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राजस्थान: पहलगाम हमले के बाद कैसे सिंध और थार के बीच रोटी-बेटी के रिश्तों में आई दरार?

पहलगाम हमले के बाद राजस्थान के सरहदी थार में अनगिनत लोग हैं जो अपनों का बिछोह का दर्द झेल रहे हैं

जैसलमेर की पिंटू कंवर, जिसकी मां भारतीय और पिता पाकिस्तानी हैं.
अपडेटेड 30 मई , 2025

बाड़मेर जिले के सरहदी गुड़ीसर गांव के स्वरूप सिंह और किशन सिंह का विवाह 18 फरवरी, 2025 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सागड़ गांव की क्रमश: रोशन और माया कंवर के साथ हुआ.

ढाई माह तक स्वरूप और किशन अपनी पत्नी माया और रोशन के भारत आने के लिए वीजा का इंतजार करते रहे. मगर जब वीजा नहीं मिला तो दोनों 15 अप्रैल को भारत लौट आए.

इसी बीच माया और रोशन को भारत आने के लिए वीजा मिल गया, मगर 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद उनका वीजा निरस्त हो गया. स्वरूप और किशन को अब दिन-रात यही चिंता सता रही है कि उनकी दुलहनें भारत आ पाएंगी या नहीं. किशन के चचेरे भाई राम सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

राम सिंह की शादी 22 नवंबर, 2024 को पाकिस्तान के उमरकोट जिले के सियाणी गांव की राधा कंवर के साथ हुई. वे 40 दिन तक पत्नी के वीजा का इंतजार करते रहे, मगर थक-हारकर 8 जनवरी, 2025 को अकेले ही भारत लौट आए. भारत आने के लिए राधा को चार बार वीजा मिला, लेकिन चारों बार बिना कारण बताए उसे रद्द कर दिया गया.

गुड़ीसर के नजदीक इंद्रोई गांव के शैतान सिंह की किस्मत तो और छोटी पड़ गई. उनकी शादी 30 अप्रैल को उमरकोट जिले में नुइया गांव की केसर कंवर से होने वाली थी. सगाई तो चार साल पहले 2021 में ही हो गई थी, मगर वीजा मिलने में आ रही मुश्किलों के कारण शादी का वक्त लंबा खिंच गया. कागजी कार्रवाई और सिफारिशों के बाद आखिरकार शैतान सिंह, उनके पिता हेम सिंह और बड़े भाई गणपत सिंह को पाकिस्तान जाने के लिए 18 फरवरी, 2025 को 90 दिन का वीजा मिला.

दुल्हन और खुद के लिए शादी के जोड़े खरीदने के साथ ही उन्होंने केसर कंवर को गिफ्ट करने के लिए एक आइफोन भी खरीदा. मगर 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उनका मन आशंकाओं से भर उठा. फिर भी वे 23 अप्रैल को पाकिस्तान के लिए रवाना हो गए. अटारी-वाघा बॉर्डर तक पहुंचते-पहुंचते रात के दो बज गए और उसी रात भारत सरकार ने बॉर्डर बंद करने का फैसला कर लिया. 24 की सुबह शैतान सिंह ने बॉर्डर पर सैन्य अफसरों के सामने खूब मिन्नतें की मगर उन्हें सफलता नहीं मिल पाई.

वे अब अपने गांव इंद्रोई लौट आए हैं, मगर उन्हें उम्मीद है कि वीजा अवधि समाप्त होने से पहले अपनी दुल्हन को पाकिस्तान से विदा कराके अपने घर ले आएंगे. शैतान सिंह कहते हैं, ''मन में शादी नहीं होने का मलाल तो है, मगर देश की सुरक्षा पहले है. मैं उस वक्त तक अपनी दुलहन को लाने का इंतजार करूंगा जब तक दोनों देशों के बॉर्डर फिर से न खुल जाएंगे.''

जैसलमेर जिले के टेकरा गांव की पिंटू कंवर को हमेशा यह मलाल रहेगा कि उनका कन्यादान पिता के हाथों नहीं हो पाया. दरअसल, पिंटू के पिता सरूप सिंह पाकिस्तानी नागरिक हैं और उनकी मां सिंधु कंवर भारतीय. तीन माह पहले सरूप सिंह शॉर्ट टर्म वीजा पर भारत आए और अपनी बेटी पिंटू कंवर के लिए पाली जिले की सुमेरपुर तहसील के खिंवादी गांव के देवेंद्र सिंह को पसंद किया.

29 अप्रैल को पिंटू और देवेंद्र की शादी तय हुई. पहलगाम में आतंकी घटना के बाद भारत सरकार ने शॉर्ट टर्म वीजा पर भारत आए लोगों को वापस पाकिस्तान भेजने के निर्देश दिए तो सरूप सिंह अपनी पत्नी सिंधु कंवर के साथ पाकिस्तान जाने के लिए वाघा बॉर्डर पर पहुंचे. सरूप सिंह को उनके बेटे और छोटी बेटी के साथ पाकिस्तान भेज दिया गया जबकि सिंधु कंवर के वीजा को रद्द कर दिया गया और उन्हें वापस उनके गांव भेज दिया गया.

