लखनऊ से करीब 35 किलोमीटर दूर सरोजिनीनगर के भटगांव में कानपुर रेलमार्ग के आसपास का इलाका हाइ सिक्योरिटी जोन में तब्दील हो गया है. यहां से गुजरने वालों पर सुरक्षा बलों की पैनी नजर रहती है. दशहरी आम के बागों से घिरी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की जमीन को नई पहचान मिल गई है.
रक्षा मंत्री और लखनऊ से सांसद राजनाथ सिंह तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11 मई को यहीं स्थापित ब्रह्मोस एयरोस्पेस इंटीग्रेशन एवं टेस्टिंग फैसिलिटी का एक साथ बटन दबाकर उद्घाटन किया. इस कार्यक्रम में राजनाथ सिंह दिल्ली से वर्चुअली शामिल हुए थे. इसके साथ नजाकत के लिए जाना जाने वाला लखनऊ शहर क्रूज मिसाइल बनाने वाले शहरों की श्रेणी में शामिल हो गया.
उत्तर भारत में इससे पहले ऐसी कोई हाइ-एंड मिसाइल निर्माण सुविधा नहीं थी. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (11 मई) के अवसर पर ब्रह्मोस प्लांट के साथ लखनऊ में ही देश की पहली अत्याधुनिक निजी टाइटेनियम और सुपर एलॉय निर्माण सुविधा की भी शुरुआत हुई. रक्षा गलियारे के इसी परिसर में भारत में पहली बार टाइटेनियम को गलाकर और उसके दोबारा इस्तेमाल की सबसे बड़ी वैश्विक क्षमता एक ही स्थान पर विकसित की गई है.
यह रक्षा और एयरोस्पेस सेक्टर में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है. राजनाथ सिंह ने बताया कि ब्रह्मोस एयरोस्पेस इंटीग्रेशन एवं टेस्टिंग फैसिलिटी का शिलान्यास उन्होंने स्वयं किया था और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने इसे 40 महीनों में पूरा कर दिखाया है.
उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लखनऊ नोड पर ब्रह्मोस निर्माण परियोजना उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे का हिस्सा है. 21 फरवरी, 2018 को लखनऊ में आयोजित यूपी इन्वेस्टर्स समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों शुरू किया गया यह कॉरिडोर उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) की देखरेख में छह रणनीतिक क्षेत्रों में फैला हुआ है.
लखनऊ नोड पर ब्रह्मोस यूनिट के साथ-साथ डिफेंस टेस्टिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर सिस्टम का भी शिलान्यास किया गया, जो रक्षा उत्पादों के परीक्षण और सर्टिफिकेशन में सहायता करेगा. ब्रह्मोस प्रोडक्शन यूनिट 300 करोड़ रुपए की लागत से तैयार की गई है. ब्रह्मोस मिसाइल की यह यूनिट राज्य की पहली हाइ-टेक यूनिट है.
लखनऊ में ही ब्रह्मोस निर्माण इकाई क्यों? डीआरडीओ के सलाहकार सुधीर कुमार मिश्र ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस का सीईओ रहते हुए लखनऊ में यूनिट लगाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. मिश्र बताते हैं, ''ब्रह्मोस एयरोस्पेस की पहले से ही हैदराबाद, नागपुर और पिलानी में इकाइयां हैं, जिनका मुख्यालय दिल्ली में है. लखनऊ इकाई की स्थापना भारतीय सशस्त्र बलों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए की गई है क्योंकि मौजूदा इकाइयों में उनकी पूरी क्षमता से उत्पादन पहले से ही हो रहा है.''
ब्रह्मोस केसीईओ की हैसियत से मिश्र ने 2021 में मुख्यमंत्री से मुलाकात कर नई इकाई के लिए जमीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था. मिश्र के शब्दों में, ''मुख्यमंत्री योगी ने मुझे उपलब्ध जमीन का सर्वेक्षण करने के लिए कहा. तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने सरोजिनीनगर में जमीन दिखाई. यह ब्रह्मोस यूनिट के लिए उपयुक्त लगी और लखनऊ में ब्रह्मोस निर्माण इकाई की नींव पड़ी.''
