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प्रोजेक्ट चीता की कामयाबी पर अब क्यों उठ रहे सवाल?

कुनो नेशनल पार्क में लाए जाने के दो साल बाद भी अफ्रीका की इन बड़ी बिल्लियों को जंगल के हिसाब से खुद को ढाल पाने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ रहा. सरकार इसे कामयाब प्रोजेक्ट बताने का ढोल बजा रही लेकिन विशेषज्ञ इन प्राणियों को लेकर चिंतित

कुनो नेशनल पार्क के पालपुर में एक बाड़े में दक्षिण अफ्रीकी चीते की फाइल फोटो
कुनो नेशनल पार्क के पालपुर में एक बाड़े में दक्षिण अफ्रीकी चीते की फाइल फोटो
अपडेटेड 30 अक्टूबर , 2024

दो साल पहले 17 सितंबर का वह नजारा देखते ही बनता था, जब भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टर नामीबिया से आए आठ चीतों को लेकर उनकी यात्रा के आखिरी चरण में मध्य प्रदेश स्थित कुनो नेशनल पार्क के पालपुर में उतरे. विज्ञान समर्थित इस अंतरमहाद्वीपीय स्थानांतरण ने सारी दुनिया का ध्यान खींचा जो भारत के जंगलों में बड़ी बिल्लियों को दोबारा बसाने की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा था.

आज के वक्त में लौटें. चीतों की आबादी भले स्थिर हो रही हो, पर जिंदा बचे 24 चीतों—12 वयस्क और 12 शावक—में से एक भी जंगल में नहीं विचरता. हाल में करीब आठ महीने जंगल में रहा आखिरी चीता पवन अगस्त में मर गया. फिर भी चीतों को लाए जाने की दूसरी सालगिरह पर 17 अगस्त को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस परियोजना को 'कामयाब' घोषित कर दिया.

फिर क्या था, वन्यजीवन से जुड़े जीववैज्ञानिक और संरक्षणवादी सरकार और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की चीता परियोजना संचालन समिति (सीपीएससी) की तीखी आलोचना करने के लिए मजबूर हो गए. उन्होंने कहा कि यह स्वीकार करना तो दूर कि एक के बाद एक मौतों और चीतों के कैद में रहने की वजह से स्थानांतरण परियोजना पटरी से उतर गई है, उलटे सरकार लगातार अपनी पीठ थपथपा रही है.

सरकार के चीता ऐक्शन प्लान (सीएपी) के मुताबिक, एक साल बाद आयातित चीतों के जिंदा रहने की 50 फीसद दर कामयाबी का संकेत होती, और भारतीय धरती पर जन्मे 20 में से 12 वयस्क चीते और 17 में से 12 शावक जिंदा रहते हैं, तो कम से कम इस लिहाज से परियोजना को नाकाम करार नहीं दिया जा सकता.

यादव बताते हैं, "दूसरे देशों की ऐसी ही परियोजनाओं के मुकाबले इस परियोजना को शावकों के जन्म के मामले में अभूतपूर्व कामयाबी मिली है. ये जंगली जानवर हैं, और उनकी पुनर्स्थापना या संरक्षण के लिए किसी भी स्थानांतरण परियोजना के पहले शुरुआती सालों में उतार-चढ़ावों के साथ निराशाजनक मुकाम आएंगे. यह न केवल परियोजना बल्कि चीतों के लिए भी लगातार सीखने-समझने और अपने को ढालने की प्रक्रिया है."

परियोजना की साज-संभाल के लिए 2023 में गठित उच्चस्तरीय सीपीएससी के चेयरमैन राजेश गोपाल भी उन्हीं के विचारों को दोहराते हुए कहते हैं, "बीते दो साल घटनाओं से भरे रहे, लेकिन ये शुरुआती परेशानियां हैं." परियोजना की 'कामयाबी’ पर एक और मुहर इसी महीने मध्य प्रदेश के जंगल महकमे की तरफ से जारी 'चीतों को भारत वापस लाने पर वार्षिक प्रगति रिपोर्ट' ने लगाई. इसने दावा किया कि जब इनमें से कुछ चीतों ने जंगल में विचरण किया तो वे बड़े मांसाहारी पशुओं के साथ जीने-रहने में कामयाब रहे.

