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भारत ने बनाया ब्रेन की तर्ज पर काम करने वाला कंप्यूटर! इसे खास क्यों माना जा रहा है?

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क प्रेरित कंप्यूटिंग की दिशा में लंबी छलांग लगाते हुए एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जो न्यूरल सिनैप्सेज की तरह सूचनाओं को प्रोसेस करता है

कंप्यूटिंग में क्रांति की नई कवायद
कंप्यूटिंग में क्रांति की नई कवायद
अपडेटेड 26 नवंबर , 2024

कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरू में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शांत और हरे-भरे परिसर में सेंटर फॉर नैनो साइंस ऐंड इंजीनियरिंग (सीईएनएसई) की इमारत के एक कोने में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी लैब है. यह इतनी अधिक शांत और सहज काम की जगह है, जिसकी आप कल्पना  भी नहीं कर सकते. यहां शोर-शराबा भी फुसफुसाहट जैसा लगता है, क्योंकि उसे 30 डेसिबल से भी कम कर दिया जाता है, ताकि किसी अणु के गुणों की जांच सरीखे संवेदनशील माप किए जा सकें.

यहीं हाल ही में एक कामयाबी हासिल हुई, जिससे भारत कंप्यूटिंग आविष्कारों के वैश्विक मानचित्र पर स्थापित हो सकता है. यह आविष्कार एक नया उपकरण- एक कंप्यूटिंग एक्सेलरेटर- है जो डेटा को कंप्यूटर का दिमाग कहे जाने वाले माइक्रोप्रोसेसर के पारंपरिक तरीके से नहीं, बल्कि एकदम इंसान के दिमाग की तरह प्रोसेस करेगा. तो, न्यूरोमॉर्फिक या मस्तिष्क-प्रेरित कंप्यूटिंग की दुनिया में स्वागत है. इसमें तंत्रिका विज्ञान और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के बीच एक मिलन बिंदु खोजने की कोशिश होती है.

इसकी प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत सिनैप्स है. सिनैप्स मानव शरीर में तंत्रिका के छोर पर स्थित जंक्शन होता है, जहां दो न्यूरॉन्स के बीच या न्यूरॉन और मांसपेशी कोशिका के बीच विद्युत आवेग प्रसारित होते हैं.

एक्सेलरेटर के शोध और विकास में लगी आईआईएससी की सात-सदस्यीय टीम के प्रमुख शोधकर्ता श्रीतोष गोस्वामी कहते हैं, ''अगर आप सिनैप्स को देखें, तो यह एक एक्सॉन (जो न्यूरॉन सिग्नल प्रसारित करता है) और एक डेंड्रोन (जो उसे प्राप्त करता है) के बीच हजारों अवस्थाओं का डेटा संग्रह कर सकता है. इसलिए, सवाल यह है कि अगर मस्तिष्क इतनी सारी अवस्थाओं का डेटा संग्रह कर सकता है, तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्यों नहीं कर सकते.’’ यह शोध-पत्र ब्रिटेन के साप्ताहिक साइंटिफिक जर्नल नेचर में 11 सितंबर को प्रकाशित हुआ. 

इस एक्सेलरेटर के मूल में एक हिस्सा रासानयिक प्रक्रिया भी है—एक तरह की फिल्म का विकास जिसके अणु जब बिजली प्रवाह से उत्तेजित होते हैं, तो डेटा प्रवाहित होने में आसानी या चालकता (कंडक्शन्स) की कई तरह की अवस्थाएं बन सकती हैं. ठीक-ठीक कहें तो 16,500 विभिन्न अवस्थाएं हैं.

इसकी तुलना डिजिटल कंप्यूटर में सिर्फ दो चालक अवस्थाओं से करें. ऐसा इसलिए है क्योंकि आण्विक फिल्म विद्युत संकेत को आण्विक अवस्थाओं के पूरे सिलसिले में एनकोड करती है, जबकि डिजिटल कोड इसे शून्य और एक की बाइनरी में तोड़ देता है. इसका मतलब यह है कि बहुत सारी गणनाएं केवल कुछ चरणों में, शायद एक ही चरण में की जा सकती हैं.

