—अरुण पुरी
इंडिया टुडे (अंग्रेजी) इस साल 49 वर्ष लंबे और घटनाओं भरे सफर का जश्न मना रहा है. यह सफर देश के इतिहास के अहम मोड़ पर शुरू हुआ और आगे कई मील के पत्थरों से गुजरा. अपने विशेषांक के लिए हमने अपनी शुरुआत के वर्ष 1975 से आज 2024 में हम जहां हैं, वहां तक देशवासियों की जिंदगी पर दूरगामी असर डालने वाली घटनाओं पर नजर डालने का फैसला किया.
सारी घटनाएं खुशगवार नहीं रहीं—देश ने इमरजेंसी, हत्याकांड, प्राकृतिक आपदाएं, दंगे और आर्थिक दुश्वारियां झेलीं. मगर हमने अपने को ऐसी 50 घटनाओं तक सीमित रखा जिन्होंने हमें किसी न किसी रूप में प्रेरित किया. हम उन्हें निर्णायक पल कह रहे और 10 व्यापक श्रेणियों में रख रहे हैं—कारोबार, इन्फ्रास्ट्रक्चर, लोग और लोकाचार, प्रतिरक्षा और अंतरिक्ष, गवर्नेंस, पर्यावरण, स्वास्थ्य, खेल, मनोरंजन और कला, संस्कृति तथा जीवनशैली.
इस तरह श्रेणीबद्ध करने के बावजूद हो सकता है उनमें कुछ में कुछ भी समान न हो और अन्य में समानता के कुछ पहलू हों. कुछ फर्क डालने वाली शख्सियतों से जुड़ी हैं, तो अन्य सामूहिक काम, सरकारी नीति और कायापलट कर देने वाले ढांचागत बदलाव से. फिर भी इंडिया टुडे की टीम देश के समूचे अनुभव के प्रतिनिधि और प्रेरक पहलुओं को संजोने में सफल रही.
मसलन, कारोबार के क्षेत्र में जब कपड़ा उद्यमी धीरूभाई अंबानी ने 1977 में रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के लिए इनिशल पब्लिक ऑफरिंग (आइपीओ) के साथ पूंजी बाजार में कदम रखा, भारतीय कंपनियों की तरफ से उगाही जाने वाली औसत सालाना धनराशि 58 करोड़ रुपए थी. देश के मध्यवर्ग से निवेश आकर्षित करने की अपनी सूझ-बूझ की बदौलत धीरूभाई ने सालाना औसतन 100 करोड़ रुपए उगाहे.
1985 तक उनके शेयरधारक दस लाख हो गए. उन्होंने देश में शेयरपूंजी की संस्कृति को जन्म दिया, जिसकी बदौलत 2023 तक देश में 9.5 करोड़ से ज्यादा शेयरधारक थे, जिन्होंने पिछले साल ही आईपीओ में 49,434 करोड़ रुपए निवेश किए. व्यक्तिगत मेधा के अलावा, सरकार की एक नीति तमाम निर्णायक मोड़ों में भी सिरमौर साबित हुई—1991 में लाइसेंस राज का खात्मा.
उसे तब प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव और उनके काबिल वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अंजाम दिया, और उसने देश को विश्वस्तरीय आईटी सॉफ्टवेयर उद्योग से लेकर हमें दुनिया की फार्मेसी बना देने वाले जेनेरिक दवाओं के वर्चस्व तक कई सारे क्षेत्रों में पराक्रम दिखाने का मौका दिया.
डेढ़ दशक के भीतर देश की जीडीपी 3 फीसद सालाना की कुख्यात 'हिंदू वृद्धि दर' से 2006 में अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 9.6 फीसद पर पहुंच गई. तब तक हम चीन के बाद दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थे. 1991 में महज 266 अरब डॉलर से 2024 में 38.9 खरब डॉलर की जीडीपी के साथ हम छलांग लगाकर तमाम देशों में पांचवें पायदान पर पहुंच गए.
भारत की तेजी से बढ़ती आर्थिक उपलब्धियां उसके बुनियादी ढांचे के परिदृश्य की निर्णायक मोड़ थीं. देश में पहली आम लोगों की कार मारुति 800 आई 1983 में, और उसी के साथ देशव्यापी एंबेसडर और फिएट जल्द बीते जमाने की निशानियां बन गईं. उसके बाद आए ऑटो बूम की बदौलत देश बड़े वैश्विक वाहन निर्माता देश के रूप में उभरा और बिक्री के लिहाज से दुनिया में तीसरे पायदान पर आ गया.