अड़चनें

विशेषज्ञों के मुताबिक, आठ वयस्क चीतों की मौत सीएपी में बताई गई मौतों की संभावित वजहों से नहीं हुईं. वन्यजीव विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त विशेषज्ञ समिति के पूर्व प्रमुख डॉ एम.के. रणजीतसिंह कहते हैं, "खुले में विचरण करने वाले चीतों की मौत उनकी निगरानी में लापरवाही की वजह से हुई. ये मौतें रेडियो-कॉलरिंग के कारण उनकी गर्दन के आसपास संक्रमण, यौन-संसर्ग के लिए नमूनों के गलत चुनाव, और बाड़ों या पिंजरों में रहने के दौरान हुई बीमारियों के कारण हुईं. ये नुक्सान टाले जा सकते थे."

बेंगलुरू में रहने वाले वन्यजीव जीववैज्ञानिक और संरक्षणवादी वैज्ञानिक रवि चेल्लम की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अफ्रीकी चीतों को लगातार कैद में रखा जा रहा है. यह नामीबिया के उन नियमों का उल्लंघन है जो कहते हैं कि 90 दिनों से ज्यादा कैद में रखे गए चीते जंगल में छोड़े जाने के योग्य नहीं रहते.

वे कहते हैं, "उनका शिकार करने और जिंदा रहने का दमखम और बूता धीरे-धीरे घटता जाता है. अगर कैद की अवधि 90 दिनों से ज्यादा हो तो इन बिल्लियों को या तो इच्छामृत्यु देनी पड़ेगी या उन्हें हमेशा के लिए कैद में ही रखना पड़ेगा. वयस्क मादा चीते का आवासीय क्षेत्र 750 वर्ग किमी है, जबकि पिछले दो साल में ज्यादातर वक्त उन्हें औसतन 1 वर्ग किमी से भी कम के बाड़े में रख गया. चीतों के 'शिकार’ के लिए इन बाड़ों में चीतल छोड़े गए और उनके आहार में कमी की पूर्ति भैंस के मांस से की गई."

चेल्लम यह भी बताते हैं कि कम से कम दो नामीबियाई चीतों और जिंदा बचे 12 शावकों ने—जिनमें से सबसे युवा करीब छह महीने का है—कभी जंगल में विचरण नहीं किया.

मगर मंत्री जी के मुताबिक, यह कहना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि सभी चीते पिछले दो साल बाड़े में ही रहे. वे कहते हैं, "इन चीतों ने बीच-बीच में खुले में विचरण किया. उन्हें सेहत से जुड़ी निश्चित वजहों और पशु चिकित्सकीय इलाज के लिए बाड़ों में वापस लाया गया. ये बाड़े भी विशाल प्राकृतिक वन क्षेत्र ही हैं, जहां शिकार के लिए जंगली जानवर मौजूद हैं, और उनका शिकार ये चीते वैसे ही करते हैं जैसे वे जंगल में करते हैं."

उनका कहना है कि शावक इसी माहौल में बड़े हो रहे हैं और कुछ मामलों में तो अपनी मांओं के साथ शिकार करने जाते हैं. यादव कहते हैं, "कुछ महीने बाद जब ये शावक कुछ और बड़े हो जाएंगे, उन्हें संभवत: सुचारु ढंग से खुले में विचरण करने की स्थितियों में ले जाया जा सकेगा, लेकिन जंगल के मामले में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता. मां की तरफ से त्याग दिए गए एक शावक का लालन-पालन सफलता से इंसानी हाथों से किया गया है और वह जंगल में शिकार करना सीख रहा है."

