
इस साल डोनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर वापस आने से दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में अनिश्चितता का माहौल है. क्या वे अपने वादों और धमकियों को अमली जामा पहनाएंगे?
क्या वे अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय संधियों और ट्रांसअटलांटिक गठबंधनों से बाहर निकालेंगे, अपने निकट और दूर के पड़ोसियों पर टैरिफ और व्यापार युद्ध थोपेंगे?
सीमा बंद करके और निर्वासन करके घरेलू राजनीति, उद्योगों और समुदायों को सिर के बल खड़ा कर देंगे? ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारतीय प्रवासियों और भारतीय मूल के अमेरिकियों की जिंदगी ऐसे कई सवालों से भरी हुई है.
ट्रंप के चंचल स्वभाव और उनके भावी प्रशासन की पहले से ही अव्यवस्थित संरचना को देखते हुए यह कयास लगाना मुश्किल है कि वास्तव में क्या हो सकता है. फिर भी हम पहले ट्रंप प्रशासन के तहत जो हुआ, सबसे हालिया अभियान के दौरान किए गए वादों और उनके सहयोगियों की नीतिगत प्राथमिकताओं पर गौर कर सकते हैं ताकि आने वाले वर्षों में क्या हो सकता है, इसका बेहतर अंदाजा लगाया जा सके.
अमेरिका में आज लगभग 30 लाख भारतीय आप्रवासी रह रहे हैं. यह देश भारतीयों के लिए (यूएई के बाद) दूसरा सबसे लोकप्रिय डेस्टिनेशन है और भारतीय आप्रवासी (मेक्सिकन के बाद) अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी विदेशी मूल की आबादी हैं. ट्रंप के आलोचक अक्सर यह चिंता जताते हैं कि खुले तौर पर आप्रवासी विरोधी भावनाएं वापस आ रही हैं जो उनके पहले कार्यकाल में अधिक सामान्य और आम तौर पर स्वीकार्य हो गई थीं.
ट्रंप की जेनोफोबिक बयानबाजी यकीनन 2016 और 2024 के बीच यकीनन कम नहीं हुई है. खासकर विकासशील देशों के शरणार्थी, पनाह चाहने वाले और आप्रवासी उनकी रैलियों और उनके गुस्से का मुख्य लक्ष्य बने हुए हैं. ट्रंप के लिए अश्वेत, लैटिनो और एशियाई मतदाताओं के बीच थोड़ा, लेकिन महत्वपूर्ण समर्थन बढ़ा, जो आज उनके आधार को पहले की तुलना में ज्यादा बहुजातीय के रूप में देखने के लिए पर्याप्त है.
एफबीआइ के निदेशक के लिए उनके नामित काश पटेल और उनके सलाहकार डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंटल एफिशिएंसी के एलॉन मस्क के सह-नेता विवेक रामास्वामी जैसे कुछ भारतीय अमेरिकी भी उनके इनर सर्कल में जगह बना रहे हैं. ट्रंप के सर्कल में देसी लोगों की मौजूदगी का मतलब यह नहीं है कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल अमेरिका में रहने वाले भारतीय प्रवासियों या पहले से ही देश में रहने वाले या आने की योजना बना रहे आप्रवासियों के लिए कोई दयालु या नरम होगा.
इसके अलावा, ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां अमेरिकी राष्ट्रपति का अधिकार वास्तविक से ज्यादा महज लफ्फाजी है. कार्यकारी शाखा बजट, सभी सरकारी एजेंसियों और नीतियों में कटौती की सभी बातों के लिए अमेरिकी कांग्रेस पर निर्भर है या वह अड़ंगे लगा सकती है, कांग्रेस ही खर्च को नियंत्रित करती है, और न्यायपालिका नीतियों और नियमों को लागू होने से रोक सकती है. ऐसा क्षेत्र जहां राष्ट्रपति वास्तव में बहुत ज्यादा प्रभाव डाल सकते हैं, वह है आव्रजन. ट्रंप की 2016 और 2024 की जीत में शायद सबसे ज्यादा योगदान आव्रजन ने ही दिया और हम इसमें फौरन बदलाव देख सकते हैं.
हमें मेक्सिको (या कनाडा) की सरहद पर पड़ोसी मुल्कों के खर्च पर दीवार खड़ी होने की खास संभावना नहीं दिखती. ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान दीवार केलिए पड़ोसी देशों से कहा जा रहा था. लेकिन अब आव्रजन नियमों में बदलाव हो सकते हैं, कुछ को तुरंत बदला जाएगा. मेरा मानना है कि तीन ऐसे हैं जो भारतीय प्रवासियों और भारतीय अमेरिकियों के लिए महत्वपूर्ण होंगे: 1. आव्रजन नियमों का कठोर प्रवर्तन, 2. कार्य-आधारित आव्रजन पर प्रतिबंध, और 3. अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए सीमाएं.
सबसे पहले, ट्रंप ने एक अधिक दंडात्मक आव्रजन व्यवस्था बनाने और उसे बनाए रखने के लिए अभियान चलाया है, जिसकी शुरुआत उन्होंने अपने राष्ट्रपति पद के पहले दिन से सामूहिक निर्वासन, शरणार्थियों के पुनर्वास को निलंबित या समाप्त करने और अन्य कानूनी आव्रजन मार्गों को कम करने से की है. अभी यह देखना है कि इनमें से कितने वास्तव में पूरे होंगे.