एक और गेमचेंजर स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शक्ल में आया, जिसे अटल बिहारी वाजपेयी ने गलियारों का नजरिया अपनाते हुए 1999 में लॉन्च किया और जिसमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नै को जोड़ने वाले राजमार्गों की माला की परिकल्पना की गई. स्वर्णिम चतुर्भुज ने आधुनिक भारत की सबसे बड़ी सड़क बुनियादी ढांचा पहल की नींव रखी.
जुलाई 2024 तक देश में राष्ट्रीय राजमार्ग 1.46 लाख किमी लंबाई में बिछे थे, जिनमें 60 फीसद 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बागडोर संभालने और नितिन गडकरी को केंद्रीय परिवहन मंत्री बनाने के बाद पिछले दशक में बने. इस बीच 2002 में दिल्ली मेट्रो के चालू होने के साथ ई. श्रीधरन ने हैरतअंगेज कार्य नीति और अभूतपूर्व गति और सटीकता के साथ शहरी आवागमन का चेहरा बदल दिया.
आज देश के 21 शहरों में मेट्रो रेल है. ऐसी ही क्रांति टेलीकॉम उद्योग में हुई. आपको यह जानकर शायद हैरानी हो कि 1980 के दशक तक हम बड़े काले रोटरी फोन का इस्तेमाल कर रहे थे. यह 1992 में टेलीकॉम क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने और 1995 में सेल्युलर मोबाइल फोन सेवा शुरू होने के साथ बदला. उससे वह हुआ, जिसे हमने 1998 की आवरण कथा में 'शहरों में उभरती नई बिरादरी' कहा था. तकरीबन 1.2 अरब ग्राहकों के साथ देश का टेलीकॉम नेटवर्क आज न केवल दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा, बल्कि कॉल शुल्क के मामले में सबसे सस्ते नेटवर्कों में भी है.
देश की राजनीति और समाज में इस बीच दूसरी तरह का मंथन चल रहा था. 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने का वी.पी. सिंह का फैसला न सिर्फ सकारात्मक कार्रवाई के प्रति देश की प्रतिबद्धता का नया अध्याय था, बल्कि उसने राजनैतिक सत्ता के ढांचे को उलटकर बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव सरीखे पिछड़े वर्ग के नेताओं को अगली कतार में स्थापित कर दिया.
बदलाव देश के राजकाज में भी आ रहा था. 1980 के दशक के मध्य में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ठेठ जमीनी स्तर के लोकतंत्र पर गहन पुनर्विचार किया, जिसकी वजह से 1992 में नरसिंह राव की हुकूमत के दौरान पंचायती राज संशोधन करके तालुका स्तर पर नेतृत्व के तीसरे पायदान को ताकतवर बनाया गया. सूचना का अधिकार अधिनियम, आधार पहचान कार्ड और बैंक खातों से वंचित 53.1 करोड़ लोगों को बैंकों से जोड़ने वाली जन धन योजना पारदर्शिता, वित्तीय समावेशन और जनकल्याण कार्यक्रमों को सुगम बनाने वाले साधनों के रूप में उभरे.
2017 में माल और सेवा कर (जीएसटी) ने करों की अफरातफरी को खत्म कर दिया. देश की अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे और राजकाज में तरक्की की छलांगों के अनुरूप ही रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र ने भी लंबे डग भरे. 1989 में अग्नि-1 बैलिस्टिक मिसाइल दागने और 2016 में आईएनएस अरिहंत के साथ हम अमेरिका, रूस और चीन के बाद परमाणु त्रयी क्षमता वाले चौथे देश बन गए. जब हमने 2008 में चंद्रयान-1 चांद पर भेजा, तो अंतरिक्ष की खोज करने वाले संजीदा देश के रूप में हमारी साख मजबूती से स्थापित हो गई.
इसी के साथ जमीनी उथल-पुथल मचाने वाले निर्णायक मोड़ देश की सामाजिक चेतना में जबरदस्त बदलाव ला रहे थे. यौन उत्पीड़न का दंश झेलती देश की महिलाओं को कुछ बमुश्किल हासिल विधायी राहत मिली. उनमें 1997 की विशाखा गाइडलाइंस थीं, जो कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा का फरमान थीं, और आपराधिक कानून में 2013 के सख्त संशोधन भी, जो राष्ट्रीय राजधानी में चलती बस में युवा फिजियोथेरैपी इंटर्न निर्भया के साथ हुए बर्बर सामूहिक बलात्कार के बाद लाए गए.
