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दिल्ली : तो क्या अब मुखर्जी नगर की 'आईएएस फैक्ट्री' गुजरे जमाने की बात हो जाएगी?

हिंदी माध्यम में सिविल सेवा (आईएएस, पीसीएस) की तैयारी के सबसे बड़े केंद्र दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थानों के सामने कैसे अस्तित्व का संकट आ गया है

मुखर्जी नगर का एक दृश्य/एक्स
मुखर्जी नगर /एक्स
अपडेटेड 5 अक्टूबर , 2024

पलामू जिले के एक छोटे से गांव से आईएएस अधिकारी बनने का सपना संजोए विश्वजीत कुमार इस साल जनवरी की एक सर्द सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे और करीब 10 किलोमीटर दूर मुखर्जी नगर पहुंचे. मुखर्जी नगर इसलिए क्योंकि झारखंड के इस युवा को हिंदी माध्यम में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करनी थी.

मुखर्जी नगर से सटे गांधी विहार में पहले से उनके दो दोस्त एक कमरा लेकर रह रहे थे. कमरे का किराया अधिक था तो ये दोनों तीसरे रूम पार्टनर की तलाश में थे. विश्वजीत उनके तीसरे रूम पार्टनर बन गए. वे कहते हैं, ''छोटे से कमरे में तीन लोगों का गुजारा इसलिए भी होने लगा क्योंकि कोई कमरे में पढ़ाई नहीं करता था बल्कि सब पढ़ने के लिए प्राइवेट लाइब्रेरी जाते थे."

वे आगे बताते हैं, "शुरू में बहुत दिक्कत हुई लेकिन ये दिक्कतें सिर्फ मेरी नहीं थीं, बल्कि सभी अभ्यर्थियों की थी. इसलिए मैंने इन्हें 'न्यू नॉर्मल' मानकर स्वीकार कर लिया. घर वाले पूछते थे तो मैं उन्हें यही बताता था कि सब ठीक है और मैं अच्छे से रह रहा हूं.''

इस बीच जुलाई के आखिरी हफ्ते में ओल्ड राजेंद्र नगर में राउज आईएएस स्टडी सर्कल कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में चल रही संस्थान की लाइब्रेरी में अचानक पानी भर जाने से तीन छात्रों की मौत हो गई. इस हादसे ने राष्ट्रीय स्तर पर काफी सुर्खियां बटोरीं. विश्वजीत बताते हैं, ''जब टीवी पर दिखाया जाने लगा कि किस तरह की अमानवीय परिस्थितियों में रहकर यहां सामान्य परिवारों के छात्र तैयारी कर रहे हैं तो मेरे मां-बाप भी चिंतित होने लगे. मेरे पापा दिल्ली आए और कमरे से लेकर बाकी सारी चीजों को देखने के बाद वे मुझे लेकर झारखंड वापस आ गए. तब से मैं ऑनलाइन क्लासेज कर रहा हूं.''

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी करने के लिए दो प्रमुख केंद्र हैं. इनमें ओल्ड राजेंद्र नगर मुख्य तौर पर अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए तो मुखर्जी नगर हिंदी माध्यम के छात्रों के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर जाना जाता है. जुलाई वाले हादसे के बाद कोचिंग संस्थानों और स्टडी सेंटर्स के तौर पर चल रही प्राइवेट लाइब्रेरियों के खिलाफ बेहद नाराजगी का माहौल बना. 

इसका असर यह हुआ कि दिल्ली नगर निगम और फायर विभाग के अलावा दूसरी संबंधित एजेंसियां भी हरकत में आईं. ओल्ड राजेंद्र नगर की सड़कों पर निगम बुल्डोजर लेकर आ गया और अवैध निर्माण ढहाए गए. एजेंसियों की कार्रवाई हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के मुख्य केंद्र मुखर्जी नगर तक भी पहुंची. 

मुखर्जी नगर में बतरा सिनेमा के आसपास के जिस इलाके में अधिकांश कोचिंग संस्थान हैं, उनकी बसावट कुछ ऐसी है कि बहुत कम और संकरी जगहों में ये संस्थान चलाए जा रहे थे. चार-पांच फ्लोर की बिल्डिंग में कई बार अलग-अलग कोचिंग की क्लास चलती हैं. आने-जाने का एक ही रास्ता होता है. वैकल्पिक फायर एग्जिट की व्यवस्था नहीं होती. 15 जून, 2023 को यहां एक कोचिंग संस्थान में शॉर्ट सर्किट से आग लगी और निकलने का मुख्य रास्ता बाधित हो गया. इसमें 50 से अधिक छात्र घायल हुए थे. इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और मामले की सुनवाई चलने लगी.

