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देश के 56 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में से 10 में कुलपति ही नहीं, कहां मामला फंसा?

उच्च शिक्षा की नियामक संस्था यूजीसी समेत कई केंद्रीय विश्वविद्यालय और प्रमुख संस्थान लंबे समय से अपने शीर्ष नेतृत्व की नियुक्ति का इंतजार कर रहे

आईआईटी खड़गपुर को स्थायी निदेशक का इंतजार
आईआईटी खड़गपुर को स्थायी निदेशक का इंतजार
अपडेटेड 3 जून , 2025

अभी बीती 7 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पांच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 11,828.79 करोड़ रुपए की योजनाओं को मंजूरी दी. केंद्र सरकार की तरफ से बताया गया कि इस रकम से अगले चार साल में आंध्र प्रदेश (आईआईटी तिरुपति), केरल (आईआईटी पालक्काड), छत्तीसगढ़ (आईआईटी भिलाई), जम्मू-कश्मीर (आईआईटी जम्मू) और कर्नाटक (आईआईटी धारवाड़ ) राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में स्थापित पांच नए आईआईटी की शैक्षणिक और बुनियादी ढांचे (चरण-बी निर्माण) के विस्तार का काम किया जाएगा.

इन पांच नए संस्थानों के लिए प्रोफेसरों समेत 130 संकाय पदों के सृजन को भी मंजूरी दी गई. उसी दिन कैबिनेट ने औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) को बेहतर बनाने और कौशल विकास के वास्ते पांच राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना के लिए एक योजना को भी मंजूरी दी. केंद्र सरकार राज्यों और उद्योग जगत के साथ मिलकर इस योजना पर 60,000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने वाली है.

शिक्षा और खास तौर पर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र के इन नए कदमों के बीच स्थिति यह है कि देश भर में बहुत सारे उच्च शिक्षा संस्थानों में संस्था प्रमुख के पद अरसे से खाली पड़े हैं. इनमें कई आईआईटी (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) और आईआईएम (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट) जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान भी शामिल हैं.

देश में कुल 56 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं. इनमें से एक-चौथाई यानी 14 अभी हाल तक अपने लिए कुलपति का इंतजार कर रहे थे. थोड़े दिनों पहले ही चार संस्थानों में नियुक्ति हुई: बाबासाहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ; इंग्लिश ऐंड फॉरेन लैंग्वेज यूनिवर्सिटी, हैदराबाद; पांडिचेरी विश्वविद्यालय; और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा.लेकिन 10 विश्वविद्यालयों को अब भी अपने कुलपति की प्रतीक्षा है.

इनमें उत्तर प्रदेश में वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) भी शामिल है. बीएचयू के कुलपति रहे सुधीर कुमार जैन का कार्यकाल 6 जनवरी, 2025 को पूरा हो गया. नए कुलपति की नियुक्ति न होने की वजह से बीएचयू के रेक्टर संजय कुमार को कार्यकारी कुलपति की जिम्मेदारी दी गई है. चार महीने से ज्यादा का वक्त गुजर गया है लेकिन महामना मदनमोहन मालवीय के स्थापित किए इस विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पाई है. यह संस्थान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में स्थित है, ऐसे में यह मामला और भी गंभीर हो जाता है.

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) की कहानी तो और भी जटिल है. भारत की सबसे बड़ी ओपन यूनिवर्सिटी की पहचान रखने वाले इग्नू में पिछले तकरीबन दो साल से कोई पूर्णकालिक कुलपति नहीं है. जुलाई, 2018 में इग्नू के कुलपति बनाए गए नागेश्वर राव का कार्यकाल 2023 के मध्य में ही पूरा हो गया था. फिर उन्हें एक साल का कार्यकाल विस्तार दिया गया. तब तक भी नए कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पाई. एक साल का कार्यकाल विस्तार भी पूरा हो जाने पर जुलाई, 2024 में उमा कांजिलाल को कार्यकारी कुलपति बनाया गया. उसके बाद भी 10 महीने का वक्त निकल चुका है पर संस्थान को पूर्णकालिक कुलपति नहीं मिल पाया.

इस देरी के बारे में इग्नू के ही एक प्रोफेसर बताते हैं, ''सर्च कमेटी पिछले साल ही बन गई थी. कुल 28 नाम शॉर्ट लिस्ट किए गए थे. 19 और 20 अक्तूबर, 2024 को सभी कैंडिडेट के साथ सर्च कमेटी का इंटरैक्शन भी हुआ. नियम यह है कि उसी दिन चुने गए नामों का पैनल सर्च कमेटी देती है. लेकिन इसके सदस्यों के बीच सहमति न बन पाने की वजह से नाम नहीं दिए गए. ऐसे में नए कुलपति की नियुक्ति का मामला लगातार टलता जा रहा है. सर्च कमेटी के अलग-अलग सदस्य, अलग-अलग उम्मीदवारों की पैरवी कर रहे हैं."

