसी क्रिकेट कानूनी है जबकि दूसरा, जैसे रूलेट या स्लॉट ऐप जुए के दायरे में आते हैं और आम तौर पर प्रतिबंधित हैं. 1957 के एक फैसले (बॉम्बे राज्य बनाम आर.एम.डी. चामरबागवाला) में सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत पर फिर से बल देते हुए कहा कि केवल वे ही खेल जुए के रूप में वर्गीकृत होने से बच सकते हैं, जिनमें सफलता मुख्य रूप से कौशल से तय होती है. प्रधानता की यह कसौटी आज भी कानूनी व्याख्याओं को आकार देती है.
लेकिन, ऑनलाइन दुनिया में यह विभाजन धुंधला है. प्लेटफॉर्म अक्सर नियमों को चकमा देने के लिए खुद को कौशल-आधारित गेम के रूप में प्रचारित करते हैं. विशेषज्ञों की दलील है कि जिन खेलों में कुछ स्तर के कौशल की जरूरत होती है, उनमें भी आकर्षक विजुअलों, नजदीकी-चूकों और औचक पुरस्कारों जैसे तौर-तरीकों से हेरफेर किया जा सकता है. ये सभी जुए की तरह उन्माद बढ़ाने के सिद्ध तरीके हैं. सूर्य प्रताप कहते हैं, ''उम्मीद सबसे बड़ी ताकत है.'' लगभग यही बात मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पेशेवर दोहराते हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेज (निमहांस), बेंगलूरू में क्लिनिकल साइकोलॉजी के प्रोफेसर और शट (सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नोलॉजी) क्लिनिक के समन्वयक डॉ. मनोज कुमार शर्मा कहते हैं कि कई उपयोगकर्ता शुरू में रियल मनी गेमों के प्लेटफॉर्मों से जुड़ते हैं. लेकिन धीरे-धीरे वे 'जुए से कमाने की भ्रांत धारणा' में फंस जाते हैं या उम्मीद करते हैं कि हार के बाद जीत जाएंगे. वे कहते हैं, ''लत के शिकार लोग अक्सर किसी और को जीतता देखते हैं तो उन पर उनकी वित्तीय या मनोवैज्ञानिक जरूरतें हावी हो जाती हैं. उन्हें लगता है कि वे अपनी किस्मत बदल सकते हैं और बढ़ते नुक्सान के बावजूद वे और ज्यादा पैसा लगाते रहते हैं.''
डॉ. शर्मा कहते हैं कि 2017 तक शट क्लिनिक में मुश्किल से ही ऐसा कोई मामला आया था. अब हर महीने कम से कम एक मरीज ऑनलाइन जुए या भारी जोखिम वाले व्यापार की लत के बारे में बताता है. अक्सर सेलिब्रिटी प्रचार के जरिए 'बिग विन' (बड़ी जीत) को ग्लैमराइज करने वाले विज्ञापन इसमें पीड़ितों को और भी ज्यादा धंसा देते हैं. डॉ. शर्मा बताते हैं, ''ऐसे विज्ञापन भरोसे की झूठी भावना पैदा करते हैं.'' वैश्विक सलाहकार फर्म केपीएमजी का 2022 का एक अध्ययन इस दृष्टिकोण का समर्थन करता है. इस अध्ययन से पता चलता है कि भारत में 18-25 वर्ष की आयु के 40 प्रतिशत वयस्क इस प्रचार से प्रभावित हुए हैं.
बाहर के खतरे
संसदीय स्थायी समिति की 2023 की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कमजोर निगरानी के कारण गेमिंग पोर्टल आतंकवाद के लिए धन उगाहने के जरियों में बदल रहे हैं. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने भी चरमपंथी समूहों तक पहुंचे धन का पता लगाया है. आतंकवाद का प्रतिकार करने के लिए वैश्विक इंटरनेट फोरम जैसे निगरानी प्लेटफॉर्म भी आगाह करते हैं कि चरमपंथी समूह संवेदनशील यूजरों को भर्ती करने और कट्टरपंथी बनाने के लिए गेम की चैट और फोरम का इस्तेमाल कर रहे हैं.
