
भारत की महत्वाकांक्षाएं अगर परवान चढ़ जाएं तो जल्द ही उसका अपना इंटरनेशनल एविएशन हब तैयार हो सकता है. इस तरह का केंद्र भारतीय हवाई यात्रियों को ज्यादा सुविधाएं, अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों के और ज्यादा विकल्प, छोटे हवाई मार्ग और प्रतिस्पर्धी किरायों की सहूलत देगा. वहीं, अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए यह एक और प्रवेशद्वार होगा. भारत के बढ़ते नागरिक विमानन क्षेत्र और उसकी विमान कंपनियों के लिए यह विस्तार का अहम मौका होगा.
इंटरनेशनल एविएशन हब, असल में गतिविधियों का ऐसा केंद्र होता है जहां दूसरे गंतव्यों से उड़ानें आती और कुछ अन्य गंतव्यों की ओर उड़ जाती हैं—इसे हब और स्पोक मॉडल के रूप में जाना जाता है. विमानन विशेषज्ञ बताते हैं कि रणनीतिक जगह पर होने के बावजूद भारत कभी अपनी स्थिति का फायदा नहीं उठा पाया, क्योंकि हमने अपने हवाई अड्डों की इंटरनेशनल हब के रूप में कभी गंभीरता से परिकल्पना ही नहीं की और न उन्हें शुरू से इस तरह डिजाइन किया.
मसलन, सिंगापुर के चांगी हवाई अड्डे की तरह, जिसे आने वाले कई दशकों के लिए पर्याप्त जगह और बुनियादी ढांचे पर ध्यान देते हुए इंटरनेशनल-टू-इंटरनेशनल (आई-आई) हब के रूप में डिजाइन किया गया है. इसमें विमानों के रखरखाव की सुविधाओं को भी इस तरह डिजाइन किया गया है कि उन्हें कभी भी बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा सके.
एअर इंडिया को छोड़कर बाकी तमाम भारतीय एयरलाइनों के पास न तो क्षमता है और न ही विशाल आकार के ऐसे हवाई जहाज हैं जो दुनियाभर की लंबी उड़ान भर सकें. ऐसे में यात्रियों को दो ठिकानों के बीच सीधी उड़ान के लिए अंतरराष्ट्रीय विमान कंपनियों को चुनना पड़ता है. सरकारी विश्लेषण के मुताबिक, महज 11 फीसद यात्री ही भारत से यूरोप या उत्तरी अमेरिका के ठिकानों के लिए सीधी उड़ान लेते हैं.
हम अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रियों के लिहाज से फिलहाल भले दुनिया का सातवां सबसे बड़ा बाजार हों, मगर अंतराष्ट्रीय मंजिल की ओर जाते हुए रास्ते में थोड़ी देर रुकने के लिए भारतीय हवाई अड्डे पर आने वाले अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की जरूरत पूरी करने से जुड़े 'आई-आई’ सेग्मेंट में हमारी हिस्सेदारी 1 फीसद से भी कम है.
ग्लोबल कनेक्टिंग ट्रैफिक का 11 फीसद पश्चिम एशियाई हवाई अड्डे ले जाते हैं, जिसमें कतर का दोहा हवाई अड्डा अपने कुल यात्रियों के करीब 75 फीसद की जरूरत अंतरराष्ट्रीय ट्रांसफर उड़ानों के जरिए पूरी करता है. भारत से कारोबार तो उभर रहा है, मगर भारतीय विमान कंपनियां खासा बड़ा बाजार अपने विदेश समकक्षों के हाथों गंवा रही हैं. इंटरनेशनल हब एयरपोर्ट शुल्क, ईंधन, कारोबार और पर्यटन वगैरह से राजस्व कमा रहे हैं, सो अलग.
इसीलिए भारत अपना हब बनाने में जुटा है. केंद्रीय नागरिक विमानन मंत्री के. राम मोहन नायडू का कहना है कि इसका वक्त आ गया है. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, "दिल्ली, बेंगलूरू और हैदराबाद—हम उन पर हब बनने के लिए जोर डाल रहे हैं." नागरिक विमानन मंत्रालय ने उद्योग के प्रमुख हितधारकों के साथ मसौदा नीति साझा की और उनकी राय मांगी.
