'जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहे' भारत को इससे कोई दिक्कत न होती. मगर पड़ोस में झगड़ालू पाकिस्तान होने की वजह से उसकी गुंजाइश नहीं रह जाती, केवल पहलगाम के बाद नहीं, और भारत की जवाबी कदम के बाद तो बिल्कुल नहीं. मगर युद्ध के मंडराते बादलों के बीच भी नई दिल्ली ने धरातल पर अपनी नजरें टिकाए रखी हैं और कदम बढ़ा रही है.
ऑपरेशन सिंदूर से कुछ घंटे पहले भारत ने एक ऐतिहासिक आर्थिक कदम बढ़ाने का भी ऐलान किया. ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर सफलतापूर्वक बातचीत हुई और हस्ताक्षर किए गए. ट्रंप के दौर की उथल-पुथल में यह उसका पहला बड़ा समझौता है. ब्रिटेन के लिए भी यह 2020 में यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद सबसे बड़ा व्यापार समझौता है.
भारत ब्रिटेन का 12वां सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. उसने 2024 में 43 अरब पाउंड (4.9 लाख करोड़ रुपए) मूल्य के माल और सेवाओं का कारोबार किया है. इसमें से 8.3 अरब पाउंड (94,570 करोड़ रु.) भारत के पक्ष में हैं. तीन साल में 13 दौर की बातचीत चली और ब्रिटेन में बदलती सरकारों के कारण कुछ कूटनीतिक गतिरोधों के बाद इसे अंतिम रूप दिया गया.
इस एफटीए के बाद 2030 तक दोनों देशों का आपसी व्यापार 120 अरब डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने इसे 'फायदे का सौदा' बताया. इस समझौते में द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को फिर से परिभाषित करने की संभावना है. मगर यह सियासी रूप से गहरे तक बंटी दुनिया में व्यापार कूटनीति की सीमाओं को भी उजागर करता है.
इस एफटीए को अभी भी दोनों देशों की संसदों से मंजूरी मिलनी बाकी है. इस समझौते से 90 फीसद से ज्यादा व्यापारिक वस्तुओं पर टैरिफ समाप्त हो जाएंगे, सेवाएं उदार बनेंगी और मैन्युफैक्चरिंग, डिजिटल प्रौद्योगिकी, दवा और ग्रीन एनर्जी में भी निवेश की राह मजबूत होगी. केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ''यह केवल व्यापार तक सीमित नहीं है. यह बराबरी की साझेदारी है, जो विश्वास, साझा इतिहास और पारस्परिक अवसरों पर आधारित है.''
स्कॉच, सिल्क और सफायर
भारत को निर्यात में महत्वपूर्ण लाभ कपड़ा, रत्न और आभूषण तथा दवा क्षेत्र में मिलेंगे. ये सभी क्षेत्र रोजगार बहुल हैं. समझौते के तहत भारतीय परिधानों पर 10 फीसद और जूतों पर 8 फीसद तक के टैरिफ को पांच वर्ष में धीरे-धीरे खत्म कर दिया जाएगा. ब्रिटेन ने भी भारत के तेजी से बढ़ते प्रीमियम अल्कोहल बाजार में बेहतर पहुंच हासिल की है, जिसमें स्कॉच व्हिस्की पर शुल्क जो अभी 150 फीसद है को तीन वर्षों में आधा करना शामिल है.
मगर अमेरिका से मिल रहे अप्रिय संकेतों के दौर में शायद असली उपलब्धि सेवाओं में हासिल की गई है. एफटीए में भारतीय पेशेवरों को सभी क्षेत्रों विशेष रूप से आइटी, स्वास्थ्य सेवा और वित्त में आसानी से आवाजाही की सुविधा दी गई है. इसे सुव्यवस्थित वीजा व्यवस्था और एक दूसरे की अर्हताओं को मान्यता के माध्यम से सहज किया जाएगा. ब्रिटेन ने यह भी प्रतिबद्धता जताई है कि यूरोप में विस्तार की इच्छुक भारतीय फिनटेक और डिजिटल स्टार्ट-अप के लिए नियामकीय बाधाओं को कम किया जाएगा.
इसके बदले भारत टैरिफ कम करने और ऑटोमोबाइल, स्वच्छ तकनीक और कानूनी सेवाओं में चुनिंदा क्षेत्रों को खोलने पर सहमत हो गया है. जगुआर लैंड रोवर (भारत की टाटा मोटर्स के पास स्वामित्व) जैसी ब्रिटिश कार निर्माता कंपनियों को लग्जरी वाहनों पर कम शुल्कों से फायदा होगा. हालांकि पूर्ण उदारीकरण के संवेदनशील मसले को अभी बातचीत से दूर रखा गया है.
व्यापार विशेषज्ञ अभिजीत दास कहते हैं कि पेटेंट, सरकारी खरीद के मानदंडों, औद्योगिक सब्सिडी के साथ ही लैंगिक और पर्यावरण संबंधी प्रावधानों सरीखे नाजुक मसलों पर पूरी तरह से चुप्पी साध ली गई है. उनका कहना है, ''हालांकि, हमने भविष्य के क्षेत्रों को खोल दिया है.'' एक अन्य व्यापार अर्थशास्त्री इसे सकारात्मक रूप से देखते हैं: ''पिछले एफटीए के उलट इस बार दोनों पक्षों ने व्यावहारिक आशावाद के साथ काम किया है. इसमें कोई झूठा दिखावा नहीं है, बल्कि व्यावहारिक नजरिया अपनाया गया है.''
