scorecardresearch

भारत में फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने वाली पाकिस्तानी सिंगर नाजिया ने कैसे बदल दी म्यूजिक इंडस्ट्री?

नाजिया पहली पाकिस्तानी कलाकार हैं, जिन्हें भारत में फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. सबसे कम उम्र में ये अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड आज भी इन्हीं के नाम है. इनके गाए गाने भारत, पाकिस्तान समेत लंदन, अमेरिका, रशिया में भी पसंद किए जाते थे

Special Issues turning points entertainment 
सबकी नाज़िया पाकिस्तान की नाज़िया हसन ने भड़काई थी इंडीपॉप की चिंगारी
अपडेटेड 17 जनवरी , 2025

वैसे देखा जाए तो इसे गर्भ में संजोने से लेकर जन्म देने तक में उस समय अपने वर्चस्व पर इतराते रहे फिल्म संगीत की ही अहम भूमिका रही. और अपने तेज मिजाज और डिस्को धड़कन के साथ नई शैली अब फिल्म संगीत को टक्कर देने को तैयार थी.

जीनत अमान और फिरोज खान से बेहद प्रभावित लंदन में बसे एक प्रवासी ने फिल्म कुर्बानी के लिए कर्णप्रिय मधुर संगीत तैयार किया. नाजिया हसन उस समय केवल 15 वर्ष की थीं और उनकी आवाज में कराची की हवा जैसा खारापन था.

लंबे बाल और चमड़े के परिधान पहनने वाले कुर्ग मूल के बिड्डू अपने डिस्को म्यूजिक की वजह से उस समय तक वैश्विक स्तर पर कुछ-कुछ पहचान बना चुके थे. उनके पहले ही गाने 'आप जैसा कोई’ ने हर तरफ हलचल मचा दी थी.

ऐसा लग रहा था कि मानो बॉलीवुड जैसे तवे पर कुछ पक रहा है, जिसमें विदेशी तड़का लगा है लेकिन घर के बने शुद्ध मसालों जैसा सोंधापन भी है. नाजिया की दमदार आवाज और बिड्डू के सिंथेसाइजर आधारित ऑर्केस्ट्रा से निकला मधुर-लयबद्ध संगीत हवा के एक नए झोंके जैसी सनसनाहट उत्पन्न कर रहा था. भारत पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो चुका था.

इतनी बड़ी सफलता से उत्साहित होकर दोनों फिर से यह जादू दोहराना चाहते थे लेकिन फिल्म से इतर. नतीजा, डिस्को दीवाने (1981) के रूप में सामने आया. इसमें भी वही शैली अपनाई गई, और चार बाई चार की डिस्को ग्रिल पर तड़कती-भड़कती धुन ने पूरे उपमहाद्वीप में तहलका मचा दिया. जुनून ऐसा कि प्लैटिनम, डबल प्लैटिनम, रिकॉर्ड बिक रहे थे और जहाजरानी डिपो से प्रतियां चोरी तक होने लगी थीं. ऐसे दीवानगी भरे माहौल के बीच ही भारतीय पॉप ने आकार लिया.

भारतीय संगीत उद्योग दशकों से ढेर सारे गानों से भरी फिल्मों के लिए ख्यात रहा है. फिल्मी गानों के वर्चस्व के बीच शास्त्रीय, भक्ति संगीत जैसी कुछ गैर-फिल्मी शैलियां ही किसी तरह अपना अस्तित्व बनाए रह पाईं. रिकॉर्ड कंपनी मैग्नासाउंड के सह-संस्थापक अतुल चूड़ामणि कहते हैं, ''डिस्को दीवाने उस बाजार में ताजी हवा के झोंके की तरह आया. इससे एचएमवी और म्यूजिक इंडिया जैसी स्थानीय कंपनियों की भी गैर-फिल्मी संगीत में रुचि बढ़ा दी.’’

इसका असर हर तरफ नजर आया. संगीत उद्योग की ओर से आखिरी क्षण में डाले गए टाइटल ट्रैक में 'डिस्को’ जरूर शामिल रहता. इसने उस खुमारी को नाम दिया जिसने अस्सी के दशक में पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया था. बप्पी लाहिड़ी ने डिस्को डांसर के लिए 'जिमी जिमी’ जैसे उम्दा गाने के साथ यादगार साउंड ट्रैक बनाया. वहीं किशोर कुमार और लता मंगेशकर जैसी दिग्गज हस्तियों ने भी डिस्को 82 में गाने गए.

