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पीएम सूर्य घर योजना : छतों से क्रांति के लिए कैसे तैयार है भारत?

सरकार की छत पर सोलर पैनल की योजना आखिरकार दौड़ने लगी है और 'पीएम-सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना' के तहत 1 करोड़ आवेदन हो चुके हैं. इससे न केवल परिवारों की बचत होगी बल्कि यह देश को अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के नजदीक ले जाने में भी मददगार होगी

गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित भारत के पहले सौर ऊर्जा गांव मोढेरा में एक रूफटॉप सोलर यूनिट
गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित भारत के पहले सौर ऊर्जा गांव मोढेरा में एक रूफटॉप सोलर यूनिट
अपडेटेड 5 नवंबर , 2024

बेंगलूरू में रहने वाले सी.ए. दिनाकर ने दो साल पहले शहर के बसावेश्वर नगर मोहल्ले में अपने घर की छत पर 4 किलोवॉट (केडब्ल्यू) का सौर बिजली संयंत्र लगवाया. तब से उन्हें बिजली के बिल की फिक्र नहीं करनी पड़ती. उल्टे इन दिनों वे और ज्यादा बिजली का इस्तेमाल कर रहे हैं. रूफटॉप सोलरसिस्टम लगवाने पर उन्हें 3 लाख रुपए की लागत आई और इससे दिन में औसतन 16 यूनिट बिजली पैदा होती है, जो उनकी दैनिक घरेलू खपत से ज्यादा है.

अतिरिक्त बिजली ग्रिड को बेच दी जाती है. हालांकि पिछले साल कर्नाटक घर-परिवारों के लिए मुफ्त बिजली योजना लेकर आया, लेकिन खुद अपनी बिजली उत्पन्न करने के लिए सोलर फोटोवोल्टिक (या सोलर सेल) पैनलों में भारी शुरुआती निवेश करके वे खुश हैं. इलेक्ट्रिक इंजीनियर दिनाकर को लगता है कि यह फिक्स्ड डिपोजिट में पैसा रखने से बेहतर है. 

अभी हाल तक दिनाकर सरीखे लोगों की जमाम बहुत छोटी थी. भारत में रूफटॉप सोलर (आरटीएस) ने जोर जो नहीं पकड़ा था. सरकार 2014 में रूपटॉफ सोलर कार्यक्रम लाई, जिसका लक्ष्य 2022 तक रूफटॉप से 40 गीगावॉट (जीडब्ल्यू) बिजली पैदा करना था. यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ—नवंबर 2023 तक कुल स्थापित क्षमता 10.4 गीगावॉट आंकी गई, जिसमें 2.65 गीगावॉट आवासीय रूफटॉप से थी.

2014 का यह कार्यक्रम जागरूकता की कमी, शुरुआती भारी लागत, ग्रिड की स्थिरता से जुड़े मसलों और कार्यबल के सीमित हुनर की वजह से लड़खड़ा गया. उद्योग के अनुमान के मुताबिक, इस साल की शुरुआत में भारत भर में करीब पांच लाख आवासीय रूफटॉप सोलर स्थापित थे. ऐसे में सुधार जरूरी हो गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में सोलर पैनल का अवलोकन करते हुए

इस जरूरत को फरवरी में लॉन्च की गई महत्वाकांक्षी 'प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना' के जरिए आरटीएस पर नए सिरे से जोर देकर पूरा किया गया. इसका लक्ष्य तीन साल के भीतर 75,021 करोड़ रुपए की सब्सिडी लागत के साथ 1 करोड़ आरटीएस स्थापित करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 मार्च को घोषणा की कि एक करोड़ से ज्यादा घर-परिवार योजना के लिए नाम दर्ज करवा चुके थे.