गोपाल वादा करते हैं कि इन जानवरों को मध्य-अक्तूबर के बाद किसी भी वक्त चरणबद्ध तरीके से जंगल में छोड़ दिया जाएगा. मगर कुनो में आहार के लिए शिकार के जानवरों की कमी है. मध्य प्रदेश के वन विभाग की वार्षिक रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि चीतल का घनत्व 2021 में 23.43 जानवर प्रति वर्ग किमी से घटकर 2024 में 17.5 पर आ गया. दूसरी सुझाई गई जगहों के मुकाबले कुनो को चुनने के पीछे मुख्य वजहों में से एक आहार के लिए शिकार की उपलब्धता बताई गई थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, "कुनो में आहार के लिए शिकार की अत्यधिक कमी है...खुरों वाले जानवरों की संख्या बढ़ाने के लिए कम से कम 1,500 चीतल तत्काल लाने होंगे."

आगे का रास्ता

दो साल तक चीतों को जंगल में छोड़ने की कई नाकाम कोशिशों के बाद सबके मन में सवाल है: आगे का रास्ता क्या है? यादव कहते हैं, "मेटापॉपुलेशन प्रबंधन की दिशा में पहले कदम के तौर पर विशाल भूदृश्य नजरिये के जरिए, जिसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और संभवत: उत्तर प्रदेश के कुनो और गांधी सागर के इलाके शामिल हैं, अंतरराज्य चीता संरक्षण परिसर विकसित किया जा रहा है. यहां वन क्षेत्र 917,000 वर्ग किमी तक फैला हुआ है, जिसमें चीतों के लिए संभावित 910,000 वर्ग किमी वासस्थान है."

उनके मुताबिक, दूसरे संभावित स्थल भी हैं, जैसे नौरादेही (मध्य प्रदेश) और बन्नी (कच्छ, गुजरात) घास के मैदान, वगैरह. वे कहते हैं, "चीतों को लंबे वक्त तक बनाए रखने के लिए सीएपी ने तीन से पांच जगहों पर मेटापॉपुलेशन प्रबंधन की सिफारिश की है. अंतत: मध्य और दक्षिणी भारत में और ज्यादा संभावित स्थलों का आकलन किया जाएगा."

पहले चरण में अधिकतम चार से पांच चीतों को गांधी सागर में छोड़े जाने की संभावना है, जिससे उन्हें प्रजनन आबादी कायम करने का मौका मिलेगा. मंत्री जी कहते हैं कि बन्नी में "बाड़े लगाने, एकांत बाड़ों को घेरने, पशु चिकित्सा सुविधाओं और उनसे जुड़ा बुनियादी ढांचा खड़ा करने का काम चल रहा है. इसके पूरा हो जाने पर संचालन समिति संरक्षण या कैद में प्रजनन के लिए चीतों को लाने के प्रस्तावों की जांच करेगी."

पहले योजना यह थी कि गांधी सागर और बन्नी में कुछ चीतों को ले जाने के लिए कुनो के चीतों की आबादी को स्रोत आबादी के रूप में लिया जाए, पर इसे तिलाजंलि दे दी गई. गोपाल ने संकेत दिया कि उन चीतों के लिए दो नए स्थल होंगे जो संभवत: केन्या और दक्षिण अफ्रीका से आयात किए जाएंगे. यादव ने खुलासा किया, "केन्या से बातचीत चल रही है. दस्तखत के लिए एमओयू को वन और पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है."

हालांकि समय सीमा नहीं बताई गई, पर सूत्रों का कहना है कि इस साल के अंत से पहले चीतों की तीसरी खेप आयात की जा सकती है. केन्याई और दक्षिणी अफ्रीकी चीते दो अलग-अलग उपप्रजातियों के हैं. गोपाल का कहना है कि केन्या से चीतों की उपप्रजातियों को लाना आनुवंशिक ताकत के लिए वांछनीय है, क्योंकि ये चीते 'विकासक्रम की बाधा’ से गुजर चुके हैं.

