दरअसल, इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस यानी इंडिया गठबंधन के लिए साल की शुरुआत इससे बदतर नहीं हो सकती थी. इस गठबंधन को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नरेंद्र मोदी के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए विपक्ष का अब तक का सबसे मजबूत प्रयास माना जा रहा था. मगर इस गठबंधन की नींव रखने वाले और इसके प्रमुख चेहरों में से एक, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा की अगुआई वाले उसी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल हो गए जिसे हराने के मंसूबे वे बना रहे थे.
इससे पूरा सियासी परिदृश्य बदल गया. इंडिया गठबंधन में केंद्रीय भूमिका और नियंत्रण हासिल करने की कांग्रेस की बेताबी को नीतीश के जाने का कारण बताया गया. यह गठबंधन भाजपा में इस तरह की गड़बड़ियों के आरोप लगा रहा था और खुद को उसके निदान की तरह पेश कर रहा था. मगर इस घटना ने उसकी स्थिरता को लेकर सवाल उठाए, जो पूरे साल उसे बार-बार असहज करते रहे. गठबंधन की शुरुआत कमजोर रही मगर उसने जल्दी ही अपनी रणनीति को सुधारते हुए मजबूत कदम उठाए और अपना आधार बना लिया.
अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन का बहिष्कार करने का उसका फैसला एक बड़ा कदम था, जिसने गठबंधन को धर्मनिरपेक्षता का पैरोकार बना दिया. इसके बाद चुनावी बॉन्ड योजना को भ्रष्टाचार और नेता-कारोबारी की सांठगांठ वाले पूंजीवाद के रूप में पेश करते हुए इसके खिलाफ आक्रामक अभियान चलाया गया. इन सभी प्रयासों के साथ इंडिया गठबंधन ने एक मजबूत संदेश दिया, जो खासतौर पर उन मतदाताओं से जुड़ा, जो संविधान और आर्थिक असमानताओं को लेकर चिंतित थे.
जून में एक ऐसा चुनावी नतीजा आया, जिसने सभी को चौंका दिया. लोकसभा में भाजपा का समर्थन घटकर 240 सीटों तक सीमित हो गया. एनडीए ने फिर भी सरकार बनाई मगर लंबे समय बाद विपक्ष संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह महत्वपूर्ण मुद्दों पर असर डालने में सफल रहा. सबसे बड़ी बात कि इंडिया गठबंधन मोदी सरकार को विवादास्पद नीतियों को बदलने के लिए मजबूर करने में सफल नजर आ रहा था. अगस्त में उसने सरकार को प्रसारण सेवा (विनियम) विधेयक वापस लेने, वक्फ संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने और केंद्रीय मंत्रालयों में लैटरल भर्ती की एक अधिसूचना रद्द करने के लिए मजबूर किया.
हालांकि इन 'सफलताओं' के बाद, हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में हार ने गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दीं. यह दिखा कि गठबंधन अपनी आंतरिक एकता बनाए रखने में असफल हो रहा है. कांग्रेस, जिसे अक्सर सबसे कमजोर कड़ी माना जाता है, को अपने सहयोगियों की ओर से सार्वजनिक आलोचना का सामना करना पड़ा. उसकी आलोचना करने वालों में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी भी शामिल थीं. ये दरारें और चुनाव के बाद एकजुटता की कमी यह दिखाती हैं कि इंडिया गठबंधन के लिए एक चुनावी गठजोड़ से शासन-उन्मुख विपक्ष बनने का संघर्ष लंबा चलने वाला है.
हार के झटकों से हैरतअंगेज उभार तक
› जनवरी की शुरुआत में नीतीश कुमार का गठबंधन छोड़ना इंडिया गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका था.
› मगर आक्रामक प्रचार अभियान चलाकर गठबंधन ने भाजपा को लोकसभा में 240 सीटों तक सीमित कर दिया.
› असल में पिछले कई साल में पहली बार विपक्ष संसद के अंदर और बाहर राष्ट्रीय एजेंडे को आकार देने में सक्षम नजर आया.
› मगर हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में हार ने विपक्षी एकता की कमी को उजागर कर दिया.