एक्स पर प्रधानमंत्री ने लिखा, ''रजिस्ट्रेशन की झड़ी लगी है... असम, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में 5 लाख से ज्यादा रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं.'' नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक, जुलाई के अंत तक 1.35 गीगावॉट की स्थिर बढ़ोतरी के साथ आवासीय आरटीएस की कुल स्थापित क्षमता 4 गीगावॉट थी, जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान शीर्ष पांच राज्य थे. 

घर-परिवारों ने 2022 तक भारत में बेची गई 1,317 अरब यूनिट बिजली में से करीब एक-चौथाई की खपत की. देश को 2030 तक नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा की 500 गीगावॉट स्थापित क्षमता का लक्ष्य पूरा करना है (यह फिलहाल 203 गीगावॉट है), तो आरटीएस सहित सौर ऊर्जा को अपनाने में काफी तेजी लानी होगी.

यही नहीं, आरटीएस लगाने की लागत—जो मुफ्त बिजली योजना के तहत उदार सब्सिडी की बदौलत काफी हल्की हो गई है—बिजली बिलों पर हुई बचत और डिस्कॉम को अतिरिक्त बिजली बेचने के जरिए वसूल हो जाने के बादघर-परिवार 25 साल तक मुफ्त बिजली का आनंद ले सकते हैं. गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी ऐंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) में वरिष्ठ नीति विशेषज्ञ सप्तक घोष कहते हैं कि मौजूदा रफ्तार से देश औद्योगिक, वाणिज्यिक और आवासीय क्षेत्र से साल के अंत तक आरटीएस से उत्पादन 15 गीगावाट तक पहुंच जाएगा लेकिन 2023 तक इसे चार गुना बढ़ाने की जरूरत है.

शुरुआती मुश्किलों का खात्मा

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) मुफ्त बिजली योजना पर असर डालने वाली मौजूदा आरटीएस नीति की शुरुआती मुश्किलों को दूर करने की कोशिश कर रहा है. इनमें उपभोक्ता गंवाने को लेकर परेशान बिजली वितरण कंपनियां या डिस्कॉम, सब्सिडी हासिल करने की पेचीदा प्रक्रिया, और जागरूकता की कमी शामिल हैं. सबसे पहले प्रक्रिया आसान करने की खातिर उपभोक्ताओं के लिए 9 जनवरी को राष्ट्रीय पोर्टल लॉन्च किया.

उपभोक्ता http://pmsuryaghar.gov.in/ वेबसाइट पर जाकर रजिस्टर कर सकते हैं. फिर उन्हें बिजली खरीद समझौता पूरा करने के लिए अलग-अलग डिस्कॉम के पोर्टल पर भेज दिया जाता है. इसके बाद पैनल में शामिल विक्रेताओं की मार्फत आरटीएस स्थापित करने के लिए 150 दिनों का वक्त मिलता है. जब काम पूरा होने के ब्योरे अपलोड कर दिए जाते हैं और स्थानीय डिस्कॉम आरटीएस को ग्रिड से जोड़ देता है तो 30 दिनों के भीतर सब्सिडी जारी कर दी जाती है.

दूसरे, सब्सिडी की धनराशि बढ़ा दी गई. पहले केंद्रीय वित्तीय सहायता 1-3 किलोवॉट का सिस्टम लगाने के लिए प्रति किलोवॉट 18,000 रुपए और 4-10 किलोवॉट का सिस्टम लगाने के लिए प्रति किलोवॉट 9,000 रुपए थी. अब मुफ्त बिजली योजना के तहत सब्सिडी बढ़ाकर 1-2 किलोवॉट के सिस्टम के लिए प्रति किलोवॉट 30,000 रु. कर दी गई है. एक किलोवॉट की मानक लागत 50,000 रुपए मान लें, तो इसका मतलब है उपभोक्ता को केवल 20,000 रुपए की बकाया धनराशि का भुगतान करना होगा.

अतिरिक्त किलोवॉट के लिए और 18,000 रु. की सब्सिडी हासिल की जा सकती है—इस तरह 3 किलोवॉट का सिस्टम लगाने के लिए कुल 78,000 रुपए की सब्सिडी मिलती है. कुछ राज्य इसके अलावा भी सब्सिडी देते हैं. यही नहीं, उपभोक्ता आरटीएस लगाने के लिए बैंकों से फाइनेंस भी ले सकते हैं.

