scorecardresearch

क्या 2026 तक जड़ से खत्म हो पाएगा माओवादी आंदोलन?

बस्तर में सुरक्षा बलों की भारी मौजूदगी, तकनीक का साथ और सरकार की तरफ से अभियान चलाने की पूरी आजादी के बूते 2024 में माओवादियों के खिलाफ लड़ाई भारी सफलता के साथ आगे बढ़ी. लेकिन क्या ये गृह मंत्रालय की डेडलाइन मार्च, 2026 तक खत्म हो पाएगी

कांकेर के जंगल में 1 दिसंबर को छत्तीसगढ़ पुलिस के जवान गश्त लगाते हुए
कांकेर के जंगल में 1 दिसंबर को छत्तीसगढ़ पुलिस के जवान गश्त लगाते हुए
अपडेटेड 6 जनवरी , 2025

दक्षिण छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग का दंतेवाड़ा. आकाश से झांकते बादलों से घिरी अलसाई दोपहर. अचानक पुलिस लाइंस तेज हलचल से गुलजार हो उठती है. यहीं जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) का ठिकाना है. स्थानीय कमांडर जवानों से कहते हैं कि ब्रीफिंग के लिए तैयार हो जाओ.

जवानों में लड़के और लड़कियां दोनों हैं. माओवाद के खिलाफ लड़ाई में कामयाबी की वजह से उनकी टुकड़ी को 'हरावल दस्ता' कहा जाने लगा है. कंधों पर लटकाए जाने वाले बैगों में फटाफट खाने-पीने की तैयार चीजें, फर्स्ट एड किट और दो-चार कपड़े भरे जाते हैं. गोला-बारूद लिया जाता है. और बस, ब्रीफिंग का वक्त हो जाता है.

छत्तीस घंटे पहले दूर-दराज के इलाकों में फोन कॉल की निगरानी करने वाली एक एजेंसी ने दक्षिण बस्तर में जंगलों से घिरी पहाड़ी से किए गए एक फोन कॉल का पता लगाया. यह ऐसी जगह तो थी नहीं जहां से कोई आम नागरिक कॉल करे. सूचना बस्तर के शीर्ष पुलिस अफसरों को दी गई. कॉल का विश्लेषण और जमीनी खुफिया जानकारियों तथा यूएवी (मानवरहित हवाई वाहन) के दृश्यों से मिलान करने पर पता चला कि इलाके में माओवादी कैंप हो सकता है.

डीआरजी के कमांडर बताते हैं कि यह जगह करीब 100 किमी दूर है और आखिरी 20 किमी जंगल में रात के अंधेरे में पैदल पार करने होंगे. हमलावर दल में दूसरे संगठन भी थे—छत्तीसगढ़ पुलिस का स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) और सीआरपीएफ. सभी को जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने इस कार्रवाई के लिए बुलाया था. जवान एसयूवी और मोटरसाइकिलों पर सवार होते हैं. अभियान शुरू हो गया.

बस्तर संभाग में सुरक्षा बलों के लिए इस साल के 11 महीने 'व्यस्त' रहे. दिसंबर 2023 और नवंबर, 2024 के बीच कुल 207 माओवादी मारे गए (यह अभूतपूर्व संख्या है, खासकर जब साल 2023 में महज 20 मारे गए थे). सुरक्षाबल वामपंथी उग्रवाद के साथ दशकों पुरानी जंग को खत्म करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) की तरफ से तय अंतिम समय सीमा—मार्च 2026—को ध्यान में रखकर काम करते प्रतीत होते हैं.

इस अवधि में 13 बड़ी कार्रवाइयां हुईं, जिनमें से एक में (4 अक्तूबर को) नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिलों की सीमा से सटे जंगलों में गोलीबारी के दौरान 31 कथित माओवादी मारे गए. ये छत्तीसगढ़ में उग्रवाद के इतिहास में किसी एक कार्रवाई में मारे गए सबसे ज्यादा लोग थे (सुरक्षा बलों ने अपने प्रयासों के लिए इनाम के तौर पर 8.24 करोड़ रुपए की धनराशि हासिल की, सो अलग).

