
दरअसल, 1991 में चेन्नै के माउंट रोड पर शुरू हुआ स्पेंसर प्लाजा भारत का पहला शॉपिंग मॉल था. 19वीं सदी के उतरार्ध में भारत-मुगल-ब्रिटिश वास्तुशिल्प का प्रतीक 10 एकड़ का यह स्थल शुरुआत में पहले खुद एक डिपार्टमेंटल स्टोर हुआ करता था जिसमें करीब 80 दुकानें थीं.
मगर 1983 में लगी भीषण आग में यह खाक हो गया था. खुलने के साथ ही यह चेन्नै के लोगों के बीच तुरंत हिट हो गया क्योंकि वहां सुस्ती और गर्मी से बचाव के लिए चमक-धमक भरी दुकानें थीं. उस समय सेंट्रल एयरकंडिशनिंग नई बात थी. यह देश का पहला महंगा मॉल था.
उसके बाद कंक्रीट और शीशे, तापमान नियंत्रित बदलाव ने भारतीय रीटेल शॉपिंग को बदल दिया जो अब देश के महानगरों और मझोले शहरों में पहुंच गई है.
मॉल ने भारत के मध्य वर्ग की खरीद के तौर-तरीकों में क्रांति ला दी है. भीड़ भरे बाजारों, जैसे दिल्ली में चांदनी चौक या मुंबई में हीरा पन्ना के मुकाबले इन मॉल में साफ-सुथरे तल्ले वाले स्टोर, वातानुकूलित परिसर, आसानी से आने-जाने के लिए एस्केलेटर और लिफ्ट थीं. और भारतीयों, कम से कम एक निश्चित वर्ग ने, इस बदलाव को तुरंत गले लगा लिया. शॉपिंग के अलावा इन मॉल ने फूड कोर्ट, सिनेमा और अन्य मनोरंजन गतिविधियों को भी पेश करना शुरू कर दिया जिससे वे परिवारों, खास तौर पर सप्ताहांत में, वाकई जरूरी जगह बन गए.

आधुनिकता के लिहाज से स्पेंसर प्लाजा एक मॉल नहीं था—जैसे इसमें कोई सिनेमाघर नहीं था—लेकिन उसने भारत में मॉल संस्कृति को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाया. उसकी देखा-देखी मुंबई में क्रॉसरोड्स और दिल्ली में अंसल प्लाजा ('उत्तर भारत का पहला मॉल’) जैसे आइकॉनिक मॉल बने जो शहरों में लोगों के लिए तफरीह की लोकप्रिय जगह बन गए. नतीजतन यह तरक्की महानगरों से परे देश भर के तीसरी श्रेणी के शहरों में भी पहुंच गई. तथ्य यह है कि देश में साल 2001 में सिर्फ तीन मॉल थे, आज इनकी संख्या 600 से ज्यादा है (शॉपिंग सेंटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पंजीकरण के अनुसार).
भारत में मध्य से लेकर उच्च वर्ग की बढ़ती आबादी और उनके शॉपिंग आकर्षण को देखते हुए यह संख्या अभी भी अपेक्षाकृत कम है. असल में, तेज गति से बढ़ोतरी के कारण कुछ तो 'मृत मॉल’ में तब्दील हो गए (2024 की नाइट फ्रैंक इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि साठेक मॉल 40 फीसद से कम भरे हुए हैं और वे 'मृत’ हैं).
विशेषज्ञ इसके लिए 'बनाओ और बेचो’ मॉडल को जिम्मेदार बताते हैं जिसमें दुकानें व्यक्तिगत निवेशकों को बेची गईं, जिन्होंने बाद में ब्रान्डों को लीज पर दे दिया. इसके विपरीत, 'बनाओ और लीज पर दो’ के वैश्विक मॉडल में एक ही इकाई पूरे माल का प्रबंध करती और उसे लीज पर देती है. इस मामले में मॉल का प्रबंधन यह पक्का करता है कि रीटेल मिक्स से उपभोक्ताओं को बेहतर अनुभव मिले.