राष्ट्रीय पोर्टल पर रूफटॉप सोलर कैलकुलेटर की मानें तो अगर दिल्ली में बिजली का मासिक शुल्क 2,000 रुपए चुकाने वाला घर-परिवार 1 किलोवॉट का रूफटॉप सोलर सिस्टम लगाता है, तो वह छह साल से भी कम वक्त में शुरुआती लागत वसूलने की उम्मीद कर सकता है, जो निवेश पर 24 फीसद का रिटर्न है. इसमें प्रशिक्षित कार्यबल की कमी को भी दूर किया जा रहा है.

रूफटॉप सोलर के प्रति जागरूकता

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट ऐंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) नामक थिंक टैंक की नवंबर 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक आरटीएस के प्रति जागरूकता कम रही है और लोग रूफटॉप सोलर सिस्टम को महंगा निवेश मानते हैं. कुल 2.5 गीगावॉट की स्थापित आरटीएस क्षमता के साथ देश की अगुआई करने वाला गुजरात जागरूकता के मामले में सबसे पहले आगे बढ़ने वाला राज्य रहा. इस पश्चिमी राज्य ने तभी बढ़त हासिल कर ली थी जब गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने 2009 में नीति का ऐलान किया.

एसोचैम के गुजरात चैप्टर की नवीकरणीय ऊर्जा समिति के अध्यक्ष कुंज शाह कहते हैं, ''हरेक हितधारक को बढ़-चढ़कर जोड़ा गया. राष्ट्रीय बैंक केवाइसी के ब्योरे देने पर ही रूफटॉप फोटोवोल्टिक के लिए कर्ज दे देते, न आमदनी का सबूत मांगते और न दूसरे दस्तावेज.''

फरवरी 2024 में राज्य के ऊर्जा मंत्री कनुभाई देसाई ने बताया कि देश के 82 फीसद सोलर रूफटॉप गुजरात में थे—यानी कुल अनुमानित 6.93 लाख इकाइयों में से करीब 5.45 लाख आरटीएस इकाइयां. देसाई के मुताबिक, अतिरिक्त उत्पादित बिजली सरकार 2.25 रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीदती है, जिसका नतीजा यह हुआ कि इन घर-परिवारों के हाथ में 200 करोड़ रुपए का सामूहिक राजस्व आया और बिजली के बिलों में कमी आने से करीब 2,000 करोड़ रुपए की बचत हुई.
 
अमल की चुनौती

सबसे ज्यादा प्रतिरोध अभी तक डिस्कॉम ने किया है. वे घाटे के बोझ से पहले ही दबे थे. अब उन्हें ग्राहक गंवाने की फिक्र सताने लगी. मगर जब सौर ऊर्जा सस्ती हो गई है तो डिस्कॉम दूसरे स्रोतों के मुकाबले आरटीएस से ज्यादा सस्ती दर पर बिजली खरीद सकते हैं. पीएम-सूर्यघर: मुफ्त बिजली योजना में डिस्कॉम को प्रोत्साहन लाभ देने के लिए 4,950 करोड़ रुपए रखे गए हैं.

कर्नाटक में आवासीय आरटीएस के लिए नोडल एजेंसी बेंगलूरू इलेक्ट्रिसिटी सप्लाइ कंपनी (बेसकॉम) के मैनेजिंग डायरेक्टर महंतेश बिलागी कहते हैं, ''सोलर रूफटॉप संयंत्र की स्थापना कम से कम दिन में बिजली उत्पन्न करके और अतिरिक्त बिजली बेचकर उपभोक्ताओं को आत्मनिर्भर बनाती है, जिससे बिजली की लागत 33 फीसद तक कम हो जाती है. योजना के तहत रूफटॉप संयंत्रों की स्थापना से भविष्य में डिस्कॉम को मांग और आपूर्ति के बीच का फर्क पाटने में मदद मिलेगी, खासकर तब जब बिजली की मांग साल दर साल बढ़ रही है.''