एक क्रांति की तैयारी

दरअसल, 1990 के दशक के उत्तरार्ध में ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) टेक्नोलॉजी में वह कामयाबी थी, जिसने समानांतर प्रसंस्करण के जरिए इमेज प्रोसेसिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया को रफ्तार मिली. यह ऐसी कंप्यूटिंग विधि है, जो चिप के भीतर बड़ी संख्या में कोर का उपयोग करती है और हर कोर कुल काम के एक हिस्से को अंजाम देता है. आइटी उद्योग के दिग्गज क्रिस गोपालकृष्णन कहते हैं कि आईआईएससी का एक्सेलरेटर जीपीयू का तंत्र 'पूरी तरह बदल’ सकता है.

आईआईएससी की अपनी लैब में श्रीतोष गोस्वामी (बैठे हुए) और प्रोफेसर नवकांत भट

वे बताते हैं, "गोस्वामी की टीम ने शोध सामग्रियों के जरिए बनाए गए एनालॉग सर्किटरी के इस्तेमाल से यह मेमरिस्टर बनाया है जो एक चरण में ही मैट्रिक्स गणना कर सकता है, जो आमतौर पर पारंपरिक कंप्यूटर में कई चरणों में होता है." मेमरिस्टर एक्सेलरेटर के मुख्य घटक हैं. डिजिटल कंप्यूटर चिप्स मेमोरी यूनिट और प्रोसेसिंग यूनिट के बीच डेटा को आगे-पीछे करता है, इसके विपरीत, यह प्रतिरोधी स्विचिंग मेमोरी डिवाइस एक ही स्थान पर डेटा संग्रह और गणना करता है. गोस्वामी बताते हैं, "तो यह आपकी कंप्यूटिंग ऊर्जा खपत और समय को कई गुना कम कर देगा."

आज के एआई के कंप्यूट-इंटेंसिव दौर में ऊर्जा और समय दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, जहां मशीनों को भारी मात्रा में डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है. आम तौर पर, इसमें इस सारे डेटा को डेटा सेंटर या 'क्लाउड’ पर ले जाना शामिल होता है. लेकिन मेमरिस्टर के साथ, एआई के कई काम स्थानीय रूप से किए जा सकते हैं. सर्किट के विकास और परीक्षण की अगुआई करने वाले प्रोफेसर नवकांत भट कहते हैं, "यह एज पर एआई है. आप एज पर बड़े भाषा मॉडल को ट्रेन कर सकते हैं, न कि डेटा सेंटर में."

यहां एज का मतलब डिवाइस और डेटा सेंटर के बीच में स्थित सर्वर से है, जो डेटा पैकेट को पार करने के लिए लंबी राउंडट्रिप को कम करता है. ऊर्जा की बचत के अलावा, इसका मतलब यह भी है कि महत्वपूर्ण डेटा को सुरक्षित रखा जा सकता है, जो स्वास्थ्य क्षेत्र या रणनीतिक रक्षा प्रयोगों सरीखे मामलों में गोपनीयता के मद्देनजर अहम हो सकते हैं.

न्यूरोमॉर्फिक डिजाइन और मस्तिष्क जैसी प्रोसेसिंग की इसकी खोज अभी भी एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें अमेरिका स्थित इंटेल और आइबीएम जैसी शीर्ष टेक्नोलॉजी कंपनियां बेहतर चिप डिजाइन या एल्गोरिद्म या सॉफ्टवेयर के मामले में निवेश कर रही हैं. इसके अलावा विश्वविद्यालयों में विकसित कई विशेषज्ञ स्टार्ट-अप है.

