scorecardresearch

भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच सोशल मीडिया पर कैसे लड़ा गया 'नैरेटिव वॉर'?

भारत-पाकिस्तान लड़ाई में सोशल मीडिया पर डीपफेक, बॉट और ट्रोल फार्म नए हथियार बनकर उभरे

COGNITIVE WARFARE
सोशल मीडिया (सांकेतिक तस्वीर)

मई की 7 तारीख को जब भारत ने पाकिस्तान के बहुत भीतर आतंक के बुनियादी ढांचे पर प्रहार किया तो इस्लामाबाद ने इसका जवाब एक्स (पहले ट्विटर) पर 15 महीने पहले लगी पाबंदी हटाकर दिया.

हालांकि पाकिस्तानी सेना का आधिकारिक हैंडल निष्क्रिय रहा, लेकिन उससे जुड़े छद्म हैंडल तेजी से हरकत में आ गए. भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर का एक डीपफेक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे हमलों के लिए माफी मांगते दिखे.

भारत के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (पीआइबी) की फैक्ट-चेक इकाई ने फटाफट इसका पर्दाफाश कर दिया. एक किस्म के जवाबी हमले में एक वीडियो क्लिप में पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता जनरल अहमद शरीफ चौधरी अपने दो जेएफ-17 विमानों का नुक्सान स्वीकार करते दिखाई दिए. जांचपरक मीडिया निगरानी संस्था बेलिंगकैट ने इसे फर्जी बताकर इसका भंडाफोड़ किया, लेकिन उससे पहले यह एक्स पर करीब 7,00,000 बार शेयर किया जा चुका था.

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जंग केवल लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और ड्रोनों से नहीं लड़ी गई. डिजिटल क्षेत्र में भी यह उतनी ही प्रचंडता से फैली. यह समानांतर युद्ध था, जिसमें टाइमलाइनों पर डीपफेक, फर्जी सलाहों, तोड़े-मरोड़े गए वीडियो और समन्वित प्रोपेगेंडा की बाढ़ आ गई. लोगों को प्रभावित करने की इस संज्ञानात्मक रणभूमि में नजरिए ही नहीं धारणाएं भी घेराबंदी की जद में आ गईं. हताहत अक्सर सबसे पहले सच हुआ.

सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले 50 करोड़ से ज्यादा लोगों के साथ भारत भ्रामक जानकारियों का भोंपू और खंडन की ताकत बन गया. तमाम स्वतंत्र स्रोतों से की गई फैक्ट-चेकिंग या तथ्यों की पड़ताल आधिकारिक जानकारियों के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलीं.

तो भी एआइ की खुराक से भड़कते इस सूचना युद्ध में ट्रोल फार्म (या ट्रोल फैक्ट्री) यानी जनमत को गुमराह करने के लिए बड़े पैमाने पर झूठी पोस्ट ऑनलाइन डलवाने वाले संगठन और उन्हें पढ़ने-सुनने-देखने वाले खतरे से अनजान लोग बार-बार एक झूठ का जवाब दूसरे झूठ से देते रहे. नई सज-धज के साथ डाली गई युद्ध की पुरानी कतरनों से लेकर शीर्ष अधिकारियों के एआइ से तैयार बयानों तक एक्स, इंस्टाग्राम, फेसबुक और टिकटॉक (भारत में प्रतिबंधित) सरीखे प्लेटफॉर्म डिजिटल खंदक-खाइयों में बदल गए.

औजार अत्याधुनिक थे लेकिन अवधारणाएं प्राचीन, जिसे चीनी सैन्य रणनीतिकार सुन त्जू ने 5वीं सदी ईसा पूर्व के अपने ग्रंथ द आर्ट ऑफ वॉर में मूल सिद्धांत 'लड़े बिना दुश्मन को वश में करना’ बताया था. इसका आधुनिक रूप संज्ञानात्मक युद्ध है, यानी लोगों को प्रभावित करने के लिए नैरेटिव तोड़ना-मरोड़ना, जिसमें सोशल मीडिया ताकतवर औजार का काम कर रहा है.

फीड ही हथियार
गलत स्रोत बताकर डाले गए दृश्यों की ऑनलाइन बाढ़ आ गई. इज्राएल-गाजा युद्ध के फुटेज भारतीय हवाई हमलों के नए दृश्य बताकर डाले गए. भारतीय वायु सेना के पुराने दुर्घटनाग्रस्त विमानों के वीडियो पाकिस्तान की बदले की कार्रवाइयों के सबूत के तौर पर नमूदार हुए. जम्मू के एयरबेस पर बहुत-से धमाके होने के दावे के साथ 2021 में काबुल हवाई अड्डे पर हुए हमले की तस्वीर थी. तेजी से फैलती एक आग को अमृतसर के सैन्य अड्डे पर पाकिस्तानी मिसाइलों का हमला बताया गया.

यहां तक कि जालंधर के खेत में लगी सामान्य आग को ड्रोन हमला बता दिया गया. भ्रामक जानकारियां दृश्यों तक ही सिमटी नहीं थीं. मनगढ़ंत सलाहों के पुलिंदों ने भी दहशत फैलाने का काम किया. रक्षा मंत्रालय का अलर्ट बताकर व्हाट्सऐप पर फॉरवर्ड की गई एक पोस्ट में आसन्न युद्ध की चेतावनी दी गई. एक अन्य पोस्ट में नागरिकों से अपने मोबाइल फोन पर लोकेशन को डिसएबल करने का आग्रह किया गया ताकि दुश्मन घनी आबादी वाले इलाकों की पहचान न कर सके.

