यूपी में आंवले के लिए प्रसिद्ध प्रतापगढ़ जिले में पट्टी-कोहड़ौर मार्ग पर मौजूद भदौना गांव चंदन की खेती के बारे में जानकारी पाने की इच्छा रखने वालों का मुख्य गंतव्य है. यहां सात एकड़ में फैले 'मार्सिलोन एग्रोफार्म' ने उस मिथक को तोड़ दिया है जो चंदन की खेती पर केवल दक्षिण भारत के ही आधिपत्य का दावा करता है.
'मार्सिलोन' एक फ्रेंच शब्द है जिसका अर्थ होता है 'युवा योद्धा'. प्रतापगढ़ के भदौना गांव निवासी उत्कृष्ट पांडे ही वह युवा योद्धा हैं जिन्होंने जमीन के एक छोटे-से टुकड़े पर सफेद चंदन के पेड़ों की नर्सरी तैयार करने से लेकर सैकड़ों पेड़ों को सफलतापूर्वक उगाकर इसे पूरे उत्तर भारत में केवल सफेद चंदन के लिए समर्पित अनूठे केंद्र में तब्दील कर दिया है.
उत्कृष्ट के फार्महाउस पर लहलहा रहे 2,500 से ज्यादा सफेद चंदन के पेड़ रहीम के दोहे चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग से उलट व्यवहार दिखा रहे हैं.
शुरुआत में भदौना निवासियों ने उत्कृष्ट के चंदन की खेती करने का यह कहते हुए विरोध किया कि इससे गांव में सांपों की भरमार हो जाएगी. उत्कृष्ट ने बड़ी मुश्किल से गांव वालों को समझाया और अब यही चंदन के पेड़ भदौना निवासियों के लिए रोजगार का जरिया बन गए हैं.
पढ़ाई में मेधावी रहे उत्कृष्ट ने 2008 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एमए करने के बाद अगले वर्ष संघ लोक सेवा आयोग की 'सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स भर्ती परीक्षा' भी उत्तीर्ण कर ली. 2015 तक उत्कृष्ट बिहार के पश्चिमी चंपारण के वाल्मीकि नगर टाइगर रिजर्व में असिस्टेंट कमांडेंट (सीमा सुरक्षा बल) के पद पर तैनात रहे. इसके बाद वे नक्सलवाद निरोधक अभियान से भी जुड़े.
उत्कृष्ट बताते हैं, ''छुट्टी मिलने पर जब मैं अपने गांव भदौना आता था तो यहां की गरीबी देखकर परेशान हो जाता था. मैं गांव के लिए कुछ करना चाहता था और यही मंशा लिए मैंने 2016 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया.'' नौकरी के दौरान ही उत्कृष्ट को चंदन की लकड़ी की डिमांड और तस्करी की जानकारी मिली थी. नौकरी छोड़ने के बाद जब चंदन के बारे में अध्ययन किया तो पाया कि उत्तर भारत में सफेद चंदन की बहुत मांग है लेकिन दक्षिण या मध्य भारत में मिलने के कारण यह काफी महंगा (15,000-20,000 रुपए किलो) पड़ता है.
उत्कृष्ट ने अपने गांव भदौना की सात एकड़ जमीन को फार्महाउस में तब्दील कर दिया और इसे 'मार्सिलोन एग्रोफार्म प्राइवेट लिमिटेड कंपनी' बनाकर इसके अधीन कर दिया. उत्कृष्ट ने अपने मित्र से सफेद चंदन के कुछ पौधे मंगाकर लगाए लेकिन सफलता नहीं मिली. चंदन की खेती सीखने की ललक उत्कृष्ट को बेंगलूरू के इंडिया वुड साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी ले गई. वहां उत्कृष्ट ने सफेद चंदन की खेती की बारीकियां सीखीं.
उत्कृष्ट के सामने सबसे बड़ी चुनौती उत्तर भारत के गैर-परंपरागत मौसम में चंदन की खेती को अंजाम देने की थी. इसके लिए उत्कृष्ट ने 'मिक्स्ड एग्रीकल्चर' की तकनीक का सहारा लिया. वे बताते हैं, ''चंदन का पेड़ उसी जमीन पर उग सकता है जिसकी पीएच वैल्यू 6 से 8 के बीच हो. इसके पेड़ को ज्यादा पानी नहीं चाहिए, इसलिए खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए.''
उत्कृष्ट ने 2019 में 400 पौधों को अमरूद, शरीफा, कैजुरिना जैसे पौधों के साथ उगाया. यह प्रयोग सफल हुआ. आज ये पेड़ 12 से 15 फुट बड़े हो चुके हैं. चंदन के पेड़ों के साथ काली, कस्तूरी और सबसे ज्यादा 'करम्युमिन' की मात्रा वाली लकडाऊंग हल्दी के पौधों की सफलतापूर्वक खेती कर उत्कृष्ट ने एक ऐसे कृषि मॉडल को हकीकत में उतारा है जिसने किसानों के दोनों हाथों में लड्डू की आस जगाई. उत्कृष्ट अब दूसरे लोगों को भी चंदन की खेती से जोड़ने के लिए 'हर घर चंदन' अभियान की शुरुआत कर चुके हैं.
नवाचार
सफेद चंदन के पेड़ की जड़ें दूसरे पौधों की जड़ों से जुड़कर पोषण ले सकें इसके लिए उत्कृष्ट ने इन पेड़ों के बीच में फली वाले पौधों जैसे अरहर, चने की खेती की. चूंकि हल्दी की खेती छांव में होती है इसलिए एक नए प्रयोग के तौर पर हल्दी की खेती को भी चंदन के बाग में अपनाया गया. इस प्रकार उत्कृष्ट ने सफेद चंदन की खेती के साथ दूसरी व्यावसायिक खेती को भी सफलतापूर्वक जोड़ा.
शौक
फुटबॉल खेलना
सफलता का मंत्र
''कड़ी मेहनत, ईमानदारी और अनुशासन से कठिन से कठिन कार्य में सफलता पाई जा सकती है.''
उपलब्धि
देवभूमि बागवानी पुरस्कार-2024, तरुण मित्र पुरस्कार-2024.