दिसंबर 2021 में यूपी सरकार ने 80 हेक्टेयर जमीन मुफ्त में उपलब्ध कराई थी. यूपीडा के अतिरिक्त मुख्य कार्यपालक अधिकारी (एसीईओ) श्रीहरि प्रताप शाही बताते हैं कि प्रदेश सरकार ने इस परियोजना की प्रगति की बारीकी से चरणबद्ध निगरानी भी की, जिससे इसे साढ़े तीन साल में पूरा किया जा सका.
शुरुआत में लखनऊ यूनिट बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सालाना 80 से 100 ब्रह्मोस मिसाइलों का ही निर्माण करेगी लेकिन इसका विशिष्ट उद्देश्य ब्रह्मोस एनजी (अगली पीढ़ी) मिसाइलों का निर्माण करना है. अधिकारियों के मुताबिक, करीब डेढ़ वर्ष के भीतर लखनऊ में ब्रह्मोस एनजी मिसाइल का निर्माण शुरू हो जाएगा. ब्रह्मोस एनजी की रेंज 300 किमी होगी, जो वर्तमान मिसाइल के बराबर है, लेकिन मौजूदा मॉडल के 2,900 किलोग्राम की तुलना में ब्रह्मोस एनजी मिसाइल का वजन आधे से भी कम 1.2 टन (1,200 किलो) होगा. ब्रह्मोस एनजी को लड़ाकू विमान सुखोई-30 से एकीकृत किया जाएगा.
अभी सुखोई-30 से केवल एक मिसाइल ही छोड़ी जा सकती है, लेकिन तब पांच ब्रह्मोस एनजी मिसाइलों को एकीकृत किया जा सकेगा. वहीं लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट पर चार मिसाइलें लगाई जा सकेंगी. ब्रह्मोस एनजी मिसाइल थल और नौसेना की मारक क्षमता भी बढ़ाएगी. इसके आकार के छोटा होने के कारण युद्धपोत, पनडुब्बी से अब तीन मिसाइलों की जगह छह या आठ ब्रह्मोस मिसाइलों को पैक किया जा सकता है. ब्रह्मोस निर्माण इकाई से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं, ''लखनऊ में तैयार ब्रह्मोस-एनजी मिसाइल मध्य वायु कमान के स्टेशनों को पाकिस्तान के साथ चीन जैसी चुनौतियों से निबटने में सक्षम बनाएगी.''
सामरिक दृष्टि से लखनऊ का कद बढ़ने की कई वजहें है. सात राज्यों में फैली हुई भारतीय सेना की सबसे बड़ी मध्य कमान का मुख्यालय लखनऊ में है. यहीं पर आर्मी मेडिकल कोर (एएमसी), डीआरडीओ सेंटर, मुख्य यूपी सब एरिया (मुफ्सा), कमान और बेस अस्पताल, 11 गोरखा रेजिमेंटल सेंटर हैं. महिला मिलिट्री पुलिस भर्ती लखनऊ में होती है. यहां यूपी और उत्तराखंड का जॉइंट भर्ती मुख्यालय भी है.
इसके अलावा तीनों सेनाओं के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए बनने वाले तीन थिएटर कमान में से एक लखनऊ में स्थापित करने पर विचार चल रहा है. रक्षा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि लखनऊ में ब्रह्मोस निर्माण परियोजना से 500 इंजीनियरों और तकनीशियनों को रोजगार मिलेगा. इसके अलावा 5,000 लोगों को परोक्ष और रक्षा उद्योग से जुड़ी सहायक इकाइयों की स्थापना से करीब 10,000 लोगों को रोजगार मिलेगा.
केंद्र सरकार ने यूपी के अलावा तमिलनाडु को भी डिफेंस कॉरिडोर की सौगात दी थी लेकिन निवेश के मामले में यह उत्तरी राज्य कहीं आगे है. यूपी रक्षा गलियारे की योजना छह नोड्स लखनऊ, कानपुर, झांसी, आगरा, अलीगढ़ और चित्रकूट में बनाई गई है. ये नोड आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे और नए बन रहे गंगा एक्सप्रेसवे के जरिए निवेशकों को पसंदीदा गंतव्य दे रहे हैं.