हार्डवेयर के मामले में, दुनियाभर के शोधकर्ता मेमरिस्टर, फेरोइलेक्ट्रिक डिवाइस और प्रतिरोधक रैम जैसे कई उपकरणों के साथ प्रयोग कर रहे हैं. मसलन, मेमरिस्टर में मुख्य चुनौतियों में एक, बड़ी संख्या में अद्वितीय अवस्थाएं प्राप्त करना है जिसमें डिवाइस डेटा संग्रह कर सके. यह वह चुनौती है जिसे आईआईएससी डिवाइस ने पार कर लिया है.

मैट्रिक्स की आमद

इस डिवाइस को मेमरिस्टर के ग्रिड के रूप में सोचें, जो जंक्शनों के बीच डेटा संग्रह करता है लेकिन चालकता की 16,500 विभिन्न अवस्थाओं में. जब इस ग्रिड की पंक्तियों और स्तंभों के माध्यम से वोल्टेज लगाया जाता है, तो यह चालकता की इन विभिन्न अवस्थाओं के साथ इंटरऐक्ट करता है. यह ग्रिड पैटर्न यह भी दर्शाता है कि कंप्यूटर में कुछ बुनियादी गणना कैसे होती है, जिसे मैट्रिक्स गणना कहा जाता है.

एक पारंपरिक कंप्यूटर में, 100&100 के ग्रिड की मैट्रिक्स गणना के लिए 10,000 चरणों की आवश्यकता होगी. लेकिन एनालॉग एक्सेलरेटर को उत्तर पाने के लिए केवल एक चरण की आवश्यकता होती है क्योंकि डेटा मैट्रिक्स के जंक्शनों पर विभिन्न अवस्थाओं के स्पेक्ट्रम में आसानी से रखा जाता है. इसके अलावा, शोध पत्र ने प्रदर्शित किया कि मैट्रिक्स गणना के दौरान एक्सेलरेटर की ऊर्जा दक्षता जीपीयू (अमेरिकी तकनीकी दिग्गज एनविडिया) की तुलना में 250 गुना अधिक थी.

हावड़ा के शिबपुर में भारतीय इंजीनियरिंग विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्र रहने के दौरान साल 2011 में ही इस समस्या पर काम शुरू करने वाले गोस्वामी बताते हैं, "यह ज्यामितीय संरचना स्वयं एक चरण में मैट्रिक्स गणना करती है." उन्हें प्रेरणा अपने पिता प्रोफेसर श्रीब्रत गोस्वामी से मिली, जो अकार्बनिक रसायन विशेषज्ञ थे और नए रासायनिक समीकरणों में विभिन्न अणुओं के गुणों पर शोध कर रहे थे. वे मजाकिया अंदाज में कहते हैं, "इस तरह हमारे रास्ते मिले... अकादमिक रूप से मुझे उन्हें उपकरणों में बदलने में दिलचस्पी थी."

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर से पीएचडी के बाद, आईआईएससी से जुड़ने के लिए गोस्वामी बेंगलूरू चले आए और उन्होंने एक्सेलरेटर पर शोध जारी रखा. जब उनके पिता आण्विक प्रणाली के डिजाइन पर काम कर रहे थे, तब गोस्वामी ने प्रो. भट और चार साथी शोधार्थियों—दीपक शर्मा, शांति प्रसाद रथ, बिद्याभूषण कुंडू और हरिविग्नेश एस. के साथ मिलकर काम किया. चारों ने सर्किट और सिस्टम डिजाइन, इलेक्ट्रिकल कैरेक्टराइजेशन, फैब्रिकेशन, गणितीय मॉडलिंग और बायो-प्रेरित न्यूरोनल प्रतिक्रिया व्यवहार पर काम किया.

एक्सिलर वेंचर्स नामक एक टेक्नोलॉजी सीड फंड संचालित करने के अलावा आईआईएससी काउंसिल के अध्यक्ष गोपालकृष्णन कहते हैं, "यह काफी बड़ी कामयाबी है." हालांकि, वे कहते हैं कि मेमरिस्टर को लैब-स्केल डिवाइस से बाजार के लिए तैयार अंतिम उत्पाद में बदलने में कई कदम शामिल हैं.