भारत की फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआइयू) की 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि गेमिंग प्लेटफॉर्मों के माध्यम से 2,000 करोड़ रुपए इधर से उधर हुए जिसमें से अधिकांश पर कर नहीं लगाया गया और न ही उसका कोई पता लगाया जा सकता है. राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय, गांधीनगर में सुरक्षा और वैज्ञानिक तकनीकी अनुसंधान संघ (एसएएसटीआरए) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध सट्टेबाजी के कई प्लेटफॉर्म यूजर को नकदी में दांव लगाने की इजाजत देते हैं और वे यूजर्स के डिजिटल रिकॉर्ड को पूरी तरह से दरकिनार कर देते हैं.
वर्ष 2022 में ऐसे ही एक हाइ-प्रोफाइल मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ई-नगेट्स नामक एक प्लेटफॉर्म से 17.82 करोड़ रुपए नकद और 22 करोड़ रुपए से ज्यादा के बिटकॉइन जब्त किए. इस प्लेटफॉर्म को कथित तौर पर चीनी नागरिक चला रहे थे. जोखिम सलाहकार फर्म ग्रांट थॉर्नटन भारत के निदेशक अनन्य जैन के अनुसार, विदेशों से नियंत्रित ऐप, खासकर चीन के ऐप, राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता बढ़ाते हैं क्योंकि निगरानी नेटवर्क और डेटा से कमाई करने वालों से उनके संभावित संबंध होते हैं.
यह तरीका अन्य दूसरे दुष्टता भरे कामों के लिए भी वरदान साबित हो रहा है. वे कहते हैं, ''भारत में जैसे-जैसे ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी के प्लेटफॉर्म बढ़ रहे हैं, उनके साथ ही वित्तीय धोखाधड़ी, डेटा चोरी और फिशिंग स्कैम के जोखिम भी बढ़ रहे हैं.'' 2022 की सीईआरटी-इन की रिपोर्ट में पाया गया कि गेमिंग प्लेटफॉर्म से जुड़ी ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी में 55 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के थिंक टैंक एमपी-आइडीएसए में रिसर्च फेलो रोहित शर्मा 2024 के फीविन मामले की ओर इशारा करते हुए इसे चेतावनी बताते हैं. फीविन चीनी ऑपरेटरों का गेमिंग ऐप था, जिसने भारतीय यूजर्स से करीब 400 करोड़ रुपए की ठगी की थी. शर्मा कहते हैं, ''ऐप ने यूजर्स को धोखा देने के लिए ऊंचे रिटर्न का झूठा वादा किया.'' फीविन की ईडी जांच में 'फ्यूल' खातों और क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट के जरिए अंतरराष्ट्रीय लेनदेन का खुलासा हुआ, जिससे इसे पकड़ना और कानून के दायरे में लाना बेहद मुश्किल हो गया.
ये प्लेटफॉर्म जिस क्षेत्राधिकार वाले ग्रे जोन में काम करते हैं, उससे समस्या और बढ़ जाती है. कई माल्टा, साइप्रस और कुरासाओ जैसे टैक्स हैवन ठिकानों में पंजीकृत हैं, जो भारतीय नियामकों की पहुंच से बहुत बाहर हैं. ये अक्सर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, पेमेंट ऐंड सेटलमेंट सिस्टम्स ऐक्ट, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ऐक्ट और प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिग ऐक्ट (पीएमएलए) समेत अनेक भारतीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं.
टेक पॉलिसी थिंक टैंक द डायलॉग की एसोसिएट डायरेक्टर और प्रोग्राम मैनेजर (ऑनलाइन गेमिंग) कृति सिंह कहती हैं कि वैध या अवैध गेमिंग की बुनियाद अभी भी धुंधली बनी हुई है. वे चेतावनी देती हैं, ''कुछ कानूनी स्पष्टता के बावजूद नियामकीय अस्पष्टता ने ऐसा माहौल बनाया है जहां ऑफशोर प्लेटफॉर्म ग्रे एरिया (बिना कानून वाले इलाके) में पनपते हैं, जो अक्सर कौशल-आधारित गेम के मुखौटे होते हैं.