मगर भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के पूर्व डीन और चीता परियोजना (2009-2023) के प्रमुख वैज्ञानिक वाइ.वी. झाला के मुताबिक, उसी क्षेत्र में बसाने के लिए दोनों उपप्रजातियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: ''यह आयूसीएन के दिशानिर्देशों के खिलाफ है. इससे वैश्विक चीता संरक्षण कोशिशों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता खतरे में पड़ जाएगी." गोपाल अलबत्ता यह मानने को तैयार नहीं हैं.

इतना ही नहीं, जीववैज्ञानिकों ने यह चिंता जाहिर की कि गांधी सागर और बन्नी सफारी पार्क से मिलते-जुलते छोटे अहाते वाले बाड़े हैं. गोपाल जोर देकर कहते हैं कि बाड़ लगाना प्रजातियों के रचने-बसने तक महज अस्थायी उपाय है, जो पांच साल से ज्यादा नहीं चलेगा. जवाब में विशेषज्ञों की दलील है कि चूंकि चीते कम वक्त जीने वाले मांसाहारी जानवर हैं, इसलिए बाड़ वाले इलाके में पांच साल रहना आजीवन कारावास के बराबर है.

संरक्षणवादी बनाम नेता

बड़ी बिल्लियों की तेजी से हो रही मौत ने न केवल उनकी आबादी को बनाए रखने को लेकर फिक्र का तूफान बरपा दिया, बल्कि जीववैज्ञानिकों और परियोजना को संभालने वाले सरकारी अफसरों और सियासतदानों के बीच अप्रिय वाक्युद्ध भी छिड़ गया. जोर पकड़ने वाली एक दलील यह थी कि चूंकि भारत में चीतों पर विशेषज्ञता सीमित है, इसलिए अगर अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की सलाह ली गई होती, तो इन मौतों को टाला जा सकता था. एनटीसीए के मार्गदर्शन के लिए 2020 में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त निगरानी समिति को मई 2023 में अचानक भंग कर दिया गया.

कयास लगाए गए कि ऐसा करीब 80 दिनों के भीतर तीन शावकों सहित छह चीतों की मौत के बाद कई विशेषज्ञों की तरफ से की गई तीखी आलोचना की प्रतिक्रिया में किया गया. सीपीएससी में रणजीतसिंह और झाला सरीखे दिग्गज शामिल नहीं थे, जिन्होंने विस्तृत सीएपी तैयार की थी. रणजीतसिंह कहते हैं, "चीतों के आने के फौरन बाद हमारी समिति ने काम शुरू कर दिया और नियमित बैठकें हुईं. कुछ महीने बाद मुझे मीडिया से पता चला कि चीता टास्क फोर्स गठित कर दिया गया है, पर हम काम करते रहे. मार्च में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विशेषज्ञ समिति की जरूरत नहीं थी."

अग्रणी चीता विशेषज्ञों में से एक एड्रियन टॉर्डिफ और चीता मेटापॉपुलेशन प्रोजेक्ट के मैनेजर विंसेंट वन डर मेरवे सरीखे अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को सलाहकार के रूप में बनाए रखा गया. अलबत्ता अगस्त 2023 में टॉर्डिफ और वन डर मेरवे सहित चार अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट को लिखा कि उनसे कोई सलाह-मशविरा नहीं किया जा रहा है.

चीतों के लिए जिन दूसरे घरों पर विचार किया जा रहा था, उनमें राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क को डब्ल्यूआइआइ ने इसके 82 वर्ग किमी लंबे-चौड़े बाड़ से घिरे इलाके और अच्छे-खासे शिकार आधार की वजह से सबसे अच्छे प्रजनन स्थल के रूप में चुना था. मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र से कुछ चीतों को वहां स्थानांतरित करने पर विचार करने के लिए कहा, पर केंद्र ने ऐसा नहीं किया.