कानून देश के समलैंगिक समुदाय के बचाव में भी आगे आया, जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. साथ ही, साइलेंट वैली को बचाने और चिपको सरीखे आंदोलनों की बदौलत पर्यावरण को लेकर भी चेतना और जागरूकता बढ़ी. 2014 में नरेंद्र मोदी ने देश को खुले में शौच की बदनामी से मुक्ति दिलाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया. और हैजा तथा टाइफाइड सरीखी बीमारियों से होने वाली घातक शिशु मृत्यु दर को कम करने में हमारी मदद की.
बेशक, देश का आत्मविश्वास किसी और चीज से उतना मजबूत नहीं होता जितना खेल की कामयाबियों से. लिहाजा, 1983 में क्रिकेट विश्व कप की जीत और बाद में आईपीएल की आभा ने क्रिकेट को देश का मुख्य खेल बना दिया. बीते 49 साल ने हमें ऐसे महान खिलाड़ी भी दिए, जिन्होंने पीढ़ियों को प्रेरित किया. सुनील गावस्कर रनों के विशाल अंबार के साथ सचिन तेंडुलकर के रोल मॉडल बने.
विश्वनाथन आनंद ने अपनी ग्रैंडमास्टरी और मेंटोरशिप से शतरंज की दुनिया में उस दौर का सूत्रपात किया जिसे गैरी कास्पोरोव ने 'विशी की संततियों का युग' कहा. उनमें से एक गुकेश डोमाराजू देश का नवीनतम और अब तक का युवतम विश्व चैंपियन है. देश के पहले एकल स्वर्ण पदक के साथ ओलंपिक ख्याति पाने वाले अभिनव बिंद्रा ने नीरज चोपड़ा को भालाफेंक में वही फतह करने को उकसाया.
मनोरंजन के क्षेत्र में तो बेहतरीन निर्णायक मोड़ उसी साल आया जब इंडिया टुडे शुरू हुआ था—शोले, 1975. वह ऐतिहासिक ब्लॉकबस्टर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के मानदंडों को बदलकर सिनेमाई इतिहास के आख्यानों में दाखिल हुई. अस्सी का दशक हम लोग का था, जब रंगीन टीवी और टेलीसीरियल दोनों हमारे ड्रॉइंग रूम में आ गए. बाहर दुनिया इंडीपॉप की धुनों और देसी डिस्को नाम की परिघटना पर झूम उठी.
हमारे दूसरे सांस्कृतिक निर्यातों में धर्मगुरु थे, जो ओरेगन में रजनीश (ओशो) के साथ शुरू हुआ, जिन्होंने पश्चिमी दिमागों को अपने असर में लिया. सुष्मिता सेन और ऐश्वर्य राय ने अपने अंदाज में दुनिया फतह की, तो भारतीय कला ने ज्यादा महंगे अंदाज में.
इंडिया टुडे इन सब घटनाओं के दौरान मौजूद था. कारणों के साथ प्रभावों को दर्ज करते हुए. शब्दों में और तस्वीरों में. अपने फोटो अभिलेखागार में गोता लगाकर हम आपके लिए कुछ अनोखे विजुअल फ्लैशबैक लाए हैं. फौलादी महिलाएं इंदिरा गांधी और मार्गरेट थैचर 1982 के भारत महोत्सव आयोजन में. आईटी क्रांति के आगाज पर बातचीत करते एन.आर. नारायणमूर्ति और इन्फोसिस के दूसरे संस्थापक अपने शुरुआती साल में.
'गुड टाइम्स' का वादा और पब कल्चर का सूत्रपात करते विजय माल्या; घोड़े पर घोड़े की तस्वीर उकेरते और समकालीन भारतीय कला की ओर दुनिया का ध्यान खींचते चटकीले-भड़कीले एम.एफ. हुसेन; अपनी बुकर पुरस्कार विजेता मिडनाइट्स चिल्ड्रन थामे और अंग्रेजी में भारतीय लेखन के आगमन का ऐलान करते युवा सलमान रुश्दी. ठीक घटित होते वक्त भारतीय यथार्थ को दर्ज करती आधी सदी. यह विशेषांक उन वर्षों का मोंताज है. खुशगवार तरीके से इंडिया टुडे के गरजते-दहाड़ते चालीसे का समापन!
— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)