उसने हवाई अड्डे के इंटीरियर डिजाइन में मुमकिन बदलावों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की आव्रजन और सुरक्षा जांच की प्रक्रियाओं में तेजी लाने की गरज से नई टेक्नोलॉजी पर चर्चा करने के लिए फरवरी 2024 में देश के बड़े हवाई अड्डों के संचालकों और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल तथा आव्रजन ब्यूरो के अधिकारियों के साथ बैठकें कीं. नायडू कहते हैं, "इस काम में वक्त लगता है. एयरलाइंस, एयरपोर्ट ऑपरेटर और मंत्रालय, हम सब इस दिशा में काम कर रहे हैं."

देश के सबसे व्यस्त हवाई अड्डे दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (आईजीआई) को पायलट के रूप में चुना गया है. सरकार ने इस विजन को आगे बढ़ाने के लिए संभावित साझेदारों की तौर पर देश की दो सबसे बड़ी विमानन कंपनियों एअर इंडिया और इंडिगो की पहचान की है. एअर इंडिया के सीईओ कैंपबेल विल्सन ने पिछले साल गुरुग्राम में एक आयोजन में कहा, "भारत में कम से कम तीन हब और ढेर सारी पॉइंट-टू-पॉइंट सेवाओं को जगह देने की क्षमता और संभावना है. दुनिया में भारत से मिलते-जुलते कम ही बाजार हैं. उत्तरी भारत में पूरब से पश्चिम की ओर काफी आवागमन होता है, तो दक्षिणी भारत एशिया से अफ्रीका या ऑस्ट्रेलिया-यूरोप की ओर होने वाले आवागमन को सुगम बना सकता है." मगर ग्लोबल एविएशन हब बनने के लिए क्या करना होगा? और क्या आइजीआइ उस भूमिका के लिए तैयार है?
टर्मिनल का बुनियादी ढांचा
बीते कुछ वर्षों के दौरान आईजीआई क्षमता बढ़ाने पर एकचित्त ध्यान देता रहा है. टर्मिनल 3 ही 44 मिलियन पैसेंजर पर एनम (एमपीपीए) यानी प्रति वर्ष 4.4 करोड़ यात्रियों को संभाल सकता है, जो दुबई के टर्मिनल 3 पर संभाले जाने वाले 43 एमपीपीए से तुलना करने पर बेहतर ठहरता है. मार्च 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से 15 हवाई अड्डों का उद्घाटन किया. उनमें आइजीआइ का नया विस्तारित टर्मिनल 1 भी था, जिसकी क्षमता 17 एमपीपीए से बढ़कर अब 40 एमपीपीए हो गई है.
टर्मिनल 2 की क्षमता अब भी 17 एमपीपीए है, मगर आइजीआइ का इरादा इस टर्मिनल को अंतत: खत्म करके दूसरे टर्मिनलों में मिलाना है. कुल मिलाकर आइजीआइ के तीनों टर्मिनलों की क्षमता बढ़कर 100 एमपीपीए हो जाएगी. इस तरह यह अमेरिका के हUर्ट्सफील्ड-जैक्सन अटलांटा हवाई अड्डे की 2022 में बताई गई 93 एमपीपीए क्षमता और सिंगापुर के चांगी हवाई अड्डे के चार टर्मिनलों की कुल 90 एमपीपीए क्षमता को पीछे छोड़ देगा.
वैसे बुनियादी ढांचे के लिहाज से आइजीआइ के लिए वैश्विक प्रतिमानों को पूरा करना बाकी है. आकार में देखें तो टर्मिनल 4 का 54 लाख वर्ग फुट क्षेत्र दुबई के विशाल 1.84 करोड़ वर्ग फुट में फैले टर्मिनल 3 से काफी छोटा है. चांगी के चार टर्मिनलों का कुल फ्लोर क्षेत्र 1.36 करोड़ वर्ग फुट है जिनमें 41 लाख वर्ग फुट का टर्मिनल 3 सबसे बड़ा है.
