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गधी के दूध से कैसे अपने कारोबार को आगे बढ़ा रहीं 'ऑर्गेनिको' की पूजा कौल?

गधी के दूध या डांकी मिल्क से कई उत्पाद बनाने वाली पूजा की कंपनी ऑर्गेनिको के पास अभी नौ प्रोडक्ट हैं. बाजार में लोगों से अच्छा रिस्पांस मिल रहा है

पूजा कौल, दिल्ली-एनसीआर
पूजा कौल, दिल्ली-एनसीआर
अपडेटेड 26 दिसंबर , 2024

गधा इंसानों के बीच आपसी बातचीत में अक्सर उपहास का ही पात्र बनता आया है. लेकिन पूजा कौल के लिए डाँकी मिल्क या गधी का दूध बिल्कुल नए-नवेले कारोबार की वजह बन गया, हालांकि इसके लिए उपहास का सामना उन्हें भी करना पड़ा. दिल्ली के दयाल सिंह कॉलेज से बीए करने के बाद पूजा ने 2018 में महाराष्ट्र के तुलजापुर में स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से सोशल इनोवेशंस ऐंड आंत्रप्रेन्योरशिप में मास्टर्स की डिग्री पूरी की.

कोर्स प्रोजेक्ट का विषय छांटने के दौरान उन्होंने कहीं पढ़ा कि विदेश में कोई महिला पांडाज नामक बीमारी के इलाज में डाँकी मिल्क का इस्तेमाल कर रही है. पूजा ने इस दूध के फायदों के बारे में कई लेख पढ़े. यह भी जाना कि मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा कथित तौर पर गधी के दूध से नहाती थी; मुंबई के एक इलाके में नवजात बच्चों को एक चम्मच गधी का दूध 50 रु. में पिलाया जाता है; कर्नाटक के रायचूर में बच्चों को पैदा होते ही गधी का दूध पिलाया जाता है.

कुल मिलाकर उन्हें पता चल गया कि डाँकी मिल्क काफी गुणवान है और इसका त्वचा पर अच्छा असर होता है. लेकिन कम उपलब्धता के कारण यह महंगा है. बचपन में उनके घर में शौकिया तौर पर साबुन बनाया जाता था. इसके लिए कच्चा माल या लाई घर पर लाया जाता और उनकी मां साबुन बनाती थीं. तुलजापुर में गधे पालने वाले भी थे. कड़ी से कड़ी जुड़ती चली गई और पूजा ने गधी के दूध से साबुन बनाने के प्रोजेक्ट का प्रस्ताव कॉलेज में दिया और इसे पूरा करने में जुट गईं.

वे कहती हैं, ''गधी का दूध साबुन में डालना मेरा अपना इनोवेशन है.'' उन्होंने तुलजापुर में 2,000 रु. लीटर के मूल्य पर डाँकी मिल्क खरीदा और 250 साबुन बनाए. वहां इन्हें बेचना मुश्किल था इसलिए लेकर दिल्ली आ गईं. पूजा बताती हैं, ''तब दिल्ली हाट में विमेन ऑफ इंडिया ऑर्गेनिक फेस्टिवल चल रहा था जहां मैंने दुकान लगाई. वहां अच्छा रेस्पांस था, पर मजाक भी बहुत बना.''

पूजा को पता चला कि गाजियाबाद के डासना में कुछ लोग गधे पालते हैं जिनका इस्तेमाल ढुलाई के लिए होता है. वे बताती हैं, ''पहली बार जब मैं गधी का दूध खरीदने गई तो लोगों ने समझा कि मैं जादू-टोना करने आई हूं. गधे वालों को लगा कि ऐसा करने से उनकी गधइया मर जाएगी...आखिरकार 2019 की जनवरी में एक आदमी इस शर्त पर गधी का दूध बेचने के लिए तैयार हुआ कि मैं इसके बारे में किसी को बताऊंगी नहीं. मैं सुबह जाकर वहां से दूध ले आती थी.''

