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स्वच्छ भारत अभियान : जब गांधी के सपनों को सरकार ने ढाला अपनी नीतियों में

सामूहिक शर्म से लेकर राष्ट्रीय गौरव तक, खुले में शौच का चलन खत्म करने के देश के सफर में मजबूत सियासी इच्छाशक्ति और नेतृत्व के साथ-साथ समुदाय, कॉर्पोरेट और सेलेब्रिटी के मिलकर काम करने की दास्तान शामिल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 फरवरी, 2019 को कुरुक्षेत्र में स्वच्छ सुंदर शौचालय प्रदर्शनी में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 फरवरी, 2019 को कुरुक्षेत्र में स्वच्छ सुंदर शौचालय प्रदर्शनी में
अपडेटेड 13 जनवरी , 2025

टायफाइड, हैजा, पोलियो, हेपेटाइटिस...भारत लंबे अरसे से साफ-सफाई की खराब हालत की वजह से मल के जरिए और मुंह के रास्ते फैलने वाली कई बीमारियों से जूझ रहा था. इनका सबसे ज्यादा खामियाजा पांच साल से कम उम्र के बच्चे भुगतते हैं. भारत की शिशु मृत्युदर (आइएमआर) 2014 में प्रति 1,000 जीवित जन्म पर 38 थी और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर (यू5एमआर) 2014 में 45 थी. आज, आइएमआर घटकर 28 हो गई है, वहीं 2020 में यू5एमआर 32 थी.

नेचर जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन, जिसमें वर्ष 2011 से 2020 के बीच 35 भारतीय राज्यों और 640 जिलों के डेटा का विश्लेषण किया गया, इसका श्रेय एक कारक को देता है: स्वच्छ भारत मिशन. इस अध्ययन के मुताबिक, 2014 में प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी की ओर से घोषित इस परियोजना के तहत बने 10 करोड़ से ज्यादा शौचालयों ने करीब 60,000-70,000 बच्चों की मौत को रोकने में मदद की. इससे पहले भी स्वच्छता मिशन चलाए गए थे—1954 में केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, 1999 में संपूर्ण स्वच्छता अभियान और 2012 में निर्मल भारत अभियान.

उनमें से कोई भी स्वच्छ भारत की तरह लोगों को उत्साहित नहीं कर सका था. इसकी सफलता के पीछे खुद प्रधानमंत्री की मजबूत सियासी इच्छाशक्ति और नेतृत्व छिपा है, जिन्होंने इसे एक तरह से निजी मिशन बना दिया. इस कार्यक्रम को एक बड़ा महत्वाकांक्षी लक्ष्य दिया गया था: खुले में शौच को खत्म करना, गंदे शौचालयों में सुधार, मैला ढोने की प्रथा को खत्म करना, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना और स्वच्छता और सफाई के प्रति नजरिया बदलना. इसे प्रोत्साहन के साथ समर्थन दिया गया—ग्रामीण परिवारों के लिए व्यक्तिगत घरेलू शौचालय बनाने के लिए 10,000 रुपए, जिसे बाद में बढ़ाकर 12,000 रुपए कर दिया गया. 

केंद्र ने भी इसके लिए खजाना खोल दिया. 2014-2022 तक एसबीएम ग्रामीण पर 83,937 करोड़ रुपए और 2021 तक एसबीएम शहरी के लिए 13,329 करोड़ रुपए आवंटित किए. नतीजे हासिल करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया और कॉर्पोरेट्स को इसे अपनी सीएसआर पहल का हिस्सा बनाने के लिए इसमें शामिल किया गया. शौचालयों को सुलभ बनाने के साथ-साथ एसबीएम की चुनौती लोगों को उनका इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना भी था. अमिताभ बच्चन, सचिन तेंडुलकर और अन्य सेलेब्रिटी तथा प्रभावशाली लोगों को समझाने-बुझाने के उनके हुनर का इस्तेमाल करने के लिए जोड़ा गया.

आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के मुताबिक, स्वच्छ भारत के पहले चरण के अंत में ज्यादातर राज्यों ने 100 फीसद खुले में शौच-मुक्त (ओडीएफ) का दर्जा हासिल कर लिया था. ओडीएफ गांवों में भूजल दूषण का जोखिम 12.7 गुना कम हुआ; 78 फीसद कचरा संसाधित किया गया. शौचालय सुविधाओं की सुलभता में भी सुधार हुआ. 2004-05 में 45 फीसद से बढ़कर 2019-21 में 82.5 फीसद परिवारों ने शौचालय सुविधाओं के सुलभ होने की बात कही है.

क्या आप जानते हैं?

30 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारी, स्कूल और कॉलेज के 12 लाख छात्र, 6,25,000 स्वयंसेवक, 2,50,000 पंचायत नेता, लाखों आम लोग और 50 सेलेब्रिटी इस अभियान में शामिल हैं

इंडिया टुडे के पन्नों से

15 अक्टूबर, 2014
आवरण कथा: हम ऐसे क्यों हैं?

पाइप से पानी और नल वाले शौचालयों के आदी लोग भारत में स्वच्छता की कमी पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं. मध्यम वर्ग के भारतीयों को हैरानी होती है कि देश के बाकी हिस्से में इतनी गंदगी क्यों है.

फिर होटलों, मॉल और कार्यस्थलों में शौचालयों की देखभाल के लिए सफाई कर्मचारी क्यों रखने पड़ते हैं. सार्वजनिक स्वच्छता के प्रति उपेक्षा सिर्फ एक वर्ग तक सीमित नहीं; यह वह अंधेरा है जिसमें हम सभी रहते हैं.—अमूल्या गोपालकृष्णन

82.5% परिवारों ने 2019-21 में शौचालय की सुविधा सुलभ होने की सूचना दी, जो 2004-05 के 45 फीसद से करीब दोगुनी

सफाई क्रांति

ओडीएफ गांवों में परिवारों ने सालाना लगभग 50,000 रुपए की स्वास्थ्य संबंधी बचत की जानकारी दी

महिलाओं ने राजमिस्त्री के रूप में प्रशिक्षण लेने के बाद 'रानी मिस्त्री' के रूप में रोजगार पाया है, जो अपने समुदायों में शौचालय बना सकती हैं

महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाओं में कमी आई है क्योंकि अब उन्हें खुले में शौच करने के लिए अंधेरा होने तक इंतजार नहीं करना पड़ता

शौचालय नहीं तो दुलहन नहीं. महिलाएं दूल्हे से तब तक शादी नहीं करतीं जब तक कि वे घर में शौचालय नहीं बनवा देते

''स्वच्छता का मिशन एक दिन का नहीं है, यह जीवन भर चलने वाली परंपरा है. हमें इसे पीढ़ियों तक आगे बढ़ाना है.''
—नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधानमंत्री

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