पाकिस्तान का 'लौह कवच दोस्त’ चीन भी इस लड़ाई में कूद पड़ा. सेंट्रल प्रोपेगेंडा डिपार्टमेंट की तरफ से संचालित अंग्रेजी अखबार चाइना डेली ने 2019 की एक तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए कश्मीर में भारतीय विमान गिरने का झूठा दावा किया. दूसरे स्रोतों से आई फर्जी रिपोर्टों में बेतुके दावे शामिल थे, जैसे भारतीय सेना ने अंबाला से गलती से अमृतसर पर बमबारी कर दी. भारत के विपरीत, पाकिस्तान और चीन लंबे समय से सूचना युद्ध क्षमताओं में निवेश करते आए हैं.

पाकिस्तानी सशस्त्र बलों की मीडिया शाखा इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आइएसपीआर) सरकारी प्रोडक्शन हाउस में बदल गई है, जो जनधारणा गढ़ने के लिए फौजी थीम पर म्यूजिक वीडियो और ड्रामे बना-बनाकर डालती है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान आइएसपीआर की ब्रीफिंग अक्सर देर रात को की जातीं. पश्चिमी मीडिया के समयचक्र का ध्यान रखते हुए. जब तक भारत जवाब देता, काफी नुक्सान हो चुका होता था.

जवाबी हमला
इस डिजिटल युद्ध के कोहरे के बीच भारत जवाबी हमला करने की जद्दोजहद करता रहा. सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव की अगुआई में वॉर रूम बनाया गया, जिसमें सेना की कोर ऑफ सिग्नल्स और राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र के सोशल मीडिया विशेषज्ञ लाए गए.

इस टीम के हाथों तैयार हरे इमेज, क्लिप और हैशटैग सशस्त्र जांच थी, न केवल घटनाओं की सचाई बताने के लिए बल्कि पाकिस्तानी बॉट नेटवर्क की पहचान करने के लिए भी. मंत्रालय ने 'इन्फॉर्मेशन स्पेस को झूठ से भर देने’ की कोशिश कर रहे 'पाकिस्तान से जुड़े सोशल मीडिया अकाउंट्स’ के बारे में आगाह करते हुए 11 मई को 20 से ज्यादा आधिकारिक स्पष्टीकरण जारी किए.

सूचना युद्ध पर व्यापक शोध कर चुकीं ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में चाइना स्टडीज की प्रोफेसर श्रीपर्णा पाठक कहती हैं, भारत को नकारात्मक ढंग से दिखाने वाली फर्जी कहानियां अक्सर ''ज्यादा लोकप्रियता और स्वीकृति’’  हासिल करती हैं. ऐसी स्टोरी से उपजा आक्रोश एल्गोरिद्म के जरिए उनकी दृश्यता को बढ़ाता है.

पाठक यह भी कहती हैं कि जेन जी यानी 1996 से 2010 के बीच जन्मे लोगों के हाथों बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाले टिकटॉक और इंस्टाग्राम सरीखे प्लेटफॉर्म पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए प्रोपेगेंडा के प्रमुख औजार बनकर उभरे. दिलचस्प यह कि अप्रत्याशित स्वयंभू सतर्कता दस्ते बचाव में सामने आए. दक्षिण कोरियाई के-पॉप संगीत के मुरीदों का भारतीय समुदाय गलत जानकारियों का पर्दाफाश करने और एक्स पर वैश्विक फॉलोअर्स को स्पष्टता देने के लिए लामबंद हुआ और उन्होंने भारतीयों के दिल जीत लिए.

सूचना युद्ध के एक और विशेषज्ञ ने कहा कि सोशल मीडिया पर सामग्री बहुत तेजी से प्रसारित होती है, जहां यूजर उपभोक्ता और प्रचारक दोनों का काम करते हैं. प्रेस के विपरीत यह संपादकीय जांच-पड़ताल से बंधा नहीं है. इसके बावजूद पारंपरिक मीडिया ने कभी-कभार गफलत और भ्रम में इजाफा किया.

संकट की गरमागरमी के बीच 8 मई को कई भारतीय न्यूज चैनलों ने दम लिए बिना बताया कि नौसेना ने कराची बंदरगाह तबाह कर दिया; यह दावा बाद में गलत साबित हुआ. कुछ ने कहा कि यह मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा था, तो दूसरों ने इसके लिए रेटिंग की दौड़ को दोषी ठहराया.

बहरहाल, मौजूदा संकट एक निपट सचाई की तरफ ध्यान दिलाता है. वह यह कि टकराव के अग्रिम मोर्चे बदल गए हैं. वे जमीन पर नहीं दिमाग में हैं. सतर्कता और मानसिक उन्माद के बीच की लकीर को धुंधला किए बिना सत्य की रक्षा करना चुनौती होगी.ठ्ठ

सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने 'इन्फॉर्मेशन स्पेस को झूठ से भरने’’  की कोशिश कर रहे 'पाकिस्तान से जुड़े अकाउंट्स’ के बारे में आगाह करते हुए 11 मई तक 20 से ज्यादा आधिकारिक स्पष्टीकरण जारी किए. औजार अत्याधुनिक हैं लेकिन अवधारणाएं प्राचीन, जिसे चीनी सैन्य रणनीतिकार सुन त्जू ने 'लड़े बिना दुश्मन को वश में करना’ बताया था.

Advertisement
Advertisement