लेकिन इस बीच जब ओल्ड राजेंद्र नगर वाली घटना हुई और राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनते हुए संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई. मुखर्जी नगर में यूपीएससी की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों के लोग कह रहे हैं कि जितने भी बड़े कोचिंग संस्थान थे, उनमें से अधिकांश की क्लासेज बंद हैं और सिर्फ उनके कार्यालय चल रहे हैं. जिन बच्चों ने इन संस्थानों में दाखिला लिया था, वे ऑनलाइन क्लासेज ले रहे हैं क्योंकि यहां एजेंसियों की तरफ से साफ निर्देश है कि जिनके पास भी फायर क्लियरेंस या अन्य जरूरी क्लियरेंस नहीं है, वे क्लास नहीं चला सकते.

दिल्ली में तकरीबन 2,000 कोचिंग संस्थान हैं. इनमें से बमुश्किल 100 ऐसे होंगे जिनके पास कॉमर्शियल फायर एनओसी है. दिल्ली में मुखर्जी नगर के अलावा लक्ष्मी नगर और जिया सराय जैसे जो भी अलग-अलग परीक्षाओं को कोचिंग हब हैं, करीब-करीब सबकी स्थिति कमोबेश ऐसी ही है. मुखर्जी नगर में कुछ कोचिंग संस्थान के लोग यह दावा कर रहे हैं कि उनके पास फायर एनओसी है. लेकिन नगर निगम के अधिकारी कहते हैं कि मुखर्जी नगर के लोगों के पास ऑफिस चलाने की एनओसी है, न कि कोचिंग चलाने की और दोनों में काफी फर्क होता है.

हिंदी माध्यम में यूपीएससी की तैयारी कराने वाले सबसे बड़े कोचिंग संस्थान दृष्टि आईएएस ने मुखर्जी नगर में अपनी सारी क्लासेज हमेशा के लिए बंद करने का फैसला लिया है. यह संस्थान दिल्ली से सटे नोएडा में अपनी क्लासेज को शिफ्ट करने की प्रक्रिया में है.

दृष्टि आईएएस के नोएडा शिफ्ट होने की योजना के बारे में इसके संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति बताते हैं, ''हमने अपने विद्यार्थियों से बात की. हमारे सामने पांच विकल्प थे—करोल बाग, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, नरेला और रोहिणी. डीडीए की तरफ से नरेला और रोहिणी का विकल्प आया था. इसमें करोल बाग और नोएडा पर करीब-करीब एक तरह की राय आई. इसलिए हमने तय किया कि हम करोल बाग और नोएडा दोनों जगह काम करेंगे.''

दिव्यकीर्ति के मुताबिक वे हिंदी मीडियम का एक हब बनाना चाहते हैं. करोल बाग में यह मुमकिन नहीं था इसलिए नोएडा का विकल्प चुना. वे अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, ''हमने ऐसे विकल्पों पर विचार किया जिनमें सारे क्लियरेंस हों और आसपास हर जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर हो. हमने जो जगह चुनी है, उसके बारे में हमारा अनुमान है कि एक से डेढ़ साल में वहां 6,000 से 10,000 बच्चों के रहने की व्यवस्था हो जाएगी और वह भी मुखर्जी नगर से दो-तिहाई खर्च पर.''

दिल्ली के मुखर्जी नगर में दृष्टि आइएएस कोचिंग सेंटर में क्लास बंद हो चुकी हैं

दृष्टि आईएएस नवंबर से नोएडा में क्लास शुरू कर सकता है और संस्थान छात्रों को करोल बाग और नोएडा दोनों में से कहीं भी क्लास करने का विकल्प देगा. यह जानकारी देते हुए दिव्यकीर्ति उम्मीद जताते हैं कि मुखर्जी नगर का विकल्प नोएडा बनेगा न कि करोल बाग. वे कहते हैं, ''नोएडा में एक हब विकसित हो जाएगा. छह महीने से एक साल में पूरा ईकोसिस्टम विकसित हो जाएगा. पीजी वालों, टिफिन सर्विस देने वालों और किताबों की दुकान चलाने वालों में से बहुत सारे लोगों ने नोएडा शिफ्ट होने में रुचि दिखाई है.'' 

