नए साल की पौ फटने के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने दो चुनौतियां हैं, जिनसे निबटने के लिए उन्हें बड़ी समझदारी, रफ्तार और हौसले से काम लेना होगा.
पहली तो घरेलू मोर्चे की है. देश की अर्थव्यवस्था फिर भारी चुनौतियों से जूझ रही है. वित्त वर्ष 25 के पहली छमाही के आंकड़े जीडीपी वृद्धि में चिंताजनक मंदी दिखा रहे हैं.
दूसरी तिमाही के आंकड़े सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 फीसद पर आ गए हैं. रेटिंग एजेंसियां वित्त वर्ष 25 के लिए लगभग 7 फीसद की वृद्धि के अपने पहले के अनुमान से औसतन 0.5 फीसद अंक घटा चुकी हैं. देश अभी भी दुनिया की सबसे तेज बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है, लेकिन बेहद चिंताजनक दोहरापन भी जुड़ा है. उसकी आधी आबादी की माली हालत तो ठीक-ठाक है, मगर दूसरा आधा हिस्सा बुरी तरह पिछड़ रहा है.
लगभग हर सेक्टर में के-आकार की आर्थिक वृद्धि इस दोहरेपन को तेज कर रही है. गरीबों और निम्न मध्यम वर्ग की आवाजाही के प्रमुख साधन रेलवे में लोगों के सफर करने का आंकड़ा ही लें. यह वित्त वर्ष 19 में कोविड-पूर्व के 8.4 अरब के शिखर से घटकर वित्त वर्ष 24 में 6.8 अरब हो गया है, जो घटती आवाजाही को दर्शाता है. इसी तरह, दोपहिया वाहनों की बिक्री वित्त वर्ष 19 में 2.12 करोड़ के उच्च स्तर से घटकर वित्त वर्ष 24 में 1.79 करोड़ हो गई है.
तेज बिक्री वाले उपभोक्ता सामान (एफएमसीजी) में भी मंदी है, खासकर शहरी इलाकों में त्योहारी मौसम में भी बिक्री उछाल नहीं ले पाई. गैर-बराबरी रियल एस्टेट बाजार में भी दिखाई दे रही है. 1 करोड़ रुपए से अधिक कीमत वाले नए घरों की बिक्री में उछाल है, मगर 50 लाख रुपए या उससे कम कीमत के किफायती मकानों की बिक्री में मंदी है. इस सबकी वजह बढ़ती रियल एस्टेट कीमतें, खाद्य पदार्थों की महंगाई और मध्य वर्ग की तनख्वाहों में न्यूनतम बढ़ोतरी बताई जा रही है.
लोगों का आर्थिक संकट इससे भी पता चलता है कि राजनैतिक पार्टियां मुफ्त योजनाओं के जरिए मतदाताओं को लुभा रही हैं. यह खेल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी धड़ल्ले से खेल रही है, हालांकि प्रधानमंत्री खुद एक वक्त रेवड़ी संस्कृति की निंदा कर चुके हैं. 2023 में, मोदी ने पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को और पांच साल के लिए बढ़ा दिया, जो 800 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराने की दुनिया की सबसे बड़ी योजना है.
उस पर हर साल 2 लाख करोड़ रुपए का खर्च आता है. लेकिन इससे 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें और उनकी पार्टी को लगे करारा झटके को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं था, जब वे अपने दम पर साधारण बहुमत हासिल करने में भी नाकाम रहे. हालांकि, मोदी ने जल्द ही राजनैतिक रफ्तार पकड़ ली, क्योंकि भाजपा ने हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे अहम राज्यों के चुनाव जीत लिए.
दो और अहम विधानसभा चुनाव 2025 में दिल्ली और बिहार में होंगे. लेकिन उनके नतीजे प्रधानमंत्री को कठोर फैसले लेने से शायद न रोक पाएं. आगामी केंद्रीय बजट ऐसे साहसिक सुधारों को शुरू करने का अच्छा मौका हो सकता है जो सीधे देश की गरीब आधी आबादी को लाभ पहुंचाए और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे.
हाल के हफ्तों में, प्रधानमंत्री और उनकी टीम जरूरतमंदों के लिए रोजी-रोटी के साधन और आमदनी बढ़ाने के लिए कई तरह के विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर रही है. प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. प्रमोद के. मिश्रा ने इंडिया टुडे को बताया, ''बाहरी चुनौतियों के बावजूद अर्थव्यवस्था की क्षमता और लचीलापन बढ़ाने के अलावा, 2025 में जोर उच्च वृद्धि को बनाए रखने और संरचनात्मक सुधारों, अनुपालन प्रक्रिया दुरुस्त करने तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के जरिए नए आर्थिक अवसर पैदा करने पर होगा.’’
शिक्षा और हुनर विकास अहम प्राथमिकताएं बनी रहेंगी. बजट 2024 में मोदी सरकार ने हुनर में इजाफे और 4.1 करोड़ युवाओं को लाभ पहुंचाने के लिए आइटीआइ को अपडेट करने के अलावा बड़े पैमाने पर इंटर्नशिप और रोजगार प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा की थी. विशेषज्ञों का कहना है कि आधार में तेजी के लिए जैसे नंदन नीलेकणी को जिम्मेदारी दी गई थी, इस मामले में भी कोई शीर्ष पेशेवर प्रभावी कार्यान्वयन तेजी ला सकता है.
