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देश में ऑर्गन डोनरों का क्यों है अकाल?

अंग प्रत्यारोपण की टेक्नोलॉजी, संख्या और इसकी कामयाबी की दर के मामले में भारत का कोई सानी नहीं. लेकिन जिस रफ्तार से अंगों की मांग बढ़ रही है उसके मुकाबले यह सब बहुत कम पड़ रहा

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 3 जून , 2025

जन्मेश लेंका मरते-मरते दो लोगों को नया जीवन देकर गया. भुवनेश्वर स्थित एम्स ने 1 मार्च, 2025 को जब इस 15 वर्षीय किशोर को ब्रेन डेड घोषित किया तो उसके माता-पिता ने साहसिक और नैतिक फैसला लिया. उन्होंने उसके अंगों को प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी.

उसका लिवर वहां से दिल्ली के आईएलबीएस (यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान) लाया गया, और इसे उस बच्चे को प्रत्यारोपित किया गया जिसका लिवर फेल होने के करीब था. वहीं, दोनों किडनी एम्स (भुवनेश्वर) में ही एक अन्य किशोर को प्रत्यारोपित कर दी गईं.

दिल्ली स्थित एम्स के जेपीएन एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के फोरेंसिक मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. संजीव लालवानी कहते हैं, ''ये ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो एक दशक पहले इतनी आसानी से संभव नहीं थीं...जाहिर है, प्रत्यारोपण की टेक्नोलॉजी ने काफी तरक्की की है.''

तमिलनाडु के करूर शहर के 10 माह के बच्चे का कोयंबतूर स्थित जी. कुप्पुस्वामी नायडू मेमोरियल अस्पताल में इसी तरह का जटिल ऑपरेशन किया गया. इसमें ब्रेन डेड अंग दानकर्ता से अस्थि मज्जा लेकर उसके शरीर में एमएएलटी-1 की कमी दूर करने के लिए प्रत्यारोपण किया गया. यह प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए बेहद महत्वपूर्ण प्रोटीन है. कुछ साल पहले तक ऐसी बीमारी मौत की सजा से कम नहीं होती थी.

एम्स, दिल्ली का ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग संगठन ब्रेन डेड अंग दानकर्ताओं का लेखा-जोखा रखता है और अंग दान के बारे में जागरूकता फैलाता है. हाल के वर्षों में इसने अंग दान के लिए आने वाली अर्जियों में खासी बढ़ोतरी देखी है. मणिपाल ऑर्गन शेयरिंग ऐंड ट्रांसप्लांट (एमओएसटी) के प्रमुख डॉ. (कर्नल) अवनीश सेठ वीएसएम कहते हैं, ''2023 में अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे ज्यादा अंग प्रत्यारोपण करने वाला भारत ही था.''

ऐसा नहीं है कि सिर्फ संख्या ही बढ़ी है, ऐसे प्रत्यारोपण सफल रहने की दर भी काफी अच्छी रही है. प्रत्यारोपण के बाद कम से कम एक साल जीवित रहना सामान्य मानक है. इस लिहाज से लिवर और किडनी ट्रांसप्लांट में सफलता दर लगभग 85-90 फीसद, फेफड़ों के प्रत्यारोपण में 85-90 फीसद, हृदय प्रत्यारोपण में 85-90 फीसद और अग्न्याशय प्रत्यारोपण में 95 फीसद से ज्यादा है.

देश में मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग और किडनी खराब होने जैसे गैर-संचारी रोगों में वृद्धि देखी जा रही है. इससे महत्वपूर्ण अंगों को क्षति पहुंचने का अंदेशा बहुत बढ़ जाता है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2024 में एक आकलन किया कि भारत में हर साल 1,75,000 किडनी, 50,000 लिवर, हृदय और फेफड़े और 2,500 अग्न्याशय प्रत्यारोपण की जरूरत है. चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में इतनी तरक्की के बावजूद दान किए जाने वाले अंगों की कमी बेहद चिंताजनक है.

दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठन ऑर्गन रिसीविंग ऐंड गिविंग अवेयरनेस नेटवर्क ऑफ इंडिया का अनुमान है कि प्रत्यारोपण के लिए अंग मिलने का इंतजार कर रहे मरीजों की संख्या 5,00,000 से ज्यादा है.

