पुरानी कार खरीदने में यही दुविधा रहती है कि कहीं चोरी की तो नहीं है या पुलिस केस में तो नहीं फंसी है. संदीप अग्रवाल ने ड्रूम के जरिए ऐसी अनेक उलझनों का समाधान पेश किया है. ड्रूम आज 1 अरब डॉलर (10 हजार करोड़ रु.) की कंपनी है और शॉपक्लूज के बाद अग्रवाल का दूसरा यूनीकॉर्न.
चंडीगढ़ के सरकारी अस्पताल में जन्मे, हरियाणा के गुहला में पले-बढ़े और अमेरिका में उच्च शिक्षा पाने वाले अग्रवाल ने शॉपक्लूज के यूनीकॉर्न बनने के दौरान काफी संघर्ष किया. उन्हें अमेरिका में इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया और सात साल बाद वे आरोपमुक्त भी हुए लेकिन तब तक बदनामी काफी हो गई थी.
इसका असर कंपनी पर न पड़े इसलिए वे उससे हट गए. इस दौरान उनका पत्नी से तलाक हो गया. लेकिन वे मिशन पर डटे रहे. अग्रवाल कहते हैं, "शॉपक्लूज से मैंने ऐसे छोटे कारोबारियों को मजबूती दी जिनके पास न बहुत पैसे थे और न उन्हें अंग्रेजी आती थी. उन्हें मैं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लेकर आया."
आविष्कार के करीब 140 साल बाद कार तो काफी बदल गई लेकिन उसे खरीदने-बेचने का तरीका पुराना ही रहा. ड्रूम से पहले सेकंड हैंड गाड़ी परिचितों-दोस्तों या स्थानीय दुकानों (भगवती मोटर्स, गुलाटी मोटर्स आदि जैसे नाम वाली दुकानों) से खरीदी जाती थी. बाद में कुछ ब्रांडेड स्टोर्स भी खुले. लेकिन इनमें 30-40 से ज्यादा विकल्प नहीं होते थे. ड्रूम इन सभी को एग्रीगेट कर एक प्लेटफॉर्म (Droom.in) पर ले आया.
इससे सभी स्थानीय दुकानें जुड़ गईं. अग्रवाल बताते हैं, "जैसे जोमैटो फूड के लिए, अमेजन वर्टिकल ई-कामर्स के लिए है, वैसे ही ड्रूम वाहन खरीद-फरोख्त के लिए बनाया गया. इसमें 1,174 शहरों के 23,100 डीलर और 2,50,000 से ज्यादा वाहन उपलब्ध हैं. ये दुनिया का सबसे बड़ा डीलर प्लेटफॉर्म है. यह तकनीक की वजह से संभव हुआ. यही काम मुझे फिजिकल स्टोर से करना होता तो 20,000 करोड़ रु. की वर्किंग कैपिटल लगती और एक लाख से ज्यादा कर्मचारी चाहिए होते."
ड्रूम ने जो सॉफ्टवेयर डेवलप किए हैं उनमें एआई मशीन लर्निंग पर आधारित प्राइज इंजन ऑरेंज बुक वैल्यू, इंजन डाइग्नोस्ट करने के लिए ईको और व्हीकल की कुंडली बताने वाला व्हीकल हिस्ट्री सॉफ्टवेयर प्रमुख हैं. यूज्ड कार की कीमत तय करना बहुत मुश्किल होता था. इस समस्या का समाधान करने के लिए ड्रूम ने ऑरेंज बुक वैल्यू सॉफ्टवेयर बनाया.
वे बताते हैं, ''यह मशीन लर्निंग और एआई पर बना प्राइसिंग इंजन है जो किसी भी पुराने वाहन की कीमत 10 सेकंड में निकाल देता है. इसका पेटेंट ड्रूम ने अमेरिका में कराया है."
इसके अलावा ड्रूम ने ईको नाम का एक एंड्रायड ऐप बनाया. ईको से तीन तरह की डायग्नोस्टिक की जाती हैं. एक ऐप है, एक डिवाइस है और एआई सेल्फ इंस्पेक्शन. ऐप ऑटो इंस्पेक्शन के लिए है जिसका इस्तेमाल देश के 13,000 मैकेनिक कर रहे हैं. अग्रवाल कहते हैं कि इससे हमें किसी भी वाहन के दूसरे शहर में इंस्पेक्शन की जरूरत होती है तो ऑर्डर उस इलाके के मैकेनिक के मोबाइल तक पहुंच जाता है. एक कार के इंस्पेक्शन पर 200 से 400 रु. तक मिलते हैं.