पिछले करीब तीन दशक से करियर प्लस के नाम से मुखर्जी नगर में यूपीएससी कोचिंग चलाने वाले अनुज अग्रवाल कहते हैं, ''आज जो हालात हैं, उनमें मुखर्जी नगर इतिहास बनने की तरफ बढ़ रहा है. जो बहुत बड़े संस्थान हैं और जिनके पास काफी फंडिंग है, वे तो आसपास के इलाकों में अपना वैकल्पिक ढांचा तैयार कर सकते हैं लेकिन अधिकांश संस्थानों के लिए बदली हुई परिस्थितियों में यहां काम करना संभव नहीं है. यहां बिल्डिंग इस तरह से बनी हैं कि सभी शर्तों का पूरा नहीं किया जा सकता. अभी स्थिति यह है कि अंदर की गलियों में छोटे-छोटे क्लासरूम्स में तैयारी कराई जा रही है.''

ओल्ड राजेंद्र नगर में जीएस स्कोर कोचिंग संस्थान के निदेशक मनोज कुमार झा के मुताबिक, ''ओल्ड राजेंद्र नगर की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. जुलाई की दुर्घटना के बाद 30-40 फीसद छात्रों ने अपने कोर्सेज को ऑफलाइन से ऑनलाइन मोड में करा लिया है और यहां 30 से 50 प्रतिशत तक एडमिशन में कमी आई है.''

इसका असर प्राइवेट लाइब्रेरीज पर भी काफी पड़ा है. ओल्ड राजेंद्र नगर में आर.के. रीडिंग हब लाइब्रेरी के संचालक सुनील सिंह कहते हैं, ''कोचिंग संस्थानों से लेकर लाइब्रेरी चलाने वालों को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए काम करना होगा क्योंकि सबसे बड़ी चीज है कि हम पर छात्रों का भरोसा बना रहे. हमने अपनी लाइब्रेरी के जो भी केंद्र खोले हैं, सभी जरूरी क्लियरेंस के बाद ही खोले हैं. हमारी योजना मुखर्जी नगर में विस्तार की थी लेकिन अब हमने रुकने का मन बनाया है.''

मुखर्जी नगर हिंदी माध्यम में तैयारी का मुख्य केंद्र बना रहे, इसके लिए अनुज अग्रवाल कहते हैं, ''पिछले एक साल से लगातार मैं विभिन्न फोरम पर मांग उठा रहा हूं कि मुखर्जी नगर के आसपास के स्कूलों और कॉलेजों की बिल्डिंग दोपहर दो बजे के बाद कोचिंग संस्थानों को दे दी जाएं. कोचिंग संस्थान किराया दें और सरकार चाहे तो जो ईडब्ल्यूएस की व्यवस्था स्कूलों में है, वैसी कोई व्यवस्था आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए बना सकती है. इससे स्कूल और कॉलेजों की भी आमदनी होगी और इनके भवन तय मानकों के अनुरूप बने होते हैं तो कोई सुरक्षा संबंधित दिक्कत भी नहीं आएगी. इससे मुखर्जी नगर का पूरा ईकोसिस्टम यहीं रह जाएगा क्योंकि कोई भी नया सेंटर नए सिरे से विकसित करने में कई वर्ष लग जाएंगे.''

दरअसल, मुखर्जी नगर में पहली बार समस्या 2005-06 के आसपास तब आई जब सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के बाद दिल्ली में सीलिंग होने लगी. इसमें कहा गया था कि किसी भी रिहाइशी इलाके में कारोबारी गतिविधि नहीं चलनी चाहिए. इसके बाद मास्टर प्लान 2021 आया. इसमें मिम्ड लैंड यूज का कॉन्सेप्ट आया. इसमें यह तय हुआ कि मुखर्जी नगर का एक हिस्सा कॉमर्शियल होगा और दूसरा मिक्सड लैंड यूज होगा. इसके तहत व्यवस्था बनाई गई कि कनवर्जन चार्जेज का भुगतान करके कोचिंग चला सकते हैं. लोगों ने ऐसा करा लिया और समस्या खत्म हो गई.

लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट में पिछले साल आग लगने की घटना का मामला चल रहा है. दरअसल, दिल्ली में 2010 में फायर सेफ्टी से संबंधित नियम बने थे. इनमें नियम संख्या 27 में यह कहा गया है कि जो रिहाइशी भवन 15 मीटर की उंचाई तक हैं यानी जो ग्राउंड प्लस तीन फ्लोर हैं, वहां फायर एनओसी की जरूरत नहीं है. मास्टर प्लान 2021 कहता है कि आप रिहाइशी बिल्डिंग में कोचिंग चला सकते हैं.

इस वजह से यह माना गया कि रिहायशी भवनों में कोचिंग चलाने के लिए फायर एनओसी की जरूरत नहीं है. जब अदालत ने कड़ा रुख अपनाया तो दिल्ली फायर विभाग ने एजुकेशनल बिल्डिंग के बारे में यह व्याख्या की कि 9 मीटर की उंचाई तक वाली बिल्डिंग में फायर एनओसी नहीं चाहिए, इसका मतलब कि ग्राउंड और पहली मंजिल पर जो शैक्षणिक संस्थान हैं, उन्हें एनओसी नहीं चाहिए. लेकिन 10 मई को हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि चाहे किसी भी फ्लोर पर शैक्षणिक गतिविधि चल रही हो, सभी के लिए एजुकेशनल एनओसी अनिवार्य है. 

एमसीडी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक जब तक एजुकेशनल एनओसी नहीं मिल जाती, तब तक पूरे मुखर्जी नगर में एक भी संस्थान नहीं चलेगा. अब सवाल यह उठता है कि आखिर एजुकेशनल एनओसी मिलना इतना कठिन क्यों है?

दरअसल, एजुकेशनल एनओसी के नियम ऐसे हैं कि मुखर्जी नगर की मौजूदा बिल्डिंग्स को यह नहीं मिल सकता. इसके लिए पूरी बिल्डिंग तोड़कर नियमों के हिसाब से फिर से निर्माण करना होगा. मसलन एक नियम यह है कि जिस भी बिल्डिंग में शैक्षणिक गतिविधि चलेगी, वहां दो सीढ़ियां होनी चाहिए. मुखर्जी नगर प्लॉट का आकार अपेक्षाकृत छोटा है इसलिए यहां पांच फुट की दो सीढ़ियां बनाने का मतलब है कि आधी जगह सीढ़ी में ही चली जाएगी. इस नाते इस नियम का पालन करना व्यावहारिक नहीं माना जा रहा. 

लंबे समय से हिंदी माध्यम में सिविल सेवा की तैयारी का प्रमुख केंद्र रहने की वजह से ऐसे बहुत सारे अधिकारी, शिक्षक और छात्र हैं, जिनके लिए मुखर्जी नगर सिर्फ स्थान भर नहीं है, बल्कि उनका इस जगह से एक भावनात्मक लगाव है. इस कोचिंग हब के भविष्य के बारे में दिव्यकीर्ति कहते हैं, ''मेरे मन में मुखर्जी नगर के प्रति एक गहरा लगाव हमेशा रहेगा लेकिन हिंदी माध्यम के गढ़ के नाते मुझे इसका भविष्य नहीं दिखता. एक समय हिंदी माध्यम का गढ़ इलाहाबाद होता था. बाद में मुखर्जी नगर हुआ. मैं आज के पांच साल बाद देख पा रहा हूं कि हिंदी माध्यम का गढ़ नोएडा होगा.''

सुप्रीम कोर्ट में 20 सितंबर और 15 अक्तूबर को हाई कोर्ट में अगली सुनवाई होनी है. अब मुखर्जी नगर का भविष्य क्या होगा, यह काफी हद तक अदालती निर्णय पर भी निर्भर करेगा.

कुछ आंकड़े

- 58,088 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार करता है भारत का कोचिंग उद्योग

- 3,000 करोड़ रुपए का बाजार है यूपीएससी कोचिंग उद्योग का

- 1,33,000 करोड़ रुपए का आकार होने का अनुमान है भारतीय कोचिंग उद्योग का 2028 तक

स्रोत: केपीएमजी और गूगल की रिपोर्ट

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