सितंबर 2024 तक अपडेट नेशनल ऑर्गन ऐंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (एनओटीटीओ) की देशव्यापी प्रतीक्षा सूची बताती है कि 57,806 मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण की दरकार है, जबकि 2023 में केवल 13,426 ऐसे प्रत्यारोपण किए जा सके. इसी तरह, 4,491 लिवर प्रत्यारोपण किए गए जबकि 19,847 मरीज लिवर प्रत्यारोपण के लिए सूचीबद्ध हैं.

हृदय प्रत्यारोपण की 221 सर्जरी के मुकाबले 2,671 मरीज सूचीबद्ध हैं, फेफड़ों के लिए प्रतीक्षा सूची 1,771 है, जबकि प्रत्यारोपण सिर्फ 197 हुए. इसी तरह अग्न्याशय प्रत्यारोपण के लिए 277 लोगों ने अर्जी दी लेकिन केवल 27 का ही ऑपरेशन हो पाया, और छोटी आंत प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षा सूची 92 थी, जिसमें 2023 में 16 छोटी आंत का प्रत्यारोपण किया गया. कुल मिलाकर, 18,336 व्यक्तियों को 18,378 दान किए गए अंग मिले.

नई दिल्ली स्थित नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के मुताबिक, भारत में अंग दान की दर प्रति 10 लाख (पीएमपी) आबादी पर एक से भी कम है. आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए 124 पीएमपी की दर जरूरी है. गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट के सीनियर डायरेक्टर डॉ. नीरज सराफ कहते हैं, ''कई मरीज डोनर के इंतजार में वर्षों तक डायलिसिस पर निर्भर रहते हैं या फिर निजी अस्पताल में ट्रांसप्लांट पर भारी-भरकम राशि खर्च करते हैं. कई लोग सस्ती या सुलभ चिकित्सा सेवाओं के अभाव में जान गंवा देते हैं.''

भारत में जागरूकता का अभाव, शरीर में विकृति आने का अंदेशा (जीवित अंग दान मामलों में), धार्मिक मान्यताएं और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के प्रति अविश्वास अंग दानकर्ताओं की बेहद कमी होने के प्रमुख कारण हैं.

अंगों की उपलब्धता का अभाव

प्रत्यारोपण के लिए सबसे ज्यादा मांग तीन अंगों किडनी, लिवर और हृदय की होती है. मुंबई स्थित वॉकहार्ट हॉस्पिटल्स में एचपीबी और लिवर ट्रांसप्लांट के कंसल्टेंट डॉ. स्वप्निल शर्मा के मुताबिक, ''गंभीर किडनी रोग और मधुमेह के कारण किडनी प्रत्यारोपण की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है.'' वे कहते हैं, ''इसी तरह शराब पीने के कारण लिवर संबंधी रोग, हेपेटाइटिस संक्रमण और लिवर में सूजन आदि की समस्या होना आम है और इसी वजह से लिवर प्रत्यारोपण की मांग भी काफी रहती है. हृदय और फेफड़े के प्रत्यारोपण की जरूरत उन मरीजों को होती है जो हृदय के लगभग पूरी तरह काम कर देना बंद कर देने और वायु प्रदूषण के कारण होने वाले पुराने श्वसन रोगों से पीड़ित हैं, ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या चिंताजनक है.''

मरीजों के परिवार वाले अक्सर अंग दानकर्ता न मिल पाने के कारण निराश हो जाते हैं. समीरा भट्ट के पिता ऐसे ही मरीज थे. दिल्ली की यह 39 वर्षीया गृहिणी बताती हैं, ''मेरे लिए वह जीवन का सबसे बुरा दौर था.'' समीरा हर सुबह एनओटीटीओ वेबसाइट खोलकर देखतीं कि उनके पिता के लिए कोई अंग उपलब्ध है या नहीं, जिनके लिवर की बीमारी से ग्रस्त होने का एकदम अंतिम चरण में पता चला था. वे बताती हैं, ''उन्हें तत्काल अंग प्रत्यारोपण की जरूरत थी और मुझे बताया गया कि स्थिति के मद्देनजर उन्हें अंग दान में प्राथमिकता दी जा रही है. आखिरकार कोई दानदाता नहीं मिला और उनका निधन हो गया.''