यहां से शुरू हुई राह

इस 'जंग' में टेक्नोलॉजी का प्रयोग सबसे बड़ा गेमचेंजर रहा. खासकर खुफिया जानकारी जुटाने के लिए फोन कॉल की निगरानी, ड्रोन और यूएवी. संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा शिविर हालांकि माओवाद विरोधी रणनीति का मुख्य आधार बने हुए हैं. वे कार्रवाई के लिए लॉन्चपैड का काम करते हैं. शिविर लोगों से मेलजोल के ठिकाने भी हैं, जहां स्थानीय लोगों को चिकित्सा सुविधाएं और दूसरी मदद मुहैया की जाती हैं.

सबसे अहम यह कि शिविर और उस तक जाने वाली सड़क, शायद यही वजह है कि वे सड़कें बनाने का विरोध करते हैं. बस्तर में अब 160 के करीब सुरक्षा शिविर हैं. 30 तो अकेले इसी साल बने. इनमें राज्य पुलिस और सीएपीएफ (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) दोनों के जवान रहते हैं. 

अब ध्यान दो प्रमुख 'सुरक्षा शून्य क्षेत्रों' पर है. ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां सरकार का हुक्म नहीं चलता. माओवादी इन्हें 'लिबरेटेड जोन या मुक्त करवा लिए क्षेत्र' कहते हैं. इनमें सबसे अहम अबूझमाड़ (शब्दश: अबूझ जंगल) होगा. यह 4,000 वर्ग किमी से ज्यादा इलाके में फैला है, जिनमें से 60 फीसद नारायणपुर, 15 फीसद बीजापुर, 10 फीसद कांकेर और 5 फीसद महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पड़ता है.

तो इन क्षेत्र को भेदने में सुरक्षा बल कितने कामयाब रहे हैं? बस्तर के आईजी सुंदरराज पट्टीलिंगम कहते हैं, ''अबूझमाड़ में अब हमारे पास नौ शिविर हैं, जबकि पहले एक भी नहीं था.'' इसी से जवाब मिल जाता है. नारायणपुर के गरपा में जिला मुख्यालय से पश्चिम की ओर से अभियान के जरिए सुरक्षित एक नए शिविर ने करुशनार और सोनपुर सुरक्षित कर दिया है. कोकोमेटा के रास्ते दक्षिण-पश्चिमी अभियान से हासिल इराकबट्टी के एक शिविर और मोहंदी में दक्षिण से दबाव के जरिए एक और शिविर ने फरसगांव, छोटे डोंगर और ओरछा को सुरक्षित कर दिया है.

विद्रोहियों का दूसरा अब तक अभेद्य किला सुकमा-बीजापुर बॉर्डर था. इस पर पीएलजीए (पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) की बटालियन नं. 1 का कब्जा है. इसका प्रमुख माड़वी हिडमा 'मोस्ट वांटेड' सूची में शामिल लड़ाका है, जिसे खत्म करना शीर्ष प्राथमिकता है. हिडमा माओवादी पदानुक्रम में इतना ऊपर पहुंचने वाला बस्तर का अकेला स्थानीय शख्स है, दूसरे सभी शीर्ष नेता या तो तेलुगु, बंगाली या झारखंड से रहे हैं.

दोनों तरफ जान-माल का नुक्सान

अनुमान अलग-अलग हैं, मगर बटालियन नंबर-1 में करीब 300 लड़ाके हैं, जबकि पहले यह बटालियन 600 से ज्यादा सदस्यों वाली थी. उनके पास बेहतरीन हथियार और समर्पित सदस्य हैं. उन पर काबू पाने की रणनीति के तहत सेना ने उत्तरी क्षेत्र में कब्जा जमा लिया और अवापल्ली, तर्रेम, बासागुड़ा और उसूर के आसपास के इलाके को पूरी तरह सुरक्षित कर लिया. अब, इन इलाकों से उन्हें दक्षिण की ओर धकेलना आसान हो गया है.

माओवादी आंदोलन कमजोर पड़ने से भी सेना को काफी मदद मिल रही. अब, उनके पास मौजूद हथियारों में से ज्यादातर मजल लोडर गन या देसी सिंगल शॉट राइफलें हैं. इसका सबूत इस साल हुई बरामदगी से भी मिलता है, मुठभेड़ों के बाद बरामद 263 हथियारों में से ज्यादातर देसी पिस्तौल, 12 बोर की बंदूकें या मजल लोडर हैं.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, उनके पास मौजूद अत्याधुनिक एके, इंसास और एसएलआर राइफलों में से अधिकांश पुरानी पड़ चुकी हैं और इस्तेमाल लायक नहीं हैं. गोला-बारूद की उपलब्धता भी अब आसान नहीं रही, क्योंकि राज्य ने गोला-बारूद कारखानों से प्रतिबंधित बोर (पीबी) कारतूसों की चोरी की गुंजाइश पर पूरी तरह रोक लगा दी है.