आईजीआई के टर्मिनल 1 का आकार 60,000 वर्ग मीटर से बढ़ाकर 1,69,000 वर्ग मीटर किया गया है, क्योंकि दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (डीआईएएल) का इरादा पूरा घरेलू कामकाज को धीरे-धीरे इसी टर्मिनल पर ले जाने का है. इससे टी3 की क्षमता पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय परिचालनों के लिए मुक्त हो जाएगी. लंबे वक्त की योजनाओं में संभवत: चौथा टर्मिनल जोड़ना भी है.
चार रनवे के अलावा इस हवाई अड्डे ने 3,000 वर्ग मीटर आई-आई (इंटरनेशनल टू इंटनेशनल) ट्रांसफर एरिया भी जोड़ा है, जो मूल के आकार से दोगुना है. डीआईएएल के सीईओ विदेश कुमार जयपुरियार कहते हैं, "पहले चरण में ऐसे घरेलू से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की हिस्सेदारी बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा जो सीधी कनेक्टिविटी के लिए भारतीय विमान कंपनियों को चुनते हैं. इसके लिए हम उड़ानें संभालने की अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं और हब परिचालनों के लिए जरूरी स्लॉट बैंक बनाने के लिए भी एयरलाइंस के साथ मिलकर काम कर रहे हैं."
'स्लॉट बैंक’ उड़ानों के समय का दक्ष निर्धारण सुनिश्चित करता है. मसलन, अगर किसी हवाई अड्डे से नॉर्थ अमेरिका की उड़ानें रात 1 बजे जाने वाली हैं, तो घरेलू उड़ानों को उत्तरी अमेरिका जाने वाले यात्रियों को लेकर दो घंटे पहले आ जाना चाहिए. यह रणनीति दिल्ली से सफर शुरू करने वाले यात्रियों को कनेक्टिंग उड़ानों से जोड़कर विमान क्षमता को अधिकतम बढ़ा देती है.
डीआईएएल को एयरपोर्ट ऑपरेशंस सेंटर (एपीओसी) भी स्थापित करना होगा, जो हवाई अड्डे की परिचालन दक्षता बढ़ाने और व्यवधान के बाद बहाली के समय को कम करने के लिए प्रबंधन का माध्यम होता है. बड़ी विमान कंपनियों को अपने समर्पित टर्मिनलों की जरूरत भी हो सकती है, जैसे दुबई में अमीरात एयरलाइन के पास है. एअर इंडिया पहले से दिल्ली के टी-3 से काम करता है.
आव्रजन और सुरक्षा
दिल्ली में 103 आव्रजन काउंटर हैं, मगर इन काउंटर पर खासकर प्रस्थान और आगमन के सबसे अधिक भीड़ भरे घंटों के दौरान यात्रियों की लंबी कतारें देखना असामान्य बात नहीं. ग्लोबल हब में बड़ी मात्रा में संसाधन इसी बेहद अहम प्रक्रिया में निवेश किए जाते हैं. मसलन, दुबई में आगमन टर्मिनल पर ही 107 आव्रजन काउंटर तथा टर्मिनल 1 और 2 पर 60 स्वचालित स्मार्ट गेट हैं, जो मिलकर उसके 95 फीसद अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की सेवा करते हैं. इनके प्रस्थानों पर इन दो टर्मिनलों के पास कुल 71 काउंटर और 45 स्मार्ट गेट हैं, जो श्रेणीवार अलग-अलग हैं. वहीं, सिंगापुर ने अपने करीब 95 फीसद आगमनों को स्वचालित लेन के जरिए प्रोसेस करने की योजना बनाई है.
भारत में नागरिक उड्डयन मंत्रालय की हवाई अड्डा संचालकों, सुरक्षा एजेंसियों और आव्रजन ब्यूरो के साथ हुई ताजातरीन बैठक में सिंगापुर और कनाडा के हवाई अड्डों सरीखे अंतरराष्ट्रीय मॉडलों के अध्ययन से मिले सुरक्षा समाधानों पर गहन चर्चा की गई. इंतजार के समय को कम करने के लिए दिल्ली के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय टर्मिनलों पर एक्स-रे बैगैज मशीनों का अलग ढंग से अतिरिक्त इस्तेमाल करने पर बात हुई, तो आव्रजन के लिए ई-गेट और ई-बायोमेट्रिक्स के इस्तेमाल के लिए अवधारणा का प्रमाण परीक्षण चल रहे हैं.
