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प्रधान संपादक की कलम से

जयपुर की बैंक मैनेजर तन्वी जैन से कहा गया कि उनका सिम कार्ड मनी लॉन्डिंरग के घोटाले से जुड़ा था. बेंगलूरू की युवा टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ राबिया ठाकुर यह सुनते ही घबरा गईं कि ड्रग्स से भरा फेडएक्स का एक संदिग्ध पैकेज उनके नाम पर है

इंडिया टुडे कवर : ठगों के इस नए गैंग से सावधान
इंडिया टुडे कवर : ठगों के इस नए गैंग से सावधान
अपडेटेड 2 दिसंबर , 2024

—अरुण पुरी

वे दिन गए जब साइबर ठगी झारखंड या राजस्थान के गुमनाम-से शहरों से चलने वाला कुटीर उद्योग हुआ करती थी. वे देसी ठग बुनियादी औजारों से डिजिटल नौसिखुओं को शिकार बनाते थे और ज्यादा से ज्यादा लाख-दो लाख लेकर भाग जाते थे. वह प्रजाति विकास की सीढ़ी पर काफी आगे आ गई है.

भारत को इन न्यू बिग कॉन यानी नए बड़े ठगों से सावधान रहना होगा. यह बदला हुआ रूप, जो एक तरह का पारदेशीय अपराध वायरस है, बहुत सयाने और उन्नत साइबर औजारों का इस्तेमाल करता है और कई लाखों-करोड़ों में खेलता है. अब ये सिर्फ उम्रदराज महिलाएं ही नहीं रह गई हैं जिन्हें बेवकूफ बनाकर उनकी पेंशन की रकम हड़पी जा रही है.

झांसे और धोखे का जाल इतना अतिवास्तविक है कि भारत के सबसे बड़े टेक्सटाइल समूह वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एस.पी. ओसवाल सरीखों को भी ठग चुका है.

शिकार लोगों की हमारी बानगी सूची में 2.14 करोड़ रुपए देने के लिए मना लिए गए पूर्व आईजीपी, 82.27 लाख रुपए से हाथ धो बैठे सेवानिवृत्त मेजर जनरल, यहां तक कि 24 लाख रुपए गंवा चुकी एक वकील भी हैं. इस साल के पहले चार महीनों में भोले-भाले भारतीय 120 करोड़ रुपए इन ठगों के हाथ गंवा बैठे. बहुत मुमकिन है कि यह विशाल पहाड़ का ऊपर दिखाई देने वाला सिरा भर हो.

यह नई परिघटना कहां से शुरू हुई? धोखाधड़ी का 21वीं सदी का एक पूरा सुपरमार्केट. 'सीमा रहित जालसाजों' के समूचे कार्टेल फैले हैं. इन ठगियों को कंबोडिया, लाओस, म्यांमार सरीखे दक्षिणपूर्व एशियाई देशों में फैले बेहद गतिशील ठिकानों से अंजाम दिया जाता है.

मुहाने के अंतिम सिरे पर दीन-हीन भारतीय पैदल सैनिकों का छितराया नेटवर्क है—जो खुद बलात इस धंधे में धकेल दिए गए 'साइबर गुलाम' हैं. उनके पीछे घात लगाए बैठे सरगना हैं जिनकी धुंधली परछाइयां अक्सर चीन तक जाती है. लूट के बाद ठग नए-नवेले वित्तीय राजमार्गों की डिजिटल भूलभुलैया से रफूचक्कर हो जाता है.

इस लूट के एक सिरे पर भ्रष्ट बैंक अधिकारी और 'म्यूल खाते (अवैध धन के हेरफेर में इस्तेमाल होने वाले बैंक खाते)' हैं. दूसरे सिरे पर बेसुराग विदेशी खातों और क्रिप्टोकरेंसी की अंधी गुफा है. खतरा इतना जबरदस्त है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 अक्तूबर को अपने रेडियो प्रसारण मन की बात में इसके बारे में आगाह करने को विवश हो गए.

इस नई ठगी की मास्टर चाबी डर है. स्टिंग की शुरुआत फोन पर अफसराना आवाज से होती है, जो शिकार को बताती है कि उसका नाम, आधार या पैन की जानकारी आपराधिक जांच में सामने आई है. जयपुर की बैंक मैनेजर तन्वी जैन से कहा गया कि उनका सिम कार्ड मनी लॉन्डिंरग के घोटाले से जुड़ा था. बेंगलूरू की युवा टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ राबिया ठाकुर यह सुनते ही घबरा गईं कि ड्रग्स से भरा फेडएक्स का एक संदिग्ध पैकेज उनके नाम पर है.

