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सुर्खियों के सरताज 2024 : मोदी जनता की पसंद लेकिन उसकी दिक्कतें अब भी बरकरार!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐतिहासिक तीसरा कार्यकाल तो मिला लेकिन इंडिया ब्लॉक भाजपा को पूर्ण बहुमत से पीछे रोकने में कामयाब हुआ तो चमक कुछ फीकी पड़ गई

23 नवंबर को महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा के जश्न में प्रधानमंत्री मोदी
23 नवंबर को महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा के जश्न में प्रधानमंत्री मोदी
अपडेटेड 20 जनवरी , 2025

नेता जो चाहते हैं, मतदाता रूपी लोकतंत्र के देवता उसे अपने ढंग से देते हैं. नरेंद्र मोदी के लिए दशक भर से प्रधानमंत्री होने का सबसे शिखर गौरव 2024 में राजनेताओं की बिरली जमात में शामिल होना था. इसके लिए उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करनी थी, जिन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ लगातार तीन कार्यकाल हासिल किया था. मोदी का इरादा आम चुनाव में धमाकेदार बहुमत के साथ यह उपलब्धि हासिल करने का था.

साल की शुरुआत काफी मांगलिक ढंग से हुई जब 22 जनवरी को उन्होंने अयोध्या में श्रद्धा जगाने वाले नए राम मंदिर के भीतर यजमान के रूप में बालक राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह की अगुआई की. इस कार्यक्रम को हिंदू पुनरोत्थान और गौरव के भव्य प्रदर्शन के रूप में देखा गया. युग चेतना को व्यक्त करते हुए मोदी ने अपना भावप्रवण भाषण यह कहकर शुरू किया, "हमारे राम लला तंबू में अब और नहीं रहेंगे, वे अब इस दिव्य मंदिर में विराजेंगे."

मंदिर निर्माण के सदी-पुराने संघर्ष की भौतिक समाप्ति और देश के हिंदू बहुसंख्यकों के लिए इस घटना के गहरे भावनात्मक खिंचाव को जून में होने वाले आम चुनाव के लिए गेमचेंजर माना जा रहा था. इस कदर कि मोदी ने 'अबकी बार, चार सौ पार' के युद्धघोष के साथ अपनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए कहीं ऊंचा लक्ष्य तय कर दिया. यह आत्मविश्वास भाजपा के इस यकीन से उपजा था कि उसने 2024 की शुरुआत में ही इंडिया ब्लॉक के मुख्य प्रस्तावक तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने पाले में लाकर विपक्षी गठबंधन को करारा झटका दे दिया है. दूसरा तुरुप का पत्ता था, महाराष्ट्र में 2022 में ही शिवसेना में टूट करवाकर राज्य की सत्ता हथिया लेना और बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में भी फूट डलवा देना.

मगर जब आम चुनाव के नतीजे आए, वे उम्मीद से काफी कमतर थे. भाजपा की सीटों की संख्या 303 से घटकर 240 पर आ गई—जो लोकसभा में साधारण बहुमत से 32 कम थीं—और सरकार बनाने के लिए वह एनडीए के सहयोगी दलों खासकर बिहार में नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी के समर्थन की मोहताज थी. मोदी ने लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बनकर इतिहास जरूर रच दिया, लेकिन इंडिया ब्लॉक ने भाजपा के दबदबे को काफी घटाकर चमक फीकी कर दी.

मोदी को गठबंधन धर्म की बाध्यताओं, जटिलताओं और अंतर्विरोधों को साधने की नई राह पकड़नी पड़ी. यह सबसे ज्यादा जाहिर हुआ, जब उन्होंने विरोध के बावजूद 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को जबरन ठेलने की कोशिश की, लेकिन जरूरी समर्थन न होने से उसे संयुक्त संसदीय समिति में भेजना पड़ा.

नतीजे मोदी और भाजपा दोनों के लिए सबक लेकर आए. खास तौर पर यह कि आक्रामक हिंदुत्व और उसके साथ कल्याणकारी उपायों की भारी-भरकम चाशनी से मिलने वाले फायदे लगातार कम होते जा रहे हैं. मतदाता बेरोजगारी और महंगाई से राहत चाहते हैं. वे अब भी मोदी पर भरोसा करते थे, लेकिन उनके समर्थन की धार कुंद होने लगी थी.

अड़ियल इंडिया ब्लॉक के विपरीत मोदी और भाजपा ने इन चेतावनियों पर ध्यान दिया और हरियाणा और महाराष्ट्र के दो अहम विधानसभा चुनाव जीतकर फिर राजनैतिक बढ़त हासिल की. ये जीत साफ तौर पर मोदी 3.0 के लिए जनादेश थीं कि वे 2025 में खासकर आर्थिक मोर्चे पर जरूरी और अहम सुधारों को आगे बढ़ाए.

आर्थिक राजनीति ने 2024 में भी मोदी के राजकाज को दिशा दिखाई. बढ़ती बेरोजगारी के मद्देनजर प्रधानमंत्री को अपारंपरिक उपायों का सहारा लेना पड़ा. जुलाई में 2024 के बजट में मोदी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से एक बड़ी योजना का ऐलान करवाया, जिसमें पांच वर्ष के लिए 2 लाख करोड़ रुपए के आवंटन के साथ निजी कंपनियों में 4.1 करोड़ युवाओं के रोजगार और कौशल विकास को सुगम बनाया जाएगा. ऐसे समय जब निजी निवेश में सुस्ती है, मोदी ने बजट में 11.1 लाख करोड़ रुपए या जीडीपी के 3.4 फीसद का आवंटन करके बुनियादी ढांचे के विकास पर सार्वजनिक खर्च करते रहने का फैसला किया, इस उम्मीद में कि इससे आर्थिक वृद्धि में तेजी आएगी और अतिरिक्त नौकरियां पैदा होंगी. निजी क्षेत्र के लिए मोदी ने 1 लाख करोड़ रुपए के वित्तीय कोष के साथ अनुसंधान और नवाचार बढ़ाने पर जोर दिया.

