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क्या भारत-चीन का नया समझौता दोनों देशों के बीच शांति का संकेत है?

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि नई 'गश्त व्यवस्था' और सैनिकों के मोर्चे से हटने की प्रक्रिया से हालात 2020 से पहले की स्थिति में आ जाएंगे

रूस के कजान में ब्रिक्स समिट के दौरान पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्विपक्षीय बैठक के बाद
रूस के कजान में ब्रिक्स समिट के दौरान पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्विपक्षीय बैठक के बाद
अपडेटेड 12 नवंबर , 2024

एक साथ तस्वीरें यकीनन संदेश देती हैं, रिश्तों में आई गरमाहट की. रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पिछले पांच साल में पहली द्विपक्षीय बैठक हुई. करीब 50 मिनट की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत-चीन संबंध दुनिया में अमन-चैन के लिए अहम हैं और रिश्तों का आधार "आपसी विश्वास, आपसी सम्मान और आपसी संवेदनशीलता" होना चाहिए.

भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने एक ट्वीट में बैठक का सार बताया, "दोनों पक्षों को संचार और सहयोग को मजबूत करने, मतभेदों तथा असहमतियों को दुरुस्त करने और विकास की आकांक्षाएं पूरी करने के लिए एक-दूसरे की सहायता की जरूरत है." मोदी और शी की इस भेंट की वजह बेहद विवादास्पद जमीनी टकराव में आई कुछ नरमी थी.

21 अक्टूबर को एलान हुआ कि दोनों देश पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी-अपनी सेना की 'गश्त' के मामले में एक समझौते पर पहुंच गए हैं. यह भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध के हल में उठे शुरुआती कदम हो सकते हैं, जो जून 2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद शुरू हुआ था और दो एटमी-शक्ति पड़ोसियों के रिश्तों में भारी बर्फ जम गई थी.

गश्त पर समझौता छोटी-सी सफलता ही है क्योंकि गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो जैसी एलएसी की दूसरी जगहों पर दोनों तरफ की सेना के मोर्चे से हटने और बफर जोन बनाए जाने से टकराव कम हो गया था लेकिन दो विवादास्पद इलाकों में कोई हल नहीं निकल पाया था. अब उन इलाकों देपसांग मैदान और डेमचोक में गश्त का अधिकार दोनों सेनाओं को बहाल कर दिया गया है, जहां हजारों सैनिक आमने-समाने डटे हैं. 2017 में डोकलाम में 73 दिनों का गतिरोध भी इसी तरह मोदी की एक और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए बीजिंग यात्रा से कुछ दिन पहले हल हुआ था.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि नई 'गश्त व्यवस्था' और सैनिकों के मोर्चे से हटने की प्रक्रिया से हालात 2020 से पहले की स्थिति में आ जाएंगे. हालांकि, उन्होंने आगाह किया, "यह अभी हुआ है; अगले कदम तय करने के लिए आगे और बैठकें होंगी. मैं जल्दबाजी में किसी नतीजे की बात नहीं करूंगा." 23 अक्टूबर को चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, "फिलहाल, दोनों पक्ष प्रासंगिक मामलों में एक हल पर पहुंच गए हैं... अगले चरण में, चीन समाधान योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए भारत के साथ काम करेगा."

हाल में ये संकेत भी मिले कि तनाव घटा है. 13 सितंबर को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रूस में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की, जहां दोनों पक्ष एलएसी पर "पूरी तरह से पीछे हटने" पर सहमत हुए. उसी दिन जयशंकर ने टिप्पणी की कि 'पीछे हटने की 75 फीसद समस्याएं' हल हो गई हैं.

जून 2020 में गलवान घाटी में एलएसी पर टकराव खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया था. टकराव के छह इलाके थे—गलवान, हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा, पैंगोंग त्सो, देपसांग मैदान और डेमचोक. उसके बाद, चीन के साथ कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के 21 दौर और विदेश मंत्रालय के तहत परामर्श और समन्वय कार्य समूह (डब्ल्यूएमसीसी) के 31 दौर की बातचीत हुई. हॉट स्प्रिंग्स, गलवान, गोगरा और पैंगोंग त्सो में दोनों तरफ सेना पीछे हटी और बफर जोन बनाए गए. अब, अंत में, देपसांग और डेमचोक में कुछ सामान्य स्थिति लौट रही है. टकराव बिंदुओं पर गश्त शुरू होने से दोनों तरफ सेना का जमावड़ा घटेगा और अंत में, सैन्य तामझाम को मोर्चे से हटा लिया जाएगा.

समझौते के ब्यौरे तो जाहिर नहीं हुए हैं, लेकिन माना जा रहा है कि उत्तर में कराकोरम दर्रे के पास बेहद खास दौलत बेग ओल्डी पोस्ट से लगभग 30 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित रणनीतिक रूप से अहम देपसांग में संकरे-से 'गतिरोध' वाले इलाके में दोनों तरफ की सेना एक-दूसरे की गश्त में दखल नहीं देगी. एक आधिकारिक सूत्र ने संकेत दिया, "दोनों पक्ष अपने अस्थायी मोर्चों और चौकियों को हटा लेंगे. दक्षिण में डेमचोक के पास चारडिंग निंगलुंग नाला में भी इसी तरह की वापसी होगी."

हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि पीछे हटने से भारतीय सैनिकों को देपसांग में अपने पारंपरिक गश्ती बिंदुओं (पीपी) 10 से 13 तक पूरी पहुंच मिल जाएगी. सूत्रों ने बताया कि गश्त महीने में दो बार 'सभी इलाकों में' जारी रहेगी. ऐसा माना जाता है कि दोनों पक्ष झड़पों को रोकने के लिए गश्ती जवानों की संख्या को आम तौर पर 20 से घटाकर 15 करने पर राजी हुए हैं. पीछे हटने में लगभग 10 दिन लगने की उम्मीद है, क्योंकि दोनों पक्षों को जमीनी निरीक्षण और ड्रोन निगरानी के जरिए सत्यापन पूरा करना होगा.

गलवान संघर्ष के बाद 3 किमी लंबा (दोनों तरफ 1.5 किमी) का बफर जोन बनाया गया. इसी तरह के बफर जोन गोगरा, हॉट स्प्रिंग्स और पैंगोंग त्सो में भी हैं. इन बफर जोन में किसी भी पक्ष को गश्त करने की अनुमति नहीं है. अब सैन्य जानकारों का सवाल है कि क्या ऐसे बफर जोन में गश्त पर अस्थायी रोक हटा ली जाएगी और क्या भारतीय सेना पैंगोंग के फिंगर 8 तक गश्त कर सकेगी. 2020 से पहले भारतीय सेना फिंगर 3 के पास धन सिंह थापा पोस्ट स्थित अपने बेस से सैनिकों को फिंगर 8 तक गश्त के लिए भेजती थी. सवाल यह भी है कि दोनों ओर तैनात सैन्य हथियारों और असलहों को मोर्चे से किस सीमा तक हटाया जाएगा.

सैन्य योजनाकार इस बात से भी चिंतित हैं कि 'भरोसे' की बहाली कैसे की जाए. सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी कहते हैं, "ऐसा तभी हो पाएगा जब हम एक-दूसरे को देख और आश्वस्त कर सकेंगे कि हम बनाए गए बफर जोन का अतिक्रमण नहीं कर रहे."

जनरल द्विवेदी की चिंताओं को लेह स्थित 14 कोर के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा (सेवानिवृत्त) भी दोहराते हैं. वे कहते हैं, "क्या इन उपायों से हम वास्तव में एलएसी पर तैनात सैनिकों के बीच भरोसा बहाल कर सकते हैं? मुझे नहीं लगता कि यह आसान होगा." उनके मुताबिक, आगे का रास्ता एलएसी के परिसीमन और इस प्रक्रिया पर चीन के साथ चर्चा शुरू करना है. लेफ्टिनेंट जनरल शर्मा कहते हैं, "जब तक हम 'एलएसी को लेकर अपनी-अपनी धारणाओं' पर कायम रहेंगे, तब तक समस्याएं बनी रहेंगी."

खास यह भी है कि चीन की पीएलए ने हाल में अरुणाचल प्रदेश के दो इलाकों तवांग के उत्तर-पूर्व में यांग्त्से और सुबनसिरी नदी के किनारे एक घाटी में गश्त के अधिकार मांगे हैं, जो भारतीय नियंत्रण में हैं. यांग्त्से में अक्टूबर 2022 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. अभी यह देखा जाना बाकी है कि क्या पूर्वी लद्दाख में गश्त व्यवस्था पर सहमति बनी है तो बदले में चीनियों को सुदूर पूर्व में गश्त का अधिकार दिया जाएगा.

जनरल उपेंद्र द्विवेदी, सेना प्रमुख

कैसे होगा भरोसा बहाल

> भारत ने 21 अक्टूबर को घोषणा की कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी-अपनी सेना की गश्त के मामले में चीन के साथ एक समझौता हुआ है

> इसने पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी के बीच ब्रिक्स समिट के दौरान 23 अक्टूबर को द्विपक्षीय बैठक की बुनियाद रखी

> इससे टकराव के दो बिंदुओं—देपसांग और डेमचोक में सैनिक पीछे हटना शुरू करेंगे

> माना जा रहा है कि रणनीतिक रूप से अहम 800 वर्ग किमी के देपसांग मैदान के 'बॉटलनेक' एरिया यानी एक संकरे से गलियारे में अब दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे की गश्ती में दखल नहीं देंगे

> दोनों पक्ष गश्ती दल में सैनिकों की संख्या घटाएंगे और आपसी समन्वय बढ़ाएंगे ताकि झड़पें रोकी जा सकें 

> स्थानीय सैन्य कमांडरों की बैठक होगी और सेना को पीछे हटाने की योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा; दोनों पक्ष जमीनी रूप से और ड्रोन सर्वे के जरिए इसकी पुष्टि करेंगे

> इससे पहले हॉट स्प्रिंग्स, गलवान, गोगरा और पैंगोंग त्सो में दोनों तरफ सेनाएं पीछे हटी हैं और बफर जोन बनाए गए हैं

> चीन के साथ अब तक कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के 21 दौर और विदेश मंत्रालय के तहत परामर्श और समन्वय कार्य समूह (डब्ल्यूएमसीसी) के 31 दौर हो चुके हैं

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