scorecardresearch

ब्रिक्स में चीन ने 'दोस्ती' का हाथ बढ़ाया, लेकिन भारत के लिए चुनौती अब भी कायम है!

अमेरिका के नेतृत्व में कई देश चीन पर ऊंचे शुल्क लगा रहे हैं, उसे भारत जैसे वैकल्पिक बाजारों की जरूरत

व्यापार घाटे की खाई
व्यापार घाटे की खाई
अपडेटेड 25 नवंबर , 2024

पिछले महीने रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात से भले सीमा पर तनाव में कमी का संकेत मिला हो, मगर भारत दोतरफा व्यापार संबंधों को लेकर सतर्क है. उसने इस साल चीन के आयात पर कई ऐंटी-डंपिंग शुल्क लगा दिए. भारत ने वहां से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) पर जरूरी नियंत्रण रखने का भी संकल्प लिया है.

उसने यह रुख 2020 में लद्दाख के गलवान में सीमा पर हुए गतिरोध के बाद राष्ट्रीय हितों की रक्षा की खातिर अपनाया. पर, इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में चीन अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया और विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे में मोदी सरकार के सामने कठिन चुनौती आ गई है.

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में, डंपिंग उसे कहा जाता है जब कोई देश या निर्माता किसी उत्पाद को आयात करने वाले देश में उसके घरेलू बाजार में सामान्य कीमत से कम पर उसे बेचता है. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की व्यवस्था के तहत, अन्य देश आयातित वस्तुओं पर ये शुल्क तब लगा सकता है जब यह सिद्ध हो जाए कि उन सस्ते उत्पादों की बाढ़ से घरेलू उत्पादकों को 'नुक्सान’ हो रहा है.

भारत में घरेलू उद्योग वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत ऐंटी-डंपिंग एवं संबद्ध शुल्क महानिदेशालय में जांच का आवेदन कर सकते हैं. 2023 में भारत ने विदेश से आयात पर ऐसी 45 जांच शुरू की और 14 मामलों में शुल्क लगाया. उससे यह अमेरिका के बाद ऐंटी-डंपिंग उपायों का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता बन गया. इस साल जनवरी और सितंबर के बीच भारत ने 34 और जांच शुरू की. उनमें से 15 या 44 फीसद चीनी आयात को लेकर हैं.

मसलन, फर्नीचर इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाले टेलीस्कोपिक चैनल ड्रावर स्लाइडर के चीन से आयात की पिछले साल शुरू ऐंटी-डंपिंग जांच में पाया गया कि उसकी कीमत घरेलू बाजार से 49 फीसद कम थी. नतीजों के आधार पर भारत ने इस साल अक्तूबर में उसके आयात पर प्रति टन 614 डॉलर (51,750 रुपए) का ऐंटी-डंपिंग शुल्क लगाया. इसी महीने उसने ग्लास मिरर और सेलफोन फिल्म समेत पांच चीनी वस्तुओं पर पांच साल के लिए ऐंटी-डंपिंग शुल्क लगाए हैं. वहीं डाईंग टेक्सटाइल, पेपर और चमड़े में इस्तेमाल सल्फर ब्लैक के आयात पर प्रति टन 389 डॉलर (32,792 रुपए) का शुल्क लगाया गया है.

ऑटोमोटिव, मेडिकल और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले थर्मोप्लास्टिक पॉलीयूरेथेन पर भी 0.93 डॉलर (78 रुपए) से लेकर 1.58 डॉलर (133 रुपए) प्रति किलो तक ऐंटी-डंपिंग शुल्क लगाए गए हैं.

गलवान झड़प के बाद से भारत ने चीन से आने वाले निवेशों पर कई प्रतिबंध लगाए हैं और कई मोबाइल ऐप को प्रतिबंधित किया है. फिर भी चीन ने भारत में उत्पाद भेजना बंद नहीं किया. वित्त वर्ष 25 के पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर 2024) में भारत को चीन का निर्यात 11.5 फीसद बढ़कर 50.5 अरब डॉलर (4.26 लाख करोड़ रुपए) से 56.3 अरब डॉलर (4.74 लाख करोड़ रुपए) हो गया.

