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1987 में पहली बार विश्व जूनियर चैंपियन बना भारत; फिर कैसे खड़ी हो गई 85 ग्रैंडमास्टर की स्थायी फौज?

विश्वनाथन आनंद अचानक ही सामने आए और दुनिया फतह कर ली. गुकेश के साथ 2024 में भारत को मिली उपलब्धि उसी विरासत का हिस्सा है

मिला शीर्ष मुकाम विश्वनाथन आनंद 2000 में फिडे विश्व चैंपियनशिप जीतने के बाद
अपडेटेड 14 जनवरी , 2025

वर्ष 1975 बीतने के साथ सिर्फ इंडिया टुडे और शोले ही अगले दशकों तक स्थायी छाप छोड़ने वाले देसी घटनाक्रम नहीं थे. ईस्टमैनकलर के उस दौर में एक दिन मद्रास में एक छह वर्षीय लड़के ने अपनी मां से एक रहस्यमय खेल सिखाने की जिद की. खेल 'युद्ध का मैदान' था- चौसठ काले-सफेद वर्गों वाला एक बोर्ड और आमने-सामने दो मध्ययुगीन सेनाएं थीं. आकर्षक मोहरे, पैदल सिपाहियों के टेढ़े-मेढ़े मोहरे और उनके विविध कमांडर रहस्यमय चाल चलते थे.

सीधे, आड़े-तिरछे और अचानक घोड़े की तरह छलांग लगाकर. सबसे रोमांचक पल वह था जब एक अदना-सा लड़का दूसरे छोर तक पहुंचकर सबसे ताकतवर बन गया... वह ऐसा पल था जो तकरीबन एक दर्जन साल बाद, 1987 में आया, जब विश्वनाथन आनंद शतरंज की पूरी आकाशगंगा को चीरते हुए विश्व जूनियर चैंपियन बन गए.

वह समय काफी पीछे से लौटा था. प्राचीन काल में फुर्सत के इस खेल का आविष्कार हुआ था और वह फारस के जरिए दुनिया में पहुंचा था, लेकिन भारत शतरंज के नक्शे से गायब हो गया था. टूर्नामेंट के अब तक के 25 संस्करणों में, सोवियत ब्लॉक का दबदबा था- वे 14 बार जीते थे, सोवियत संघ खुद आठ बार.

उन मेधावी लड़कों में तीन- बोरिस स्पैस्की, अनातोली कारपोव और गैरी कास्परोव पहले ही सीनियर वर्ल्ड नंबर 1 बन गए थे. 1948 से अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फिडे) चैंपियनशिप के इतिहास में सोवियत चैंपियनों की सूची एक दर्जन तक पहुंच गई थी, जिन्होंने तब 35 वर्षों तक खिताब बरकरार रखा था. एक अदना-सा भारतीय उस रूसी बादशाहत को तोड़ रहा था, अपनी ही बुलंदी की चोटी के सफर में. वह 2000-2012 तक का दौर था, जब वह पांच बार विश्व चैंपियन बना.

वह दूर-दूर तक कहीं पटकथा में नहीं था. जब आनंद जूनियर खिताब के लिए होड़ कर रहे थे, तब आधुनिक रैंकिंग में पूरा एशिया गायब था. आज यह देखना मजेदार है कि दो एशियाई-चीन के मौजूदा विश्व चैंपियन डिंग लीरेन और भारतीय चैलेंजर गुकेश डोमाराजू- खिताब के लिए लंबी, सांस थामे रखने वाले मुकाबले में डटे थे.

इसमें महज 18 साल के इस भारतीय ने आखिरकार बाजी मार ली. आनंद के सफर ने शतरंज की दुनिया को काफी कुछ बदल दिया, हां, कुछ चीजें अभी-भी एक जैसी ही हैं. जीत के बाद गुकेश को खेल की गुणवत्ता के मामले में पूर्व विश्व चैंपियनों जैसे व्लादिमीर क्रैमनिक और मैग्नस कार्लसन की तीखी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा. क्रैमनिक ने तो इसे 'खेल का अंत' ही करार दे दिया. आनंद के मामले में ये टिप्पणियां खासी तीखी थीं.