इससे उपभोक्ता मानसिक और वित्तीय नुक्सान के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं...यूजर्स की सुरक्षा और जवाबदेही बढ़ाने के लिए ऐसा व्यापक राष्ट्रीय ढांचा आवश्यक है जो कौशल के खेल और संभावना के खेल के बीच स्पष्ट रूप से अंतर करता हो.'' जैन सहमत हैं. वे कहते हैं, ''हमें गेमिंग के लिए सेबी जैसे नियामक की तुरंत आवश्यकता है, ऐसा नियामक जो लत रोकने के लिए लाइसेंसिंग, ऑडिट और सार्वजनिक शिक्षा को अनिवार्य करे.''
शर्मा भी कहते हैं, ''इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 का अनुपालन, जैसे भारतीय संपर्क वाला पता प्रकाशित करना और 'उद्देश्य सीमा' सिद्धांत का पालन करना महत्वपूर्ण है.'' (उद्देश्य सीमा का अर्थ है व्यक्तिगत डेटा का उपयोग केवल उन विशिष्ट, वैध उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए जिनके लिए इसे एकत्र किया गया है.)
सख्त कदम
बढ़ती चुनौतियों के चलते सरकार ने सुधार के कई कदम उठाए. दिसंबर 2022 में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआइटीवाइ) को ऑनलाइन गेमिंग का नोडल प्राधिकरण नियुक्त किया गया था. मंत्रालय ने 2023 में आइटी नियम, 2021 को संशोधित कर ऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरीज से जुड़े नियम सख्त कर दिए. इसके तहत गेमिंग प्लेटफॉर्म के लिए आयु सत्यापन, शिकायत निवारण की व्यवस्था करना और सख्त केवाइसी (अपने ग्राहक को जानें) मानदंडों का पालन करना अनिवार्य किया गया. फरवरी 2025 तक मंत्रालय इन प्रावधानों का पालन न करने वाली 1,410 वेबसाइटों/ऐप्स को ब्लॉक भी कर चुका है. इस वर्ष मार्च में लागू नए उपाय उपयोगकर्ताओं को अवैध जुए, डेटा चोरी और ऐसे खेलों की लत लगने से बचाने को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं. इसके साथ ही यह पक्का करते हैं कि उद्योग जवाबदेह और पारदर्शी बना रहे.
इसके अलावा, पिछले दो साल में सरकार ने सट्टे के पूरे मूल्य पर 28 फीसद वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) और जीती गई शुद्ध राशि पर 30 फीसद आयकर लगाया है, जिसका उद्देश्य शौकिया तौर पर जुआ खेलने पर अंकुश लगाना और वित्तीय पारदर्शिता पक्का करना है. केंद्र की तरफ से आरएमजी प्लेटफॉर्म को पीएमएलए के दायरे में लाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है, जिससे उन्हें प्रभावी रूप से नियमित रिपोर्टिंग वाली इकाई के तौर पर वर्गीकृत किया जा सके. यह व्यवस्था लागू होने से इन प्लेटफॉर्म के लिए सख्त केवाइसी मानदंडों को लागू करना, लेन-देन का व्यापक रिकॉर्ड रखना और संदिग्ध गतिविधियों के बारे में फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट को जानकारी देना जरूरी होगा.
तमिलनाडु ने तो एक कदम आगे बढ़कर इस साल फरवरी में ऑनलाइन जुआ निषेध और ऑनलाइन गेम्स विनियमन अधिनियम, 2022 लाकर व्यापक नियम लागू कर दिए. इसमें आधी रात से सुबह 5 बजे के बीच गेमिंग निषेध, एक घंटे खेल के बाद पॉप-अप चेतावनी और उपयोगकर्ता के खर्च की सीमा तय करने जैसे प्रावधान किए गए हैं. तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने आरएमजी पर पूरी तरह पाबंदी के लिए इसी तरह की कार्रवाई शुरू की, जबकि केरल ने रमी के जरिए दांव लगाने पर रोक लगाई.
