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GDB सर्वे : पितृसत्ता कैसे अब भी घरेलू मामले तय कर रही, कौन राज्य आगे, कौन पीछे?

भारतीय समाज शिक्षा और रोजगार में तो स्त्री-पुरुष समानता अपनाता जा रहा है पर गहरी पैठ जमाए पितृसत्ता अब भी महिलाओं की व्यक्तिगत आजादी और घरेलू फैसलों को आकार दे रही है

ऊंचे अरमान उत्तर प्रदेश के एक स्कूल की स्पेस लैब में छात्राए
अपडेटेड 17 अप्रैल , 2025

भारतीय अपने घरेलू और सामाजिक जीवन में स्त्री-पुरुष की भूमिकाओं को किस तरह देखते हैं? इंडिया टुडे ग्रॉस डोमेस्टिक बिहेवियर अथवा सकल घरेलू व्यवहार (जीडीबी) सर्वेक्षण में इसकी पड़ताल करने के लिए 9,000 से अधिक उत्तरदाताओं से बहुत सोच-विचार करके तैयार किए छह सवाल पूछे.

'स्त्री-पुरुष मान्यता' के नतीजों से भारत की तस्वीर एक ऐसे देश के रूप में उभरी जो प्रगति और पितृसत्ता के बीच अनवरत उलझा हुआ है. रैंकिंग में सर्वोच्च स्थान हासिल करके केरल स्त्री-पुरुष समानता की मिसाल बनकर उभरा जबकि उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है.

भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष मानदंड अक्सर परंपरा से तय होते हैं और 69 फीसद उत्तरदाता यह मानते हैं कि घर के मामलों में अंतिम फैसला लेने का हक पुरुषों के पास ही होना चाहिए. यह भावना उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक प्रबल है, जहां 96 फीसद लोग इसका समर्थन करते हैं. इसके विपरीत, केरल में प्रगतिशील नजरिया सामने आता है, जहां तीन-चौथाई उत्तरदाता इस धारणा को सिरे से खारिज करते हैं.

ऐसी ही मान्यताएं महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को लेकर भी नजर आती हैं. केरल के 91 फीसद उत्तरदाता एक बार फिर सभी राज्यों में सबसे अधिक महिलाओं की कमाई को रखने और इस्तेमाल करने पर उनके खुद के अधिकार का समर्थन करते हैं, जबकि अपने यहां महज 27 फीसद लोगों के इसके समर्थन में होने के साथ ही ओडिशा ऐसा मानने में बहुत पीछे है.

घरेलू हिंसा को लेकर मान्यताएं एक और चिंताजनक हकीकत को उजागर करती हैं. हालांकि 83 फीसद उत्तरदाता अपने पति की ओर से पत्नी की पिटाई की निंदा करते हैं, मगर कड़वी हकीकत यह है कि 14 फीसद महिलाएं खुद इस तरह की हिंसा को सही ठहराती हैं. इसको लेकर राज्यों में अलग-अलग राय भी बहुत कुछ बयान करती है. उत्तराखंड के महज 2 फीसद उत्तरदाता घरेलू हिंसा को मान्यता देते हैं जबकि आंध्र प्रदेश में यह आंकड़ा 31 फीसद तक पहुंच जाता है.

महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के अधिकारों को व्यापक समर्थन हासिल है, 93 फीसद लोगों का मानना है कि बेटियों को बेटों के समान ही शैक्षिक अवसर मिलने चाहिए. मगर, शादी को लेकर आजादी के मामले में निराशाजनक तस्वीर उभरती है, 67 फीसद उत्तरदाताओं का मानना है कि महिलाओं को अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ शादी करने की आजादी नहीं होनी चाहिए. 

इस सर्वेक्षण से एक विरोधाभास उजागर होता है: भारतीय समाज शिक्षा और रोजगार में स्त्री-पुरुष समानता को भले ही अपनाने लगा है, मगर फैसला लेने, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आर्थिक आत्मनिर्भरता के मामलों में अब भी पितृसत्तात्मक मान्यताएं ही हावी हैं. ये नतीजे बताते हैं कि स्त्री-पुरुष समानता की राह अभी भी बहुत मुश्किल है तथा देशभर में प्रगतिशील और प्रतिगामी समूहों के बीच खाई बहुत चौड़ी है.

प्र. क्या परिवार की बेटियों को भी बेटों के जितना पढ़ने या शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए?

ओडिशा के 98% उत्तरदाता मानते हैं कि बेटियों को शिक्षा पाने का अधिकार बेटों जैसा ही है जबकि गुजरात के 22% उत्तरदाता इस धारणा से सहमत नहीं हैं

प्र. क्या परिवार की महिलाओं को घर से बाहर निकलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए?

उत्तर प्रदेश के 98% उत्तरदाता अपनी बेटियों को घर से बाहर निकलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के इच्छुक हैं जबकि गुजरात के 38% उत्तरदाताओं ने इस विचार का विरोध किया है

जीडीबी (सकल घरेलू व्यवहार) में जवाबों की गणना समन्वित आधार पर की गई है. जैसे हां के जवाब में पूरी तरह से सहमत और आंशिक सहमत दोनों को शामिल किया गया है. इसी तरतह से ना में एकदम नहीं और आंशिक असहमति दोनों को शामिल किया गया है.

प्र. क्या पति का पत्नी को पीटना तब उचित है जब वह घरेलू मामलों में उसके फैसलों पर आपत्ति जताए?

उत्तराखंड के 98% उत्तरदाता इस तरह की घरेलू हिंसा के खिलाफ हैं जबकि आंध्र प्रदेश के 31% उत्तरदाता धारणा के पक्ष में हैं

प्र. क्या घर के प्रमुख मुद्दों पर परिवार के पुरुषों का फैसला अंतिम होना चाहिए?

केरल के 75% उत्तरदाता घरेलू मामलों में पुरुषों का फैसला अंतिम होने के विरोध में हैं जबकि उत्तर प्रदेश के 96% उत्तरदाता मानते हैं कि पुरुषों को ही फैसला करना चाहिए

प्र. क्या महिलाओं को उसी प्रत्याशी को वोट देना चाहिए जिसे परिवार के पुरुष सदस्यों ने वोट दिया है?

केरल के 93% उत्तरदाता मानते हैं कि महिलाएं अपनी पसंद से मतदान करें जबकि उत्तर प्रदेश में 91% उत्तरदाता कहते हैं कि महिलाओं को परिवार के पुरुष की पसंद के उम्मीदवार को वोट देना चाहिए

प्र. क्या महिला को अपनी पसंद से शादी करने की आजादी होनी चाहिए, वह चाहे माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध ही क्यों न हो?

केरल के 67% उत्तरदाता सोचते हैं कि महिलाओं को अभिभावकों की इच्छा के खिलाफ जाकर शादी करने की आजादी होनी चाहिए जबकि चंडीगढ़ में 92% उत्तरदाता इस विचार के विरोध में थे

प्र.क्या महिला को परिवार के पुरुष सदस्यों की मंजूरी के बगैर अपनी कमाई के पैसे के इस्तेमाल की आजादी होनी चाहिए?

केरल के 91% उत्तरदाताओं का मानना है कि महिलाएं अपनी कमाई के पैसे खर्च करने के लिए स्वतंत्र हैं जबकि ओडिशा के 70% उत्तरदाता कहते हैं कि इस तरह के खर्च के लिए महिलाओं को परिवार की मंजूरी लेनी चाहिए.

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