
तीन फरवरी को तड़के शिरडी में साईंबाबा मंदिर ट्रस्ट के दो कर्मचारियों सुभाष घोड़े और नितिन शेजुल पर अलग-अलग जगह हमला कर उनकी हत्या कर दी गई. दोनों काम पर आ रहे थे.
हमले में एक कर्मचारी कृष्णा देहरकर गंभीर रूप से घायल हो गया. ये हमले औचक और आधे घंटे के भीतर हुए. बाद में दोनों हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया गया और अगर स्थानीय पुलिस की मानें तो इन हमलों का एकमात्र मकसद लूटपाट था.
हालांकि, इन खौफनाक वारदात ने भारत के सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक शिरडी के स्थानीय लोगों में गुस्सा और दहशत पैदा कर दी. यहां के निवासी तुरंत हरकत में आए और ग्रामसभा की बैठक बुलाकर फैसला किया कि शिरडी नगर परिषद इस शहर में पहली बार 'स्थानीय जनगणना' कराएगी.
यह इसलिए ताकि ऐसे ''बाहरी लोगों की पहचान'' की जा सके जिनका आपराधिक अतीत है. ग्रामसभा ने यह भी तय किया कि सभी प्रतिष्ठान रात 11 बजे से सुबह 5.30 बजे के बीच बंद रहेंगे और निवासियों को जब तक कोई जरूरी काम न हो घर के भीतर ही रहना होगा.
बात यहीं खत्म नहीं होती. स्थानीय लोगों का कहना है कि अपराध दर में वृद्धि का एक बड़ा कारण मुफ्त भोजन के लालच में शिरडी आने वाले उचक्के-मवाली हैं. शिरडी में यह निशुल्क प्रसाद श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट मुहैया कराता है जो मंदिर का भी प्रबंधन करता है.
आरोप है कि इस कारण महाराष्ट्र भर से यहां आने वाले भिखारियों, अपराधियों और दलालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, जो शहर में पनप चुके सैकड़ों होटलों और अन्य प्रतिष्ठानों के लिए बतौर कमिशन एजेंट काम करते हैं.
स्थानीय बोलचाल में इन्हें 'पॉलिशवाले' के रूप में जाना जाता है. इन लोगों को भक्तों की ओर से दर्ज कराए गए धोखाधड़ी के मामलों में वृद्धि के लिए भी दोषी ठहराया जा रहा है. 3 फरवरी को हुई हत्याओं के दो आरोपी किरण सदाफुले और राजू उर्फ शाक्य माली भी ऐसे ही पॉलिशवाले थे.
मुफ्त के खाने का पेच
अपने मंदिर के लिए जाना गया शहर शिरडी अहिल्यानगर जिले (पहले अहमदनगर) का हिस्सा है. यह मुंबई से लगभग 250 किलोमीटर दूर है. शिरडी साईंबाबा के मंदिर में पूजा-प्रार्थना के लिए यहां दुनिया भर से भक्त आते हैं. कई प्रसिद्ध मंदिरों की तरह यहां भी भक्तों के लिए निशुल्क 'अन्नप्रसादम' एक जरूरी उपक्रम होता है. यहां के प्रसादालय में एक बार में 3,500 लोग भोजन कर सकते हैं. मंदिर के अधिकारियों का दावा है कि यहां रोजाना औसतन करीब 50,000 लोग भोजन करते हैं.
भोजन का खर्च भक्तों के दान से चलता है. शिरडी के लोग चाहते हैं कि निशुल्क भोजन योजना को सशुल्क में बदल दिया जाए. भाजपा नेता और अहमदनगर के पूर्व सांसद सुजय विखे-पाटील इस मुद्दे पर मुखर लोगों में से रहे हैं. उन्होंने सबसे पहले जनवरी में मुफ्त भोजन योजना के खिलाफ आवाज उठाई थी. ''पूरे महाराष्ट्र से भिखारी शिरडी आ रहे हैं'' वाली उनकी टिप्पणी से विवाद खड़ा हो गया था. अब वे कहते हैं, ''हालात को देखते हुए हत्याएं होनी ही थीं.''
शिरडी नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष कैलाश कोटे-पाटील का कहना है, ''बाहरी लोग 1,000 रुपए महीने के किराए पर झुग्गियां किराए पर ले सकते हैं...आस-पास के इलाकों के परिवार घर के बूढ़ों और बच्चों को भीख मांगने के लिए यहां भेजते हैं.'' उनके अनुसार, पॉलिशवालों को होटल मालिकों से हरेक कमरे के एवज में लगभग 400 रुपए बतौर कमिशन मिलते हैं और भक्तों को बेची जाने वाली पूजा सामग्री में भी उन्हें मोटी रकम मिलती है.
शिरडी निवासी सुधाकर शिंदे कहते हैं कि पॉलिशवालों की व्यवस्था करीब पांच दशक पहले शुरू हुई थी. तब स्थानीय लोगों ने थोड़ी अतिरिक्त कमाई के लिए भक्तों का गाइड बनने का काम शुरू किया था. वे बताते हैं कि धीरे-धीरे मवाली इस धंधे से जुड़ गए और स्थानीय लोगों को बाहर कर दिया. नजदीक के कोपरगांव के एक कार्यकर्ता संजय काले का दावा है कि मुंबई और दूसरी जगहों से बदर हुए अपराधी भी कोपरगांव-शिरडी इलाके में बस रहे हैं. उनका आरोप है कि सेक्सवर्क और ड्रग्स भी अब शहर में मसला बनते जा रहे हैं.