मिश्रा के मुताबिक, 2025 में दूसरी प्राथमिकता शहरों के पास 12 औद्योगिक ठिकानों और 100 औद्योगिक पार्कों की स्थापना करना है. उनमंऔ प्लग-ऐंड-प्रोड्यूस सुविधाएं होंगी, ताकि विकास के अवसरों के समान वितरण के लिए उत्पादन क्षेत्र को बढ़ावा मिले. सामाजिक कल्याण में आवास और नल से जल जैसी योजनाओं को अधिकतम लक्ष्य हासिल किया जा सकता है, जिसे वे ''संतृप्ति स्तर’’ कहते हैं.
सरकार जीवन और व्यापार को आसान बनाने के लिए भी प्रतिबद्ध होगी. रिटर्न दाखिल करने को सरल बनाने और कारोबार शुरू की शर्तें कम करने के ठोस प्रयास किए जा रहे हैं. मध्यम वर्ग उच्च आय कर दरों से राहत की गुहार लगा रहा है, जबकि कॉर्पोरेट को भारी कर कटौती का लाभ मिल रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य वर्ग की परेशानी कम करने के लिए सरकार 30 फीसद की अधिकतम कर दर को घटा सकती है या 15 लाख रुपए और उससे अधिक की मौजूदा स्लैब को बढ़ाकर 30 लाख रुपए कर सकती है, ताकि लोगों के हाथ में अधिक पैसा रहे और खपत को बढ़ावा मिले.
मोदी सरकार को देश को 8 फीसद की विकास दर की ओर ले जाने और हुनर तथा रोजगार संकट से निबटने के लिए कई दूसरे मुश्किल फैसले करने पड़ेंगे. कृषि सुधार, खासकर किसानों को अनाज उगाने से दूर करके अधिक कीमत वाली बागवानी फसलों या तिलहन उगाने की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहन देने के उपाय लंबे समय से लंबित हैं. उर्वरक सब्सिडी के गैर-कृषि क्षेत्रों में भारी इस्तेमाल से संकट पैदा हुआ है, जिस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है.
इसके अलावा, माल और सेवा कर (जीएसटी) में भी सुधार की जरूरत है, ताकि उसे अधिक तर्कसंगत और प्रभावी बनाया जा सके. सार्वजनिक उपक्रमों की परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण अभियान में तेजी लाने की आवश्यकता है. इतना ही जरूरी वित्तीय क्षेत्र के सुधार हैं. निजी बैंकों की तीसरी लहर आए, ताकि कर्ज संकट को कम किया जा सके और उद्यमिता को बढ़ावा मिले. रोजगार सृजन की बड़ी संभावना वाले पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वीजा-मुक्त व्यवस्था और कई देशों के पर्यटकों के लिए वैट रिफंड पर विचार किया जा सकता है.
निर्यात को बढ़ावा देना भी बेहद जरूरी है और इस मोर्चे पर 2025 में मोदी के सामने दूसरी बड़ी चुनौती होगी. दो युद्धों के बीच अंतरराष्ट्रीय अव्यवस्था 20 जनवरी को डोनल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद और अधिक बढ़ सकती है. ट्रंप चीन से आयात पर भारी टैरिफ लगाने का ऐलान कर चुके हैं. भारत भी इस हिट लिस्ट में बहुत पीछे नहीं है. अमेरिका में अवैध भारतीय आप्रवासियों की बढ़ती आबादी भी है, जिनकी तादाद 7,00,000 से ज्यादा है. ट्रंप ने बड़े पैमाने पर निर्वासन की धमकी दी है, वे वैध भारतीयों के एच1बी वर्क वीजा पर भी बंदिशें थोप सकते हैं.
हालांकि, चीन पर ट्रंप के कठोर रुख से भारत के लिए अवसर पैदा हो सकता है. अगर वे अमेरिका में चीनी आयात को महंगा बनाते हैं, तो इससे भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में पैठ बनाने में मदद मिलेगी. केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि कपड़ा, खिलौने, जूते और कृषि उत्पादों जैसे कई श्रम-सघन निर्यात क्षेत्रों को लाभ हो सकता है. इलेक्ट्रॉनिक सामान, सेमीकंडक्टर, फार्मास्यूटिकल्स और भारी रसायन जैसे पूंजी-प्रधान उत्पाद भी लाभ उठा सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के पास दो विकल्प हैं. वे अमेरिका के लिए कुछ वस्तुओं पर टैरिफ कम करके ट्रंप का दिल जीत सकते हैं या कुछ अवैध भारतीय आप्रवासियों को वापस बुला सकते हैं. हर हाल में नुक्सान होगा, क्योंकि टैरिफ घटाने से देश में कॉर्पोरेट क्षेत्र को नुक्सान होगा. आप्रवास मोर्चे पर कार्रवाई मध्यम वर्ग को नाखुश कर सकती है, जो अमेरिका में मौके देखता है.
लेकिन संकट में मोदी का बेहतर प्रदर्शन बाहर आता है, इसलिए ट्रंप के बाद वैश्विक आर्थिक झटके प्रधानमंत्री के लिए 1991 जैसा मौका पैदा कर सकते हैं, जिससे उन्हें बहुत जरूरी संरचनात्मक सुधार करने और देश को 'विकसित भारत’ की मंजिल पर तेजी से ले जाने का मौका मिल सकता है.
अर्थव्यवस्था विकास दर 8 फीसद पर लाने और घटते कौशल तथा रोजगार संकट से पार पाने के लिए मोदी राज को 2025 में कई मुश्किल फैसले करने पड़ेंगे.
प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पी.के. मिश्रा के मुताबिक, 2025 में फोकस टिकाऊ उच्च विकास दर, अनुपालन को युक्तिसंगत बनाने, संरचनागत सुधार और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर होगा.