अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने एक बार कहा था: ''सारी राजनैतिक ताकत लोगों में निहित है. सरकार उनकी समान सुरक्षा और फायदे के लिए बनाई जाती है, और उन्हें ही उसे बदलने, सुधारने या समाप्त करने का अधिकार है.'' लोगों की संप्रभुता के इस कालातीत आख्यान को इस साल गर्मी में भारत में एक बार फिर दोहराया गया.
नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरा कार्यकाल जीता, अलबत्ता जनादेश कम हो गया. इसने हमारे राजनैतिक परिदृश्य को काफी बदल दिया: भगवा कुनबा अब भी मजबूत है, और सत्ता के संसाधनों से जुड़ा हुआ है, लेकिन अब अंदर और बाहर से तीखी चुनौती का सामना कर रहा है.
यह उभरती सक्रियता इंडिया टुडे की 2024 की सियासी रसूखदारों की सूची में परिलक्षित होती है. शीर्ष तीन पोडियम पर जस के तस बरकरार हैं: प्रधानमंत्री मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. लेकिन इस सूची में नीचे भारी उथलपुथल दिख रही है—ताकत बाहर की ओर बिखर रही है, जैसा पहले था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कड़े मुकाबले वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष के शानदार प्रदर्शन के बाद मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है.
मुख्यमंत्रियों में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू किंगमेकर बनकर उभरे, जिन्हें मोदी सरकार की उन पर निर्भरता ने ज्यादा रसूखदार बनाया. ममता बनर्जी और एम.के. स्टालिन ने अपने इलाकों में भाजपा के प्रवेश को रोककर क्षेत्रीय प्रभाव को मजबूत किया.
सपा नेता अखिलेश यादव सत्ता के बंटवारे के संघीय ढांचे की ओर इस झुकाव की तस्दीक करते हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी जीत से भाजपा की सीटें आधी कर दीं. लेकिन हम उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नीचे रख रहे हैं, ताकि यह रेखांकित कर सकें कि बहुत बदलने के बावजूद हालात कमोबेश पहले जैसे ही हैं.
इतिहास रचने वाले
• क्योंकि इतिहास उन्हें नेहरू के बाद लगातार तीसरी बार जीतने वाले पहले प्रधानमंत्री के रूप में दर्ज करेगा. मोदी 3.0 को भले ही वैसी बेधड़क जीत नहीं मिली जिसका अनुमान था, लेकिन लोकसभा चुनाव में घटे हुए बहुमत के बावजूद वे बाकी नेताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा ऊंचे मुकाम पर मौजूद हैं.
हरियाणा ने साबित कर दिया कि मोदी में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने का कहीं ज्यादा माद्दा है. यहां तक कि टकराव के कुछ आसार के बावजूद आरएसएस भी इस समझ से आगे बढ़ता है कि भगवा खेमे में उनका कोई सानी नहीं है.
• क्योंकि मोदी युग में भारत के भू-राजनैतिक असर को बढ़ते देखा गया है, जिसका हालिया सबूत ब्रिक्स है. विदेश नीति में उनकी व्यावहारिक लेकिन नरम मुखर स्वतंत्रता ने अद्वितीय स्थान बनाया है. वे अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंधों को गहरा करते हुए उन चंद नेताओं में एक हैं जो व्लादिमीर पुतिन के साथ-साथ वोलोदिमीर जेलेंस्की या बेंजामिन नेतन्याहू और खाड़ी के नेताओं के साथ बातचीत करते हैं.
• क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन (40 खरब) डॉलर के करीब पहुंची तो वे विकास के ऐसे मॉडर्नाइजर हैं, जिन्होंने सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक को आगे बढ़ाया.
गोपालक
प्रधानमंत्री के साथ देखी गई बौनी गायों की पुंगनूर नस्ल संरक्षण प्रयासों के बावजूद विलुप्त होने के कगार पर थी. अब मांग बढ़ गई है.