काशी हिंदू विवि चार महीने से ज्यादा समय से कुलपति के इंतजार में

अधिकांश संस्थानों में कुलपति या संस्थान के प्रमुख की नियुक्ति में हो रही देरी की प्रमुख वजह यही बताई जा रही है कि प्रक्रिया में शामिल अलग-अलग लोगों की पसंद अलग-अलग है और सहमति नहीं होने की स्थिति में मामला टलता रहता है. यह स्थिति सिर्फ केंद्रीय विश्वविद्यालयों की ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार की ओर से संचालित इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल इंपॉर्टेंस वाले संस्थानों की भी है.

तीन आईआईएम ऐसे हैं, जहां पूर्णकालिक निदेशक की नियुक्ति लगातार टल रही है. आईआईएम, कोलकाता में तो तकरीबन दो साल से कोई पूर्णकालिक निदेशक नहीं है. उत्तम कुमार सरकार ने निदेशक पद से 2023 के अगस्त में इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद सहदेव सरकार को नवंबर, 2023 में संस्थान का प्रभारी निदेशक बनाया गया. जनवरी, 2025 में उन्होंने यह पद छोड़ दिया. इसके बाद शैवाल चट्टोपाध्याय बतौर प्रभारी निदेशक काम कर रहे हैं. लेकिन पूर्णकालिक निदेशक की नियुक्ति अभी होनी है.

आईआईएम लखनऊ में पिछले एक साल से पुराने निदेशक ही एक्सटेंशन के तहत काम संभाल रहे थे. लेकिन अप्रैल के आखिरी हफ्ते में संस्थान को एम.पी. गुप्ता के तौर पर पूर्णकालिक निदेशक मिल गया. लेकिन आईआईएम शिलांग और आईआईएम काशीपुर अब भी प्रभारी निदेशक के मार्गदर्शन में ही काम कर रहे हैं. इनके लिए पूर्णकालिक निदेशक का इंतजार लंबा होता जा रहा है.

आईआईआटी, खड़गपुर और आईआईटी, हैदराबाद की भी यही कहानी है. आईआईटी, खड़गपुर के निदेशक का अतिरिक्त प्रभार आईआईटी, बीएचयू के निदेशक अमित पात्रा के पास है. तीन राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) भी अपने नए पूर्णकालिक मुखिया की नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं. एनआईटी श्रीनगर, एनआईटी उत्तराखंड और एनआईटी आंध्र प्रदेश में भी नए निदेशक की नियुक्ति पिछले कुछ महीनों से लंबित है.

इन उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए शीर्ष नेतृत्व की नियुक्ति में देरी के बारे में यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी अलग-अलग बात कहते हैं. यूजीसी के अधिकारी इस देरी के लिए शिक्षा मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराते हैं. वहीं शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू करने की जो प्रक्रिया चल रही है, उस वजह से काम का बोझ बहुत ज्यादा है. इस कारण कई बार कुलपति की नियुक्ति जैसे काम में ज्यादा वक्त लग जाता है. शिक्षा मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने देरी की एक वजह यह भी बताई कि कुलपति की नियुक्ति से पहले सरकार और अन्य स्टेकहोल्डर्स के साथ लंबा कंसल्टेशन चलता है और इस पूरी प्रक्रिया में देरी होने की वजह से नियुक्ति में देरी हो जाती है.

सबसे दिलचस्प तो यह है कि इस तरह की देरी का खामियाजा भारत में उच्च शिक्षा का नियमन करने वाली संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को खुद उठाना पड़ रहा है. उसके चेयरमैन का पद सवा महीने से खाली है. यूजीसी देश भर के विश्वविद्यालयों के नियामक के तौर पर काम करता है. उसके जिम्मे सिर्फ नियमन का ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा में अनुदान पर निर्णय लेने, संस्थानों की रेटिंग कराने, उच्च शिक्षा का स्टैंडर्ड बनाए रखने, शोध को प्रोत्साहित करने जैसे और भी कई अहम काम हैं. पिछली 7 अप्रैल को एम. जगदीश कुमार के रिटायर होने के बाद से इसे नया चेयरमैन नहीं मिल पाया है.

अमूमन पुराने का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही नए चेयरमैन की नियुक्ति हो जाती थी जिससे कि अहम फैसलों की प्रक्रिया बाधित न होने पाए. उच्च शिक्षा सचिव विनीत जोशी को इसका अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है. जाहिर है, भारत सरकार के एक प्रमुख विभाग के सचिव के पास पहले से ही तमाम जिम्मेदारियां होने के नाते इस दायित्व को वह आंशिक समय ही दे पाएगा.

हालांकि, जोशी को अतिरिक्त प्रभार सौंपे जाने के केंद्र सरकार के कदम को यूजीसी ऐक्ट के प्रावधानों के खिलाफ बताया जा रहा है. यूजीसी में शीर्ष पदों पर बैठे लोग और कानूनी जानकार इस कदम पर सवाल उठा रहे हैं. यूजीसी कानून की धारा 5(2) में साफ तौर पर लिखा है कि यूजीसी चेयरमैन वैसे लोगों में से चुना जाएगा जो केंद्र सरकार या राज्य सरकार में अधिकारी न हों. इसी कानून की धारा 6(3) में किसी वजह से चेयरमैन का पद खाली रहने पर कार्यभार वाइस-चेयरमैन के पास रहने का प्रावधान है.