थोड़े शब्दों में कहें तो दहशत का झटका पहुंचाने वाले किसी संगीन जुर्म का जिक्र करो, और ज्यादातर ध्वस्त हो जाते हैं. शिकार व्यक्ति से कहा जाता है कि तत्काल जेल या अंतहीन कानूनी पचड़े में पड़ने से बचना है तो सहयोग करो. बदनामी के डर से भयभीत वे अगले फरमान का पालन करते हैं: किसी को बताना मत वर्ना गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं.

फिर शुरू होता है अजीबोगरीब नाटक, जिसे 'डिजिटल अरेस्ट' कहते हैं, जिसका अखाड़ा और मंचीय साधन आधे टेक्नोलॉजी से जुड़े और आधे मनोवैज्ञानिक होते हैं. वर्जित सामान की तस्करी के आरोप से घबराए भोपाल के डॉक्टर से वीडियो 'इंटरोगेशन' के लिए स्काइप डाउनलोड करने को कहा गया. पीड़ितों को विश्वास दिला दिया जाता है कि वे वर्चुअल या आभासी हिरासत में हैं.

बहुरूपियों का चलता-फिरता दस्ता पुलिस या सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय या नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अफसरों का भेष धारण करके सधा हुआ लाइव प्रदर्शन करता है. बीच-बीच में वॉकी-टॉकी की आवाज आती है, और पृष्ठभूमि में सामान्य लिपिकीय गतिविधियां और वैध दिखाई देने वाला साजो-सामान भरा होता है.

अधिकार से भरी कड़क आवाजों के साथ दिखने और सुनाई देने वाले इशारे उन्हें ऐसे दु:स्वप्न में ले जाते हैं जो असल मालूम देता है. भरोसा नहीं होगा, पर ओसवाल को स्काइप पर एक पूरे 'सुप्रीम कोर्ट के सत्र' में रखा गया, जहां एक अदाकार ने भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड का रूप धारण कर रखा था.

जालसाज डीपफेक टेक्नोलॉजी से ये झूठे प्रतिरूप गढ़ते हैं! यह आजमाइश कई दिन चल सकती है और तभी खत्म होती है जब वे 'सुरक्षा के बदले रकम जमा' करने की मांग पूरी कर देते हैं, जो तेजी से करोड़ों रुपए तक जा सकती है.

ऐसा कैसे होता है कि पूर्व पुलिस अफसर और वकील तक इस चाल में फंस जाते हैं? शायद यह व्यवस्था के प्रति सहज अविश्वास है, डर या बेचैनी भी हो सकती है कि कानून के पास सचमुच उनके खिलाफ कुछ है: सटीक डिजिटल प्रोफाइलिंग के जरिए शिकार चुने जाते हैं, जिसमें चुराए गए आधार के ब्योरों, हाल की विदेश यात्राओं, ऑनलाइन गतिविधियों और ऐसी ही दूसरी जानकारियों का इस्तेमाल किया जाता है.

हरेक के खीसे में एक या दो असुविधाजनक तथ्य छिपे हो ही सकते हैं. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यह डर का लकवा है. खालिस दहशत तर्कसम्मत सोच-विचार को मिटा देती है. आगरा के एक स्कूल शिक्षक से कहा गया कि उनकी बेटी सेक्स रैकेट में पकड़ी गई है, तो उन्हें दिल का दौरा पड़ गया.

बेंगलूरू की वकील को ऑनलाइन 'स्ट्रिप सर्च' करवाने के लिए फुसला लिया गया. इंडिया टुडे के ब्यूरो ने अपराध की इस उत्तर आधुनिक तस्वीर को उकेरने के लिए देश भर से ऐसी कहानियां का तानाबाना बुना है.

इसके अंतरराष्ट्रीय दायरे को देखते हुए असल अपराधी और लूटी गई रकम दोनों अक्सर पहुंच के बाहर होते हैं. लिहाजा जागरूकता ही सबसे अच्छा समाधान है. जैसा कि एक पूर्व वित्त अधिकारी कहते हैं, "अगर आप फोन काट दें तो यह घोटाला होगा ही नहीं."

लैटिन में एक कानूनी कहावत है, कैविएट एक्वपटर या खरीदार सावधान रहे. तो, प्रिय पाठक, जब भी आप अंटी से अपना धन दे रहे हों, सजग और सावधान रहिए.

— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

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