सितंबर के मध्य तक कर्नाटक में पीएम-सूर्यघर के तहत 4,36,016 रजिस्ट्रेशन हुए थे. बिलागी बताते हैं कि कर्नाटक में प्रतिमाह 200 यूनिट तक बिजली की खपत करने वाले घर-परिवारों के लिए गृह ज्योति नाम की मुफ्त बिजली योजना है, लेकिन 30-35 लाख उपभोक्ताओं ने इसका फायदा नहीं लिया. बेंगलुरू में गृह ज्योति का फैलाव करीब 65 फीसद है; बाकी घर-परिवार या तो अपात्र हैं या उन्होंने योजना से बाहर रहना चुना है. ये वही उपभोक्ता हैं जो बेसकॉम का लक्ष्य हैं. साथ ही, आरटीएस लगाने की संभावना का आकलन करने के लिए बेंगलूरू में सरकारी भवनों का सर्वेक्षण चल रहा है.

सप्तक घोष बताते हैं कि कुल मिलाकर मुफ्त बिजली योजना के तीन हिस्से हैं. घर-परिवारों को घरेलू आरटीएस की स्थापना के लिए सब्सिडी देने के साथ-साथ सरकारी इमारतों को सौर ऊर्जा से सुसज्जित बनाने का भी लक्ष्य है. घोष कहते हैं, ''अगर हरेक सरकारी बिल्डिंग (राज्य और केंद्र) पर रूफटॉप सोलर लगा दिए जाएं, तो 32 गीगावॉट से ज्यादा (की क्षमता) स्थापित की जा सकती है.''

तीसरा हिस्सा गुजरात के मोढेरा की तर्ज पर मॉडल सौर ऊर्जा गांव बनाने की उपयोजना है. मोढेरा 2022 में देश का 100 फीसद सौर ऊर्जा वाला पहला गांव बना. मॉडल सौर गांव कार्यक्रम 800 करोड़ रुपए के परिव्यय से प्रतिस्पर्धी योजना पेश करता है, जो भारत के हर जिले के एक गांव को ऊर्जा जरूरतों के मामले में आत्मनिर्भर बनने में सफल होने पर 1 करोड़ रुपए का पुरस्कार देने का वायदा करती है. सीएसटीईपी फिलहाल एमएनआरई और तमाम राज्यों के ऊर्जा महकमों के साथ मिलकर ऐसे एकीकृत सॉफ्टवेयर समाधान देने के लिए काम कर रही है जिनसे भारत भर के 120 शहरों के घरेलू उपभोक्ता और दूसरे लोग आरटीएस के लिए टेक्नो-कमर्शियल या तकनीकी-व्यावसायिक व्यावहार्यता की जांच कर सकें.

कोलकाता स्थित सोलर फोटोवोल्टिक मॉड्यूल निर्माता विक्रम सोलर के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर ज्ञानेश चौधरी का कहना है कि यह योजना मॉड्यूल के घरेलू उत्पादन के लिए भी इतना ही बड़ा मौका पेश करती है. वे यह भी कहते हैं कि खासकर शीर्ष निर्यातक चीन से सोलर पैनल की डंपिंग को रोकने के लिए हाल में जो उपाय किए गए हैं, वे ''हमारे जैसे भारतीय मैन्यूफैक्चरर के लिए क्षमता बढ़ाने का बहुत बड़ा संदेश हैं.''

भारत में सोलर पैनल के दूसरे मैन्यूफैक्चरर में वारी एनर्जीज, टाटा पॉवर सोलर और अदाणी सोलर प्रमुख हैं. नए उत्पादों और टेक्नीशियनों की जरूरत को देखते हुए घरेलू रूफटॉप सिस्टम, जिसका परिचालन जीवनकाल आम तौर पर 25 साल होता है, संभवत: एक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी दरवाजे खोल सकता है.