और, धूमकेतु की चमकती पूंछ जैसी टिमटिमाती रोशनी एक पहचान बन गई. यह शब्द इस कदर भारतीय शब्दावली का हिस्सा बन गया कि मौज-मस्ती भरी पार्टियों से इतर भी खुशी, खुशनुमा माहौल और आधुनिक चीज तक के लिए इसका इस्तेमाल किया जाने लगा. यहां तक, सब्जीवाले भी पपीते के दो प्रकार बताने लगे—देसी और डिस्को!

नाजिया-बिड्डू ने जिस शैली की शुरुआत की और बूम बूम के साथ और आगे बढ़ाया, उसने इनके आत्मविश्वास और डिमांड दोनों को बढ़ा दिया, और वह खुद अपनी बनाई मुकम्मल जगह की वजह से बहुत कुछ हासिल करने में सफल भी रहे. लेकिन फिल्मी गानों का दौर थमने वाला नहीं था, भले ही उसमें बदलाव आया था. ''ओल्ड इज गोल्ड’’ को चरितार्थ करते हुए यह अभी भी आकाशवाणी पर राज कर रहा था.

दूरदर्शन ने भी इंडी पॉप को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. लेकिन ग्रैमी और ऐसे अन्य कार्यक्रमों को व्यापक तौर पर प्रसारित कर एक नई क्रांति की शुरुआत जरूर कर दी थी—माइकल जैक्सन ऐंड कंपनी ने ’70 के दशक के डिस्को की तुलना में भारतीयों की रुचि को कहीं अधिक प्रभावित किया. भारतीय कलाकारों को डीडी मेट्रो के पॉप टाइम में स्थान मिला. नए कलाकारों की फौज ने इस मंच को समृद्ध कर दिया जैसे शैरोन प्रभाकर, हलचल भरे रॉक एन रोल शरणार्थी रेमो फर्नांडीस, अलीशा चिनॉय, प्रीति सागर, सुनीता राव आदि. नब्बे के दशक तक ये सभी 'इंडीपॉप’ के चेहरे रहे.

अपाचे इंडियन और बाबा सहगल रैप लेकर आए—वनिला आइस का आइस आइस बेबी 'ठंडा ठंडा पानी’ बन गया. चिनॉय और बिड्डू 'मेड इन इंडिया’ के साथ चार्टबस्टर में शीर्ष पर पहुंच गए तो लकी अली के 'ओ सनम’ गाने ने हर किसी को झूमने पर मजबूर कर दिया. भारत में अब एमटीवी और चैनल वी आ चुके थे. इसने दुनिया भर के पॉप संगीत के लिए जगह बनाई. 1996 में इंडीपॉप शैली में रिकॉर्ड वीडियो की संख्या महज 36 थी, जो 1999 में 600 के पार पहुंच गई; इस शैली ने संगीत बाजार के करीब छह फीसद हिस्से पर कब्जा कर लिया.

भांगड़ा के अगुआ  मलकीत सिंह पॉप का जलवा

शंकर महादेवन, शुभा मुद्गल और हरिहरन (कोलोनियल कजिन्स के लिए लेस्ली लुईस के साथ मिलकर) जैसे शास्त्रीय धुरंधरों के शामिल होने से इसका दायरा विस्तृत और समृद्ध हुआ. बात हिंग्लिश से आगे बढ़ने लगी थी—पंजाबी लोक-पॉप ने दलेर मेहंदी जैसे जोशीले कलाकार के लिए नए आयाम खोले.

नए विचारों की कमी पड़ी तो पुराने हिंदी फिल्मी गानों को रीमिक्स के तौर पर इस्तेमाल करने का चलन जोर पकड़ने लगा. आशा भोंसले, अनु मलिक और यहां तक अमिताभ बच्चन ने भी इसमें हाथ आजमाया, और बेहद गंभीर माने जाने वाले ए.आर. रहमान भी पीछे नहीं रहे.

फिल्म जगत ने पार्श्व गायन के लिए शान, अली, सिल्क रूट वाले मोहित चौहान, अदनान सामी, चिनॉय और श्वेता शेट्टी जैसे पॉप सितारों और अपने साउंडट्रैक में जान फूंकने के लिए राम संपत, रंजीत बारोट और सलीम-सुलेमान जैसे इंडीपॉप संगीतकारों को लुभाया. चूड़ामणि कहते हैं कि 2000 के दशक का मध्य आने तक संगीत चैनलों ने रियलिटी शो की ओर रुख किया.
लेकिन तड़कते-भड़कते संगीत का जिन्न बोतल से बाहर आ चुका था. यूट्यूब और स्पॉटीफाइ के जमाने में भारतीय गैर-फिल्मी संगीत फल-फूल रहा है.