स्वतंत्रता दिवस पर अपने 11वें तथा अब तक के सबसे लंबे भाषण में मोदी ने जीवन-यापन में आसानी के मसले पर विस्तार से चर्चा की और शहरी इलाकों के बुनियादी ढांचे में जबरदस्त सुधार का भरोसा दिलाया. यह शायद मध्यमवर्ग को लुभाने की कोशिश थी, जो गरीबों के लिए कल्याणकारी उपायों से उपेक्षित महसूस कर रहा था. मोदी की दूसरी बड़ी प्रतिबद्धता आयात पर निर्भरता घटाने के लिए देश को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की थी, जिसका एक आधार टेक्नोलॉजी के मामले में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की खातिर सेमीकंडक्टर के निर्माण में दुनिया का अगुआ देश बनना था.

इन पहलों ने 2025 का एजेंडा तय किया, लेकिन पूरे 2024 के दौरान अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने का काम अधूरा ही रहा. वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर धीमी होकर 5.4 फीसद पर आ गई, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 2.2 फीसद कम थी. अब यह पूरी तरह साफ है कि जब नए साल का सूरज उगेगा, कामकाज उस तरह नहीं चल सकता जैसा चल रहा है, और 2025 के बजट में इन तकाजों की झलक मिलनी ही चाहिए.

अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी देश को 2024 में खासकर अपने अशांत पास-पड़ोस के साथ रिश्तों में कूटनीतिक दुश्वारियों का सामना करना पड़ा. मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में दक्षिण एशिया के बड़े नेताओं को (पाकिस्तान के नए निजाम को छोड़कर) आमंत्रित करके संकेत दिया कि तीसरे कार्यकाल में उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता क्या होगी. मोदी ने नरम-गरम नीति के इस्तेमाल से मालदीव में सत्ता परिवर्तन के प्रभावों को बेअसर कर दिया, जो राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के 'इंडिया आउट' अभियान के बूते चुनाव जीतने के बाद निर्णायक रूप से चीन की तरफ झुक रहा था.

प्रधानमंत्री मोदी को 9 जून को पद की शपथ दिलातीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

भारत ने श्रीलंका में भी चुनाव से पहले अंतत: जीत हासिल करने वाले अनुरा कुमारा दिसानायके सहित सभी राजनैतिक योद्धाओं के साथ बातचीत में शामिल होकर अपने पत्ते सही खेले. मगर बांग्लादेश में हम मुश्किल स्थिति में फंस गए जब अगस्त में लोकप्रिय विरोध प्रदर्शनों के चलते लंबे समय से सहयोगी रही शेख हसीना बेदखल हो गईं. भूटान के साथ रिश्तों में खुशगवारी और जोश बना रहा, तो नेपाल के.पी.एस. ओली की हुकूमत के मातहत चीन की तरफ खिसकता मालूम दिया. अलबत्ता, बीजिंग को लद्दाख सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आक्रामक युद्धाभ्यासों से पीछे हटने को राजी करके भारत-चीन रिश्तों में कामयाबी को अंजाम दिया गया. इस तरह दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों के बीच चार साल से चला आ रहा गतिरोध तकरीबन खत्म हो गया. 

इस बीच 2024 को भी आक्रांत रखने वाले दो अंतरराष्ट्रीय युद्धों—यूरोप में रूस-यूक्रेन और पश्चिम एशिया में इज्राएल-हमास—के साथ मोदी भूभागीय संप्रभुता और 'संवाद के जरिए शांति की राह' पर जोर देकर भारत के राष्ट्रीय हितों की महीन डोर पर चलते रहे. उन्होंने रूसी राष्ट्रपति को गले लगाकर नाजुक संतुलन बनाने का काम किया, तो यूक्रेन की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बनकर और राष्ट्रपति वॉलोदिमीर जेलेंस्की के कंधों पर सांत्वना का हाथ रखकर भारत की तटस्थता को बनाए रखा. इज्राएली टकराव के मामले में भी भारत ने हमास के आतंकी हमलों की भर्त्सना की, लेकिन फलस्तीन के समर्थन में लगे हाथ दो-राष्ट्र के समाधान की वकालत भी की.

कूटनीतिक झटके भी लगे जब कनाडा ने भारतीय एजेंसियों पर सिख अलगाववादियों की हत्या करवाने का खुलेआम आरोप लगाया और अमेरिका भी ऐसे ही आरोपों के साथ पिल पड़ा. इनके बावजूद मोदी ने पक्का किया कि खासकर रक्षा और टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में अमेरिका के साथ रिश्ते समृद्ध होते रहें. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने से मोदी को दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्तों को और मजबूत करना होगा, खासकर जब उनके पहले कार्यकाल में दोनों नेताओं के बीच दोस्ताना और सौहार्दपूर्ण रिश्ते रहे थे. कुल मिलाकर, 2024 में जो सामने आया, वह था झटकों के बावजूद संभलने का मोदी का सामर्थ्य, राजनैतिक नैरेटिव पर उनका दबदबा, और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की उनकी अटल कोशिश, फिर चाहे उसके लिए जो भी करना पड़े.

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