हितधारकों ने यात्रियों के ज्यादा अनुकूल सुरक्षा जांच पर भी रोशनी डाली. उन्होंने यूरोपीय हवाई अड्डों पर 'वन शेंगेन’ सुरक्षा ढांचे सरीखे उदाहरणों का हवाला दिया, जिसमें यात्रियों के एक बार हवाई अड्डे के भीतर चेक-इन करने के बाद उन्हें दूसरे हवाई अड्डों पर ट्रांजिट के दौरान और ज्यादा सुरक्षा जांच से नहीं गुजारा जाता. भारत अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए सुरक्षा जांच के दौरान भौतिक बोर्डिंग पास खत्म करने जैसे कदमों पर विचार कर रहा है. उसके नए-नवेले डिजियात्रा ऐप के दायरे में, जो मात्र बायोमेट्रिक्स के जरिए चेक-इन करने में यात्रियों की मदद करता है, अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को लाने की जरूरत पड़ सकती है. एक सरकारी अधिकारी कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय ट्रांजिट यात्रियों को छोटी अवधि के वीजा मंजूर करने की भी गुंजाइश है."
बैगेज संभालना
ग्लोबल हब हमेशा से ही कम से कम मुमकिन वक्त में ज्यादा बैग सुरक्षित ढंग से संभालने की कोशिश करते रहे हैं. मसलन, दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट और खासकर टर्मिनल 3 पर दुनिया की सबसे बड़ी बैगेज हैंडलिंग व्यवस्था है. इसमें 21 स्क्रीनिंग इंजेक्शन पॉइंट, 49 मेक-अप कैरोसल और 4,500 अर्ली बैगेज स्टोरेज (ईबीएस) स्थान शामिल हैं. यहां 90 किमी की कन्वेयर बेल्ट भी हैं, जिनमें 27 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से प्रति घंटे 15,000 बैग संभालने की क्षमता है.
वहीं, चांगी की पूरी स्वचालित ईबीएस व्यवस्था 1.2 किमी के कन्वेयर बेल्ट के साथ किसी भी वक्त 2,400 बैग प्रोसेस करती है. स्वचालित क्रेनें बैगों को स्लॉट में रखती हैं और जब उड़ान में सामान लादने का वक्त होता है तब बैग निकालती हैं और उन्हें डिपार्चर बैगेज ट्रैक पर भेज देती हैं. यहां 13 किमी से ज्यादा का भूमिगत इंटर-टर्मिनल ट्रांसफर बैगेज सिस्टम (आइटीटीबएस) है जो टर्मिनल 1, 2 और 3 को जोड़ता है. यह एक घंटे में 2,700 से ज्यादा बैग संभाल सकता है और उन्हें सात मीटर प्रति सेकंड की गति से ले जा सकता है.
सीईओ जयपुरियार बताते हैं कि डीआइएएल दिल्ली में अपना ईबीएस विकसित करने की योजना बना रहा है. आइजीआइ के टी3 पर अभी प्रति घंटे 12,800 बैग संभालने की क्षमता है. यहां टी3 पर 14 और टी1 पर 10 बैगेज बेल्ट हैं. बड़ी तादाद में लंबे वक्त तक बैगेज जमा होते हैं. जयपुरियार कहते हैं, "हवाई अड्डे को कनेक्टिंग बैग के लिए भी ईबीएस क्षमता बढ़ाने की जरूरत है. हम बुनियादी ढांचे से जुड़ी सभी कमियों को दूर कर रहे हैं."