हालांकि, इनमें से ज्यादातर प्रयास या तो अदालतों में दम तोड़ गए या फिर वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) इसमें बाधा बन गए और प्रतिबंधित साइटों तक पिछले दरवाजे से पहुंच बदस्तूर जारी है. सख्त प्रावधानों के चलते अनेक यूजर विदेशी प्लेटफॉर्मों की ओर मुड़ गए जो भारतीय कानून और न्यायक्षेत्र से बच जाते हैं. हालांकि, ऑनलाइन गेमिंग एक डिजिटल उद्योग है, जिसके लिए भौगोलिक सीमाएं बहुत मायने नहीं रखतीं लेकिन संविधान के तहत जुआ राज्य का विषय है.
ज्यादातर राज्य कौशल से जुड़े खेलों को जुए जैसी पाबंदियों से बाहर रखते हैं. गोवा में लाइसेंस लेकर कसीनो चलाने की अनुमति है, नगालैंड, सिक्किम और मेघालय जैसे राज्यों ने ऑनलाइन गेमिंग के लिए खास तरह का लाइसेंसिंग ढांचा बना रखा है. ऐसे विरोधाभास इन पर नकेल कसने वाले कानूनों पर अमल को जटिल बना देते हैं, जिससे प्लेटफॉर्म के लिए फायदा उठाना कहीं न कहीं आसान बन जाता है. 2022 में जब गेमिंग को सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के दायरे में लाया गया तब आइटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस क्षेत्र को विनियमित करने के लिए 'एक केंद्रीय कानून' बनाने की बात कही थी.
स्व-नियमन की पहल
इस उद्योग ने कुछ हद तक स्व-नियमन की पहल भी की है. 10 मार्च को उद्योग से जुड़े प्रमुख निकायों फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स (एफआइएफएस), ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (एआइजीएफ) और ई-गेमिंग फेडरेशन (ईजीएफ) ने भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआइ) के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए एक आचार संहिता (सीओई) घोषित की. ड्रीम-11, माइटीम-11, जूपी, ए-23 और जंगली गेम्स जैसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म इन निकायों के सदस्य हैं. आचार संहिता लागू करने का उद्देश्य जिम्मेदार गेमिंग और विज्ञापन नीतियों पर अमल करके पूरे उद्योग में यूजर्स की सुरक्षा के लिहाज से उपयुक्त मानक लागू करना है और जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए वार्षिक थर्ड पार्टी ऑडिट और व्यापक रिपोर्टिंग तंत्र बनाना पक्का करना है.
एआइजीएफ के सीईओ रोलां लैंडर्स ने इंडिया टुडे को बताया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म होने का एक फायदा यह है कि उपयोगकर्ता के व्यवहार पर नजर रखी जा सकती है. वे कहते हैं, ''अगर हमें ज्यादा इस्तेमाल के पैटर्न का पता लगता है तो हम उपयुक्त कदम उठा सकते हैं और निवारक कार्रवाई कर सकते हैं.'' साथ ही वे इस पर भी जोर देते हैं कि ''उपयोगकर्ता का जागरूक होना और संयम बरतना भी उतना ही जरूरी है.'' लैंडर्स के मुताबिक, इन कौशल-आधारित गेमिंग ऐप के केवल 15-20 फीसद उपयोगकर्ता मौद्रिक लेन-देन करते हैं, अधिकांश कम-मूल्य वाले गेम खेलने में मशगूल रहते हैं. वे कहते हैं, ''गंभीर नुक्सान अक्सर अवैध प्लेटफॉर्म से ही जुड़े होते हैं.''
लूडो और ट्रंप कार्ड जैसे आरएमजी वाले प्लेटफॉर्म जूपी के सार्वजनिक नीति निदेशक रवि शंकर झा का मानना है कि इस मुद्दे से निबटने के लिए कानूनी प्रावधान बहुत मायने रखते है. वे कहते हैं, ''असंतुलन दूर करने का एकमात्र तरीका कारगर विनियमन ही है जो वैध स्किल गेमिंग संस्थाओं को गैर-कानूनी प्लेटफॉर्म से अलग करता है.'' झा का तर्क है कि पहचान स्पष्ट न होने से यूजर्स जिम्मेदाराना ढंग से गेमिंग को बढ़ावा देने वाले वैध ऑपरेटरों और ऑफशोर सट्टेबाजी और जुआ साइटों के बीच अंतर कर पाने में असमर्थ हैं.
