
हसन जैदी, कराची में
अगर किसी को दो-राष्ट्र सिद्धांत के मौजूदा वक्त के सबूत की जरूरत होती, तो वह पहलगाम के खौफनाक हमले के बाद पाकिस्तान और भारत के सोशल मीडिया की तरफ इशारा कर सकता था. साइबरस्पेस में भारतीय और पाकिस्तानी दो अलहदा दुनियाओं में रहते दिखाई दिए.
शुरुआती सदमे के बाद भारतीय सोशल मीडिया जहां भारत की तरफ से पाकिस्तान के खिलाफ फौरन इल्जाम के साथ कदमताल करते हुए आग उगलता दिखाई दिया, पाकिस्तानी सोशल मीडिया ने युद्धोन्माद का जवाब अपने हिसाब से बेहतरीन अंदाज में—मीम और हंसी-मजाक से—दिया.
जब भारतीयों ने ट्वीट किया कि पाकिस्तानी पंजाब के शहरों लाहौर, मुरीदके और रावलपिंडी पर मिसाइलें दाग दी जानी चाहिए, तो एक मसखरे ने टिप्पणी की कि मिसाइलों के मामले में भी पंजाब दूसरे प्रांतों के हक हड़प रहा है. जब दूसरे भारतीय ने कहा कि मसला पाकिस्तान नहीं बल्कि भारत में रह रहे पाकिस्तानी हैं, तो एक पाकिस्तानी ने बनावट भरी हैरत के साथ जवाब दिया, ''आप इसका ठीकरा अदनान सामी पर फोड़ने की कोशिश तो नहीं कर रहे???"
हाजिरजवाबी : अच्छा बचाव
जब भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित करने का ऐलान किया, मीम की झड़ी लग गई. मसलन, नहाता हुआ एक शख्स भारत से कह रहा था कि पानी चालू करो, साबुन मेरी आंखों में जा रहा है. दूसरे आत्म-धिक्कार से भरे थे, जैसे एक पाकिस्तानी भारत से कह रहा था कि 9 बजे से पहले जंग छेड़ दो क्योंकि 9.15 बजे गैस की 'लोडशेडिंग' शुरू हो जाएगी, और कुछ तो भारतीय सैनिकों को आगाह कर रहे थे कि अपने मोबाइल घर पर छोड़कर आना वर्ना कराची की सड़कों पर वे छीन लिए जाएंगे.
एक ने कहा कि अगर भारत ने लाहौर पर कब्जा कर भी लिया तो वह खुद दो घंटे के भीतर लौटा देगा. दूसरों ने भारतीय टीवी चैनलों की तीखी लफ्फाजी का मजाक उड़ाने के लिए बॉलीवुड फिल्मों की तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल किया.
एक मजेदार पोस्ट में राष्ट्रीय क्रिकेट टीमों के केवल तटस्थ जगहों पर खेलने का जिक्र करते हुए @aymx_infinity ने एक्स पर पूछा, ''गाइज वार भी हाइब्रिड मॉडल में होगी या इंडिया इस बार पाकिस्तान आ रहा है?"

पर्यवेक्षक हैरान थे और यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि पाकिस्तानी सोशल मीडिया जंग के खतरे को इतनी गैरसंजीदगी से क्यों ले रहा है. कुछ ने इसकी वजह फांसी का इंतजार कर रहे बंदे की तरह लाचारगी में किए जाने वाले उदासी और विडंबना से भरे हास्य को बताया, वहीं दूसरों ने लफ्फाजी के खिलाफ हंसी-मजाक के सबसे अच्छा बचाव होने को, तो कुछ ने भारतीय विश्लेषकों में पाकिस्तानी हकीकतों की समझ न होने के प्रति झुंझलाहट को इसकी वजह कहा.
किसी ने नागरिक सम्मान तमगा-ए-इम्तियाज की तरफ व्यंग्यात्मक इशारा करते हुए सुझाव दिया कि ''कमेंट सेक्शन में बेमिसाल बहादुरी और मीम कल्चर की असाधारण सेवा" के लिए पाकिस्तान को 'तमगा-ए-मीमतियाज' की स्थापना करनी चाहिए.
यह हंसी-दिल्लगी बेशक पाकिस्तान सरकार और प्रतिष्ठान के मामलों को देखने के तरीके से अलग है. उन्होंने कितनी संजीदगी से लिया, इसका एक संकेत 29 अप्रैल को मिला जब पाकिस्तान के सूचना मंत्री अताउल्लाह तारड़ ने ऐलान किया कि पाकिस्तान के पास 'भरोसमंद खुफिया जानकारी' है कि ''भारत अगले 24-36 घंटों में पाकिस्तान के खिलाफ फौजी कार्रवाई का मंसूबा बना रहा है." एक दिन पहले रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी कुछ ऐसा ही इशारा किया था, हालांकि बाद में जब इससे दहशत फैलने लगी तो वे पलट गए.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया और सरकारों को याद दिलाया गया कि पाकिस्तान और भारत दोनों परमाणु शक्तिसंपन्न देश हैं और ऐसे में गफलत और फौजी टकराव के बढ़ने की कीमत नाकाबिल-ए-तसव्वुर होगी.