वहीं, भारत का निर्यात 7.6 अरब डॉलर (64,068 करोड़ रुपए) से घटकर 6.9 अरब डॉलर (58,160 करोड़ रुपए) रह गया. ऐसे में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में 42.9 अरब डॉलर (3.61 लाख करोड़ रुपए) से 15 फीसद बढ़कर 49.4 अरब डॉलर (4.16 लाख करोड़ रुपए) हो गया.

क्यों बढ़ रहा आयात

चीन से आयात बढ़ने का एक अहम कारण जोरदार आर्थिक वृद्धि के बीच भारतीय उद्योग की बढ़ती मांग है, जिससे कभी-कभी सामान की डंपिंग बढ़ जाती है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (एफआइएफओ) के सीईओ और महानिदेशक अजय सहाय तर्क देते हैं, "कुछ क्षेत्रों में जहां हम तेजी से बढ़ना चाहते हैं, घरेलू उद्योग एक उचित समय सीमा के भीतर आवश्यक उत्पादों की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं हो पाता. अगर मांग (घरेलू तौर पर) पूरी नहीं होती है तो फिर दूसरा विकल्प क्या है?" वे कहते हैं कि चीन से होने वाले आयात में दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी सबसे ज्यादा है. इन उत्पादों का कुल आयात में करीब 50 फीसद हिस्सा है.

मोबाइल फोन का ही मामला देखें. भारत इनका शुद्ध निर्यातक है, पर उसके पुर्जों और अवयवों का बड़ा मैन्युफैक्चरर नहीं है. ये सब चीन से आ रहे हैं. अब केंद्र सरकार ने उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को पुर्जों-अवयवों तक बढ़ा दिया है तो अगले तीन से पांच साल में इनके घरेलू उत्पादन में सुधार की उम्मीद है. तब चीन के आयात पर निर्भरता घट जाएगी. इसी तरह भारत दुनिया का फार्मा कैपिटल बनने का इच्छुक है, पर ज्यादातर एपीआइ—ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स या दवा उत्पादन के कच्चे माल—के लिए भारत अभी भी चीन पर निर्भर है.

फिर एक अन्य कारण यह है कि चीन ने जरूरत से ज्यादा क्षमताएं बना ली हैं—ऐसी स्थिति जहां फैक्ट्री उतना सामान नहीं बेच सकती जितना उसका संयंत्र उत्पादन करने के लिए बनाया गया है—घरेलू वृद्धि में सुस्ती के कारण और उसे अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए निर्यात को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. चीन के मौजूदा वित्त वर्ष (जुलाई-सितंबर 2024) की तीसरी तिमाही में उसकी अर्थव्यवस्था 4.6 फीसद के हिसाब से बढ़ी है.

यह पिछले साल की शुरुआत से सबसे धीमी और उसके करीब 5 फीसद के लक्ष्य से कम है. चीन का रियल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर लबालब और स्थिर है. इस्पात, एल्युमीनियम, फेरोअलॉय और निर्माण में काम आने वाले अन्य कच्चे माल के उत्पादक सहायक उद्योगों की क्षमता जरूरत से ज्यादा है. वैसे, चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर प्रतिस्पर्धी है लेकिन इसे रिप्लेस नहीं किया जा सकता. अध्ययनों में कहा गया है कि उसका निर्यात उद्योग काफी हद तक असेंबली आधारित है.

जब उत्पाद अधिक टेक्नोलॉजी वाले बन जाते हैं तो मुख्य टेक्नोलॉजी की कमी नुक्सानदेह होगी. इस बीच, चीन में एक बच्चे की सख्त नीति के कारण चीन परिधान और फुटवियर जैसे श्रम बहुल क्षेत्रों से हट रहा है. इसके बजाए वह ऑटोमोटिव जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों को अपना रहा है. फिर उन्हें सस्ती कीमतों पर अन्य बाजारों में धकेल दिया जाता है. वहीं, कमजोर उपभोक्ता खर्च के कारण भी अर्थव्यवस्था नीचे आई है.