प्रत्यारोपण की जरूरत बहुत जल्द होने की स्थिति में प्रतीक्षा समय में प्राथमिकता मिलती है. साथ ही रक्त प्रकार की अनुकूलता, अंग का आकार और अंग दान किए जाने वाले अस्पताल से निकटता भी इस सब पर काफी असर डालती है.

मुंबई के 41 वर्षीय निवेश बैंकर आकाश कुमार ने एक कार दुर्घटना में अपनी मां को गंवा दिया, उनकी किडनी और हृदय बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे. आकाश बताते हैं, ''अस्पताल में एक व्यक्ति हमारे पास आया और उसने कहा कि अगर मैं अच्छी-खासी कीमत दूं तो अंग का इंतजाम हो सकता है. हमने हामी भर दी. लेकिन कुछ हो पाता इससे पहले ही मां का निधन हो गया.''

हालांकि, अंग पाने वालों के लिए यह एक नया जीवन पाने से कम नहीं होता. पुणे की 67 वर्षीया सेवानिवृत्त बैंकिंग अधिकारी कमला मंगावा कहती हैं, ''मुझे गंभीर टाइप-2 मधुमेह था...65 वर्ष तक मेरी नजर इतनी खराब हो चुकी थी कि कुछ वर्षों में मुझे दिखाई देना बंद हो जाना तय ही था. पिछले साल 66 वर्ष की आयु में अपने पिता को खो देने वाले एक दयालु मित्र ने कॉर्निया दान करने के लिए सहमति जताई और यह मुझे मिल गया. इसके बाद के अनुभव को शब्दों में बयान कर पाना नामुमकिन है... मेरी आंखें मेरी अपनी नहीं हैं. लेकिन मैं बहुत आभारी हूं.''

जीवित बनाम मृत अंग दानकर्ता

भारत में अधिकांश अंग दान जीवित दाताओं के माध्यम से होते हैं. मिसाल के तौर पर 2023 में भारत में 13,426 किडनी प्रत्यारोपण में 10,896 जीवित लोगों के अंग दान से संभव हुए. विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति सभी अंगों पर लागू होती है, और मांग और आपूर्ति के बीच इतने बड़े अंतर के पीछे एक कारण यह भी है.

मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (टीएचओए) 1994 में निर्धारित प्रक्रिया के तहत जीवित अंग दान करने के लिए दाता की आयु 18 से 55 वर्ष होनी चाहिए, उसका रक्त समूह मरीज से मेल खाता हो, वह उसका करीबी रिश्तेदार हो, उसके अंग स्वस्थ हों, और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त न हो. लेकिन जीवित दाता केवल एक किडनी, 40 फीसद लीवर (इससे यह अंग पुनर्जीवित हो सकता है) और अस्थि मज्जा दान कर सकता है. अन्य अंगों के लिए मरीजों को मृत दानकर्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता है. जीवित अंग दान के लिए दाताओं का दायरा करीबी रिश्तेदारों तक ही सीमित है.

मृत अंग दान दानकर्ता को ब्रेन डेड घोषित किए जाने पर निर्भर करता है. यह सामान्य तौर पर वह स्थिति होती है जब मस्तिष्क और मस्तिष्क स्टेम गतिविधि बंद हो जाती हैं, दिल धड़कता रहता है और अंगों में रक्त का संचार जारी रहता है. ऐसी स्थिति में जरूरी अंग प्रत्यारोपण के लिहाज से अनुकूल होते हैं.

भारत में ज्यादातर मृत दाता अंग प्रत्यारोपण ब्रेन डेड घोषित करने के बाद (डीबीडी) होते हैं, जबकि दुनिया के बाकी हिस्सों में सर्कुलेटरी डेथ के बाद अंग दान (डीसीडी) यानी संचार और कार्डियो-श्वसन रुकने के बाद अंगों को प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल करना तेजी से बढ़ रहा है.

डॉ. (कर्नल) सेठ बताते हैं, ''डीसीडी में हम पांच मिनट के लिए दिल के रुकने पर मृत्यु की घोषणा करते हैं और फिर अंगों को नुक्सान से बचाने के लिए उन्हें निकालने की त्वरित प्रक्रिया का प्रोटोकॉल बनाते हैं. निकाले गए अंगों को मशीन परफ्यूजन सिस्टम (जिससे अंगों में कृत्रिम ढंग से रक्त संचार को सुनिश्चित किया जाता है) में रखा जा सकता है, और फिर पता लगाया जाता है कि यह प्रत्यारोपण के लिए कितना उपयुक्त है.''