पाकिस्तान अपने इस रुख पर भी अड़ा है कि भारत ने पहलगाम हमले से जुड़ी कोई भरोसेमंद जानकारी नहीं दी. उसने अंतरराष्ट्रीय अगुआई में 'तटस्थ’ जांच में शामिल होने की पेशकश भी की. कुछ मंत्रियों ने हमले को 'फाल्स फ्लैग’ कार्रवाई करार दिया, जिसका निहितार्थ यह था कि संकट पैदा करने के लिए यह हमला भारतीय सशस्त्र बलों ने खुद ही करवाया था. दूसरे विश्लेषकों ने इसे बिहार में होने वाले आगामी चुनाव से जोड़ा और इशारा किया कि बढ़े हुए तनाव का इस्तेमाल गद्दीनशीन भाजपा समर्थन जुटाने के लिए करेगी.
ज्यादातर पाकिस्तानियों ने यह मान भी लिया, और उन सवालों का हवाला दिया जिनका जवाब नहीं मिला है कि एलओसी से काफी दूर बेहद किलेबंद इलाके में यह हमला कैसे हुआ और हमलावर भाग निकलने में कैसे कामयाब हुए, हमले के पीछे कथित आतंकी धड़े के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और फिर भी भारत ने जरा सोचे बिना 'हमले के पांच मिनट के भीतर’ पाकिस्तान को दोषी ठहरा दिया.
कट्टरपंथियों को या उन लोगों को जो यह मानने को तैयार हैं कि यह हमला स्थानीय कश्मीरी उग्रवादी संगठन ने किया हो सकता है, भारत के इस दावे को लेकर गहरा संदेह है कि यह हमला अचानक हुआ. वे बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा में दहशतगर्दी बढ़ी है, जिसे पाकिस्तान ने भारतीय पोशीदा कार्रवाइयों के कथित समर्थन से जोड़ा है.
दरअसल 29 अप्रैल को सशस्त्र बलों की इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के डायरेक्टर-जनरल लेफ्टिनेंट जनरल अरशद शरीफ चौधरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह सामने रखा जिसके उन्होंने एक मेजर समेत भारतीय सशस्त्र बलकर्मियों के पाकिस्तान के भीतर गिरफ्तार दहशतगर्दों के हैंडलर के रूप में काम करने के 'अकाट्य सबूत’ होने का दावा किया. पाकिस्तान के गृह मंत्री ने भी 11 मार्च को बलूच उग्रवादियों के हाथों जफर एक्सप्रेस के अपहरण में भारतीय मिलीभगत की तरफ इशारा किया, जिसमें 64 लोग मारे गए थे.
मुनीर की औकात बढ़ी
भारतीय मीडिया का बड़ा हिस्सा सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की कथित कमजोर स्थिति पर बहुत ज्यादा ध्यान देता मालूम पड़ता है. यह हकीकत से काफी दूर है. यह पाकिस्तानी फौज के ढांचे की दयनीय समझ भी है. सरहदों पर जंग के नगाड़ों ने अगर कुछ किया है तो उनकी स्थिति को मजबूत ही किया है. पाकिस्तान में भारत की संभावित घुसपैठ ने लड़ते-झगड़ते विपक्ष को सत्ता प्रतिष्ठान के पीछे एकजुट कर दिया है. इमरान खान जेल में दिन काट रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने कहा कि वह भारतीय हमले की स्थिति में सशस्त्र बलों के पीछे खड़ी है.
ऐसे में दहशतगर्दी की किसी भी हरकत को भारत समर्थित माने जाने की संभावना है, जिससे हुक्मरान को उन्हें मजबूती से आड़े हाथों लेने का मौका मिल जाएगा. पाकिस्तानियों को मालूम है कि दो-एक बरस की जबरदस्त अस्थिरता के बाद मुल्क में आर्थिक स्थिरता लौट आई है. कोई इसका सौदा करना नहीं चाहेगा.
ज्यादातर पाकिस्तानी भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हैं, बशर्ते भारत ईमानदारी और ठोस तरीके से जुड़ने को तैयार हो. लेकिन जब वे देखते हैं कि क्रिकेट टीमों को दौरों से रोका जा रहा है, भारतीय मीडिया पर पानी की राह बदलने और पाकिस्तान को टुकड़े-टुकड़े कर देने की धमकियां दी जा रही हैं, तो उन्हें दोस्ती या ईमानदारी के विचारों की झलक नहीं मिलती. आगे का रास्ता हेकड़ी और दबंगई नहीं है.