सहाय कहते हैं, "चीनी अर्थव्यवस्था अच्छा नहीं कर रही. ऐसे में वे सस्ते सामान को खपाने के लिए सारे तरीके आजमाएंगे." साथ ही, अमेरिकी नेतृत्व में दुनियाभर में देश चीन पर ज्यादा शुल्क थोप रहे हैं—मसलन, अमेरिका और यूरोपीय देशों ने इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर अतिरिक्त शुल्क लगाए हैं. डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के साथ चीन पर अमेरिकी पाबंदियों का बढ़ना तय है. चीन इन बाजारों को गंवाता है तो उसे वैकल्पिक बाजारों का सहारा लेना पड़ेगा. सहाय कहते हैं, "इससे भी चीन भारत में अधिक (उत्पाद) डंप या सप्लाइ करने के लिए प्रोत्साहित हो सकता है."

दरवाजे की पहरेदारी

भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की बाढ़ को रोकने का एक और तरीका क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (क्यूसीओ) हो सकता है—जो यह सुनिश्चित करता है कि उपभोक्ताओं को सिर्फ बढ़िया क्वालिटी के उत्पाद ही मिलें. केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाला उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआइआइटी) उपभोक्ता सुरक्षा को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण उत्पादों के लिए क्यूसीओ जारी करता है. भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) ऐसे उत्पादों के लिए प्रमाणीकरण और प्रवर्तन प्राधिकरण के रूप में काम करता है. असल में, जब तक निर्यातक देश ऐसे उत्पादों को बीआइएस के पास पंजीकृत नहीं करा लेते, उन्हें आपूर्ति करने की मंजूरी नहीं होती.

जब भारत क्यूसीओ जारी करता है तो उसमें सिर्फ कोई खास देश कवर नहीं होता बल्कि कहीं से भी आने वाले उत्पाद से जुड़ा आयात शामिल होता है. मगर हाल तक मोदी सरकार ने उन उत्पादों को चुना है जो बड़े पैमाने पर चीन से आयात होते हैं. इनमें खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन, प्लास्टिक का कच्चा माल शामिल हैं. फिर, दूरसंचार, इन्फ्रास्ट्रक्चर और पावर जैसे कुछ क्षेत्रों में भारत ने सरकारी खरीद में चीन की आपूर्तियों को प्रतिबंधित भी कर रखा है.

निवेश के मामले में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया है कि भारत को विदेशी निवेश की जरूरत है लेकिन बिना सुरक्षा के नहीं. उन्होंने मोदी-जिनपिंग की मुलाकात से कुछ ही घंटों पहले अमेरिका में व्हार्टन स्कूल में कहा, "भारत बहुत ही संवेदनशील पड़ोस में है. मैं आंख मूंदकर, बिना यह विचारे कि यह कहां से आ रहा है, एफडीआइ का स्वागत नहीं कर सकती." उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे प्रतिबंध राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम हैं.

अलग करने की दुविधा

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि व्यापार के मामले में भारत चीन को एकदम से दरकिनार नहीं कर सकता. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर विश्वजीत धर कहते हैं, "भारत और चीन के बीच सीमा तनाव में नर्मी को भारत सरकार के इस एहसास के हिस्से के रूप में देख जाना चाहिए कि चीन को अलग करने की सारी बातचीत अल्पावधि में व्यावहारिक नहीं है."

असल में, आर्थिक समीक्षा 2023-24 में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा था कि चीन से बढ़ा हुआ एफडीआइ भारत की वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भागीदारी और निर्यात में मददगार हो सकता है—जिसे कई लोग अपने पड़ोसी देश के साथ व्यापार में भारत के रुख में बड़े बदलाव की भूमिका के रूप में देखते हैं. धर कहते हैं, "यह अप्रत्याशित था. धीरे-धीरे, ऐसे घटनाक्रम हुए हैं जिन्होंने बताया कि (द्विपक्षीय) संबंध सुधर रहे हैं. यह आर्थिक सच्चाई दोनों देशों के संबंधों की गतिशीलता को बढ़ावा दे रही है." पारंपरिक वस्तुओं के अलावा फोकस ईवी जैसे उत्पादों पर है जहां भारत का चीनी आयात के प्रति अनुकूल नजरिया नजर आता है.