टेक्नोलॉजी में नई बढ़त

अंगों की मांग पूरी करने के लिए वैज्ञानिक जीन संशोधित (जेनेटिकली मोडिफाइड) जानवरों, खासकर सूअरों के जरिए उपलब्धता बढ़ाने पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा 3डी प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर बायोइंजीनियरिंग अंग बनाने और क्षतिग्रस्त ऊतकों/अंगों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से स्टेम सेल अनुसंधान पर भी काम चल रहा है.

चेन्नै स्थित एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेफ्रोलॉजी ऐंड यूरोलॉजी (एआईएनयू) के एमडी डॉ. अरुण कुमार बालकृष्णन का कहना है, ''लैप्रोस्कोपिक डोनर नेफरेक्टोमी जैसे नवाचारों ने किडनी दान करने को कम जोखिम भरा बना दिया है, जिससे ऑपरेशन के बाद ठीक होने में कम समय लगता है. इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं भी काफी कारगर साबित हो रही हैं, जो मरीजों में अंग अस्वीकृति का जोखिम घटाती हैं.''

यही नहीं, रोबोट की सहायता से किए जाने वाले प्रत्यारोपण अधिक सटीक साबित हो रहे हैं जो चूक कम से कम हो, यह पक्का करते हैं. इसका इस्तेमाल कर मेदांता एक ही सर्जरी में कई अंग प्रत्यारोपण कर सकता है और गंभीर लिवर कैंसर की स्थिति में भी लिवर प्रत्यारोपित करने में सक्षम है. यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके बारे में एक दशक पहले कल्पना ही की जा सकती थी.

चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि अब तो प्रत्यारोपित अंग में किसी तरह की समस्या आने पर फिर से प्रत्यारोपण की भी पूरी गुंजाइश रहती है. 2023 में कर्नाटक में हृदय का पुन: प्रत्यारोपण किया गया. अपोलो जैसे अस्पताल भी जागरूकता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं और मरीजों के परिवारों को परामर्श देने के लिए विशेष टीमें बना रहे हैं. इसी तरह, मणिपाल देश में एकमात्र कॉर्निया दान कार्यक्रम चलाता है. सरकार ने भी दाता अंगों की उपलब्धता बढ़ाने की पहल की है. 2025 तक इसमें अधिक जन जागरूकता अभियान, कॉर्निया प्रत्यारोपण के लिए एक राष्ट्रीय नेत्र बैंक रजिस्ट्री और एक अंग परिवहन नीति स्थापित करना शामिल है.

आखिर में, हम एक बार फिर समस्या के मूल पहलू पर आते हैं और वह है दान किए जाने वाले अंगों की आपूर्ति बढ़ाना. हालांकि, अंग दान की इच्छा के मामले में भारतीयों का दिल बहुत बड़ा है और मार्केट रिसर्च फर्म आइपीएसओएस का 2018 का एक सर्वेक्षण बताता है कि 74 फीसद लोग मरने के बाद अंग दान करके लोगों को नया जीवन देना चाहते हैं.

लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर जागरूकता के अभाव और सदियों पुरानी परंपराएं उन्हें पीछे धकेल देती हैं. एआईएनयू के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. नवीनाथ एम. कहते हैं, ''चिकित्सा क्षेत्र की प्रगति प्रत्यारोपण की सफलता दर को तो बढ़ा रही है लेकिन अंग दानकर्ताओं की उपलब्धता बढ़ाना भी एक सामूहिक जिम्मेदारी है.'' इसमें दो राय नहीं कि भारत में हजारों लोगों को दूसरा जीवन देने के लिए अंग दान की संस्कृति कायम करने की जरूरत है.

इनसे मिलता नया जीवन

प्रत्यारोपण के लिए इन पांच अंगों की मांग सबसे ज्यादा

कॉर्निया

केराटोप्लास्टी या कॉर्नियल ग्राफ्टिंग को साधारण रूप में कॉर्निया प्रत्यारोपण कहते हैं. इसमें क्षतिग्रस्त या खराब हो चुके कॉर्निया को मृत दानकर्ता के स्वस्थ कॉर्निया से बदल दिया जाता है. इससे दृष्टि चले जाने, दर्द से राहत और कॉर्निया में गंभीर संक्रमण या क्षति होने का इलाज किया जाता है.

