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इंदिरा ने 'भारत महोत्सव' के लिए लंदन ही क्यों चुना? कैसे इसके जरिए दुनिया में 'सॉफ्ट पावर’ बना भारत

इमरजेंसी के बाद सत्ता में आते ही इंदिरा गांधी ने लंदन में भारत महोत्सव कराने का फैसला लिया. 1980 में होने वाले इस कार्यक्रम ने दुनिया में न केवल हमारी कला को नई पहचान दी बल्कि हमारे घरेलू उत्पादों को नए ब्रांड के तौर पर पेश किया

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नटराज ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को  1982 में लंदन में नटराज की मूर्ति दिखातीं इंदिरा गांधी
अपडेटेड 17 जनवरी , 2025

इसकी शुरुआत इंदिरा गांधी ने संभवत: आपातकाल के कारण बनी अपनी नकारात्मक छवि को सुधारने की कोशिश के तहत की थी. 1980 में जब 'श्रीमती गांधी’ की सत्ता में वापसी हुई तो उन्हें आर्ट्स काउंसिल ऑफ ग्रेट ब्रिटेन की ओर से पूर्ववर्ती जनता सरकार के समक्ष रखा गया प्रस्ताव विरासत में मिला.

उसमें ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर भारत-केंद्रित सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने की पेशकश की गई थी. आर्ट्स काउंसिल का यह प्रस्ताव संभवत: 1976 में आयोजित 'वर्ल्ड ऑफ इस्लाम’ उत्सव या 1981 में प्रस्तावित 'ग्रेट जापान एग्जिबिशन’ की योजनाओं से प्रेरित था. या इसकी वजह उन ख्यात भारतीय कला प्रदर्शनियों की यादें भी हो सकती हैं.

जो 1947 में लंदन के बर्लिंगटन हाउस में आयोजित हुई थीं और उसके बाद भारत लौटी कलाकृतियां राष्ट्रीय संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही थीं.

मगर ब्रिटेन के प्रस्ताव को जनता सरकार ने कोई खास तवज्जो नहीं दी और शायद गठबंधन सरकार की अनिश्चितता के कारण उसे आधिकारिक तौर पर अस्वीकार भी नहीं किया गया. चाहे जो कारण हो, इंदिरा गांधी ने देश और अपनी खराब छवि को सुधारने के लिए 'सॉफ्ट पावर’ के तौर पर इसके इस्तेमाल की संभावनाओं को भांप लिया था.

उत्सव का आगाज मार्च 1982 में लंदन में हुआ. इसके तहत भारत के प्रमुख कलाकारों ने कई प्रस्तुतियां दीं और 19 प्रदर्शनियां लगाई गईं. उनमें 'इन द इमेज ऑफ मैन’ (मूर्तिकला के जरिए मानव जाति के 2000 वर्षों के चित्रण) ग्रामीण जीवन दर्शाने वाली कलाकृतियों से लेकर समकालीन कला पर एक शो तक था.

इसमें कुछ प्रमुख भारतीय आधुनिकतावादियों की 133 कृतियां प्रदर्शित की गई थीं. इंदिरा गांधी उत्सव का उद्घाटन करने के लिए ब्रिटेन की राजधानी पहुंचीं और महारानी तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के साथ दोपहर का भोजन किया. भव्य आयोजन स्थल पर छिटपुट विरोधों खासकर खालिस्तान समर्थकों और आलोचकों की ओर से उत्पन्न की गई छोटी-मोटी बाधाओं से इसकी लोकप्रियता या अहमियत पर कोई आंच न आई.

बाद के संस्करण और बड़े पैमाने पर आयोजित हुए, खासकर 1985 में अमेरिका में आयोजित उत्सव नए प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के अभियान का आधार भी बना. महोत्सव का मुख्य आकर्षण पीटर ब्रुक के नाटक महाभारत का मंचन था, जो भारत महोत्सव की शैली और आभा का प्रतीक बन गया.

उस महोत्सव को पारंपरिक भारतीय सौंदर्यशास्त्र, लोककला, शास्त्रीय और समकालीन की नए सिरे से ब्रांडिंग और उसे वैश्विक दर्शकों के लिए परोसने की मार्केटिंग का परिचायक माना जा सकता है. उसने घरेलू बाजार में भारतीय हस्तशिल्प को एक महानगरीय-आधुनिकतावादी चमक प्रदान की, जिससे मौजूदा और अभी तक सामने नहीं आए जीवनशैली उत्पादों और ब्रान्डों की पूरी शृंखला के लिए आकर्षण बढ़ा.

—काइ फ्रीज़

इंडिया टुडे के पन्नों से 

एक सभ्यता की झांकी

अंक (अंग्रेजी): 15 अप्रैल, 1982
खास रपट: एक सभ्यता की झांकी
धरोहर
साल 1982 के भारत महोत्सव की याद में जारी किए गए एम.एफ. हुसेन, एस.एच. रजा के आर्ट के डाक टिकट
‘‘महोत्सव का मकसद कुछ ठोस और स्थायी बनाना है, वाणिज्य की भावना को मजबूत करना है.’’—राजीव सेठी, क्यूरेटर (1985)

अंदर माहौल पूरी तरह से अलग दुनिया का आभास दे रहा था. मशहूर हस्तियां...एम.एस. सुब्बलक्ष्मी को सुनने के लिए जुटी थीं...विविधतापूर्ण भारतीय-ब्रिटिश भीड़, दर्शक भले ही उनके संगीत को ज्यादा न समझ पाए हों, मगर प्रशंसा करने को अत्याधिक उत्सुक थे.
—बॉनी मुखर्जी और सुनील सेठी

क्या आप जानते हैं?
साल 1982 में आयोजित भारत महोत्सव के तहत लंदन के डिपार्टमेंटल स्टोर सेल्फ्रिज में वाणिज्यिक उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई थी. उनमें 'जयपुर के महाराजा के संग्रह की वस्तुएं’, जड़ी-बूटियों से तैयार शहनाज हुसैन के सौंदर्य उत्पाद, जोडिएक शर्ट और नलिनी साड़ियां शामिल थीं.

एथनिक स्टाइल को बढ़ावा
● इस कार्यक्रम ने भारत के ब्रान्ड को नए सिरे से स्थापित किया, जिसमें भारत महोत्सव लोगो के साथ कारोबार के लिए लाए उत्पादों की एक शृंखला शामिल थी. बाद के संस्करणों में नए डिजाइन वाले लोगो शामिल किए गए

● घरेलू बाजार में इस सौंदर्यबोध ने फैबइंडिया और अनोखी सरीखे ब्रान्डों के माध्यम से 'एथनिक स्टाइल’ को बढ़ावा दिया

● शेखावाटी की हवेलियों से लेकर 'पैलेस ऑन व्हील्स’ और अन्य रोमांचक एवं नए पर्यटन स्थलों तक भारतीय 'विरासत पर्यटन’ का उदय भी कुछ हद तक भारत महोत्सव की सफलता का ही नतीजा है

‘‘मेरा हमेशा से मानना रहा है कि भारत को अगर खुद को प्रोजेक्ट करना है तो उसे बड़े स्तर पर करना होगा या फिर बिल्कुल नहीं. और यह हमेशा पैसे का सवाल नहीं है.’’
—पुपुल जयकर, निदेशक, भारत महोत्सव (1982)

नटराज
ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को  1982 में लंदन में नटराज की मूर्ति दिखातीं इंदिरा गांधी
 

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