इन वजहों से चीन से आयात में इजाफा हुआ है. सियासी रिश्तों में सुधार से आयात और बढ़ेगा. धर दलील देते हैं कि चीन के आयात पर नाराजगी के बजाए केंद्र को यह हकीकत जांचने की जरूरत है कि पिछले चार साल में चीन के सामान पर निर्भरता घटाने की कोशिश क्यों उलटी पड़ी है. वे कहते हैं कि वह भी तब जब भारत दुनिया में ऐंटी-डंपिंग शुल्कों का सबसे अधिक इस्तेमाल करने वालों में से एक है जिनमें से ज्यादातर चीन के आयात के खिलाफ लगाई गई हैं. इस जमीनी सच्चाई को देखते हुए, कम से कम अगले कुछ वर्षों के लिए, भारत को द्विपक्षीय कारोबार में चीन के प्रभुत्व के साथ रहना पड़ेगा.

डंपिंग के खिलाफ अभियान

इस साल (1 जनरवरी से 30 सितंबर तक) भारत ने चीन के खिलाफ 15 डंपिंग मामले शुरू किए. सभी की जांच की जा रही

30 सितंबर 
✪ कोल्ड रोल्ड नॉन-ओरिएंटेड इलेक्ट्रिकल स्टील  (चीन)
✪ रेफ्रिजेरेंट
(चीन)
 2 जुलाई 
✪ ग्लूफोसिनेट और इसका सॉल्ट  (चीन)
✪ एक्रिलिक फाइबर (चीन, पेरु, थाइलैंड)
 1 जुलाई 
✪ लिक्विड इपोक्सी रेजिन्स  (चीन, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब, ताइवान, थाइलैंड)
✪ ग्लास फाइबर और उसकी सामग्री (चीन, बहरीन, थाइलैंड)
 25 अप्रैल
✪ पीवीसी सस्पेंशन रेजिन्स (चीन, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, थाइलैंड, अमेरिका)
 19 अप्रैल 
✪ प्लास्टिक प्रोसेसिंग मशीन (चीन, ताइवान)
 8 अप्रैल 
✪ प्रेटीलाक्लोर, एक खरपतवारनाशक (चीन)
 3 अप्रैल
✪ अघुलनशील सल्फर (चीन, जापान)
 2 अप्रैल 
✪ पोटेशियम टर्शियरी ब्यूटोक्साइड/सोडियम टर्शियरी ब्यूटोक्साइड  (चीन, अमेरिका)
 28 मार्च
✪ सैकरीन (चीन)
 27 मार्च 
✪ एसीटोनिट्राइल  (चीन, रूस, ताइवान)
 14 मार्च
✪ टेक्स्चर्ड टेम्पर्ड कोटेड और अनकोटेड ग्लास  (चीन, वियतनाम)
 1 जनवरी 
✪ एक्रिलिक सॉलिड सरफेसेज  (चीन)
() में उस वस्तु का मूल देश या जो उसे निर्यात कर रहा है
स्रोत: एफआइईओ

क्यों आई उछाल
✪ जोरदार अर्थव्यवस्था में भारतीय उद्योग की ऊंची मांग के कारण चीन से आयात बढ़ रहा है
✪ चीन ने विभिन्न उद्योगों में जरूरत से ज्यादा क्षमताएं खड़ी कीं, उसे अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए निर्यात बढ़ाने की जरूरत
✪ अमेरिका के नेतृत्व में कई देश चीन पर ऊंचे शुल्क लगा रहे हैं, उसे भारत जैसे वैकल्पिक बाजारों की जरूरत 
✪ चीन श्रम बहुल क्षेत्रों से निकल रहा है, ऊंचे मूल्य वाले उत्पादों जैसे कि ऑटोमेटिव को अपना रहा है, और उन्हें फिर विभिन्न बाजारों में धकेला जा रहा

Advertisement
Advertisement