बरेली शहर की प्रियदर्शिनी कॉलोनी में होम्योपैथिक डॉक्टर विकास वर्मा की क्लीनिक पर दोपहर एक बजे से बड़ी संख्या में लोग हाथों में पौधे लिए जुटने लगते हैं. डॉ. वर्मा एक-एक करके सभी पौधों का पर्चा बनाकर उसकी बीमारी की पड़ताल करते हैं और उसी के हिसाब से होम्योपैथिक दवाएं साथ में आए लोगों को उपयोग की विधि बताने के साथ मुफ्त में थमा देते हैं. रोज दोपहर एक से तीन बजे तक यह सिलसिला पिछले डेढ़ दशक से चल रहा है.
साल 1996 में जयपुर की राजस्थान यूनिवर्सिटी से 'बैचलर इन होम्योपैथिक मेडिसिन ऐंड सर्जरी (बीएचएमएस)' डॉ. वर्मा ने पेड़-पौधों की बीमारियों के होम्योपैथी से इलाज की अनोखी विधा ईजाद की है. बीएचएमएस कोर्स करने के दौरान डॉ. वर्मा ने उस वक्त जयपुर के मशहूर होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. विनोद शर्मा के सान्निध्य में त्वचा रोग और फेफड़ों, पेट की अन्य जटिल बीमारियों के होम्योपैथिक इलाज में विशेषज्ञता हासिल की थी.
पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने बरेली में प्रैक्टिस शुरू की और जल्द ही पूरे रुहेलखंड इलाके में मशहूर हो गए. लोगों का इलाज करने के दौरान एक वाकए ने डॉ. वर्मा को नई दिशा दी. उन्हीं के शब्दों में, '' 2001 में मेरी पत्नी ने घर में नींबू के पौधे लगाए थे. पहली बार में तो उसमें काफी फल आए मगर बाद में आना बंद हो गए. कई किसानों, कृषि वैज्ञानिकों से बात की, तरह-तरह की खाद डाली, पर पौधे पर कोई असर नहीं हुआ.
अंतत: यह तय किया कि जिस तरह लक्षणों के अनुरूप होम्योपैथिक दवाओं से इंसानों का इलाज होता है उसी तरह क्यों न नींबू के पौधों का भी किया जाए.'' फिर नींबू के पौधे को जड़ समेत मिट्टी से बाहर निकाल कर उसका परीक्षण किया गया. यह पाया गया कि उसकी पत्तियां काली पड़ रही थीं. तना फूल गया और जड़ों में गांठ थी और वह गल भी रही थी. डॉ. वर्मा बताते हैं, ''नींबू के पेड़ के लक्षण कुछ वैसे ही थे जैसे कि सर्दियों में कई बार बुजुर्गों में दिखाई पड़ते हैं.
इसी आधार पर 'आर्सेनिक एलबम-30' की एक डोज पानी में घोलकर उसका छिड़काव नींबू के पौधे की जड़ों में किया गया.'' एक हफ्ते बाद डॉ. वर्मा ने देखा कि पौधों में कुछ जान आ गई. 15 दिनों के बाद उनमें नई कोंपलें दिखने लगीं. तीन हफ्ते बाद नई शाखाएं भी आ गईं. डॉ. वर्मा बताते हैं, ''दूसरी डोज के बाद तो नींबू के पौधे में फूल-फल भी आ गए. मतलब होम्योपैथिक दवा ने असर दिखाया. उसके बाद मैंने अपने घर में लगे डहेलिया, गुलाब के पौधों पर भी होम्योपैथिक दवाओं का ट्रायल किया और सबके नतीजे अप्रत्याशित रहे.'' फिर डॉ. वर्मा अपने परिचितों के घरों में लगे पौधों का होम्योपैथिक इलाज करके ख्याति बटोरने लगे.