इंडिया टुडे के पन्नों से
अंक: 30 अप्रैल,  1989
हिंदी पॉप संगीत: 
पुराने सफर की नई मंजिलें

बड़े-से वीडियो स्क्रींस पर उनका चहकता चेहरा उभरता है. लाइव ऑर्केस्ट्रा बजने लगता है. टीनेजर थिरकने लगते हैं. वे अपनी जानी-पहचानी अदा के साथ जूलरी उतारकर ऑडियंस की ओर उछालते हुए पूछती हैं: ''और चाहिए?’’ यह मैडिसन स्क्वायर गार्डन नहीं, रंग भवन है. पॉप स्टार मैडोना नहीं, अलीशा चिनॉय हैं. और गाने के बोल अंग्रेजी में नहीं, हिंदी में हैं...रिक्शा चालकों, गणपति जुलूस में नाचते युवाओं, घरेलू सहायकों, यहां तक बुजुर्ग जोड़ों और किशोरों ने समान रूप से हिंदी पॉप म्यूजिक का लुत्फ उठाया है. 
—सलिल त्रिपाठी


‘‘नए गायक अब प्लेबैक सिंगर की बजाए पॉप आर्टिस्ट बनना चाहते हैं. पॉप उन्हें एक व्यक्तिगत पहचान देता है जो कि पार्श्वगायन नहीं दे सकता.’’
—अलीशा चिनॉय

क्या आप जानते हैं?
1998 में मैग्नासाउंड ने दलेर मेहंदी को दो साल के अनुबंध के लिए 2.75 करोड़ रुपए का भुगतान किया, जो भारत में किसी गायक के लिए अब तक का सबसे बड़ा सौदा था.
नाजिया की आवाज करण जौहर की स्टुडेंट ऑफ द ईयर के लिए 'द डिस्को साँग’ में बतौर नमूना ली गई थी. आलिया भट्ट ने इसी फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा था.

‘‘पॉप सिंगर को फिल्म स्टार की तरह दिखना चाहिए. उसकी छवि और वीडियो में उसका लुक उसकी आवाज जितना ही जरूरी है.’’
— बिड्डू

‘‘अगर कोई हमसे नाराज हो सकता है, तो मुझे लगता है कि अपनी ऊर्जा खर्च करने के इससे बुरे तरीके भी हो सकते हैं. हम उन्हें सेहतमंद, जोशभरा संगीत देते हैं. हम उन्हें ड्रग या फ्री सेक्स से कहीं बेहतर कुछ देते हैं.’’
— शैरॉन प्रभाकर

● 1980 के दशक के मध्य तक, म्यूजिक मार्केट में बदलाव शुरू हुआ जब एचएमवी और पोलीडोर (म्यूजिक इंडिया) के दबदबे को टी सीरीज, मैग्नासाउंड, वीनस और सीबीएस रिकार्ड्स की एंट्री ने चुनौती दी
● 1990 के दशक में ऑडियो कैसेट्स का दौर था; अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कैसेट्स भारत में बिके 

●1991 में एमटीवी भारत आया. 1994 में चैनल वी की शुरुआत हुई, और 1996 में एमटीवी इंडिया लॉन्च हुआ. इंडीपॉप स्टार्स अलीशा चिनॉय, बाबा सहगल, लकी अली, और दलेर मेहंदी का दौर शुरू हुआ   

● बॉलीवुड भी इस ट्रेंड में शामिल हुआ. ए.आर. रहमान, सोनू निगम, और आशा भोंसले ने अपने नॉन-फिल्म एलबम्स रिलीज किए

● उभरते हुए म्यूजिशियंस जैसे राम संपत, सलीम-सुलेमान और राजू सिंह को बॉलीवुड ने अपनाया  

● म्यूजिक वीडियो में ऐड फिल्म जैसी बारीक एस्थेटिक आई. इन वीडियोज के डायरेक्टर (राकेश ओमप्रकाश मेहरा, केन घोष...) ने फिल्म डायरेक्शन की ओर रुख किया  

● पंजाबी भांगड़ा-पॉप ने ग्लोबल लेवल पर धूम मचा दी. दलेर मेहंदी से लेकर दिलजीत दोसांझ और ए.पी. ढिल्लों तक, यह स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर राज कर रहा है.

Advertisement
Advertisement