किडनी

जीवित या मृत दानदाता की एक स्वस्थ किडनी यानी गुर्दा ऐसे मरीज को लगाया जाता है, जिसका गुर्दा काम करना बंद कर चुका हो. यह गुर्दे की अंतिम चरण की बीमारी का इलाज है. जीवित दानदाता एक गुर्दा दे सकता है और मृतक दानदाता के दोनों ही गुर्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

भारत में जीवित रहने की दर

जीवित और मृत दानदाता दोनों ही मामलों में प्रत्यारोपणों के बाद एक वर्ष जीवित रहने की दर 95-99 फीसद के बीच है.

फेफड़े

यह सीओपीडी, सिस्टिक फाइब्रोसिस, पल्मोनरी फाइब्रोसिस और पल्मोनरी हाइपरटेंशन जैसी अंतिम चरण की फेफड़े की बीमारियों वाले मरीजों को नया जीवन देने का एक विकल्प है. फेफड़े मृत दानकर्ताओं से लिए जाते हैं.

जीवित रहने की दर: एक साल जीवित रहने की दर 85-90 फीसद है.

हृदय

हृदय प्रत्यारोपण उन लोगों में किया जाता है, जिनके हृदय ने काम करना बंद कर दिया या फिर क्षतिग्रस्त हो. यह अंतिम चरण में हृदय खराब हो जाने पर इलाज का आखिरी विकल्प है, जो मृत दानकर्ता से लिया जाता है.

जीवित रहने की दर: एक साल तक जीवित रहने की दर लगभग 80-90 फीसद है

लिवर

लिवर प्रत्यारोपण अंतिम चरण के लिवर रोग और लिवर के काम करना बंद कर देने पर जीवन बचाने का एक तरीका है. जीवित दानकर्ता के लिवर का एक हिस्सा लेकर मरीज का इलाज किया जा सकता है, जबकि मृत दाता के पूरे लिवर का इस्तेमाल किया जा सकता है.

प्रत्यारोपण में नए आयाम

इस तरह की नई चिकित्सा पद्धतियां अंग प्रत्यारोपण को आसान बना रही हैं और नतीजे ज्यादा सफल साबित हो रहे हैं

इम्यूनोसप्रेसिव (प्रतिरक्षा दमनकारी) दवाएं

टैक्रोलिमस, साइक्लोस्पोरिन जैसी इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं प्रत्यारोपित अंग के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को रोक देती हैं, जिससे शरीर प्रत्यारोपित अंग को ज्यादा आसानी से स्वीकार करने में सक्षम बनता है.

सर्जरी पूर्व और बाद की निगरानी के लिए इमेजिंग

सर्जरी से पहले अल्ट्रासाउंड, एमआरआइ और विभिन्न सीटी स्कैन चिकित्सकों को मरीजों की स्थिति की सही जानकारी मुहैया कराते हैं. वहीं अल्ट्रासाउंड-डॉपलर तकनीकों के सहारे सर्जरी के बाद की स्थिति पर नजर रखने में मदद मिलती है.

मशीन परफ्यूजन सिस्टम

ये उपकरण शरीर के रक्त प्रवाह की तरह ही अंगों के माध्यम से तरल पदार्थ प्रसारित करते हैं, जिससे दान किए गए अंगों का इस्तेमाल किए जाने से पहले संरक्षण के दौरान उसकी व्यवहार्यता का पता चलता है.

नए प्रिजर्वेटिव

भंडारण/परिवहन के दौरान अंगों को होने वाले नुक्सान को कम करने के लिए नए संरक्षण समाधान और तकनीक विकसित की जा रही हैं.

रोबोटिक सर्जरी

प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं की सटीकता बढ़ाने और न्यूनतम चीर-फाड़ वाली तकनीकें मरीज के जल्द ठीक होने और बेहतर नतीजे पक्का करने में मददगार साबित हो रही हैं.

एआई-आधारित अंग आवंटन

एआई एल्गोरिद्म के जरिए रोगियों के जटिल और पेचीदा डेटा का विश्लेषण किया जा सकता है, जिससे यह पता चल सकता है कि किस प्राप्तकर्ता के लिए कैसा अंग चाहिए या कौन-सा अंग किस मरीज के सबसे अनुकूल है.
 

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