खुफिया जानकारी से यह बात भी सामने आई कि गोला-बारूद की कमी के कारण माओवादी नई भर्ती वाले सदस्यों के लिए प्रशिक्षण के कम दौर ही आयोजित करते हैं. तेंदू पत्ता के संग्रह पर हर साल लगाई जाने वाली करीब 150 करोड़ रुपए की लेवी के अलावा सड़कों या पुलों के निर्माण के लिए लगे सिविल ठेकेदारों से वसूली जाने लेवी पर अंकुश से उनके पास पैसे की कमी हो गई है.

तो क्या छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन खात्मे के करीब पहुंच गया है? सुंदरराज इस पर कूटनीतिक जवाब देते हैं. उनका कहना है, ''सुरक्षा के लिहाज से हमारा मकसद नेतृत्व का खात्मा और यह सुनिश्चित करना है कि माओवादियों से जुड़ा कोई नया मामला सामने न आए. दूसरे शब्दों में, हम चाहते हैं कि हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने की माओवादियों की क्षमता पूरी तरह खत्म हो जाए.''

जहां तक माओवादी नेतृत्व के खात्मे की बात आती है तो सबसे बड़ा इनामी वांछित सीपीआई (माओवादी) महासचिव बसवराजू है, जिसके सिर पर एक करोड़ रुपए का इनाम है. फिर सेंट्रल मिलिट्री कमिशन प्रमुख देवजी और तीन अन्य पोलितब्यूरो सदस्य मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति, मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ विवेक और मिशिर बेसरा उर्फ भास्कर पर भी इतना ही इनाम है. इन शीर्ष माओवादियों के अलावा सेंट्रल मिलिट्री कमिशन के 18 सदस्यों में से हर एक पर 40 लाख रुपए का इनाम है. खबर है कि हिडमा को पदोन्नत किया गया है और वह 18वां सदस्य बन गया है.

पुलिस सूत्रों की मानें तो पिछले साल सुरक्षा अभियानों की कामयाबी की वजह से बस्तर में नक्सलियों की संख्या घटकर 600 तक रह गई है. तीन साल पहले इनकी संख्या 1,400 थी. यह कमी सिर्फ मुठभेड़ में मौतों के कारण नहीं आई है, बल्कि कई सदस्यों ने आत्मसमर्पण कर दिया है या फिर गिरफ्तार किए गए हैं. हताहतों की बढ़ती संख्या को देख नई भर्तियों में भी कमी आई है.

दोगुना प्रयास

बस्तर रेंज के आईजी सुंदराज पट्टीलिंगम (बीच में) माओवादियों से बरामद हथियारों के साथ

अभियान की सफलता का एक बड़ा कारण यह है कि अब फील्ड कमांडर जोखिम उठाने को पूरी तरह तैयार रहते हैं क्योंकि, जैसा सुरक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि सरकार ने माओवाद को 'किसी भी कीमत पर' जड़ से मिटाने के लिए अपनी हरी झंडी दे दी है. बस्तर संभाग में तैनात एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''कई बार कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी मिलने के बाद भी अगर ऑपरेशन कमांडर को लगता कि इसकी चपेट में आकर निर्दोषों के मारे जाने पर उन्हें सरकार के स्तर पर कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा तो वे कदम पीछे खींच लेते थे. लेकिन अब यह स्थिति बदल चुकी है.''

इस साल अपनाई जा रही एक और रणनीति यह रही कि अभियान के दौरान सुरक्षाकर्मी संख्याबल के लिहाज से माओवादियों पर भारी पड़े. इस साल ज्यादातर सुनियोजित बड़े अभियानों में कम से कम 1,000 सुरक्षाकर्मी शामिल रहे. आम तौर पर जंगलों में डेरा डाले माओवादी नेताओं के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा रहता है, जिसकी जिम्मेदारी जन मिलिशिया सदस्य संभालते हैं और यही सुरक्षा बलों से मोर्चा लेते हैं.