सिर्फ हवाई अड्डा ही नहीं
इंटरनेशनल हब विलासिता, कारोबारी गतिविधियों, अवकाश, खरीदारी, मनोरंजन और पर्यटन का इकोसिस्टम होते हैं. अभी भारत का कोई हवाई अड्डा वैसा नहीं है. मसलन, दुबई के ड्यूटी फ्री में करीब 60,000 वर्ग फुट का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है, जो करीब 2 अरब डॉलर (17,200 करोड़ रुपए) का सालाना राजस्व कमाता है. चांगी हवाई अड्डा भी आकर्षक ठिकाना है. चांगी जुएल बहुआयामी पर्यटन स्थल है. चांगी दो उड़ानों के बीच इंतजार कर रहे यात्रियों को सिटी टूर की पेशकश भी करता है. इन जैसी सेवाएं हवाई अड्डे के राजस्व में करीब 48 फीसद का योगदान देती हैं.
दिल्ली के टी3 पर रेस्तरां और खरीदारी की सुविधाओं सहित 2.15 लाख वर्ग फुट की रिटेल स्पेस है. यह इंटरनेशनल हब के मुकाबले काफी छोटी है. दुबई के टर्मिनल 3 पर फूड कोर्ट ही 22,000 वर्ग फुट में फैला है. पिछले वित्त वर्ष में गैर-वैमानिक स्रोतों से आइजीआइ की कुल आय 248 करोड़ रुपए थी.
एयरलाइंस की स्थिति
भारत तब तक हब नहीं बन सकता जब तक एक या दो बड़ी एयरलाइंस सरकार की महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप आक्र्रामक और व्यस्थित ढंग से निवेश बढ़ाने के लिए आगे न आएं. कोविड के बाद भारत में हवाई यात्रियों की संख्या में व्यापक सुधार नजर आ रहा है, ऐसे में विमानन उद्योग के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (आइएटीए) अनुमान जता रहा है कि भारत का यात्री बाजार एक दशक में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा. एअर इंडिया और इंडिगो की सारी उम्मीदें उछाल की इस लहर पर टिकी हैं.
एअर इंडिया ने टाटा समूह का हिस्सा बनने के बाद विस्तार योजनाएं आगे बढ़ाते हुए एयरबस और बोइंग के साथ 470 विमान खरीदने का सौदा किया है, जिसमें पहले से शामिल 43 विमानों के अलावा 40 वाइडबॉडी (बड़े) विमान शामिल हैं. इंडिगो का भी एयरबस के साथ सौदा हो चुका है, जिसके तहत 2030 से 2035 के बीच 500 ए-320 विमानों की आपूर्ति की जाएगी. इसने कुल 950 विमान खरीदने का सौदा किया है, जिनकी अगले 10 वर्षों में चरणबद्ध तरीके से आपूर्ति की जाएगी.
इनमें ए-321 एक्सएलआर भी शामिल हैं, जो लंबी दूरी की यात्रा में प्रयोग होने वाला नैरो-बॉडी प्लेन है. यह एक बार में करीब 10 घंटे तक उड़ सकता है. इससे एशिया और यूरोप के अधिकांश गंतव्य स्थलों के लिए सीधी विमान सेवा शुरू की जा सकेगी, जो पहले केवल वाइडबॉडी विमानों पर निर्भर थी. पहला विमान इसी वर्ष आने की उक्वमीद है. यह पहले ही दो वाइडबॉडी बोइंग बी-777 पट्टे पर ले चुकी है. बाजार में 55 फीसद से अधिक हिस्सेदारी वाली भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो का लक्ष्य 2030 के अंत तक अपने बेड़े का आकार दोगुना करना और घरेलू कंपनी से वैश्विक दिग्गज बनना है.
क्या यह काफी है? अमीरात के 261 विमानों वाले सशक्त बेड़े में ए-380 और बोइंग-777 शामिल हैं और हर साल 135 गंतव्यों के लिए उड़ते हैं. सिंगापुर एयरलाइंस के पास 161 विमान हैं जो अधिकतर वाइडबॉडी हैं. तुर्की एयरलाइंस के 450 विमानों में वाइड और नैरो बॉडी दोनों तरह के विमान हैं. एअर इंडिया के अभी सिर्फ 126 विमान हैं जिनमें वाइड और नैरो बॉडी शामिल हैं. यह रोज 40 अंतरराष्ट्रीय समेत 84 उड़ानें भरती है.
