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क्या है टैंक को स्वदेशी बनाने की कनपुरिया तकनीक?

मनोज बताते हैं, "मैंने शुरू में ही तय कर लिया था कि रक्षा मंत्रालय के उन्हीं प्रोजेक्ट्स पर काम करूंगा जिन पर सरकार को समस्या हो रही हो." इसके बाद उन्होंने तीनों सेनाओं की बख्तरबंद गाड़ियों में काम आने वाली कुछ चीजें बनानी शुरू कीं

मनोज गुप्ता, 57 साल, कानपुर
मनोज गुप्ता, 57 साल, कानपुर
अपडेटेड 6 जनवरी , 2025

कानपुर के कालपी रोड में इंडस्ट्रियल एस्टेट के प्लॉट नंबर 98 में चल रही तीन मंजिला फैक्ट्री आम कारखानों से अलग है. यहां के पहले तल पर मनोज गुप्ता के कमरे की अलमारियां रक्षा उपकरणों के डिजाइन की फाइलों से भरी पड़ी हैं. उनकी कंपनी एमजी टेक्निकल्स की पहचान उत्तर प्रदेश के उस इकलौते कारखाने के रूप में है जो बख्तरबंद गाड़ियों के लिए इलेक्ट्रिकल उपकरण बना रही है.

कानपुर के तिलक नगर में रहने वाले मनोज के पिता शैलेंद्र गुप्ता की इंजीनियरिंग इंडस्ट्री थी जहां सोम फैन्स के नाम से सीलिंग और एग्जॉस्ट फैन बनते थे. यहां कुछ छोटे रक्षा उपकरण भी बना करते थे. 1990 में परिवार में बंटवारा होने पर मनोज के पिता के हिस्से में फैक्ट्री का वह हिस्सा आया जो रक्षा उपकरण बनाती थी.

हालांकि उस वक्त केवल रक्षा उपकरण बनाकर फैक्ट्री चलाना घाटे का सौदा था. इसी दौरान मनोज बेंगलूरू के एमएस रामैया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी से इंजीनियरिंग पढ़कर लौटे. उस वक्त कानपुर में रक्षा उपकरण बनाने की कोई विशेष इंडस्ट्री नहीं थी. मनोज ने रक्षा उपकरण निर्माण की ही फैक्ट्री लगाने का फैसला किया.

कानपुर के कालपी रोड स्थित इंडस्ट्रियल एस्टेट में मनोज ने 2,000 वर्ग फुट जमीन किराए पर लेकर एक छोटी फैक्ट्री डाली. मनोज बताते हैं, ''मैंने शुरू में ही तय कर लिया था कि रक्षा मंत्रालय के उन्हीं प्रोजेक्ट्स पर काम करूंगा जिन पर सरकार को समस्या हो रही हो."

ऐसे कठिन प्रोजेक्ट पर निजी सहयोग लेने को रक्षा मंत्रालय निविदाएं आमंत्रित करता है. मनोज ने इन्हीं प्रोजेक्ट्स पर फोकस किया. ऐसे उपकरणों के निर्माण के लिए कड़े परीक्षण से गुजरना पड़ता है इसलिए मनोज ने 2004 में कालपी रोड में ही 3,000 वर्ग फुट जमीन लेकर एक अनोखी तीन मंजिला फैक्ट्री लगाई. रक्षा उत्पादों के परीक्षण के लिए अत्याधुनिक प्रयोगशाला भी स्थापित की गई.

साल भर की मेहनत के बाद आर्मेचर ऐंड क्वाइल बाइंडिंग मशीन और लेथ मशीन समेत कई तरह की सुविधाओं वाली फैक्ट्री तैयार हो गई. इसके बाद मनोज ने तीनों सेनाओं की बख्तरबंद गाड़ियों में काम आने वाली कुछ चीजें बनानी शुरू कीं. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती टी-90 टैंक के लिए एक खास तरह की इलेक्ट्रिक मोटर ईडी-76 बनाने में आई.

उन्हें इसका ऑर्डर 2022 में मिला था. यह मोटर रूस में बनती थी. दरअसल, यह मोटर एक ही दिशा में न चलकर सीधी और उल्टी दोनों दिशा में उतनी ही मजबूत क्षमता से चलती है जो टैंक के 'मूवमेंट' के लिए काफी उपयोगी है.

बख्तरबंद वाहन निगम लिमिटेड (एवीएनएल) के तहत संचालित महाराष्ट्र के अंबरनाथ स्थित मशीन टूल प्रोटोटाइप फैक्ट्री (एमटीपीएफ) से मनोज को यह मोटर बनाने के लिए एक ड्रॉइंग भी मिली पर वह अधूरी थी.

मनोज बताते हैं, "ड्रॉइंग अधूरी थी सो मैंने रिवर्स इंजीनियरिंग का उपयोग किया. छह महीने तक प्रयोग करने के बाद दिसंबर, 2022 में टैंक में लगने वाली मोटर का प्रोटोटाइप बना लिया." इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने इस मोटर की तकनीक और क्षमता की गहन जांच की. सभी मानकों पर फिट पाए जाने पर मनोज को टी-90 टैंक में लगाने के लिए 100 मोटर बनाने का ऑर्डर मिला जिसे उन्होंने पिछले वर्ष दिसंबर में पूरा कर दिया.

नवाचार

बख्तरबंद गाड़ियों में लगने वाली खास इलेक्ट्रिक मोटर 'ईडी-76' की डिजाइन न होने पर मनोज ने पूरी मशीन के एक-एक उपकरण को अलग किया. सबकी कार्यप्रणाली समझी, उसके अनुरूप उपकरण तैयार किए, उनकी क्षमता जांची, फिर उन्हें विशेष ढंग से जोड़ा. इस लंबे प्रयोग के बाद 'रिवर्स इंजीनियरिंग’ तकनीक से टी-90 टैंक में लगने वाली पहली स्वदेशी इलेक्ट्रिक मोटर 'ईडी-76’ तैयार हुई.

सफलता का मंत्र

"नवाचार की सफलता इस बात पर निर्भर है कि आप उसके लिए खुद में कितना बदलाव कर सकते हैं."

उपलब्धि

रक्षा मंत्रालय से 2022 में 'सर्टिफिकेट ऑफ अचीवमेंट’ से सम्मानित.

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