scorecardresearch

पराली मैनेजमेंट से कैसे हर साल करोड़ों रुपये कमा रहे गुजरात के जयेश पारीख?

जयेश भाई की इस तकनीक पर आधारित प्लांट अभी सिर्फ गुजरात में ही लगे हैं. लेकिन पारीख इसे पूरे देश में और खास तौर पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को गैस चैंबर में तब्दील कर देने वाले क्षेत्रों में ले जाना चाहते हैं

जयेश पारीख, सुरेंद्रनगर, गुजरात
जयेश पारीख, सुरेंद्रनगर, गुजरात
अपडेटेड 16 दिसंबर , 2024

पराली जलाने से निकलने वाले जहरीले धुएं से पैदा हो रही समस्याओं का स्थायी समाधान करने के लिए गुजरात के जयेश भाई पारीख ने एक अनूठी तकनीक विकसित की है.

अहमदाबाद से तकरीबन 60 किलोमीटर दूर विरमगाम के एक सामान्य परिवार में जन्मे जयेश भाई पारीख अपनी कंपनी केम प्रोसेस सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के जरिए एक ऐसा समाधान लेकर आए हैं, जिसके माध्यम से किसानों को विभिन्न फसलों की पराली के लिए अच्छे पैसे मिल रहे हैं.

जयेश की कंपनी किसानों की पराली लाकर उससे कई ऐसे उत्पाद बना रही है, जिसके बारे में पहले कभी सोचा तक नहीं जा रहा था.

उद्यमी के तौर पर अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए वे कहते हैं, ''2002 में केम प्रोसेस की शुरुआत की. पहले हमने वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट में कदम रखा था. हमने वेस्ट वॉटर से अमोनियम सल्फेट जैसी वैल्यूबल चीजें निकालने की शुरुआत की ताकि कंपनियों के लिए यह ट्रीटमेंट भी फायदे का काम बन सके. उत्तर प्रदेश के डीसीएम समूह के साथ पोटैशियम सल्फेट निकालने में सफलता हासिल की. इस प्रक्रिया में जो ऑर्गेनिक चीजें निकलीं, उसे हमने नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट से हाथ मिलाकर जानवरों का चारा बनाने में सफलता पाई. हमने सीएसआईआर-भावनगर की मदद से जॉइंट पेटेंट लिया. इसके लिए उस समय के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों हमें सम्मान मिला.''

पराली प्रबंधन के बारे में वे कहते हैं, ''हर फसल की पराली में तीन चीजें होती हैं. सेलुलोज, हेमीसेलुलोज और लिग्निन. लिग्निन एक नैसर्गिक बायो पॉलिमर है जो पराली को सड़ने नहीं देता. चाहे फसल कितनी भी पानी में रहे. हमने छह-सात साल इस पर रिसर्च करके लिग्निन निकालने की तकनीक ईजाद की. हमने सीएसआईआर के वैज्ञानिकों के साथ भी संपर्क किया. हमारी तकनीक से बायो फर्टिलाइजर्स, बायो केमिकल्स और बायो एनर्जी तीनों का उत्पादन हो रहा है.''

यहां से तैयार हो रहे उत्पादों में लिग्निन बेस्ड बायो पॉलिमर्स का इस्तेमाल रबड़ और प्लास्टिक की स्ट्रेंथ बढ़ाने में हो रहा है जिससे टायर और प्लास्टिक के अन्य उत्पाद बन रहे हैं. इससे कार्बन फाइबर, एनोड-कैथोड के ग्रीन मटीरियल आदि का उत्पादन हो रहा है. सेलुलोज से कागज और कटलरीज बन रही हैं. साथ ही पेंट में भी इस्तेमाल हो रहा है. कंपनी ने ग्रीन एडेटिव बनाए हैं. उसका दावा है कि चीन के बराबर डाइ का उत्पादन गुजरात में होता है. पराली की प्रोसेसिंग से फिनॉल फ्री डाई बन रहा है. पारीख की माने तो इससे भविष्य में वनिला जैसे खाद्य पदार्थ और कृत्रिम हड्डी भी बनाई जा सकती है.

जयेश भाई ने पहला कॉमर्शियल प्लांट सुरेंद्रनगर के धांगदरा में शुरू कर दिया. यहां हर दिन 50 टन कॉटन पराली का प्रबंधन करके विभिन्न उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल का उत्पादन हो रहा है. एक यूनिट साल भर में तकरीबन 23,000 टन पराली प्रोसेस कर सकती है. जयेश भाई की कंपनी कॉटन किसानों की पराली उनके खेत से 100 से 125 रुपए प्रति क्विंटल के दर पर खरीद रही है. जयेश भाई की इस तकनीक पर आधारित प्लांट अभी सिर्फ गुजरात में ही लगे हैं. लेकिन पारीख इसे पूरे देश में और खास तौर पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को गैस चैंबर में तब्दील कर देने वाले क्षेत्रों में ले जाना चाहते हैं. इसके लिए केंद्र सरकार को उन्होंने प्रस्ताव भी भेजा है.

नवाचार

पराली से निकलने वाले सेलुलोज, हेमीसेलुलोज और लिग्निन से ऐसे केमिकल बना रहे हैं जिनका इस्तेमाल टायर, कार्बन फाइबर, एनोड—कैथोड के ग्रीन मटीरियल, कागज, कटलरीज, पेंट फिलर्स, ग्रीन एडेटिव और फिनॉल फ्री डाइ बनाने में हो रहा है. पारीख का दावा है कि इससे भविष्य में कृत्रिम हड्डी भी बनाई जा सकती है.

सफलता का मंत्र

प्रकृति की पूजा करने की परंपरा बचपन से ही परिवार में दिखी. वहीं से यह लगा कि कोई ऐसा कारोबार करूं जिसमें प्रकृति की भी सेवा हो और समाज का भी लाभ हो.

शौक

गजल और सूफी संगीत सुनना, हारमोनियम बजाना, दोस्तों के बीच गाना और गोल्फ खेलना.

Advertisement
Advertisement