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सितंबर ख़त्म होने से पहले ही दिल्ली की हवा में घुला जहर, सरकार क्या कर रही?

आम तौर पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्र अक्टूबर के मध्य से लेकर दिसंबर के मध्य तक गैस चैंबर सरीखे बन जाते हैं

पंजाब के फतेहपुर में धान के एक खेत में जलती पराली
पंजाब के फतेहपुर में धान के एक खेत में जलती पराली
अपडेटेड 21 अक्टूबर , 2024

पिछले छह साल में ऐसा पहली बार हुआ कि सितंबर का महीना खत्म होने से पहले ही दिल्ली की हवा में प्रदूषण तेजी से बढ़ गया. राष्ट्रीय राजधानी से मॉनसून विदा होते ही यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 'पुअर' यानी खराब दिखने लगा. 25 सितंबर को दिल्ली का एक्यूआई 235 (201 से 300 के बीच का स्तर 'पुअर' माना जाता है) पर पहुंच जाने के बाद केंद्र, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार समेत देश की शीर्ष अदालत भी हरकत में आ गई.

प्रधानमंत्री कार्यालय ने संबंधित राज्यों के साथ बैठक की तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों के प्रतिनिधियों को तलब किया. इन सबके बीच दिल्ली और इसके आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले करोड़ों लोगों को यह आशंका एक बार फिर से सता रही है कि उन्हें फिर से अगले कुछ महीने दमघोंटू हवा में गुजारने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

आम लोगों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस बात से हैरान हैं कि आखिर हर साल इस समस्या के समाधान का दावा करने वाली सरकारों के कामकाज में आखिर कहां कमी रह जा रही है. करोड़ों रुपए के बजट और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर कड़े कानूनी कदम उठाने के प्रावधानों के बावजूद, इस साल के शुरुआती आंकड़े बता रहे हैं कि पराली जलाने के मामले बढ़ गए हैं. आम तौर पर 15 सितंबर से पंजाब के किसान धान की फसल के बाद बची पराली जलाना शुरू करते हैं ताकि खेत अगली फसल के लिए तैयार हो सके. इस साल 15 से 22 सितंबर के सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि पंजाब में पराली जलाने के 63 मामले दर्ज किए गए, जबकि पिछले साल इस दौरान यह आंकड़ा सात था. इसी तरह हरियाणा में यह आंकड़ा पिछले साल के नौ के मुकाबले बढ़कर 34 पर पहुंच गया.

पराली जलाने के मामलों में तेजी आते देख प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई. इसमें केंद्र सरकार, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान सरकार और संबंधित एजेंसियों के अधिकारियों को बुलाया गया. बैठक में शामिल एक अधिकारी बताते हैं, "बैठक में जानकारी ली गई कि पराली जलाने के मामलों को रोकने के लिए राज्य सरकारों की तरफ से क्या किया जा रहा है. साथ ही पीएम के प्रधान सचिव ने यह भी कहा कि स्थिति बिगड़ने पर समयबद्ध तरीके से ग्रेडेड रिस्पॉन्स ऐक्शन प्लान (जीआरएपी) लागू करना चाहिए. जीआरएपी के तहत यह व्यवस्था बनाई गई कि स्थिति बिगड़ने पर किस-किस स्तर पर क्या-क्या एहतियाती कदम उठाए जाएंगे." बैठक में पी.के. मिश्रा ने दिल्ली पुलिस के आयुक्त को निर्देश दिया कि प्रतिबंध के बावजूद पटाखे जलाने वालों पर एजेंसियों की कार्रवाई सुनिश्चित की जाए.

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के चेयरमैन राजेश वर्मा भी इस बैठक में शामिल थे. उनके मुताबिक, पंजाब सरकार ने यह वादा किया है कि उसके यहां इस साल जो 1.95 करोड़ टन पराली होगी, उसमें से 1.15 करोड़ टन का प्रबंधन उसी स्थान (इन-सिटू) पर किया जाएगा और बाकी का अन्य स्थान (एक्स-सिटू) पर. वहीं हरियाणा में इस साल 81 लाख टन पराली निकलेगी और प्रदेश सरकार ने 33 लाख टन का इन-सिटू और बाकी का एक्स-सिटू निबटारा करने का वादा किया है. पराली प्रबंधन के लिए पंजाब में 1.5 लाख और हरियाणा में 90,000 से अधिक मशीनें काम करेंगी. वर्मा के मुताबिक, तकरीबन 20 लाख टन पराली को दिल्ली-एनसीआर के थर्मल पावर प्लांट में जलाया जाएगा.

लेकिन 3 अक्टूबर को जब इन आंकड़ों के साथ अन्य उपायों की जानकारी देने सीएक्यूएम सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने यह कहते हुए आयोग समेत राज्य सरकारों को लताड़ लगाई कि संबंधित एजेंसियां सिर्फ बैठकें कर रही हैं और जमीन पर कुछ नहीं हो रहा. अदालत ने इस बात पर भी कड़ा रुख अपनाया कि पराली जलाने के मामलों में कोई दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं हुई और जिन अधिकारियों पर यह जिम्मेदारी थी, लापरवाही बरतने पर उनके खिलाफ भी कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया.

प्रधानमंत्री कार्यालय में हुई बैठक और सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद पंजाब में पराली जलाने के मामलों में कमी आती दिख रही है. इस बारे में पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष आदर्शपाल विज बताते हैं, "तकरीबन 8,000 कर्मचारी जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं. किसानों को इन-सिटू और एक्स-सिटू दोनों तरह की मशीनें दी गई हैं. हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में पराली जलाने के मामलों में और कमी आएगी."