पिता की गैरमौजूदगी में जैसलमेर जिले के टेकरा गांव में रहने वाले पिंटू कंवर के चाचा-चाची ने कन्यादान की रस्म पूरी की. 21 साल की पिंटू कंवर का ज्यादातर जीवन पाकिस्तान में बीता है. पिंटू 14 साल तक पाकिस्तान में रही है, मगर पिंटू और उसकी मां सिंधु कंवर को भारत से इतना लगाव है कि उन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता हासिल नहीं की. सिंधु कंवर चाहती हैं कि उनके पति सरूप सिंह भी छोटी बेटी और बेटे के साथ भारत आ जाएं और यहीं उनके साथ रहें.

उमरकोट के अखेराज गांव के सरूप सिंह और नागौर जिले के पाछौली गांव की सिंधु कंवर की 33 साल पहले शादी हुई थी. पिंटू के पिता का पूरा परिवार पाकिस्तान में रहता है और मां का परिवार भारत में. पिंटू कंवर कहती हैं, ''मेरे लिए दोनों देश एक जैसे हैं, एक तरफ ससुराल है और एक तरफ मायका. मैं बस अब यही चाहती हूं कि मेरी मां को पाकिस्तान जाने की अनुमति मिल जाए ताकि मम्मी-पापा दोनों एक साथ रह सकें.''

इंद्रोई गांव के शैतान सिंह की पाकिस्तान के नुइया गांव की केसर कंवर से शादी होने वाली थी, वीजा के बावजूद वापस भेज दिया गया

राजस्थान के सरहदी थार में पिंटू कंवर जैसे अनगिनत लोग हैं जो अपनों का बिछोह झेल रहे हैं. उमरकोट और बाड़मेर के रेतीले धोरों के बीच इस तरह की असंख्य कहानियां हैं. पाकिस्तान और भारत के रिश्तों में जब भी कड़वाहट आती है, उसका सबसे बड़ा दर्द इन्हीं लोगों को सहना पड़ता है.

'थार के वीर' संस्था के संयोजक और सोढ़ा राजपूत रघुवीर सिंह तामलोर कहते हैं, ''हर साल औसतन 100-150 पाकिस्तानी सोढ़ा राजपूतों के रिश्ते राजस्थान में होते हैं. पहलगाम हमले का असर इस बार वैवाहिक रिश्तों पर भी हुआ है. बॉर्डर बंद होने और वीजा रद्द किए जाने के कारण कई शादियां नहीं हो पाईं, वहीं 100 से ज्यादा लोगों की शादियां टालनी पड़ी हैं.''

पाकिस्तान में 2023 की जनगणना के अनुसार, वहां हिंदुओं की कुल आबादी करीब 38 लाख है जो वहां की कुल आबादी का करीब 1.61 फीसद है. सोढ़ा राजपूत पाकिस्तान के हिंदू समुदाय का एक अहम हिस्सा हैं जिनकी सर्वाधिक आबादी उमरकोट जिले में है. 2017 की जनगणना के अनुसार, उमरकोट में हिंदू समुदाय की आबादी 55 फीसद और थारपारकर जिले में 43 फीसद है.

बताया जाता है कि 1123 ईस्वी में राणा अमर सिंह सोढ़ा थारपारकर में जाकर बसे थे और उन्होंने अमरकोट राज्य की स्थापना की थी. फिलवक्त हमीर सिंह पाकिस्तान के सोढ़ा राजपरिवार के मुखिया हैं. उनकी तीन बेटियों और एक बेटे की शादी भारत में हुई है. कुछ साल पहले ही जयपुर जिले के कानोता ठिकाने से जुड़े मान सिंह की बेटी पद्मिनी और अमरकोट के हमीर सिंह के बेटे करणी सिंह सोढ़ा की शादी जयपुर में धूमधाम से हुई थी. वह शाही बारात पाकिस्तान के उमरकोट से आई थी और मेजबानी गुलाबी नगरी ने की. 

रघुवीर सिंह कहते हैं, ''पाकिस्तान में सिर्फ सोढ़ा गोत्र के राजपूत हैं. वहां दूसरे गोत्र मिलना मुश्किल है, इसलिए सोढ़ा राजपूत रिश्तों के लिए राजस्थान आते हैं. राजस्थान के सरहदी क्षेत्र के हर गांव में औसतन 40-50 ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनकी शादी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हुई है. कई परिवार ऐसे हैं जिनके दादा-दादी, नाना-नानी और बुआ-फूफा जैसे रिश्तेदार पाकिस्तान में हैं.''

पाकिस्तान के उमरकोट और भारत के बाड़मेर तथा जैसलमेर के बीच रेत के टीलों और कांटेदार झाड़ियों में प्यार की इस तरह की कई कहानियां बिखरी हैं. बॉर्डर ने चाहे इन्हें आपस में बांट दिया हो मगर सिंध के सोढ़ा राजपूतों का दिल भारत में रिश्तों के लिए धड़कता है. उन्हें उम्मीद है कि एक दिन बंद सरहदें फिर से खुलेंगी और शैतान सिंह जैसे युवाओं के लिए शहनाइयां फिर से गूंजेंगी और पिंटू कंवर जैसी दुलहनों की मेहंदी की खुशबू दोनों देशों की आबोहवा को फिर से गुलजार करेगी.

खास बातें
> राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर में पाकिस्तान के सोढ़ा राजपूतों की 100-150 शादियां हर साल होती हैं. फिलहाल 100 से ज्यादा शादियां टल गई हैं.

> सोढ़ा राजपूत समान गोत्र में विवाह नहीं करते. पाकिस्तान में समुदाय की आबादी कम है, लिहाजा भारत में रिश्ते तलाशते हैं.

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