इसी बीच 2012 में डॉ. वर्मा से इलाज करवा रहे बरेली में रामगंगा के अखा गांव निवासी ऋषिपाल सिंह गेहूं की फसल में पाला लगकर खराब होने की समस्या से परेशान थे. डॉ. वर्मा बताते हैं, ''मैंने ऋषिपाल को फसल के थोड़े से हिस्से में होम्योपैथी से इलाज करवाने को बड़ी मुश्किल से इस शर्त पर राजी किया कि ट्रायल का नतीजा जो भी हो फसल का पूरा पैसा मैं ही दूंगा.''
गेहूं की फसल के लक्षणों का अध्ययन करके डॉ. वर्मा ने पानी में 'रसटॉक्स' दवा मिलाकर छिड़काव किया. कुछ दवा गोलियों के रूप में भी खेतों में डाली गई. नतीजा आश्चर्यजनक था. ऋषिपाल बताते हैं, ''फसल के जिस हिस्से में होम्योपैथिक दवा डाली गई उसमें न केवल 20 फीसद से ज्यादा फसल बढ़ी बल्कि गेहूं के दाने भी काफी मोटे थे.
इसके बाद कीटनाशकों की जगह होम्योपैथी से पेड़-पौधों के इलाज की डॉ. वर्मा की तकनीक ने चर्चा बटोरनी शुरू कर दी. बरेली समेत प्रदेश के दूसरे जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों ने इस तकनीक को सराहा. पर समस्या यह थी कि किसान कीटनाशक के प्रयोग से आने वाला त्वरित नतीजा होम्योपैथी दवा से भी चाहते थे. ऐसे किसानों को जागरूक करने के लिए 2015 में डॉ. वर्मा ने पीलीभीत के लालौरीखेड़ा ब्लॉक के गांव खमरियापुल में 28 बीघा बंजर जमीन खरीद कर उसे अपनी प्रयोगशाला में बदल दिया.
वहां विशेष ढंग से जलकुंभी और होम्योपैथिक दवाओं का प्रयोग करके जमीन को उपजाऊ बनाया गया. वहां पर होम्योपैथिक दवाओं के प्रयोग से अमरूद, आंवला, अंजीर, कपूर, सागौन, शीशम समेत कई अन्य फसलों की न सिर्फ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई गई बल्कि उपज में भी 20 फीसद से ज्यादा का इजाफा किया गया. उसके बाद पूरे देश से किसान और कृषि संस्थाओं के प्रतिनिधि उनके खेत देखने पहुंच चुके हैं. आज देशभर के 2,000 से ज्यादा किसान अपनी फसलों का होम्योपैथिक इलाज डॉ. वर्मा से करवा रहे हैं.
नवाचार
डॉ. विकास वर्मा लक्षणों के अनुसार पेड़-पौधों की बैक्टीरियल, वायरल और फंगल बीमारियों का इलाज करते हैं. इसके लिए उन्होंने गेहूं, धान, सरसों, गन्ना, उड़द, प्याज, मूंगफली, मिर्च, ज्वार-बाजरा, बेर समेत कई फसलों में किसी भी प्रकार के संक्रमण से जुड़े 100 से ज्यादा लक्षणों की पहचान कर होम्योपैथिक इलाज का एक अनोखा पैटर्न विकसित किया है.
वे होम्योपैथिक दवाओं के अनोखे 'कॉम्बिनेशन' से पौधे विशेष का ''फोटोसिन्थेसिस पीरियड'' बढ़ाते हैं जिससे वह काफी मजबूत और खूब फलदार बनता है.
सफलता का मंत्र
दूसरों के काम आने के लिए कभी हार न मानने का जज्बा सदैव सफलता तक लेकर जाता है.
शौक
ड्राइविंग, संगीत सुनना
उपलब्धि
2021 में ''वृक्ष मित्र'' पुरस्कार, विश्व हरेला दिवस-2022 पर पर्यावरण संरक्षण के लिए सम्मानित.