मिसाल के तौर पर, अगर बिना कागजात वाले कामगारों को श्रम से वंचित किया जाए तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बड़े क्षेत्र पंगु हो जाएंगे. फिर भी, पिछले दशक में बड़ी संख्या में उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी सीमाओं को पार करने वाले भारतीय प्रवासियों के लिए, कठोर व्यवहार का खतरा जल्दी ही सामने आ जाएगा. यह निर्वासन और शरण के दावों के तेजी से इनकार के रूप में होगा. अमेरिका में बिना दस्तावेज वाले आप्रवासियों की सबसे तेजी से बढ़ती संख्या में भारतीय नागरिक शामिल हैं.
यह न केवल दक्षिणी सीमा पर सच है, जहां ऐतिहासिक रूप से अमेरिका में सबसे ज्यादा लोग प्रवेश करते रहे हैं. यही हाल कनाडा के साथ लगी उत्तरी सीमा पर है. उत्तरी न्यूयॉर्क और वर्मोंट, जहां मैं रहती हूं, को कवर करने वाले स्वांटन सेक्टर मे कनाडा से अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले आधे से ज्यादा लोग भारतीय हैं. उन लोगों में ज्यादातर युवा पुरुष हैं, लेकिन अच्छी संख्या में परिवार भी हैं. उनमें एक बड़ा हिस्सा पंजाब के युवाओं का है, जिनमें से कई किसान हैं.
वे देश में अस्थिरता और अमेरिका में अवसर की वजह से अपने घर और आजीविका से विस्थापित हो गए हैं. बेहतर जीवन और संभावनाओं के उस सपने ने कई दूसरे लोगों को अमेरिका की सीमा पार करने की कोशिश करने के लिए प्रेरित किया है. इसका नतीजा कभी-कभी बहुत दुखद होता है, जैसा कि एक गुजराती परिवार के साथ हुआ. 2022 के जाड़े के मौसम में बंजर इलाके से सरहद पार करते वक्त परिवार के सारे सदस्य ठंड से मारे गए. इसके बावजूद कई लोगों ने अवैध रूप से सीमा पार करने का प्रयास जारी रखा है; अमेरिका में अभी 3,75,000 अनधिकृत आप्रवासी भारतीय हैं, जो देशभर में पांचवां सबसे बड़ा समूह है. इस नई व्यवस्था के तहत उनका भविष्य और भी अनिश्चित हो जाएगा.
कानूनी आप्रवासियों का भविष्य भी अनिश्चित होगा. '90 के दशक से शिक्षित आप्रवासियों के लिए सबसे लोकप्रिय मार्गों में से एक एच-1बी वीजा प्रोग्राम रहा है, जिसने तकनीकी कर्मचारियों, शिक्षाविदों, इंजीनियरों और एडवांस्ड डिग्री वाले अन्य लोगों को खास एंट्री का मौका दिया है. ट्रंप ने परिवार के सदस्यों के मिलने-जुलने के खिलाफ आवाज उठाई है और अमेरिका में कौशल-आधारित आव्रजन प्रणाली को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया है. फिर भी उनके पहले प्रशासन के दौरान एच-1बी वीजा प्रोग्राम जो अमेरिका में सबसे बड़ा गेस्ट वर्कर प्रोग्राम था. इसको सीमित कर दिया गया था.
2018 में एच-1बी वीजा आवेदनों में से 24 फीसद को अस्वीकार कर दिया गया था, जबकि 2022 में यह संख्या केवल 2 फीसद थी. एच-1बी वीजा नियमों में बदलाव का असर भारतीय नागरिकों पर असमान रूप से पड़ेगा; 2022 में, 73 फीसद आवेदक भारतीय थे. शायद ट्रंप के दूसरे राष्ट्रपति पद के साथ टेक उद्योग की अधिक मजबूत भागीदारी इस डायनेमिक को बदल देगी, लेकिन यह जानना अभी भी मुश्किल है.
तीसरा समूह जो अमेरिका में प्रवास को टेढ़ी खीर मान सकता है, वे हैं अंतरराष्ट्रीय छात्र. 2016-2020 की अवधि के मद्देनजर, वीजा आवेदनों की अधिक जांच होगी, कैंपस में और बाहर काम करने के कम अवसर होंगे, और ग्रेजुएशन के बाद देश में रहने की संभावना कम होगी. अंतरराष्ट्रीय छात्र किसी भी यूनिवर्सिटी कैंपस का एक महत्वपूर्ण घटक हैं, और फिलहाल अमेरिका में 10 लाख से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से भारतीय छात्रों की संक्चया 2,50,000 से ज्यादा है.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनके अवसरों और मार्गों के सीमित होने का मतलब था कि कई लोग यूरोप, कनाडा या ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य गंतव्यों की ओर मुड़ गए. क्या दूरदर्शिता, समझ और ज्ञान की इसी तरह की कमी प्रवासियों और स्थानीय समुदायों के अवसरों को फिर से खतरे में डाल देगी?

पाब्लो बोस, वर्मोंट यूनिवर्सिटी के जियोग्राफी और जियोसाइंसेज विभाग में प्रोफेसर हैं.