दरअसल, स्थानीय लोगों की शिकायत है कि ट्रैक्टरों और रिक्शों में भर-भर कर आए आस-पास के ईंट भट्टों पर काम करने वाले मजदूरों के अलावा फेरीवालों, भिखारियों, यहां तक कि शराबियों को मुफ्त भोजन के लिए प्रसादालय में कतार में खड़े देखा जा सकता है. शिरडी भारत के सबसे किफायती तीर्थस्थलों में से एक है. ट्रस्ट के तीन अतिथि आवासों में डोरमेटरी के कमरे महज 17 रुपए रोजाना में मिल सकते हैं.
श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट के सीईओ गोरक्ष गाडिलकर कहते हैं कि ग्रामसभा के कहने पर भोजन के लिए कूपन सिस्टम बदल दिया गया है. अब कूपन दर्शन करने के बाद या तीनों भक्त निवासों में मिलते हैं. पहले वे सीधे प्रसादालय जा सकते थे. गाडिलकर कहते हैं, ''जब से हमने सिस्टम बदला है, प्रसादालय आने वाले लोगों की रोज की संख्या में लगभग 4,000 की कमी आई है.'' हालांकि, लोगों से भोजन के लिए पैसे लेने का उनका कोई इरादा नहीं.
अधिकारियों का कहना है कि बिना कूपन के भी प्रसादालय आने वाले भक्तों को सत्यापन के बाद अंदर जाने दिया जाता है. उनके मुताबिक, ''मकसद यह है कि कोई भी सच्चा भक्त भूखा न रहे.'' सुजय विखे-पाटील की मानें तो संख्या में गिरावट से उनके इस तर्क की पुष्टि होती है कि संदिग्ध तत्व मुफ्त भोजन का फायदा उठा रहे हैं. एक अधिकारी की राय में, उनके लिए भोजन के पैसे लेना मुश्किल होता है क्योंकि दान यह पक्का करने के लिए दिया जाता है कि भोजन निशुल्क और पुण्य के लिए उपलब्ध कराया जाए. 2023-24 में भक्तों ने इसके लिए 99 करोड़ रुपए दान दिए. ट्रस्ट के पास इस योजना के लिए करीब 762 करोड़ रु. हैं.
इफरात होटलों-दुकानों की समस्या
शिरडी एक और बड़ी समस्या से जूझ रहा है. बेशुमार होटलों/दुकानों में भक्तों को लुभाने के लिए होड़ लगी रहती है. स्थानीय होटल मालिक धनंजय शेलके-पाटील कहते हैं कि इस क्षेत्र में भरपूर संख्या में होटल-दुकानें खुल गई हैं. होड़ के कारण मालिक पॉलिशवालों की मदद ले रहे हैं और अपने परिसरों को ''अश्लील गतिविधियों'' के लिए किराए पर दे रहे हैं. ''इससे अच्छे होटलों की प्रतिष्ठा भी प्रभावित हुई है.''
अधिकारियों का कहना है कि अकेले शिरडी नगरपालिका क्षेत्र में करीब 600 होटल हैं, जबकि इसके बाहर की सीमा में इनकी संख्या 3,000 तक हो सकती है. शिरडी नगर परिषद के मुख्य अधिकारी सतीश दिघे कहते हैं, ''हमारे रिकॉर्ड में करीब 10,500 आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियों का आंकड़ा है. लेकिन उनमें कौन रहता है, इसका कोई डेटा नहीं.'' प्रस्तावित सर्वे में इस तरह के आंकड़े शामिल होंगे कि लोग निवासी हैं या किराएदार, क्या वे अस्थायी/स्थायी आधार पर शिरडी में रह रहे हैं, उनका मूल स्थान और काम की प्रकृति क्या है. महाराष्ट्र में किसी नगर निकाय की ओर से इस तरह की पहली जनगणना दो महीने में शुरू होने की उम्मीद है.
इस बीच, शिरडी पुलिस का कहना है कि भारी संख्या में लोगों की आवाजाही से चुनौतियां भी खड़ी हो रही हैं. पिछले पांच साल में दर्ज आपराधिक मामले गंभीर अपराध समेत करीब दोगुने बढ़े हैं. अहिल्यानगर के एसपी राकेश ओला बताते हैं कि पॉलिशवालों के खिलाफ रोकथाम की कार्रवाई की गई है. शिरडी में रहने वाले बदर किए गए अपराधियों की भी जांच हो रही है, एक स्थानीय अपराध शाखा डिविजन बनाया गया है.
इन उपायों से राहत मिलनी चाहिए. पर अगर शिरडी और वहां के निवासियों को भारत के शीर्ष धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में अपना स्थान बनाए रखना है तो उन्हें लंबी अवधि की ऐसी योजना बनानी होगी जिसमें कारोबार और आस्था के बीच संतुलन बना रहे.
शिरडी में ज्यादा इलाका कवर करने के लिए हम और सीसीटीवी कैमरे लगवा रहे हैं. पुलिस की अपराध शाखा की एक इकाई भी यहां स्थापित की गई है.
—राकेश ओला, एसपी, अहिल्यानगर

भिखारियों पर काबू पाना जरूरी है. बच्चों को अक्सर भीख मांगने को मजबूर किया जाता है. ये लोग पैसे के लिए भक्तों को तंग करते हैं. दूसरी जगहों के मवाली शिरडी आ गए हैं और वे स्थानीय लोगों को डराते-धमकाते हैं.
—सचिन तांबे पाटील, पूर्व ट्रस्टी, श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट
