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प्रधान संपादक की कलम से

पहलगाम शायद एक निर्णायक मोड़ है जिसे खूनी जिहाद के पुराने ढर्रे के सौदागर देख नहीं पाए. भारत को पक्का करना होगा कि इस्लामाबाद और रावलपिंडी में बैठे रणनीतिकार फिर कभी इसे दोहराने की हिम्मत न जुटा पाएं

इंडिया टुडे कवर: इस हैवानियत की सजा क्या?
इंडिया टुडे कवर: इस हैवानियत की सजा क्या?
अपडेटेड 6 मई , 2025

—अरुण पुरी

आतंकवाद दूसरे तरीकों से छेड़ा गया युद्ध है. यह युद्ध कायर छेड़ते हैं, खासकर जब वे निहत्थे मासूम नागरिकों पर हमला करते हैं. ठीक यही हुआ जब चार हथियारबंद आतंकवादियों ने पहलगाम के हरी घास के मैदानों में 25 सैलानियों और एक स्थानीय बाशिंदे की हत्या कर दी.

कश्मीर के खूंरेजी से जुड़े इतिहास में यह बीते दो दशकों का सबसे खौफनाक आतंकी हमला था. पाकिस्तान के सत्ताधारी प्रतिष्ठान का हाथ तो जाहिर ही है. यह देख पाना आसान है कि पाकिस्तान को इस गुस्ताखी के लिए किस बात ने उकसाया. घर के भीतर वह दो मोर्चों पर बगावत से घिरा है.

अफगानिस्तान सरहद पर पाकिस्तानी तालिबान ने तबाही बरपा रखी है, और अफगानिस्तान भी दोस्त नहीं. बलूचिस्तान के हालात ने उसकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं. वह अब तक के अपने सबसे बुरे दौर में है, जहां उग्रवादी हिंसा और सरकारी कार्रवाई ने 2024 से अब तक 1,000 से ज्यादा लोगों की जानें ले लीं. वह अमेरिका के भूरणनीतिक पसंदीदा देशों की फेहरिस्त से भी बेदखल हो गया है.

उसकी अर्थव्यवस्था आईएमएफ के 7 अरब डॉलर के बेलआउट पर बसर करती दाने-दाने को मोहताज है. पाकिस्तान को पारगमन क्षेत्र के तौर पर इस्तेमाल करने के चीन के मंसूबों में भी अड़चनें पैदा हो गई हैं क्योंकि उसके राजमार्ग बलूची बीहड़ में फंस गए हैं. राजनैतिक प्रक्रिया की बात करें तो वह करिश्माई इमरान खान की मंच से उठापटक भरी रुखसती के बाद पूरी तरह उबर नहीं पाई है. मौजूदा सैन्य प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के कार्यकाल में सत्ता से बेदखल वजीर-ए-आजम की गिरफ्तारी तो हुई पर गली-मोहल्लों में सेना की लोकप्रियता में गिरावट जारी रही.

फिर भी पाकिस्तान का ऐसा जोखिम भरा जुआ खेलना समझ से परे है जिसके नतीजों पर उसका कोई अख्तियार न हो. उसे कभी गमले में उगा लोकतंत्र कहा जाता था, लेकिन अब वह टूटा-फूटा राज्यतंत्र है जो अपने से बड़े और ज्यादा संपन्न पड़ोसी से जंग गवारा नहीं कर सकता. मगर भारत के साथ सरगर्मी बढ़ाने के पीछे जनरल मुनीर का अपना एजेंडा मालूम देता है. इस कत्लेआम के महज हफ्ते भर पहले एक भाषण में उन्होंने उकसाऊ तरीके से कश्मीर को पाकिस्तान की 'गले की नस' कहा था.

पहलगाम हमले के पीछे तर्क शायद यह था कि ध्यान भटकाने को कश्मीर में बड़ा तमाशा रचा जाए. अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वैंस की भारत यात्रा के ऐन वक्त यह दुनिया भर का ध्यान आकर्षित करेगा. साल 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के दौरान लश्कर-ए-तय्यबा के बंदूरधारियों ने छत्तीसिंहपुरा नरसंहार में 35 सिख ग्रामीणों को मार डाला था. मुल्क के भीतर ऐसी घटनाएं चरमपंथियों को लुभाती और मकसद का भ्रम पैदा करती हैं.

कश्मीर में हालात सामान्य होने का भारत का नैरेटिव भी पाकिस्तान को चोट पहुंचा रहा था. हिंसा लंबे समय से रुकी हुई थी और सैलानियों का नया सीजन अपूर्व हर्षोल्लास के साथ शुरू हो रहा था.

पाकिस्तान को शायद उम्मीद रही हो कि भारत उसी ढंग से जवाब देगा जैसा उसने उड़ी और पुलवामा के बाद दिया था. शायद उसकी मंशा भी यही हो. लेकिन भारत का रणनीतिक फलक कठोर सैन्य कार्रवाई के साथ खत्म नहीं होता. भारत ने कई सारे असैन्य दंडात्मक कदम उठाए हैं. पहलगाम के एक दिन बाद मोदी सरकार ने 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से बंद नहीं करता.

अगर भारत अपनी बांध परियोजनाओं में तेजी लाता है तो पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत को लंबे वक्त में नुक्सान हो सकता है. बंदरगाहों की अनौपचारिक नौसैन्य नाकेबंदी या तेल सप्लाइ को निशाना बनाना एक और विकल्प है. पहले से ही ठंडे कूटनीतिक रिश्तों को शीतगृह में डाल दिया गया है.

मौके का तकाजा है कि जवाब ठोस और दिखने वाला हो. एक विकल्प 'बालाकोट प्लस' जैसा हो सकता है, जिसमें पाकिस्तान के भीतर आतंकी शिविरों पर 2019 की तरह का हवाई हमला हो और साथ ही एलओसी पर वैसी ही सर्जिकल स्ट्राइक की जाएं जैसी 2016 में उड़ी के हमले के बाद की गई थीं और जिसमें हमारे कमांडो दस्तों ने करीब 150 उग्रवादियों को मार गिराया था. भारत के निशाने पर एलओसी के पास सक्रिय 42 आतंकवादी लॉन्चपैड होंगे, जहां करीब 110-130 बंदूकधारियों के जत्थे हैं.

यह भी कह सकते हैं कि एलओसी पर संघर्ष विराम अब खत्म हो चुका है और यह शायद आक्रामक गोलीबारी से फिर गूंज उठे. मोदी सरकार ने परिपक्वता दिखाई और हड़बड़ी में कोई कदम नहीं उठाया, बावजूद इसके कि जज्बात का ज्वार आया हुआ है और जनता के बीच बदला लेने का शोर मचा है. प्रधानमंत्री ने कड़ी चेतावनी दी: ''भारत हरेक आतंकवादी और उनके आकाओं की पहचान करेगा, पता लगाएगा और उन्हें सजा देगा.'' 'आकाओं' शब्द का इस्तेमाल सोच-समझकर किया गया.

यह पाकिस्तानी सेना की तरफ साफ इशारा है. पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को याद रखना चाहिए कि मोदी साहसी फैसले लेने से नहीं हिचकिचाते. वे तत्काल भले न हों पर होंगे निर्णायक ही. प्रच्छन्न और गुप्त कार्रवाइयां आतंकी क्षमताओं को सटीक ढंग से नाकाम कर सकती हैं. इससे एक या दो बित्ते ऊपर मुख्य आतंकी संगठनों के मुख्यालयों पर रणनीतिक मिसाइल हमला होगा.

पर इसके प्रभाव का आकलन करने की जरूरत है: यह टकराव बढ़ाने वाली ऐसी सीढ़ी होगी, जहां पाकिस्तान की घबराहट भरी उंगलियां भी उन बटनों पर मंडराएंगी जो पारंपरिक मिसाइलों से लेकर रणनीतिक एटमी हथियार तक सब कुछ दाग सकती हैं. नई दिल्ली अपने कदमों को इस तरह नापतौल सकता है जहां वह पूर्ण युद्ध की देहरी से दूर रहे. भारत पहल विश्व शक्तियों के हाथों में सौंपना—जो पाकिस्तान के शिमला समझौता स्थगित करने से हो सकता है—और इस तरह लक्ष्य से चूकना नहीं चाहेगा.

पाकिस्तान को समझना होगा कि हालात बदल चुके हैं. यहां तक कि कश्मीर में भी आतंक के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं. पहलगाम शायद एक निर्णायक मोड़ है जिसे खूनी जिहाद के पुराने ढर्रे के सौदागर देख नहीं पाए. भारत को पक्का करना होगा कि इस्लामाबाद और रावलपिंडी में बैठे रणनीतिकार फिर कभी इसे दोहराने की हिम्मत न जुटा पाएं.

भारत को ऐसी स्थिति में डाल दिया गया है जहां जवाब देना अपरिहार्य है. सरकार अपने कई सारे विकल्पों पर कैसे आगे बढ़ती है, इसी से उपमहाद्वीप का निकट भविष्य तय होगा.

— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह).​​​​​​

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