मयूर विहार के अपने घर में एक स्टोर रूम को उन्होंने फैक्ट्री में तब्दील कर लिया. उन्होंने गधी के दूध से साबुन बनाया और सोशल मीडिया पर लोगों को स्टोरी बताने लगीं. 2019 में चंडीगढ़ में ऑर्गेनिक फेस्टिवल में भाग लिया तो उनकी स्टोरी वायरल हो गई. वे बताती हैं, ''इस दौरान मेरा नाम फोर्ब्स 30 अंडर 30 एशिया में आ गया. ब्रिटेन की सरकार का प्रिंसेस डायना अवॉर्ड मिला. केंद्र सरकार ने भी हमें प्रेरित किया. हमारी मार्केटिंग से हमें लोग जानने लगे.''

अभी उनकी कंपनी ऑर्गेनिको के पास नौ प्रॉडक्ट हैं. पांच तरह के साबुन और फेस पैक के अलावा अब जल्द ही क्रीम लॉन्च करने वाले हैं. ये सब डाँकी मिल्क से बने हैं. पूजा कहती हैं, ''सौ से दो सौ ऑर्डर रोज आ रहे हैं. डाँकी मिल्क में ऐंटी एजिंग कंपोनेंट होता है. डाँकी मिल्क का इफेक्ट परमानेंट होता है. साउथ इंडिया में लोग फार्म खोल रहे हैं. अब हमें गधी का दूध बेचने वालों के साउथ इंडिया और राजस्थान से रोज फोन आते हैं. गुजरात से हम डाँकी मिल्क का पाउडर मंगाते हैं.''

दक्षिण भारत में डाँकी मिल्क अच्छा माना जाता है, ऑर्गेनिको के साबुनों की 80 प्रतिशत बिक्री भी दक्षिण भारत में हो रही है. साबुन बनाने के दौरान पपीते का पाउडर, अनार पाउडर, एलोवेरा आदि इनग्रेडिएंट्स इसमें डालते हैं. ये पूरी तरह हैंडमेड है. ऑर्गेनिको ने दूध 1,300 रु. लीटर से कम दाम पर कभी नहीं खरीदा. वैसे देश में 7,000 रु. लीटर तक भी डाँकी मिल्क ऑनलाइन बिक रहा है.

कारोबार के बारे में उनका कहना है, ''अब हमें फंडिंग मिली है. इससे पहले हमें 2019 में केंद्र सरकार की आरकेवाईवी-रफ्तार स्कीम के तहत 18 लाख रु. की ग्रांट मिली थी.'' नोएडा के सेक्टर 10 की फैक्ट्री में छोटे-से हिस्से में डेढ़ साल से उनका काम चल रहा है. सबसे ज्यादा चारकोल सोप बिकता है. साबुन की कीमत 499 रु. से शुरू होती है. चारकोल हनी डाँकी मिल्क सोप क्लींजिंग बार है. यह दक्षिण भारत के पुरुषों में बहुत लोकप्रिय है. उन्होंने बताया कि डीप फ्रीज करके रखने से 48 घंटे तक डाँकी मिल्क सुरक्षित रहता है. हम हर महीने 22 लीटर तक डाँकी मिल्क खरीदते हैं.

देश में 1.20 लाख गधे हैं और इनकी संख्या में गिरावट का ट्रेंड है. लेकिन पूजा को भरोसा है कि अब संख्या बढ़ेगी क्योंकि देश में डाँकी फार्म खुल रहे हैं. वे कहती हैं, ''ये हमारी सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप है. गधों का इस्तेमाल नहीं होगा तो उनका संरक्षण भी नहीं होगा. जिनसे हम दूध ले रहे हैं उन्होंने अब गधों की देखरेख शुरू कर दी है. मैंने पांच साल में गधों की जिंदगी बदलते देखी है.''

नवाचार

गधी के दूध को साबुन बनाने वाले घोल में मिलाती हैं. इसी में पपीते का पाउडर जैसी कुछ और चीजें मिलाकर साबुन और फेसपैक जैसे ब्यूटी केयर उत्पाद तैयार किए जाते हैं.

सफलता का मंत्र

''बिजनेस का विस्तार करने के लिए पैसा लगाना पड़ता है. बिजनेस में चार-पांच साल का धैर्य रखकर कामयाबी का इंतजार करना चाहिए. एकाएक कुछ नहीं हो जाता.''

शौक

पूजा को घूमने का बहुत शौक है. उत्तराखंड, हिमाचल, कश्मीर, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा आदि अनेक राज्यों की यात्रा कर चुकी हैं.

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