आम तौर पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्र अक्टूबर के मध्य से लेकर दिसंबर के मध्य तक गैस चैंबर सरीखे बन जाते हैं. इनमें सबसे बड़ी भूमिका पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की होती है. इस साल अगर फिर से यह समस्या गहराती है, जिसके संकेत दिखने लगे हैं, तो इसकी अपनी एक अलग तरह की राजनीति भी होगी. दरअसल, 2025 की जनवरी-फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव होने हैं.

दिल्ली में प्रदेश सरकार चलाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) इस मामले में पंजाब सरकार और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बताते हुए अपना पल्ला झाड़ती रही है. लेकिन पिछले ढाई साल से पंजाब में भी आप की ही सरकार है, इसलिए अब उसके पास यह विकल्प नहीं है. ऐसी स्थिति में केंद्र की सत्ताधारी और पिछले 26 वर्ष से दिल्ली प्रदेश की सत्ता से वनवास झेल रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस बार प्रदूषण को हर हाल में चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास करेगी.

दिल्ली सरकार इस संकट से निबटने के लिए क्या कर रही है, इस बारे में प्रदेश के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय कहते हैं, "केंद्र सरकार को संबंधित राज्यों के मंत्रियों के स्तर पर बैठक बुलानी चाहिए. हर साल सर्दियों में प्रदूषण बढ़ने से पहले ऐसी बैठक होती थी लेकिन इस साल अभी तक यह बैठक नहीं बुलाई गई है. पंजाब की योजना दिल्ली में नहीं बन सकती. दिल्ली ने जो योजना बनाई है उसके मुताबिक हम दिल्ली के खेतों में पराली पर बायो-डीकंपोजर का छिड़काव कर रहे हैं. पंजाब सरकार पराली के समाधान के लिए अपनी योजना पर काम कर रही है."

इस समस्या के दीर्घकालिक समाधान की राह सुझाते हुए कृषि वैज्ञानिक मनोज कुमार सिंह कहते हैं, "आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले कुछ साल में स्थितियां सुधरी हैं लेकिन अब भी उतना सुधार नहीं आया कि आम लोग इसे महसूस कर सकें. पंजाब और हरियाणा सरकार जो आंकड़े दे रही हैं, अगर वह सही है तो किसानों को ऐसी मशीनें उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिनके जरिए वे पराली का इन-सिटू प्रबंधन कर सकें. समय के साथ इन मशीनों की संख्या और बढ़नी चाहिए लेकिन सबसे जरूरी है किसानों को जमीनी स्तर पर इस बात के लिए जागरूक किया जाए कि इन मशीनों का प्रभावी इस्तेमाल कैसे करना है और इससे उन्हें और उनकी फसल को क्या लाभ होगा."

दुनिया में सबसे अधिक धान का उत्पादन चीन में होता है. वहां भी यह दिक्कत थी. पुरानी पीढ़ी के किसान पराली प्रबंधन का मतलब इसे जलाना ही समझते थे. मनोज कुमार यह जानकारी साझा करते हुए बताते हैं, "वहां की एजेंसियों ने लगातार प्रयास करके नई पीढ़ी के किसानों में पराली प्रबंधन के अधिक पर्यावरण अनुकूल प्रभावों को लोकप्रिय बनाया. चीन के जिन खेतों में इन उपायों को अपनाया गया, वहां यह भी देखा गया कि 10 प्रतिशत तक धान का उत्पादन बढ़ा. चीन के बाद धान उत्पादन में भारत का ही नंबर है. अगर चीन अपने यहां ऐसा कर सकता है तो हमें भी ऐसा करके इस समस्या का समाधान जड़ से करना चाहिए."

पराली जलाने वाले इन जिलों पर खास नजर

पंजाब: अमृतसर, तरनतारन, फिरोजपुर, गुरदासपुर, कपूरथला, संगरूर, एसएएस नगर, जालंधर, लुधियाना, पटियाला, फाजिल्का, मालेरकोटला, फतेहगढ़ साहिब

हरियाणा: करनाल, कुरूक्षेत्र, कैथल, अंबाला, फरीदाबाद, सोनीपत, यमुनानगर

उपाय
इन-सिटू प्रबंधन
एक्स—सिटू प्रबंधन
पराली प्रबंधन करने वाली मशीनें
कानूनी कार्रवाई
पराली जलाने वालों पर मामला दर्ज
पटाखों पर पाबंदी

दिक्कत
- पराली का खेत में ही निबटारे का यह तरीका लोकप्रिय नहीं
- पराली ढुलाई का खर्च अधिक होने से प्रभावी नहीं 
- इनकी संख्या कागजों पर तो अधिक दिखती है लेकिन जमीन पर कम है. कभी कोई मशीन खराब हो जाए तो मरम्मत समय से नहीं हो पाती
- कम लागत में रबी फसल के लिए खेत तैयार करने की किसानों की मजबूरी की वजह से पुलिस कार्रवाई करने में हिचकती है
- मामला दर्ज होने के बावजूद संबंधित किसानों पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो पाती
- दीवाली के आसपास लोग पाबंदी के बावजूद जमकर पटाखे जलाते हैं और ऐसा करने वाले सभी लोगों पर कार्रवाई व्यावहारिक रूप से बेहद मुश्किल है

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