यूपी डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के तहत अब तक 57 निवेशकों को भूमि पट्टे पर आवंटित की गई है, जो अपनी उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने के विभिन्न चरणों में हैं. राज्य सरकार के दावे के अनुसार, इन इकाइयों के माध्यम से 9,462.8 करोड़ रुपए का निवेश साकार हो चुका है, जिससे 13,736 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा. उल्लेखनीय है कि पहला पट्टा जून 2021 में निष्पादित किया गया था और चार साल से कम समय में 57 उद्योग इस कॉरिडोर में अपनी सुविधाएं विकसित कर रहे हैं.
यूपी डिफेंस कॉरिडोर में निवेशकों की रुचि इसी से जाहिर होती है कि लखनऊ, कानपुर और अलीगढ़ में डिफेंस कॉरिडोर की सभी जमीन संतृप्त हो चुकी है. झांसी में भूमि बैंक का लगभग आधा हिस्सा, जो 1,000 हेक्टेयर भूमि के साथ सबसे बड़े नोड्स में से एक है, भी संतृप्त हो गया है. ताज ट्रैपेजियम जोन (ताज महल के चारों ओर लगभग 10,400 वर्ग किलोमीटर का निर्दिष्ट क्षेत्र जो स्मारक को प्रदूषण से बचाने के लिए बनाया गया है) के चलते लागू प्रतिबंधों के कारण आगरा में कुछ दिक्कतें आईं लेकिन अधिकारियों के मुताबिक भूमि बैंकों से जुड़े मुद्दे सुलझा लिए गए हैं.
सामरिक क्षेत्र में लखनऊ की धमक
> रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूसी सरकार के उपक्रम एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनिया के संयुक्त उद्यम के रूप में स्थापित ब्रह्मोस एयरोस्पेस रक्षा क्षेत्र का अपने प्रकार का पहला ऐसा संयुक्त उद्यम है जिसे भारत सरकार ने किसी विदेशी सरकार के साथ मिलकर स्थापित किया है.
> ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290-400 किलोमीटर और गति मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) है. यह मिसाइल जमीन, हवा और समुद्र से लॉन्च की जा सकती है और 'फायर ऐंड फॉरगेट' सिद्धांत पर काम करती है.
> ब्रह्मोस नाम दो राष्ट्रों के प्रतीकस्वरूप रखा गया है, जो दो नदियों—ब्रह्मपुत्र की प्रचंडता और मॉस्कोवा की शांति—को दर्शाता है. ब्रह्मोस एयरोस्पेस की स्थापना भारत की ओर से 50.5 फीसद और रूस की ओर से 49.5 फीसद हिस्सेदारी के साथ की गई थी.
> लखनऊ में भारत-रूस के संयुक्त उपक्रम में दो तरह की ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्माण होगा. सामान्य ब्रह्मोस मिसाइल के निर्माण के साथ करीब डेढ़ साल बाद से नई पीढ़ी की ब्रह्मोस (एनजी) मिसाइलों का निर्माण शुरू होगा.
> लखनऊ डिफेंस कॉरिडोर में 12 अन्य कंपनियों को कुल 117.35 हेक्टेयर भूमि आवंटित की गई है. इनमें एरोलॉय टेक्नोलॉजी का प्रथम चरण में 320 करोड़ रुपए का निवेश पूरा हो चुका है. इस कंपनी के उत्पादों का उपयोग स्पेस मिशन (जैसे चंद्रयान) और लड़ाकू विमानों में हो रहा है.
> लखनऊ में स्थापित होने वाले एयरोस्पेस प्रिसीजन कास्टिंग प्लांट में जेट इंजन और एयरक्राफ्ट सिस्टम्स के लिए प्रिसीजन कंपोनेंट तैयार किए जाएंगे. एयरोस्पेस फोर्ज शॉप ऐंड मिल प्रोडक्ट्स प्लांट में टाइटेनियम तथा सुपर एलॉय से बने बार, रॉड और शीट बनाए जाएंगे.
> लखनऊ में लग रहे एयरोस्पेस प्रिसीजन मशीनिंग शॉप के तहत जेट इंजन के सूक्ष्मतम स्तर पर घटकों की मशीनिंग की जाएगी, जबकि स्ट्रैटेजिक पाउडर मेटलर्जी फैसिलिटी के तहत भारत में पहली बार स्वदेशी तकनीक से टाइटेनियम और सुपर एलॉय मेटल पाउडर का निर्माण होगा.