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अपने स्मार्ट टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स से कैसे सैनिकों, डॉक्टरों की रक्षा कर रहे मनीष रावल?

रावल अपनी कंपनी को 'डीप टेक स्टार्ट-अप’ कहते हैं. उनका दावा है कि वे जो उत्पाद बना रहे हैं, वैसा उत्पाद भारत तो क्या पूरी दुनिया में कोई और नहीं बना रहा

मनीष रावल, 39 साल, मुंबई
मनीष रावल, 39 साल, मुंबई
अपडेटेड 6 जनवरी , 2025

सैन्य साजो-सामान के लिए भारत काफी हद तक अब भी अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर है. लेकिन महज छह साल पुराने एक स्टार्ट-अप से अमेरिकी सेना कोई सामान खरीदे, है न यह हैरानी की बात!

अमेरिका के न्यूजर्सी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बायोमेडिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके आने वाले मनीष रावल का आइडिया उन 18,000 नए आइडियाज में से था, जो 'मेक इन इंडिया’ के तहत भारत सरकार के पास आए थे.

इनमें से सिर्फ 75 को चुना जाना था. रावल का आइडिया चुन लिया गया और अहमदाबाद के भारतीय प्रबंधन संस्थान में इंक्यूबेट किया गया. यह आइडिया था 'एडवांस्ड स्मार्ट टेक्सटाइल' बनाने का.

यहीं से 2018 में थर्मोइसेंस की शुरुआत मुंबई में हुई. रावल अपनी कंपनी को 'डीप टेक स्टार्ट-अप' कहते हैं. उनका दावा है कि वे जो उत्पाद बना रहे हैं, वैसा उत्पाद भारत तो क्या पूरी दुनिया में कोई और नहीं बना रहा. छह साल के सफर में रावल की कंपनी ने भारतीय सेना के अलावा अमेरिकी सेना को भी आपूर्ति की है. वहीं मेडिकल जगत के लिए बनाए गए एडवांस्ड स्मार्ट टेक्सटाइल की आपूर्ति वे भारत के अस्पतालों के अलावा तकरीबन दर्जन भर दूसरे देशों में भी कर रहे हैं.

एडवांस्ड स्मार्ट टेक्सटाइल यानी क्या? जवाब में रावल बताते हैं, "हमारे सभी उत्पाद सेल्फ सैनिटाइजिंग हैं यानी कि ये ऐंटी वायरल, ऐंटी बैक्टीरियल और ऐंटी फंगल हैं. जिन अस्पतालों में हमारे टेक्सटाइल का इस्तेमाल हो रहा है, वहां अस्पताल से होने वाले इंफेक्शन के मामलों में काफी गिरावट आई है. हम डॉक्टरों के पहनने वाले कपड़ों से लेकर मरीज के बिस्तर पर बिछाने वाली चादरें, ऑपरेशन थिएटर के लिए भी विशेष कपड़े बना रहे हैं."

अस्पतालों में पारंपरिक कपड़ों को बार-बार धोकर डिसइंफेक्ट किया जाता है, लेकिन हर टेक्सटाइल के साथ यह नियमित तौर पर नहीं हो पाता. जैसे कि वॉर्ड में लगा परदा. डॉक्टर से लेकर नर्स और मरीज के अटेंडेंट तक आते-जाते पर्दे को छूते हैं. रावल की कंपनी ऐसे परदे भी बनाती है. वे बताते हैं, "हमारे टेक्सटाइल से बना परदा खुद को डिसइंफेक्ट करता रहता है."

सैनिकों की जिंदगी आसान बनाने वाले अपने उत्पादों के बारे में रावल जानकारी देते हैं, "मुश्किल परिस्थितियों में देश की रक्षा में डटे सैनिकों को सबसे बड़ी समस्या जूतों में होती है. उनके पैर की उंगलियों में फंगल इंफेक्शन होता है. हमारे टेक्सटाइल से बने मोजे इस तरह के इंफेक्शन की आशंका कम कर रहे हैं. वहीं गर्मी के दौरान जवानों में दाद-खाज की दिक्कत हो जाती है. हमारे सेल्फ सैनिटाइजिंग कपड़े उन्हें इससे भी निजात दिलाते हैं."

रावल की कंपनी सैन्य बलों के लिए जो कपड़े बना रही है, उनमें थर्मो रेगुलेशन तकनीक है. यह इन्हें लेह की ठंड और अंडमान की गर्मी, दोनों में समान रूप से प्रभावी बनाती है. ये कपड़े मौसम के हिसाब से ढल जाते हैं. रावल इस तकनीक के बारे में बताते हैं, "ठंड में इनके फाइबर एक दूसरे के करीब आ जाते हैं, जिससे शरीर की गर्मी बरकरार रहती है. वहीं गर्मी में ये ढीले हो जाते हैं जिससे हवा का प्रवाह बढ़ जाता है. हमारा फैब्रिक कॉटन के मुकाबले 2.4 गुना ज्यादा ब्रीदेबल है."

सियाचिन जैसी सर्द जगहों पर गर्म कपड़े पहने जवानों को एक से दूसरी जगह आने-जाने और एक्ससाइज आदि के दौरान पसीना भी आता है. यह पसीना अगर जमकर बर्फ बन जाए तो उनके शरीर को काट-छील सकता है. रावल कहते हैं कि वे जो कपड़े सेना को दे रहे हैं, उसमें पसीना तेजी से सूखता जाता है और यह जोखिम भी खत्म हो जाता है.

नवाचार

सेना के लिए ऐसे 'स्मार्ट कपड़े’ बना रहे हैं, जो तापमान को रेगुलेट कर उन्हें ज्यादा गरम या ठंडी जगहों पर प्रभावी रूप से काम करने में मददगार हैं. वहीं मेडिकल जगत के लिए ऐसे कपड़े और अन्य टेक्सटाइल उत्पाद बनाए हैं जो ऐंटी वायरल, ऐंटी फंगल और ऐंटी बैक्टीरियल हैं.

सफलता का मंत्र

''प्रोटेक्ट द प्रोटेक्टर यानी जो हमारी रक्षा कर रहे हैं, हम उनकी रक्षा करें. सेना के जवान और डॉक्टर समेत अन्य स्वास्थ्यकर्मी हमारी रक्षा करते हैं. उनके लिए कुछ करने की इच्छा."

शौक

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