दूसरा है ओबीडी. वे बताते हैं, ''हमने एक आईओटी डिवाइस बनाया है ओबीडी. 2004 के बाद बनी कारों में स्टीयरिंग के नीचे ओबीडी पोर्ट होता है. उसमें इसे लगाकर कार स्टार्ट कर भीतर के सैकड़ों सेंसरों और डेटा पॉइंट से डेटा लेकर ड्रूम के क्लाउड में भेजा जाता है जिससे हम इंजन के पावर, फ्यूल इकोनॉमी, बैटरी वगैरह की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर लेते हैं." तीसरा, एआई सेल्फ इंस्पेक्शन है जो बॉडी का हाल बताता है. अग्रवाल के मुताबिक, "इसका इस्तेमाल 31 ऑटोमोबाइल, इंश्योरेंस और मनी लेंडिंग कंपनियां कर रही हैं."
एक और सॉफ्टवेयर है जो व्हीकल हिस्ट्री बताता है जिसमें किसी वाहन की थेक्रट हिस्ट्री, क्रिमिनल हिस्ट्री, बकाया लोन, एक्सीडेंट क्लेम, पुराने ऑनर, डिस्प्यूटेड टाइटल, पुलिस में ब्लैक लिस्टिंग और ट्रैफिक चालान जैसे 42 रिकॉर्ड मिल सकते हैं. बकौल अग्रवाल, "हमने 10 साल में करीब 22 करोड़ वाहनों का डेटा डिजिटाइज किया है. प्राइजिंग, इंस्पेक्शन और हिस्ट्री से हम किसी भी लेन-देन को कम समय में संभव कर सकते हैं क्योंकि इससे यूजर को वाहन की कीमत, कंडीशन और बैकग्राउंड पता चल जाता है."
अग्रवाल ने ड्रूम के चालू होने के बाद अभी तक 14 पेटेंट अमेरिका में फाइल किए हैं जो मंजूर हो चुके हैं. आखिर कोई ड्रूम से वाहन क्यों खरीदे? इसका जवाब है यह है कि यहां सबसे ज्यादा संख्या में वाहन हैं, मार्केट से 16 प्रतिशत सस्ते हैं, ऑरेंज बुक वैल्यू और हिस्ट्री से सर्टिफाइड हैं और इन पर छह महीने की वारंटी दी जाती है.
शॉपक्लूज पांच साल में यूनीकॉर्न बनी. ड्रूम को सात अप्रैल 2014 में शुरू किया, इसे यूनीकॉर्न बनने में सात साल लगे. अग्रवाल कहते हैं, "मैंने टॉप 5 फार्च्यून कंपनियों में से तीन के हेडक्वार्टर में काम किया. ये हैं माइक्रोसॉफ्ट, चार्ल्स श्वाब और सिटी ग्रुप. वाल स्ट्रीट में तीन कंपनियों में बतौर एनालिस्ट काम किया. तब मुझे 200 इंटरनेट कंपनियों के तौर-तरीके पता चल गए. इसका मुझे जबरदस्त फायदा मिला. मैं हफ्ते में 110 घंटे काम करता था. वाल स्ट्रीट ने हार्ड वर्क सिखाया."
ड्रूम के बाद से अग्रवाल खुद भी पुरानी कार इस्तेमाल करते हैं. उनके लिए अब पुराना ही नया है.
नवाचार
पुराने वाहनों की हालत, उनकी क्रिमिनल हिस्ट्री और चालान आदि के बारे में जानने से लेकर कीमत तक तय करने के लिए एआइ आधारित सॉफ्टवेयर बनाए, उनका अमेरिका में पेटेंट कराया.
सफलता का मंत्र
"जुनून कुछ बड़ा करने का जिससे सिस्टम बदले. बिजनेस की हर समस्या का समाधान तकनीक के जरिए ढूंढ़ना."
शौक
पढ़ना, लिखना, गोल्फ खेलना, पर्यटन, दुनिया भर के स्थानीय व्यंजन का स्वाद लेना और बागवानी.