कानून में इसके लिए 'कैजुअल वैकेंसी' टर्म का इस्तेमाल है, जो मृत्यु, इस्तीफा, बीमारी या अक्षमता की वजह से होगी.
नाम न छापने की शर्त पर शिक्षा मंत्रालय के एक सीनियर अफसर बताते हैं, ''मंत्रालय में यह बात चली थी लेकिन यूजीसी चेयरमैन का पद खाली रहने को केंद्र सरकार कैजुअल वैकेंसी नहीं मान रही. इसीलिए अंतरिम व्यवस्था के तहत उच्च शिक्षा सचिव को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है." वैसे एक अफसर की मानें तो प्रक्रिया चल रही है और नियुक्ति जल्दी ही हो जाएगी. नई दिल्ली के एक प्रमुख विश्वविद्यालय के कुलपति चेयरमैन बनने की दौड़ में सबसे आगे हैं.

यूजीसी के ही एक सीनियर अफसर की मानें तो पूर्णकालिक चेयरमैन न होने से सचिव, संयुक्त सचिव और अन्य शीर्ष अधिकारियों के बीच पूरी तरह से भ्रम की स्थिति है. वजह? हर चेयरमैन अपना एक विजन लेकर आता है. अधिकारी तय नहीं कर पा रहे कि किस दिशा में किस तरह से आगे बढ़ना है. अभी तो जरूरी फाइलों को भी दस्तखत के लिए सेक्रेटरी ऑफिस भेजना पड़ता है. यूजीसी जिन विश्वविद्यालयों/संस्थानों का नियमन करता है, उनके लोग भी चेयरमैन से मिलकर मार्गदर्शन लेते रहते हैं. अभी वह काम भी नहीं हो रहा.

उच्च शिक्षण संस्थानों के कामकाज पर कुलपति या निदेशक नहीं होने की वजह से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रशासनिक पद पर काम कर रहे एक प्रोफेसर कहते हैं, ''सबसे बड़ी दिक्कत तो यही होती है कि कोई बड़ा निर्णय नहीं हो पाता. अस्थाई कुलपति आम तौर पर निर्णय टालते रहते हैं. फिर नीतिगत निर्णय भी नहीं हो पाता. कुलपति संस्थान का कामकाज देखने के अलावा शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी के साथ संस्थान के लिए अतिरिक्त फंड और सुविधाएं लाने के लिए भी काम करते हैं. लेकिन अस्थाई कुलपति की इनमें कोई खास रुचि नहीं होती. इस लिहाज से कामकाज पर अच्छा-खासा असर पड़ता है."

तो फिर समाधान क्या है? वही प्रोफेसर सुझाते हैं, ''केंद्र सरकार को देखिए. वहां नए सचिव की नियुक्ति मौजूदा सचिव का कार्यकाल रहते हुए ही हो जाती है और नया सचिव कार्यभार संभालने से पहले तीन महीने तक पुराने सचिव के साथ ओएसडी के तौर पर काम करता है. यही व्यवस्था उच्च शिक्षण संस्थानों में भी विकसित की जानी चाहिए. इससे कामकाज में बहुत सुधार होगा." यह तो आदर्श स्थिति हुई, जो यथार्थ से कोसों दूर है.

राज्यों में भी वही रोना

● उच्च शिक्षण संस्थानों में शीर्ष नेतृत्व की नियुक्ति के मामले में राज्यों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. एक जगह तो डेटा उपलब्ध नहीं पर शिक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि सभी राज्य विश्वविद्यालयों में मिलाकर 20-30 प्रतिशत संस्थान कुलपति/संस्था प्रमुख विहीन हैं. इसकी वजहें भी मोटे तौर पर वही हैं, जिन वजहों से केंद्र सरकार के उच्च संस्थानों में प्रमुखों की नियुक्ति नहीं हो रही.

● राज्यों में कुलपति की नियुक्ति में देरी की एक अलग वजह भी है. कुछ राज्यों में वहां की सरकार और राज्यपाल में कुलपतियों की नियुक्ति पर टकराव की स्थिति एक अरसे से दिख रही है. इस मुद्दे पर तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव न सिर्फ बढ़ा बल्कि सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. पश्चिम बंगाल में भी इस तरह का टकराव चलता ही आया है.

● नियुक्ति में देरी की वजह से सबसे ज्यादा नुक्सान छात्रों का हो रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, तकरीबन 3.25 करोड़ विद्यार्थी राज्य विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं. यह संख्या केंद्रीय विश्विद्यालयों और केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. ऐसे में अगर राज्य विश्वविद्यालय नेतृत्वविहीन रहते हैं तो इसका दूरगामी असर पड़ेगा.

 नेतृत्व का इंतजार कर रहे कुछ प्रमुख संस्थान

 आईआईएम कोलकाता
 आईआईएम शिलांग
 आईआईएम काशीपुर
 आईआईटी खड़गपुर
 आईआईटी हैदराबाद
 एनआईटी श्रीनगर
 एनआईटी उत्तराखंड
 एनआईटी आंध्र प्रदेश
 काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
 इग्नू, नई दिल्ली.

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