एक रूसी ग्रैंडमास्टर ने 1991 में आनंद से कहा था कि रूसी ट्यूशन के बिना, वे ''ज्यादा से ज्यादा कॉफी-हाउस के एक बेहतर खिलाड़ी बन सकते हैं.'' जवाब - केवल मौखिक नहीं, बल्कि सबूत के साथ- आनंद की ओर से अकेले नहीं आया था. अब भारत के पास 85 ग्रैंडमास्टर की एक स्थायी फौज है और अब तक का सबसे कम उम्र का विश्व चैंपियन भी. 

बतौर दर्शक शतरंज का खेल कुछ हद तक गीले रंग को सूखते देखने जैसा है. टिकटॉक वाले दौर में लोगों की ध्यान केंद्रित करने की जो क्षमता है, उस लिहाज से तो यह बहुत ज्यादा है. इन सबके बावजूद, दिमागी कसरत से दुनिया को जीतने का विचार ही अजीब तरह से मोहक है और कई इसकी गिरफ्त में हैं तभी भारत को ''दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शतरंज राष्ट्र'' कहा जा रहा था. और यह गुकेश के खिताब जीतने के  पहले की बात है. इसका सारा श्रेय उस छह साल के लड़के को जाता है.

क्या आप जानते हैं?
नए विश्व चैंपियन गुकेश उन पांच ग्रैंड मास्टर्स में से एक हैं जिन्हें आनंद ने कोरोना महामारी के दौरान बनाई अपनी वेस्टब्रिज आनंद चेस एकेडमी में मेंटोर करने के लिए चुना था

85 ग्रैंडमास्टर हैं भारत के पास, विशी देश के पहले ग्रैंडमास्टर थे. भारत में 124 अंतरराष्ट्रीय मास्टर, 23 महिला ग्रैंडमास्टर और 42 महिला अंतरराष्ट्रीय मास्टर भी हैं

इंडिया टुडे के पन्नों से 

अंक: 10 जनवरी, 2009 
खेलकूद: यह आनंद है जग जीतने का

● एलेक्सी शिरोव ने बीते एक घंटे का बड़ा हिस्सा अपना सिर पकड़कर ऐसे बिताया जैसे माइग्रेन का मरीज करता है. दूसरी तरफ बैठा शख्स उतनी ही तेजी से उठा, जितने तेजी से वह खेलता है, उसने एक नपी-तुली मुस्कान के साथ हाथ मिलाया. भारी भीड़ उनकी टेबल की तरफ बढ़ी... कोई और दौर होता तो ईरानी क्रांति में प्रतिबंधित हुए इस खेल में शामिल होने के लिए उनकी गिरफ्तारी हो सकती थी.
—शारदा उगरा

एक प्यादे ने बदला खेल
> अकेले आनंद की उपलब्धि ने भारत में शतरंज के संपूर्ण पुनर्जागरण काल की शुरुआत की    

> भारत के 85 में से अभी खेल रहे शीर्ष 10 ग्रैंडमास्टर (जीएम) की औसत ईएलओ— खेल में कुशलता के स्तर के लिए फिडे जिस रैंकिंग का इस्तेमाल करता है—2703 है, जो दुनिया में दूसरी सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग है 

> आनंद ने कोरोना महामारी के दौरान 2020 में वेस्टब्रिज आनंद चेस एकेडमी स्थापित की, जिसमें पांच जीएम को चुनकर उनके मेंटोर बने. गुकेश इनमें से एक थे   

> ये आनंद ही थे जिन्होंने गुकेश के लिए कोच ग्रेजेगॉर्ज गजेव्सी की व्यवस्था की

''आप जिस स्थिति में हैं, वहां आलोचना साथ में आती ही है. इसकी अनदेखी करो, और कुल बात इतनी ही है.''
विश्वनाथन आनंद, अपने शिष्य गुकेश को सलाह देते हुए क्योंकि उनके विश्व चैंपियन बनने के बाद कुछ पूर्व चैंपियनों ने उस मैच की आलोचना की थी

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