इस बीच, उनके नेता बच निकलते हैं. एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि इससे निबटने के लिए सुरक्षा बल मुठभेड़ वाली जगह के चारों ओर अपनी खुद की घेराबंदी कर रहे हैं. बस्तर में डीआरजी और स्थानीय रंगरूटों वाले बस्तर फाइटर्स के एक साथ होने से सुरक्षा बलों की ताकत बढ़ गई और उनकी संख्या 5,000 से ज्यादा पहुंच गई. सीएपीएफ के अलावा सलवा जुडूम के पूर्व सदस्यों वाली डिस्ट्रिक्ट स्ट्राइक फोर्स भी माओवादियों से मोर्चा लेने के लिए उपलब्ध है.

बस्तर में एक पुलिस अधिकारी बताते हैं, ''रणनीति के तहत अभियान के दौरान माओवादियों की तुलना में बलों की संख्या बहुत ज्यादा होती है और उनके पास बेहतर साजो-सामान भी उपलब्ध होता है. इसके नतीजे भी सामने आ रहे हैं.'' इस बीच, बस्तर की सड़कों पर यह चर्चा भी हो रही है कि सरकार इस क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर इतनी तत्परता क्यों दिखा रही है. खनन समेत हर व्यवसाय का पर्याय बन चुके एक औद्योगिक घराने का नाम अक्सर इस अभियान के लाभार्थी के तौर पर सामने आता है.

यहां निर्दोषों की मौत भी एक मुद्दा है. जैसे-जैसे बस्तर में अभियान तेजी पकड़ रहे हैं, क्रॉस-फायरिंग और 'मुठभेड़' में आम लोगों के मारे जाने की खबरें भी आ रही हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 2024 में 19 ऐसे अभियानों की एक सूची बनाई है, जिनमें निर्दोष लोग मारे गए. छत्तीसगढ़ के पत्रकार रौनक शिवहरे कहते हैं, ''14 साल से कम उम्र के कम से कम 10 बच्चे मारे गए हैं.''

बहरहाल, सुरक्षा बल इन सबसे बेपरवाह होकर व्यापक तस्वीर पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. दंतेवाड़ा में एक रात और एक दिन बाद डीआरजी टीम अपने ठिकाने पर लौटी है, लेकिन इस बार किसी सफलता के बिना. वह अपना साजो-सामान रखते हैं और इस्तेमाल न किए गए बॉडी बैग स्टोर में वापस भेज दिए जाते हैं.

डीआरजी के करीब 20 फीसद जवान आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली हैं. लेकिन यह बल मुख्यत: बस्तर के आदिवासियों की भर्ती से बना है. एक बात तो तय है, जब भी बॉडी बैग का इस्तेमाल होगा, उसमें किसी स्थानीय आदिवासी का ही शव होगा, चाहे वह डीआरजी सदस्य का हो या फिर किसी माओवादी का.

नई रणनीति

> इस 'जंग' में टेक्नोलॉजी का प्रयोग सबसे बड़ा गेमचेंजर रहा. खासकर खुफिया जानकारी जुटाने के लिए फोन कॉल की निगरानी, ड्रोन और यूएवी

> संख्या के मामले में माओवादियों पर भारी सुरक्षाबल. हर अभियान में कम से कम 1,000 जवान शामिल रहे

> आदिवासी युवाओं से बनी इकाइयां जैसे डीआरजी, बस्तर फाइटर्स और डिस्ट्रिक्ट स्ट्राइक फोर्स माओवादियों से लड़ाई में 'हरावल दस्ता' कही जाती हैं

> बस्तर में सुरक्षा शिविरों की संख्या अब बढ़कर 160 हो गई हैं और जोखिम भरे इलाकों में सड़कें माओवादियों के खिलाफ अभियान में बेहद अहम

माओवाद पर लगातार पड़ती मार

अब 2024 में माओवादियों से मोर्चा लेने वाले सुरक्षा बलों में सीएपीएफ और स्थानीय पुलिस के अलावा स्थानीय रंगरूटों वाली कम से कम तीन इकाइयां शामिल हैं. 

मोस्ट वांटेड

- बसवराजू, जनरल सेक्रेटरी सीपीआई (माओवादी) 

1 करोड़ रुपए का इनाम

- मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति 

1 करोड़ रुपए

- माड़वी हिडमा

40 लाख रुपए.

Advertisement
Advertisement