कई बार, एकदम हानिरहित लगने वाले गेमिंग ऐप अवैध सट्टेबाजी वाले ऐप तक पहुंचने का जरिया बन जाते हैं, और जागरूकता के अभाव, वित्तीय जरूरत या फिर विशुद्ध लालच की वजह से लोग फंस जाते हैं. 16 अप्रैल को हैदराबाद में एक 25 वर्षीय एमटेक छात्र ने ऑनलाइन सट्टेबाजी में पैसे हारने के बाद खुदकुशी कर ली जो आरएमजी के सबसे बड़े खतरे को दर्शाता है.
सरकार की बहुआयामी कार्रवाई कुछ हद तक अवैध गतिविधियों पर लगाम लगा सकती है लेकिन सही मायने में सख्त कार्रवाई के लिए कानून होना जरूरी है. 15 मार्च को जारी डिजिटल इंडिया फाउंडेशन की रिपोर्ट में पाया गया कि सिर्फ चार अवैध सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म को तीन महीने में करीब 1.6 अरब बार देखा गया. साइप्रस मुख्यालय वाली दिग्गज स्पोर्ट्स बेटिंग कंपनी परीमैच संचालित मिरर साइट्स को लोगों ने 26.6 करोड़ बार देखा. यह सब प्रतिबंधों को धता बताने के लिए लगातार डोमेन बदलने के कारण ही संभव हुआ.
लड़ाई सिर्फ ऐसे ऐप को बंद कराने तक सीमित नहीं है, लोगों की सोच बदलनी होगी. लोगों को आसानी से पैसा बनाने और सूझबूझ से कमाई करने में अंतर समझने योग्य बनाना होगा. अन्यथा, सूर्य प्रताप और उनके जैसे लाखों लोग लत का खामियाजा भुगतते रहेंगे. 3.7 अरब डॉलर का है भारत का ऑनलाइन गेमिंग मार्केट, और अनुमान है कि 2029 तक 9.1 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.
अभी तक क्या किया
> संशोधित आइटी नियम (अप्रैल 2023) रियल मनी गेम प्लेटफॉर्म के लिए शिकायत निवारण, केवाइसी और आयु सत्यापन की अनिवार्यता तय करते हैं. इन नियमों का पालन न होने पर मध्यस्थ (प्लेटफॉर्म) की जवाबदेही सुरक्षा छिन सकती है.
> फरवरी 2025 तक इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अनुपालन न करने वाली 1,410 वेबसाइटों/ऐप्स को बंद किया. धोखाधड़ी, डेटा चोरी और लत को रोकने के मकसद से मार्च 2025 में नए उपाय जोड़े गए.
> अक्तूबर 2023 में पूरे दांव की रकम पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया था, इसके बाद 2024-25 से जीत की रकम पर 30 प्रतिशत टीडीएस लागू किया गया—इसका उद्देश्य अत्यधिक खेल पर अंकुश लगाना और पारदर्शिता बनाए रखना है.
> भारत में विज्ञापन मानक परिषद के प्रयासों के परिणामस्वरूप मार्च में प्रमुख उद्योग निकायों ने आचार संहिता पर हस्ताक्षर किए. विज्ञापन के अलावा, आत्म-नियमन में खर्च सीमा जैसी बातों को भी शामिल किया गया है.
आगे क्या
> गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (आइ4सी) ऑनलाइन गेमिंग, सट्टेबाजी, जुआ और लॉटरी को नियंत्रित करने का कानून बनाने के मकसद से एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है, और विदेशी प्लेटफॉर्मों को भी सीमित करने की योजना है. संभावित कड़े दंडों में तीन साल की जेल और भारी जुर्माना शामिल हो सकते हैं.
> सरकार ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म को मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी कानूनों के तहत लाने पर काम कर रही है, जिसमें कड़ा केवाइसी अनुपालन, लेन-देन रिकॉर्ड बनाए रखना और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की रिपोर्टिंग की आवश्यकता होगी.