रिपोर्ट से संकेत मिला कि राजस्थान की सत्ता में उस वक्त कांग्रेस सरकार का होना इस आनाकानी की वजह थी. इस तरह गांधी सागर का 65 वर्ग किमी इलाका 17 करोड़ रुपए में बाड़ लगाकर घेरा गया और एक गांव कर्णपुरा को वहां से स्थानांतरित किया गया. तिस पर भी अधिकारी अब तस्दीक करते हैं कि कुछ तेंदुए जलमार्ग (सीमा के एक तरफ बांध का पानी है) से उस बाड़े में घुस गए, जिससे चीते दूसरे परभक्षियों के आगे बेबस और लाचार हो सकते हैं.

मध्य प्रदेश वन विभाग ने अगस्त 2024 में देश की संप्रभुता और अखंडता का हवाला देकर सूचना के अधिकार कानून के तहत चीता परियोजना के रिकॉर्ड साझा करने से इनकार कर दिया, जिससे परियोजना की साज-संभाल को लेकर जीववैज्ञानिकों के समुदाय की चिंता और बढ़ गई.

इस बीच पालपुर बेरंग तस्वीर पेश करता है, क्योंकि चीता संरक्षण के फायदे कहीं नजर नहीं आते. जंगल रिजॉर्ट कुनो के मालिक जिनेश जैन कहते हैं, "मेरे रिजॉर्ट में रूम ऑक्यूपेंसी 10-15 फीसद तक घट गई है, जिसे मैं इसलिए संभाल लेता हूं क्योंकि मैं हाइवे पर हूं. 2022 में खुले दो रिजॉर्ट बंद हो चुके हैं."

वन अधिकारियों ने पिछले साल सफारी शुरू की, पर जिस इलाके में चीतों को रखा गया है, वह आगंतुकों के लिए खुला नहीं है. जैन यह भी कहते हैं, "पहले जब चीते नहीं थे, हमारे यहां दूसरे वन्यजीवों को देखने के लिए मेहमान आते थे. मगर अब कारोबार खत्म हो गया है."

कभी जिस चीता परियोजना की फतह के रूप में जय-जयकार की जाती थी, वह अब विवादों, झटकों, और अपने भविष्य की दशा-दिशा को लेकर सवालों से घिरी है.

काल के गाल में समाते चीते

कुनो में दो साल से भी कम समय में कुल 37 चीतों में से आठ वयस्क और पांच शावकों की मौत हो गई

साशा (नामीबिया)

मौत की वजह किडनी बेकार हो गईं (27 मार्च, 2023)

उदय (दक्षिण अफ्रीका) 

मौत की वजह कार्डियो-पल्मोनरी फेलियर (23 अप्रैल, 2023)

दक्ष (दक्षिण अफ्रीका) 

मौत की वजह नर चीतों के साथ लड़ाई की वजह से घाव लग गए (9 मई, 2023)

तीन शावक (नामीबियाई चीता सियाया के भारत में जन्मे बच्चे) 

मौत की वजह  डिहाइड्रेशन या निर्जलीकरण (पहला 23 मई को और बाकी दो 25 मई, 2023 को)

तेजस (दक्षिण अफ्रीका) 

मौत की वजह गर्दन पर घाव की वजह से सेप्टीसीमिया (11 जुलाई, 2023)

सूरज (दक्षिण अफ्रीका)

मौत की वजह गर्दन पर घाव की वजह से सेप्टीसीमिया (14 जुलाई, 2023)

त्बिलिसी (नामीबिया)

मौत की वजह गर्दन पर घाव की वजह से सेप्टीसीमिया (2 अगस्त, 2023)

शौर्या (नामीबिया)

मौत की वजह कमजोर हो गई थी और इलाज के दौरान मर गई (16 जनवरी, 2024)

शावक (दक्षिण अफ्रीकी गामिनी का भारत में जन्मा बच्चा) 

मौत की वजह कमजोरी, मां के पास मृत पाया गया (5 जून, 2024)

शावक (गामिनी का बच्चा) 

मौत की वजह रीढ़ की हड्डी में चोट (5 अगस्त, 2024)

पवन (नामीबिया) 

मौत की वजह पानी में डूबने का अंदेशा (17 अगस्त, 2024)

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