सीईईडब्ल्यू के नीरज कुलदीप के मुताबिक भारत में रूफटॉप सोलर की कुल क्षमता—घर-परिवारों की खपत के पैटर्न और आर्थिक व्यवहार्यता को ध्यान में रखते हुए—करीब 100 गीगावॉट है. वे कहते हैं, ''अगर हम इसे भारत के नवीकरणीय ऊर्जा के 2030 के लक्ष्य के नजरिए से देखें, तो हमें मांग बढ़ाने की जरूरत है.'' यह जागरूकता और अमल पर दोहरा जोर देने की मांग करता है और मुफ्त बिजली योजना ठीक यही करने का लक्ष्य लेकर चल रही है.

सोलर रूफटॉप गाइड - समझिए गणित

50,000 रु. लागत है एक केवी (किलोवाट) का आरटीएस लगवाने की.

4-5.5 यूनिट बिजली पैदा होती है 1 केवी सोलर पावर प्लांट से साफ आसमान और तेज धूप वाले दिन.

30,000 रु. सरकारी सब्सिडी है मुफ्त बिजली योजना के तहत 1 केवी का सिस्टम लगाने पर (उपभोक्ता को 20 हजार रु. देने होंगे). 2 केवी के लिए 60 हजार रु. (उपभोक्ता को 40 हजार रु. देने होंगे) और 3 केवी के लिए 78 हजार रु (लागत आएगी 66,999 रु.).

25 वर्ष अनुमानित उम्र होती है सोलर पीवी मॉड्यूल की. मेंटेनेंस के लिए सोलर पैनलों की समय-समय पर सफाई की जरूरत होती है.

5.32 वर्ष लगते हैं 3 केवी के आरटीएस सिस्टम की पूरी लागत वसूल होने में, यह मानकर कि उपभोक्ता प्रतिमाह औसतन 2,000 रु. बिजली की मद में भुगतान कर रहा है.

स्रोत: https://www.pmsuryaghar.gov.in/

हर घर बिजली उत्पादक

यही प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना का अंतिम लक्ष्य है. इसके फायदों में उपभोक्ता के लिए बचत, डिस्कॉम के लिए अतिरिक्त बिजली और भारत की स्वच्छ ऊर्जा प्रतिबद्धता को बढ़ावा देना शामिल है. इसकी मुख्य खूबियां ये हैं:

> मुफ्त बिजली योजना का लक्ष्य 1 करोड़ घरों में रूफटॉप सोलर सिस्टम स्थापित करना है.

> रजिस्ट्रेशन/इंस्टालेशन (लगाने) प्रक्रिया आसान बनाने के लिए जनवरी में नया राष्ट्रीय पोर्टल. https://www.pmsuryaghar.gov.in/ लॉन्च किया गया

> उपभोक्ता अब कीमतों की तुलना करने के बाद पैनल में शामिल आरटीएस विक्रेताओं में से चुन सकते हैं.

> कुल सब्सिडी परिव्यय 75,021 करोड रुपए है.

> सिस्टम शुरू होने की रिपोर्ट अपलोड होने के बाद 30 दिनों के भीतर सब्सिडी जारी कर दी जाती है.

> 1-2 किलोवॉट में सिस्टम के लिए सब्सिडी में बढ़ोतरी—2 किलोवॉट तक के सिस्टम के लिए मानक लागत की 60 फीसद (1-2 किलोवॉट के सिस्टम के लिए प्रति किलोवॉट करीब 30,000  रुपए), और प्रत्येक अतिरिक्त किलोवॉट पर और 40 फीसद (18,000 रुपए). 3 किलोवॉट से बड़े सिस्टम के लिए सब्सिडी की ऊपरी सीमा 78,000 रुपए तय.

> उपभोक्ताओं के लिए बैंकों से फाइनेंस उपलब्ध.

- अजय सुकुमारन

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