इससे पहले के मॉलों—जैसे अंसल प्लाजा, क्रॉसरोड्स और स्पेंसर प्लाजा—का आकर्षण योजना के अभाव के कारण खत्म हो गया. मगर 2000 के दशक के बाद से बनाओ और लीज पर दो मॉडल में हुई बढ़ोतरी ने अच्छे से प्रबंधित विकास के नए दौर की शुरुआत की. मॉल की सफलता आज 'शॉपरटेनमेंट’ डेस्टिनेशन पर निर्भर करती है जहां हर किसी के लिए कुछ न कुछ पेशकश की जाती है. वे जहां समुदाय स्थल, बच्चों के लिए बंजी जंपिंग और इलेक्ट्रिक कार राइड जैसी गतिविधियों की पेशकश करते हैं तो वहीं वयस्कों के लिए आइस स्केटिंग, गो कार्टिंग और बॉलिंग जैसे आकर्षण होते हैं.
नयापन और बदलाव ही खेल का नाम है क्योंकि बदलते भारतीय खरीदारों की दिलचस्पी बनाए रखना इतना आसान काम नहीं है.
इंडिया टुडे के पन्नों से
अंक: 11 मई, 2008
कारोबार: मॉल से उभरते नए उद्यमी
औसतन 1 लाख वर्ग फुट के मॉल के लिए 15-20 ऐसे वेंडरों की जरूरत होती है. वास्तुशिल्प और डिजाइन के अलावा सुरक्षा, एयर-कंडिशनिंग, प्लंबिंग, स्वच्छता सेवाएं, नर्सरी, ग्रूमिंग स्कूल, फूड कोर्ट, पार्किंग प्रबंधन, डेकोरेशन जैसे कई अवसर होते हैं. आज इन पुराने कारोबारों को अपनी वृद्धि के लिए—मॉल बूम का—नया आधार मिल गया है
भारत में करीब 100 मॉल चल रहे हैं जो 1.9 करोड़ वर्ग फुट क्षेत्र में फैले हुए हैं. सीआइआइ—एटी कियर्नी रिपोर्ट का अनुमान है कि 2010 तक देश में 300 मॉल और बन जाएंगे
एटी कियर्नी का अनुमान है कि भारत में संगठित रीटेल, जिसका आकार अभी के 50,000 करोड़ रु. से बढ़कर 2011 तक 2,20,000 करोड़ रु. होने की उम्मीद है, विभिन्न सहायक सेवाओं पर करीब 4,400 करोड़ रु.—करीब 2 फीसद—खर्च कर सकता है.—नंदिनी वैश
260 से ज्यादा मॉल हैं आज भारत के शीर्ष आठ शहरों में, जो 12.5 करोड़ वर्ग फुट में फैले हैं. नाइट फ्रैंक (इंडिया) का आकलन
रोज एक सेल
● मॉल ने यह बदलाव किया कि भारतीय कैसे खरीदारी करें, उन्हें सुविधाजनक, वातानुकूलित माहौल की पेशकश की और देश में संगठित रीटेल को रफ्तार दी
● समय के साथ मॉल शॉपिंग सेंटर से आगे बढ़कर फुरसत के केंद्रों के रूप में विकसित हो गए, जहां हर आय स्तर का व्यक्ति अपनी शामें और छुट्टियां बिताता है, खाने का, फिल्म का आनंद लेता है, बच्चों के लिए गेम जोन होते हैं और ये सब एक ही जगह पर
● ये अंतरराष्ट्रीय ब्रान्डों को भारतीय उपभोक्ताओं के करीब लाए
● कम विकसित इलाके में किसी मॉल की मौजूदगी ने आसपास के क्षेत्र को प्राइम लोकेशन में बदल दिया
● उसने मिक्सड यूज डेवलपमेंट को बढ़ावा दिया जिसमें ऑफिस, निवास, शॉपिंग क्षेत्र और फूड तथा बेवरेजेज के लिए जगह होती है
क्या आप जानते हैं?
सिर्फ घूमने आने वालों को रोकने के लिए मुंबई में क्रॉसरोड्स मॉल ने शुरू में उन्हीं लोगों को प्रवेश दिया जिनके पास क्रेडिट कार्ड या मोबाइल फोन होते थे. अन्य पर 60 रु. प्रवेश शुल्क था>