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मोदी के करिश्मे के बावजूद राहुल कैसे बने 'ऊंचे और असरदार'?

रोजगार, किसानों में निराशा और जाति जनगणना जैसे मसलों को उठा कर राहुल गांधी आलोचना की एक मजबूत आवाज बनकर उभरे हैं, ऐसा शख्स जो मोदी सरकार को नीतिगत मामले में कदम पीछे खींचने को मजबूर कर सकता है

राहुल गांधी, 54 वर्ष, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता
राहुल गांधी, 54 वर्ष, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता
अपडेटेड 12 नवंबर , 2024

• क्योंकि उन्होंने कुछ गहरी मनोवैज्ञानिक बाधाओं को पार कर लिया है, शायद अपने भीतर भी, और 'मोदी का विकल्प' बनकर उभर आए हैं. इस साल जब उन्होंने आधिकारिक तौर पर लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका हासिल की तो यह कोई ऐतिहासिक तौर पर मुफ्त में मिली चीज नहीं थी बल्कि ठोस कदमों से चलकर हासिल की गई थी, असलियत में तो हजारों कदम चलकर. भले ही हरियाणा ने बता दिया हो कि अभी उन्हें मीलों चलना है, फिर भी उन्होंने टिके रहने और आगे बढ़ने का पर्याप्त दमखम बदस्तूर दिखाया है.

क्योंकि उनमें यह परिवर्तन उनकी खिल्ली उड़ाने के उस भारी-भरकम उद्यम के बावजूद आया है जिसने उन्हें बचकाना बताने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, शायद यह अच्छे के लिए ही था. कमजोर होती विरासत जिसका कोई लिवाल नहीं बचा था—एक ऐसा जंतर जो नाकामी की गारंटी था-उसे उन्होंने उस फौज का अग्रिम मोर्चे का सिपाहसालार बना दिया, जिसने कभी अजेय कहे जाने वाले मोदी करिश्मे को फीका कर दिया. वायरल वीडियो में उनकी तीखी टिप्पणियां उन्हें लोगों की जायज चिंता करने वाले शख्स के रूप में जोड़ती है, ऐसा शख्स जो कभी अपनी बात न कह पाने का प्रतीक था, वह लोगों की आवाज उठा सकता है.

क्योंकि रोजगार, किसानों में निराशा और जाति जनगणना जैसे मसलों को उठा कर वे आलोचना की एक मजबूत आवाज बनकर उभरे हैं, ऐसा शख्स जो मोदी सरकार को नीतिगत मामले में कदम पीछे खींचने को मजबूर कर सकता है.

फुरसत के शौक

अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल हर शाम स्थानीय बच्चों को जिउ, जित्सु और अकीदो का प्रशिक्षण देने का वक्त जरूर निकाल लेते थे.

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एन. चंद्रबाबू नायडू, 74 वर्ष मुख्यमंत्री, आंध्र प्रदेश

गर्दिश से गद्दी तक

क्योंकि वे मानो सियासी वनवास से वापस लौट आए हैं. उन्हें कुछ वक्त जेल में भी बिताना पड़ा, मगर फिर उन्होंने जबरदस्त वापसी की और भारतीय राजनीति की सबसे अहम शख्सियतों में शुमार हो गए. तेलुगु देशम पार्टी के 16 सांसदों को अगर हटा दें तो मोदी सरकार खतरनाक तरीके से बहुमत के लिए जरूरी आधी सीटों के निशान तक सिमट जाएगी.

एन. चंद्रबाबू नायडू, मुख्यमंत्री, आंध्र प्रदेश

इससे एनडीए के भीतर नायडू की पकड़ मजबूत हो जाती है और उन्होंने हमेशा की तरह देश के सबसे वरिष्ठ मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कामकाज का आगाज कर दिया है. वे पहली बार 1995 में अविभाजित आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री बने थे.

क्योंकि मुख्यमंत्री के तौर पर उनका चौथा कार्यकाल आंध्र प्रदेश को नए सिरे से ढालने की उनकी महत्वाकांक्षा में नए पंख लगाएगा. उन्होंने अमरावती को नई राजधानी बनाने का ख्वाब देखा जो अधूरा रह गया था और वह फिर से पूरा होने की ओर बढ़ रहा है.

कॉर्पोरेट जगत के साथ उनके अच्छे रिश्ते हैं और उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस की शुरुआत की थी. वे विजन 2047 डॉक्यूमेंट से लैस हैं. उनका सपना? आंध्र प्रदेश को 15 फीसद विकास दर से 2047 तक 2.4 ट्रिलियन (24 खरब) डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना और प्रति व्यक्ति आय 43,000 डॉलर पहुंचाना.

प्रिय जुमला

''जन-केंद्रित रणनीति विकसित करने का नजरिया'' राज्य में हर योजना की बारीक रणनीति तैयार करने के लिए नायडू के बोल इसी तरह फूटते हैं.

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