इसमें डिवाइस को छोटा करना, सॉफ्टवेयर एल्गोरिद्म लिखना शामिल होगा जो इसे डिजिटल चिप के साथ संवाद करने में सक्षम बनाएगा और आखिर में, उसका निर्माण करना होगा. वे कहते हैं, "अगर आप यह सब करने में सक्षम हैं, तो यह एक महत्वपूर्ण सफलता है और भारत के पास कुछ ऐसा है जिसके इर्द-गिर्द एक व्यवसाय और एक उद्योग बनाकर उसे तार्किक निष्कर्ष पर ले जाना चाहिए."

सिलिकॉन इलेक्ट्रॉनिक्स के विशेषज्ञ प्रो. भट इससे सहमत हैं कि अभी लंबा रास्ता तय करना है. वे कहते हैं कि मेमरिस्टर के विभिन्न हिस्सों के चिप पर काम चल रहा है. भट कहते हैं, "वास्तव में, हम अभी सिस्टम-ऑन-ए-चिप (एसओसी) पर काम कर रहे हैं. पहला संस्करण इस साल दिसंबर तक टेप आउट (यानी, निर्माण सुविधा के लिए भेजा जाएगा) कर दिया जाएगा. अगले साल की पहली तिमाही तक, हमारे पास साझा करने के लिए कुछ शुरुआती नतीजे होंगे."

साथ ही, एक स्टार्ट-अप की योजना भी बनाई जा रही है. आईआईएससी मेमरिस्टर का सबसे खास पहलू यह है कि यह विज्ञान के बुनियादी प्रयोगों से लेकर तकनीकी सफलता तक क्लासिक तरीके से विकसित हुआ. बेशक, सीईएनएसई लैब में उत्साह जबरदस्त है.

दिमाग की तरह जोड़-तोड़

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग विकास की शुरुआती अवस्था में है, लेकिन भविष्य में यह मशीनों के काम करने के तरीके को बदलने के लिए पारंपरिक कंप्यूटरों की क्षमता बढ़ा देगा. 

नर्वस सिस्टम में सिनैप्स नर्व के आखिरी सिरों का जंक्शन होता है, जहां से इलेक्ट्रिकल या केमिकल आवेग एक न्यूरॉन से दूसरे में जाते हैं. आईआईएससी शोधकर्ताओं ने एक ऐसा कंप्यूटिंग एक्सीलेरेटर तैयार किया है, जिसमें मेमरिस्टर नाम के कई मेमोरी स्टोरेज डिवाइस हैं. ये मेमरिस्टर इंसान के सिनैप्स की तरह काम करते हैं. इसकी वजह से डेटा को 16,500 विभिन्न दशाओं में स्टोर करके तेजी से प्रोसेस करने में मदद मिलती है. इसके विपरीत, पारंपरिक कंप्यूटर चिप में केवल दो कंडक्टन्स दशाएं होती हैं और डिजिटल कोड को शून्य और एक की बाइनरी या युग्म में तोड़ना है.

आईआईएससी की टीम ने एन्न्सीलेरेटर का इस्तेमाल करके 2022 में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के रॉ डेटा से नासा के आइकॉनिक इमेज 'पिलर्स ऑफ क्रिएशन’ को तैयार किया. उसने 16,64,000 पिक्सेल को 26,000 चरणों में तैयार किया. दूसरी ओर, पारंपरिक कंप्यूटर को यही इमेज तैयार करने के लिए 10 करोड़ चरणों की जरूरत होती. एक्सीलेरेटर पेचीदा कामों को स्थानीय रूप से निबटाकर कंप्यूटेशन के चरणों को काफी कम कर देता है. इससे कंप्यूटिंग तेज होने के अलावा ऊर्जा की बचत होगी और डेटा की सुरक्षा भी पक्की होगी.

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