आकाश खोलना होगा
भारत को 2030 के बाद वैश्विक यातायात वृद्धि को समायोजित करने के लिहाज से पश्चिम एशिया के विमान वाहकों के लिए अपना आसमान खोलना होगा. भारत में आइएटीए के कंट्री डायरेक्टर अमिताभ खोसला कहते हैं, "इसके लिए टर्मिनल डिजाइन, यात्री आवाजाही से जुड़ी प्रक्रियाएं (डिजिटलीकरण सहित), एयरसाइड सुविधाओं और लागत नियंत्रित रखने जैसी बातों पर ध्यान देना होगा. यही सब भारत को भविष्य में एक अंतरराष्ट्रीय हब बनाने में मददगार साबित होगा."
भारत ने 116 देशों से द्विपक्षीय समझौते कर रखे हैं, जिनमें अमेरिका और जापान के साथ 'ओपन स्काइ’ करार शामिल हैं. अधिकतर समझौते प्रति सप्ताह सीटों या उड़ानों की संख्या को सीमित करने वाले हैं. मसलन, दुबई के साथ करार के तहत प्रति सप्ताह 66,000 सीटों की अनुमति है, जिसका दोनों देशों की एयरलाइंस पूरा उपयोग करती हैं. भारतीय अफसरों ने यह कोटा बढ़ाने से मना कर दिया है क्योंकि विदेशी विमान वाहक कंपनियां मुख्यत: दुबई के रास्ते यात्रियों को यूरोप और अमेरिका ले जाती हैं, जिससे भारतीय वाहकों के लिए विस्तार के मौके सीमित हो जाते हैं.
इन समझौतों के लिए दिशा-निर्देशों की रूपरेखा 2016 की राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति में तय हुई थी. कैबिनेट सचिव के नेतृत्व वाली एक समिति 5,000 किमी के दायरे में उन देशों को अतिरिक्त क्षमता अधिकार आवंटित करने के तौर-तरीके सुझाएगी, जहां भारतीय कंपनियों ने अपनी क्षमता का 80 फीसद उपयोग नहीं किया है. जहां पूरी क्षमता का उपयोग हो गया वहां द्विपक्षीय समझौतों पर फिर बातचीत होगी.
भारत की ओर से कई कदम उठाने की जरूरत बताते हुए केपीएमजी इंडिया के गिरीश नायर कहते हैं, "यात्रियों को शानदार अनुभव दिलाने के लिए नेटवर्क वाहक और हब एयरलाइनों को भागीदार हवाईअड्डों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है. नियामकों और अन्य सरकारी हितधारकों के लिए भी जरूरी है कि नीतियों-प्रक्रियाओं में प्रासंगिक बदलाव की दिशा में उपयुक्त कदम उठाएं और भारतीय हवाई अड्डों पर बढ़ते यातायात प्रवाह और बदलते कारोबारी माहौल के अनुरूप उच्चतम सहयोग के लिए हाथ बढ़ाएं."
विश्वस्तरीय दुबई, दोहा और इस्तांबुल की मेगा हब संरचनाएं भी तो आखिरकार सचेत सरकारी नीतियों का ही नतीजा हैं. दुबई हब को सरकार का भरपूर और ठोस समर्थन हासिल था. यही वजह है कि हवाई अड्डे और एयरलाइन का समन्वित विकास हो पाया. भारत सरकार ऐसी ही बारीकियों का पता लगाने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समूह गठित करने की तैयारी में है.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, "समूह को गृह, विदेश और अन्य प्रासंगिक मंत्रालयों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी क्योंकि यह केवल नागरिक उड्डयन का मामला नहीं है." भारत पूरी प्रतिबद्धता के साथ इस दिशा में बढ़ रहा है, अब देखना यह है कि अंतरराष्ट्रीय हब बनने की इसकी महत्वाकांक्षा कब ऊंची उड़ान भर पाती है.
- अभिषेक घोष दस्तीकार

