उत्तर प्रदेश में मेरठ के सरधना इलाके में स्थित रोमन कैथोलिक चर्च दुनियाभर में मशहूर है. वहीं से करीब 2 किलोमीटर दूर बिनौली रोड पर एक कारखाने के बाहर बेतरतीब रखे हुए कई तरह के पोर्टेबल टॉयलेट बरबस किसी का भी ध्यान खींच लेते हैं. ये कोई आम टॉयलेट नहीं, बल्कि दुर्गम क्षेत्रों में तैनात भारतीय सैनिकों के लिए खास तौर पर डिजाइन किए गए हैं.
यह कारखाना 'ग्रीन एनवायरो प्राइवेट लिमिटेड' नाम की स्टार्टअप कंपनी की सरपरस्ती में संचालित है जो बीते कुछ वर्षों में सैनिकों की जरूरतों के हिसाब से मोबाइल पोर्टेबल टॉयलेट बनाने वाली देश की अग्रणी कंपनी बनकर उभरी है. इस कंपनी के प्रमुख मोहम्मद फरमान की तरक्की का रास्ता बेहद गरीबी से होकर गुजरा है. सरधना के जसद सुल्ताननगर गांव निवासी इनके पिता इंशाल्लाह खान ड्राइवर थे जो बड़ी मुश्किल से परिवार का पेट भर पाते थे. गरीबी का असर फरमान की तालीम पर पड़ा.
वर्ष 1997 से लगातार तीन साल फरमान हाईस्कूल परीक्षा में फेल हुए. फिर उन्होंने आगे की पढ़ाई से तौबा कर ली. वर्ष 2000 में उन्होंने मेरठ में एक एडवरटाइजिंग कंपनी के मालिक आत्माराम शर्मा के साथ रहकर चित्रकारी और पेंटिंग सीखी. पेंटिंग के काम से वे पिता की कमाई में अपना भी हिस्सा जोड़ने लगे. मगर 2007 के बाद फ्लेक्स प्रिंटिंग मशीन बाजार में आ गई और हाथ से पेंटिंग का काम बंद होने लगा.
फरमान 2008 में आखिरकार दिल्ली आ गए और सुलभ शौचालय संस्था से जुड़कर टॉयलेट की रिपेयरिंग और निर्माण की तकनीक सीखने लगे. कुछ ही दिनों में वे 'पोर्टेबल टॉयलेट' बनाने में दक्ष हो गए. वे बताते हैं, ''शुरुआत में मैंने सुलभ शौचालय की ओर से दिल्ली मेट्रो के लिए पोर्टेबल टॉयलेट बनाए जिन्होंने कई दूसरी कंपनियों का ध्यान खींचा." इसी बीच फरमान ने 2016 में ग्रीन एनवायरो प्राइवेट लिमिटेड नाम से खुद की कंपनी शुरू की.
इसी वर्ष रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) से संबद्ध एक कंपनी ने फरमान की कंपनी को दुर्गम इलाकों में तैनात भारतीय सैनिकों के लिए 'बायोडिग्रेडेबल पोर्टेबल मोबाइल टॉयलेट’ बनाने का जिम्मा सौंपा. फरमान बताते हैं, ''डीआरडीओ ने बायोएनाकुलम बैक्टीरिया का उपयोग करते हुए ऐसे पोर्टेबल टॉयलेट बनाने का ऑर्डर दिया था जिनका उपयोग सियाचिन जैसे काफी ठंड वाले इलाकों में किया जा सके."
फरमान ने काफी शोध के बाद पॉलीयूरेथिन फोम (पीयूएफ) शीट का उपयोग करते हुए ऐसे पोर्टेबल टॉयलेट का निर्माण किया जो बाहर की कड़ी ठंड का असर भीतर नहीं आने देता और बहुत कम तापमान पर भी सैनिकों को शौच में कोई दिक्कत नहीं होती. साथ ही टॉयलेट से निकलने वाले मल को खास तरह के बायोटैंक में एकत्र कर न सिर्फ उससे बैक्टीरिया की मदद से आर्गेनिक खाद बनाने का इंतजाम किया गया बल्कि उससे निकलने वाली मीथेन गैस से सैनिकों की ऊर्जा संबंधी जरूरतों को भी पूरा करने का प्रबंध किया गया. ये अनोखे टॉयलेट डीआरडीओ को काफी पसंद आए.
बीते सात वर्षों में फरमान की कंपनी दो लाख से ज्यादा 'बायोग्रेडेबल पोर्टेबल टॉयलेट' डीआरडीओ को सप्लाई कर चुकी है. टॉयलेट के अलावा अनंतनाग, कश्मीर जैसे सर्द क्षेत्रों में सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए बंकर भी बनाना शुरू किया. ये ऐसे बंकर थे जो सर्दी का असर भीतर नहीं आने देते. फरमान ने कमर्शियल उपयोग के लिए भी पोर्टेबल टॉयलेट ईजाद किए.
पहली बार ग्रीन एनवायरो प्राइवेट लिमिटेड ने ऐसे टॉयलेट बनाए जो पांच रुपए के सिक्के डालने से खुलते थे. आज यह कंपनी टैंक के लिए खास तरह की 'गन क्लीनिंग मशीन’, सैनिकों के लिए 'पफ यूरिनल’ समेत गर्मी और ठंडक में काम आने वाले बंकर बनाने वाली अग्रणी कंपनी में शुमार है.
नवाचार
फरमान की कंपनी ग्रीन एनवायरो प्राइवेट लिमिटेड ने पॉलीयूरेथिन फोम (पफ) और 'फाइबर इनफोर्स्ड प्लास्टिक’ का उपयोग करके ऐसी ऊर्जारोधी शीट बनाई जिनसे बनीं दीवारें बाहर के तापमान का असर भीतर नहीं आने देतीं. इसी तकनीक का उपयोग करके अत्यंत कम तापमान वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए पोर्टेबल टॉयलेट बनाए गए.
सफलता का मंत्र
"केवल किताबी ज्ञान से नहीं, व्यावहारिक और जमीनी ज्ञान तथा ईमानदार प्रयास से भी सफलता के द्वार खुलते हैं."
उपलब्धि
स्टार्टअप इंडिया की ओर से 2021 और स्टार्टअप यूपी की ओर से 2012 में सम्मानित.
शौक
हर क्षेत्र की नई तकनीक की जानकारी जुटाना.