इस कहानी में कुछ नाटकीयता का कारण भू-राजनैतिक पृष्ठभूमि से जुड़ी जोखिम की भावना है जिससे दुनियाभर में सभी सरकारें जूझ रही हैं. टैरिफ के कारण संकटपूर्ण स्थिति में फंसी स्टार्रमर सरकार महंगाई को नीचे लाने के लिए संघर्ष कर रही है. ब्रेग्जिट के बाद की उसकी परेशानियां पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं. इसलिए, एफटीए से 'ग्लोबल ब्रिटेन' को फिर से मुख्य भूमिका में आने का दुर्लभ मौका मिला है. जहां तक मोदी सरकार की बात है तो यह उसके 'विकसित भारत' के बड़े खांचे में लगभग फिट बैठता है, जहां आर्थिक कूटनीति केवल व्यापार संतुलन को लेकर नहीं, बल्कि रणनीतिक संकेत देने के लिए है.
आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्वनी महाजन कहते हैं, ''भारत दुनिया को बता रहा है कि वह व्यापार के लिए खुला है. मगर उसकी अपनी शर्तों पर.'' यह मंच यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन और अन्य देशों के साथ भारत के एफटीए पर बारीक नजर रख रहा और घरेलू हितधारकों के हितों के लिए कड़ी वकालत कर रहा है.
चीन के खिलाफ सुरक्षा
चीन भू-आर्थिक क्षेत्र में भी उतना ही आक्रामक है जितना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, ऐसे में भारत और ब्रिटेन दोनों ही अपने वैश्विक तालमेल फिर से दुरुस्त कर रहे हैं. लंदन के लिए भारत एक ऐसा अहम देश है जो चीन पर उसकी निर्भरता कम करता है. भारत की बात करें तो जी7 अर्थव्यवस्थाओं के साथ संबंध मजबूत करना उसकी सुरक्षा की बड़ी रणनीति का हिस्सा है.
इसमें क्वाड और आइ2यू2 (भारत, एज्राएल, यूएई, यूएस), भारत-पश्चिम एशिया यूरोप आर्थिक गलियारा और ईयू इंडिया ट्रेड ऐंड टेक्नोलॉजी काउंसिल जैसे मंचों से उसका जुड़ाव शामिल है.
इस करार को यूरोपीय संघ, कनाडा, सऊदी अरब और बहरीन के साथ चल रही एफटीए वार्ता के एक खाके के तौर पर भी देखा जा रहा है. करार होने के बाद इन पर अमल करना महत्वपूर्ण होगा. इतिहास बताता है कि एफटीए अक्सर कम उपयोग के साथ-साथ अनुपालन में देरी के शिकार हो जाते हैं.
दो का दम
भारत और ब्रिटेन को एफटीए से किस तरह का फायदा होगा
भारत को फायदा
> कपड़ा, आभूषण, मशीनरी, खेलकूद के सामान, चमड़ा, फुटवियर, चीनी मिट्टी की चीजों और फर्नीचर सरीखे सामान के भारत से ब्रिटेन निर्यात पर शून्य टैरिफ लगेगा
> संविदा वाले सेवा आपूर्तिकर्ताओं, कारोबारी आगंतुकों, इंटर-कॉर्पोरेट स्थानांतरित लोगों और स्वतंत्र पेशेवरों को आसान प्रवेश; आइटी, वित्त और शिक्षा क्षेत्रों के लिए वीजा नियमों को कड़ा नहीं करेगा
> भारतीय पेशेवरों को यूके सामाजिक सुरक्षा योगदान पर (3 साल तक) कर छूट और कर दरों में कमी से लाभ मिलेगा और उनके वेतन के 20 फीसद तक की बचत होने की संभावना है
> इस करार से स्वच्छ तकनीक विनिर्माण साझेदारी के लिए भी नई राहें खुलेंगी
> बेहतर बाजार पहुंच और व्यापार सुविधा के जरिए इससे एमएसएमई और पारंपरिक क्षेत्रों को मदद मिलेगी
ब्रिटेन को फायदा
> स्कॉच, व्हिस्की और जिन पर आयात शुल्क तत्काल आधा घटकर 150 फीसद से 75 फीसद हो जाएगा, और बाद में 40 फीसद तक कम हो जाएगा.
> प्रीमियम ब्रिटिश ऑटोमोबाइल पर शुल्क (वर्तमान में 100 फीसद से ज्यादा) घटकर 10 फीसद रह जाएगा, मात्रा पर कोटा सीमा तय रहेगी.
> ब्रिटेन-भारत का द्विपक्षीय कारोबार साल 2030 तक दोगुना होने का अनुमान है, जिससे ब्रिटेन की जीडीपी में 4.8 अरब पाउंड का इजाफा होगा.
> यह करार ब्रिटेन की कंपनियों को सेवाओं और डिजिटल कारोबार के लिए बेहतर नियमों के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक में पैर जमाने का अवसर प्रदान करता है.